Consultation in Corona Period-27

Consultation in Corona Period-27



Pankaj Oudhia पंकज अवधिया



"मेरे ससुर को Progressive Supranuclear Palsy (PSP) नामक बीमारी है और यह असाध्य हो चुकी है। 


उनकी दवाएं बंद है और वे सामान्य जीवन जीने की कोशिश कर रहे हैं। 


उन्हें बहुत सारी तकलीफें है। पिछले कुछ दिनों से उनकी तकलीफ बढ़ गई है। वे बहुत बेचैन रहते हैं और दिन भर बड़बडाते रहते हैं।


 बार-बार अपने बिस्तर की चादर को खींचते रहते हैं और उसे फाड़ देते हैं।


 हमारे यहां लॉकडाउन लगा हुआ है और स्थिति बद से बदतर होती जा रही है इसलिए मैं उन्हें डॉक्टर के पास नहीं ले जा पा रही हूं। 


क्या आप कोई घरेलू औषधि बतायेंगे जिसकी सहायता से उन्हें स्थाई रूप से आराम दिलाया जा सके?


इसलिए मैंने आपको फोन किया है। मुझे आपसे बहुत उम्मीद है।" प्रोफेसर वन्दना का यह फोन अहमदाबाद से आया था।


 वे बहुत परेशान लग रही थी। मैंने उनसे कहा कि मैं आपकी मदद करूंगा।


मैंने स्थानीय न्यूरोलॉजिस्ट से उनकी बात करवाई पर बाद में न्यूरोलॉजिस्ट ने मुझे बताया कि स्थिति बहुत बिगड़ गई है इसीलिए वे कोई दवा नहीं देना चाहते हैं।


 मैंने वंदना की मदद करने का मन बनाया। 


मैंने उन्हें बताया कि छत्तीसगढ़ की पारंपरिक चिकित्सा में नकुल भोग नामक औषधीय धान का प्रयोग इस समस्या के लिए किया जाता है पर इस कोरोनावायरस काल में इस पारंपरिक धान का प्रबंध कर पाना बड़ा मुश्किल है इसलिए आपके पास उपलब्ध दवाओं से ही आपके ससुर को आराम दिलाने की कोशिश मैं करूंगा।


 यह बताइए कि आप के घर के सामने या आसपास गार्डन है? 


उन्होंने बताया कि उनका अपना गार्डन है घर में और वह बहुत बड़ा है। उसमें नाना प्रकार की वनस्पतियां लगी हुई है।


 मैंने उनसे कहा कि उनके गार्डन में उपस्थित सभी वनस्पतियों की सूची वे मुझे भेजें। हो सकता है इनमें से कोई समस्या का समाधान कर दे।


 उन्होंने ऐसा ही किया और जल्दी ही मुझे वनस्पतियों की सूची मिल गई। 


उस सूची में तेलिया कन्द का नाम देखकर मैं चौका और मैंने पूछा कि यह आपको कहां से मिला?


 उन्होंने बताया कि उनकी सास को कैंसर था और जब सारे उपाय असफल साबित हुए तो उन्होंने चार लाख रुपये देकर राजस्थान के किसी व्यक्ति से तेलिया कंद खरीदा था पर उनकी सास की जान नहीं बची। 


सास के जाने के बाद उन्होंने इस कंद को अपने बगीचे में लगा दिया और अब वह बढ़ने लगा है। 


मैंने उनसे कहा कि आप उस तेलिया कंद की फोटो मुझे भेजें। जब मैंने फोटो देखी तो मुझे यह अंदाज हो गया कि उन्हें तेलिया कंद के नाम पर कोई दूसरा कंद दिया गया है। 


ध्यान से देखा तो पता चला कि वह भस्म कंद था। मैंने उन्हें उसी समय कहा कि आपके साथ बड़ी ठगी हुई है। यह तेलिया कंद नहीं है।


 आप चाहे तो मेरा नाम लेकर उस व्यक्ति से फिर से संपर्क कर सकती हैं और कह सकती है कि पंकज अवधिया ने कहा है कि यह ठगी है क्योंकि यह तेलिया कंद न होकर भस्म कंद है। आप हमारे पैसे तुरंत वापस करिए अन्यथा हम पुलिस केस करेंगे। 


वंदना ने ऐसा ही किया और फिर शाम तक उनका फोन आया कि उनके अकाउंट में तीन लाख रुपये वापस लौट गए हैं और शेष जल्दी ही आ जाएंगे। 


मैंने वंदना से कहा कि मुझे बताएं  उनके घर के आसपास होम्योपैथी की दुकान है क्या?


 उन्होंने कहा कि उनका छोटा भाई होम्योपैथ है और उसकी दुकान पास में ही है। 


मैंने उनसे कहा कि मैं 4 औषधीयों के नाम लिख रहा हूं। आप उन्हें तुरंत मंगा ले थोड़ी अधिक मात्रा में।


 वंदना ने पूछा कि क्या आप ससुर जी को होम्योपैथी दवाएं देना चाहते हैं? क्या आप होम्योपैथ हैं?


 मैंने कहा मैं होम्योपैथ नहीं हूं और यह दवा मैं उन्हें नहीं दे रहा हूं। जब आप दवाएं ले आइएगा तब मुझे फोन करिएगा।


 दवाओं को लाने के बाद फिर से मुझे फोन लगाया गया। मैंने वंदना को बताया कि एक विशेष विधि से इन दवाओं को आपस में मिलाकर भस्म कंद के पौधे को पूरी तरह से सींचा जाए और फिर उस समय को नोट कर लिया जाए। 


ठीक बारह घंटों के बाद कंद को खोदा जाए फिर उसमें पानी मिलाकर गाढ़ा लेप बनाया जाए।


 उसके बाद फिर मुझे फोन किया जाए।


 वंदना को यह सब बड़ा अटपटा लगा फिर भी उन्होंने मेरी बात मानी।


 सुबह जब फोन आया कि गाढ़ा लेप तैयार हो गया है तब मैंने वंदना से कहा कि वे इस लेप को ससुर के तलवों को साफ करके उसमें लगा दे और सूखने पर उसे धो दें।


 ऐसा हर घंटे करना है और तब तक करना है जब तक कि बेचैनी पूरी तरह से खत्म न हो जाए। वंदना ने ऐसा ही किया और जल्दी ही अच्छे परिणाम मिलने लगे।


 कृषि की विधिवत शिक्षा लेते वक्त मेरे मन में था कि मैं होम्योपैथी दवाओं के पौधों पर पड़ने वाले प्रभाव पर विशेष प्रयोग करुं पर इसके लिए होम्योपैथी को पढ़ना जरूरी था।


 कृषि की शिक्षा के लिए नियमित तौर पर कॉलेज जाना होता था इसलिए रेगुलर कोर्स के रूप में होम्योपैथी पढ़ना बड़ी दिक्कत की बात थी। मैंने होम्योपैथी की बहुत सारी किताबें खरीदी थी और उसके सिद्धांत को समझने लग गया था।


 हमारे निजी चिकित्सक ने बताया कि दक्षिण की कोई संस्था है जो पत्राचार से होम्योपैथी पढ़ाती है। उसकी कोई मान्यता नहीं है पर यदि आप शौकिया पढ़ना चाहते हैं तो यह काफी कारगर है। 


आप अपनी क्षमता के अनुसार इस कोर्स को 1 महीने से लेकर कई सालों तक में पूरा कर सकते हैं पर आपको उपाधि तभी मिलेगी जब आप किसी निजी चिकित्सक के साथ बैठकर 1,000 से अधिक केस को विस्तार से देखेंगे और उसके बारे में लिखेंगे। यह मेरे लिए नया अनुभव था।


 मैंने एक साल में ही यह कोर्स पूरा किया और होम्योपैथी को पूरी तरह से जान लिया।


 हमारे चिकित्सक ने बताया कि उस समय रायपुर में बहुत से ऐसे डॉक्टर थे जो इस गैर मान्यता प्राप्त उपाधि के आधार पर अपनी दुकान चला रहे थे। उन्होंने कहा कि अगर आप तीस हजार दें तो आपका भी रजिस्ट्रेशन हो सकता है।


 मुझे होम्योपैथी डॉक्टर तो बनना नहीं था। कृषि वैज्ञानिक बनने की राह में मैं था और मुझे इंसानों पर नहीं पौधों पर इसके प्रभाव को देखना था इसलिए मैंने उन्हें विनम्रतापूर्वक इंकार कर दिया।


 उस समय मुश्किल यह थी कि एग्रोहोम्योपैथी (Agro homeopathy) पर दुनिया में किसी ने वैज्ञानिक ढंग से काम नहीं किया था। किसी भी प्रकार का शोध पत्र उपलब्ध नहीं था इसलिए होम्योपैथिक दवाओं को कैसे पौधों पर डाला जाए यह एक बड़ी समस्या थी जो कई सालों बाद सुलझी। 


मैंने सभी खाद्यान्न फसलों पर प्रयोग किए, मशरूम पर प्रयोग किए और उसके बाद सफेद मूसली जैसी औषधीय फसलों पर प्रयोग किए। इस बीच मुझे सफलता भी मिली और असफलता भी।


औषधीय फसलों की खेती में इस विज्ञान ने बहुत मदद की विशेषकर जब औषधीय फसलों की खेती समस्याग्रस्त मिट्टियों में की जाती है तब उनके औषधीय गुणों में बहुत कमी हो जाती है।


 ऐसे में इन दवाओं का प्रयोग करने से उनके औषधीय गुणों में वांछित बढ़ोतरी हो जाती है।


 मैंने इस बारे में बहुत लिखा और अगर आप इंटरनेट में एग्रो होम्योपैथी की खोज करेंगे तो मेरे बहुत सारे शोध 

दस्तावेज आपको मिलेंगे।


 प्रयोग अभी भी जारी है। इसमें मैं ऐसी विधि का प्रयोग करता हूं जिसके बारे में विशेषज्ञों को कम जानकारी है।


दुनिया भर के लोग जब परामर्श के लिए मेरे पास आते हैं तो उन्हें मैं यदा-कदा यह कह देता हूं कि आप अपने होम्योपैथ से मिलें और उनसे कहें कि इस दवा का प्रयोग करें। 


तब वे प्रश्न करते हैं कि आप क्यों नहीं होम्योपैथी दवा दे देते हैं?


 मैं कहता हूँ कि मैं चिकित्सक नहीं हूं। बस मैंने उस विज्ञान का अध्ययन किया है। 


बेहतर यही होगा कि आप चिकित्सक की सहायता से इस दवा को ले। वे ही इसे अच्छे से समझते हैं।


 हमारे बुजुर्ग सही कहते हैं कि ज्ञान कभी बेकार नहीं जाता है। आज इसी ज्ञान ने वंदना की बहुत मदद की।


सर्वाधिकार सुरक्षित

Comments

Popular posts from this blog

गुलसकरी के साथ प्रयोग की जाने वाली अमरकंटक की जड़ी-बूटियाँ:कुछ उपयोगी कड़ियाँ

कैंसर में कामराज, भोजराज और तेजराज, Paclitaxel के साथ प्रयोग करने से आयें बाज

भटवास का प्रयोग - किडनी के रोगों (Diseases of Kidneys) की पारम्परिक चिकित्सा (Traditional Healing)