Consultation in Corona Period-41

Consultation in Corona Period-41



Pankaj Oudhia पंकज अवधिया


"वे कह रहे हैं कि आप को गले का कैंसर हो सकता है। 


भले ही यह रिपोर्ट में न दिख रहा हो पर इसकी संभावना है और अगर आप चाहे तो वे आप का इलाज कर सकते हैं ताकि आपको भविष्य में कैंसर होने की सारी संभावनाएं पूरी तरह से समाप्त हो जाए।"


 रशिया से आई एक युवा दंपत्ति को मैं बस्तर के एक पारंपरिक चिकित्सक की बात समझा रहा था। 


शादी के तुरंत बाद उन सज्जन की तबीयत तेजी से बिगड़ने लगी थी। रशिया में उन्होंने सभी तरह के टेस्ट करवाएं पर किसी भी बीमारी का पता नहीं चला।


 जब वे भारत घूमने के लिए आये तो उन्होंने मेरा एक शोध पत्र पढ़ा और उसी के आधार पर मुझे खोजते खोजते रायपुर पहुंचे।


 अपनी सारी रिपोर्ट दिखाते हुए मुझसे कहने लगे कि मैं उनकी कुछ मदद करूं। 


उस समय मैं कॉलेज में पढ़ता था और मुझे अधिक अनुभव नहीं था। मैंने उन्हें सुझाव दिया कि बस्तर में एक पारंपरिक चिकित्सक है जो मेरे पहचान के हैं।


 आप चाहे तो मैं आपको उनके पास ले जा सकता हूं। 


वे तैयार हो गए।


जब हम पारंपरिक चिकित्सक के पास पहुंचे तो पारंपरिक चिकित्सक ने उनसे कहा कि आप जूते चप्पल उतार लीजिए और नंगे पांव इस जड़ी बूटी के घोल पर खड़े हो जाइए।


अब इस घोल में पड़ी जड़ी बूटियों को लंबे समय तक अपने पैरों से कुचलते रहिए।


 इस बीच पारंपरिक चिकित्सक कभी उनका कान देखते तो कभी उनकी नाक। कभी उनकी हथेलियां देखते तो कभी उनके घुटने। कभी उनके सिर को छूकर देखते तो कभी मुंह में बदल रहे स्वाद के बारे में पूछते। 


यह क्रम 15 से 20 मिनट तक चलता रहा। 


उसके बाद उन्होंने बताया कि आप को गले का कैंसर हो सकता है। 


सज्जन को बड़ा आश्चर्य हुआ क्योंकि उनकी सारी रिपोर्ट तो बिल्कुल ठीक आ रही थी। 


इसलिए मैंने उन्हें समझाया कि भारत की पारंपरिक चिकित्सा में ऐसे मरीजों की पहचान की जा सकती है जिन्हें कि भविष्य में कैंसर होने वाला है।


 एक बार कैंसर के लक्षण आ जाने पर और रिपोर्ट में दिख जाने के बाद इसकी चिकित्सा बहुत कठिन हो जाती है इसलिए बेहतर यही है कि कैंसर का पहले से पता चल जाए।


 यह ज्ञान हमारे पास पीढीयों से है।


 सज्जन ने पारंपरिक चिकित्सक से दवाई लेने का मन बनाया और दो साल तक उनकी दवाएं लेते रहे। धीरे-धीरे वे पूरी तरह से तंदुरुस्त हो गये और उन्हें जो समस्याएं थे वे सभी ठीक हो गई।


उनके प्रथम भारत आगमन के 12 वर्षों बाद उन्होंने मुझसे फिर से संपर्क किया। 


उन्होंने बताया कि अब वे रशिया में एक नई जगह पर रहते हैं और वहां उन्होंने बहुत बड़ा इलाका खरीद लिया है। वहां वे सब्जियों की खेती कर रहे हैं।


 खेत के पास ही घर है और हम दोनों पति-पत्नी दिनभर खेती के कार्यों को देखते रहते हैं। 


उन्होंने आगे बताया कि पिछले कुछ महीनों से पति- पत्नी दोनों को सांस लेने में तकलीफ हो रही थी। तरह तरह की दूसरी समस्याएं हो रही थी। ऐसा लग रहा था कि फेफड़े में कुछ अटक सा रहा है। 


हमने पूरी जांच कराई तो पता चला कि दोनों को लंग कैंसर है।


 हम लोगों को उसी समय बस्तर के पारंपरिक चिकित्सक की याद आई पर उनसे संपर्क करने पर पता चला कि वे तो ज्ञानमठ सिधार चुके हैं इसलिए हम आपसे संपर्क कर रहे हैं। 


क्या आप हमारी मदद कर सकते हैं? 


मैंने उनकी रिपोर्ट मंगाई और कहा कि अगर संभव हो तो रायपुर आ जाएं तो विस्तार से मैं उनकी जो भी मदद हो सकेगी वह कर दूंगा।


 इस बार वे सज्जन जब रायपुर आए तो उनके साथ उनकी पत्नी नहीं थी। एक मित्र थे। 


उन्होंने बताया कि पत्नी का कुछ महीने पहले स्वर्गवास हो गया है। उनका कैंसर सम्हले नहीं सम्हला और उन्होंने यह दुनिया छोड़ दी। 


उन्होंने यह भी बताया कि वे दोनों साथ आना चाहते थे पर ईश्वर को शायद यह मंजूर नहीं था।


 मैंने उनकी रिपोर्ट देखी। ढेर सारी रिपोर्टे थी। उसमें से एक रिपोर्ट बहुत खास थी क्योंकि वह रोग का कारण बता रही थी। 


मैंने उन्हें बहुत सारे उपाय बताएं जिनसे कि लंग कैंसर को फैलने से रोका जा सकता है बिना किसी दवा के। 


उन्हें औषधीय धान के बारे में बताया और यह भी बताया कि इसमें से बहुत सारे धान रशिया में उपलब्ध है। आप वहीं से खरीद कर इन्हें इस्तेमाल कर सकते हैं।


 मैंने उनसे अनुरोध किया कि वापस जाकर वे तुरंत अपने खेत और घर के आसपास की मिट्टी का परीक्षण करवायें और पीने के पानी का भी।


 उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ। 


उन्होंने प्रश्न दागा कि क्या मिट्टी और पानी में कोई गड़बड़ है? 


मैंने कहा कि यह तो रिपोर्ट के आने के बाद ही पता चलेगा।


 जब उनकी रिपोर्ट आई तो पता चला कि जिस क्षेत्र में रहते थे वहां लंग कैंसर का मामला बहुत सारे लोगों में है और उनमें से बहुत लोगों की मौत भी हो चुकी है।


 उस इलाके में बेरिलियम नामक तत्व की अधिकता है और यही कारण है कि यह शरीर में विशेषकर फेफड़ों में जाकर कैंसर जैसे विकार पैदा कर रहा है। 


वे और उनकी पत्नी खेत में अधिक समय बिताते थे जहां बेरिलियम प्राकृतिक रूप से पाया जा रहा था। 


वहां की सरकार को इस बात की जानकारी शायद नहीं थी अन्यथा वह उस इलाके में किसी को बसने ही नहीं देती। 


मैंने विस्तार से उन्हें यह सब बताया और उनसे अनुरोध किया कि अगर आपको जीवित रहना है तो तुरंत ही उस इलाके से हटना होगा।


 उन्होंने निराश होकर जवाब दिया कि उनकी जिंदगी भर की सारी मेहनत यहीं पर है और अब वे नई जगह पर जाकर कैसे नए जीवन की शुरुआत करेंगे।वो भी जब उनकी प्रिय पत्नी उनके साथ नहीं है। 


मैंने कहा कि वैसे तो भारतीय पारंपरिक चिकित्सा में ऐसे बहुत सारे नुस्खे हैं जोकि बेरिलियम की विषाक्तता को खत्म करते हैं पर आप कैंसर की अंतिम अवस्था में है। 


ऐसे में इन नुस्खों का प्रयोग करना हितकर नहीं होगा अभी किसी भी तरह का एक्सपेरिमेंट करने का समय नहीं है। 


अभी आप को ठीक करने का समय है। 


बड़ी मुश्किल से वे माने और उस स्थान को छोड़कर दूसरे स्थान पर रहने लगे जहां इस तरह की समस्या नहीं थी। 


उसके बाद से उनसे बहुत दिनों तक कोई संपर्क नहीं हुआ। 


पिछले दिनों उनका फोन आया कि वे फिर से बहुत परेशान है क्योंकि कोरोना फेफड़ों में आक्रमण करता है और उनके फेफड़े  कैंसर के कारण वैसे ही बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुके हैं। 


मैंने उन्हें परामर्श दिया कि आप मेरे बताए हुए मेडिसिनल राइस का प्रयोग फिर से शुरू करें। इससे आप का फेफड़ा कोरोना से पूरी तरह से बचा रहेगा। 


उन्होंने धन्यवाद दिया। 


नए स्थान पर घर बनाने या खरीदने वालों को मैं हमेशा यह याद दिलाता हूं कि वे यह पता करें कि नए स्थान में हवा कैसी है, पानी कैसा है और मिट्टी में किसी प्रकार की गड़बड़ी तो नहीं है। 


इन सब को छोड़कर लोग यह पता करते हैं कि वह एयरपोर्ट से कितना पास है, वहां जिम है कि नहीं है, वहां क्लब है कि नहीं है, वहां गार्डन है कि नहीं है। 


वे यह नहीं पता करते कि उनके घर में जिस पेंट का इस्तेमाल बिल्डर द्वारा किया गया है कहीं उससे कैंसर तो नहीं होता। 


क्या घर में ग्रेनाइट या मार्बल का प्रयोग किया गया है? 


यदि हां तो वहां वायु के संचार की क्या व्यवस्था है?


 वे यह भी नहीं पता करते कि आसपास कहीं ऐसा प्लांटेशन तो नहीं है जो जिंदगी भर उन्हें अस्थमा जैसे घातक रोगों के रूप मे परेशान करता रहेगा।


 शायद मेरे इन लेखों का असर होता है। 


तभी मुझे दुनिया भर से लोग मिट्टी के परीक्षण की रिपोर्ट भेजते रहते हैं और पूछते रहते हैं कि उन्हें ऐसी जगह पर रहना चाहिए कि नहीं और अगर रहने की मजबूरी है तो कौन से उपाय करने चाहिए जिससे कि वे रोगग्रस्त न हो।


 यह अच्छा संकेत है।


 सर्वाधिकार सुरक्षित

Comments

Popular posts from this blog

गुलसकरी के साथ प्रयोग की जाने वाली अमरकंटक की जड़ी-बूटियाँ:कुछ उपयोगी कड़ियाँ

कैंसर में कामराज, भोजराज और तेजराज, Paclitaxel के साथ प्रयोग करने से आयें बाज

भटवास का प्रयोग - किडनी के रोगों (Diseases of Kidneys) की पारम्परिक चिकित्सा (Traditional Healing)