500 घंटों की फिल्मों में समायी बस्तर की जैव-विविधता

500 घंटों की फिल्मों में समायी बस्तर की जैव-विविधता 

- बस्तर पर १ टीबी की सामग्री इंटरनेट पर 
- विश्व मानचित्र में बस्तर की नई पहचान 

जैव-विविधता संपन्न बस्तर की औषधीय वनस्पतियों से संबंधित पारम्परिक ज्ञान अब इंटरनेट पर ५००  से अधिक घंटों की  फिल्मों के  रूप में उपलब्ध है। इन फिल्मों में बस्तर में पीढ़ीयों से पारम्परिक चिकित्सा में उपयोग किये जा रहे सात लाख से अधिक औषधीय नुस्खों और मिश्रणों का ज्ञान समाहित है। 

वर्ष १९९० से राज्य में पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान का दस्तावेजीकरण कर रहे जैव-विविधता विशेषज्ञ पंकज अवधिया ने छत्तीसगढ़ को बताया कि आर्काइव डाट ऑर्ग, यू ट्यूब और फ्लिकर जैसी वेबसाईटों के माध्यम से १००० जीबी (१ टीबी) से अधिक की अकादमिक सामग्री को विश्व समुदाय के सामने प्रस्तुत किया है. इन फिल्मों से संबंधित अतिरिक्त जानकारी "एन्साइक्लोपीडिया ऑफ ट्राइबल मेडीसीन्स"  नामक ग्रन्थ के माध्यम इंटरनेट पर  उपलब्ध है. पूरी दुनिया बस्तर के विषय में विस्तार से जानने को उत्सुक है। प्रतिदिन १०० जीबी से अधिक की बस्तर से संबंधित सामग्री इन वेबसाइटों से दुनिया भर में डाउनलोड की जाती है. इंटरनेट पर "बस्तर की जड़ी-बूटियाँ". "जलवायु परिवर्तन से प्रभावित बस्तर की जड़ी -बूटियाँ". "बस्तर की दुर्लभ औषधीय वनस्पतियाँ", "बस्तर का पारम्परिक आदिवासी ज्ञान", "बस्तर के आदिवासी और उनकी संजीवनी बूटियाँ" आदि विषयों को गूगल पर सर्च करके इन लघु और दीर्घ अवधि की फिल्मो तक पहुँचा जा सकता है. "बस्तर की जड़ी-बूटियाँ अम्ल रोगों के लिए" (अवधि: ५२ मिनट), "बस्तर की जड़ी-बूटियाँ नपुंसकता के लिए" (अवधि: ३५ मिनट), "बस्तर की जड़ी-बूटियाँ मधुमेह के लिए" (अवधि: ४० मिनट), "बस्तर की जड़ी-बूटियाँ यकृत रोगों के लिए" (अवधि: ५९ मिनट), "बस्तर की जड़ी-बूटियाँ बवासिर के लिए" (अवधि: ६३ मिनट) आदि लोकप्रिय हिन्दी फिल्मो में है जबकि अंग्रेजी फिल्मो में मेडिसिनल राइस फार्मूलेशन्स ऑफ बस्तर नामक श्रृंखला पसंद की जाती है. "बस्तर के जाने-माने बैदराज और उनकी चमत्कारी बूटियाँ", "बस्तर की सामरिक महत्व की जड़ी-बूटियाँ", "बस्तर में सावन  माह में एकत्र की  जाने वाली जड़ी-बूटियाँ", "बस्तर के बैगा और उनकी जड़ी-बूटियाँ", "बस्तर का औषधि पुराण", "बस्तरिया कंद -मूल से जटिल रोगों की चिकित्सा" आदि फिल्मों से संबंधित शोध दस्तावेज भी उपलब्ध हैं,  इन फिल्मो में पारम्परिक फसलों, जड़ी-बूटियों, जंगली मशरूम, नाना प्रकार के आर्किड्स आदि पर आधारित पारम्परिक नुस्खों को रोगों के आधार पर बाँट कर प्रस्तुत किया गया है. बस्तर के आदिवासियों के बीच लोकप्रिय लाल चीटी चापरा से लेकर बांस कीड़ा और रानी कीड़ा तक असंख्य पारम्परिक नुस्खों में प्रयोग किये जाने वाले कीड़े-मकोड़ों के बारे में "ट्रेडीशनल एंटोमोफैगी एंड एंटोमोथेरेपी इन बस्तर" नामक श्रृंखला तैयार की गई है. इनमे औषधीय धान पर भी विशेष सामग्रियाँ हैं. इन फिल्मो को  पिछले २४ वर्षों में ३५०००  पारम्परिक चिकित्सकों से हुयी बातचीत के आधार पर तैयार किया गया है.इनमे से बहुत से पारम्परिक चिकित्सक अब हमारे बीच नही हैं. नीम, गिलोय, एलो, तेलिया कंद, ऐरी कांदा, पनीर फूल, ब्राम्ही, सफेद मूसली जैसी सैकड़ों जड़ी-बूटियों के अधिक सेवन या विषाक्तता से होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं के निवारण के लिए पारम्परिक चिकित्सक जिन औषधीय मिश्रणों का प्रयोग करते हैं उन्हें भी फिल्मो के माध्यम से दर्शाया गया है. इन फिल्मों के अलावा छत्तीसगढ़ की औषधीय वनस्पतियों पर आधारित १५  लाख तस्वीरों को डिस्कवरलाइफ नामक वेबसाइट के माध्यम से प्रस्तुत करने का प्रयास किया जा रहा है. 

इंटरनेट की कम गति के कारण अपलोड का कार्य बहुत धीमा है. एक फिल्म अपलोड करने में आठ से दस घंटों का समय लग जाता है. पंकज अवधिया का मानना है कि छत्तीसगढ़ का अपना वेब पोर्टल होना चाहिए जिसमे इन अकादमिक महत्व की सामाग्रियों को रखा जाना चाहिए। इससे राज्य  में औषधीय वनस्पतियों पर शोध कर रहे युवा वैज्ञानिकों को प्रेरणा मिल सकेगी और दुनिया भर के लोग छत्तीसगढ़ की अनोखी  जैव-विविधता के विषय में जान सकेंगे।     

पंकज अवधिया बस्तर के अलावा अमरकंटक और उड़ीसा के गंधमर्दन पर्वत की जैव-विविधता पर भी ऐसी फिल्मे बना रहे हैं और उन्हें इंटरनेट के माध्यम से प्रस्तुत कर रहे हैं.                

Comments

Popular posts from this blog

कैंसर में कामराज, भोजराज और तेजराज, Paclitaxel के साथ प्रयोग करने से आयें बाज

गुलसकरी के साथ प्रयोग की जाने वाली अमरकंटक की जड़ी-बूटियाँ:कुछ उपयोगी कड़ियाँ

भटवास का प्रयोग - किडनी के रोगों (Diseases of Kidneys) की पारम्परिक चिकित्सा (Traditional Healing)