कब होगा छत्तीसगढ मे “औषधीय धान क्रांति” का सूत्रपात?
कब होगा छत्तीसगढ मे “औषधीय धान क्रांति” का सूत्रपात?
- पंकज अवधिया
गर्भावस्था की शुरुआत मे लाइचा के प्रयोग से शुरु होकर फिर प्रसूति के बाद शिशु को महाराजी, पाँचवे वर्ष मे कंठी बाँको, जवानी मे तेन्दुफूल, अधेड होने पर पाँच विशेष किस्म व बुढापे तक कुल 18 किस्म और रोगमुक्त जीवन की गारंटी। यहाँ बात हो रही है औषधीय धान और इसके दिव्य औषधीय गुणो की। बुढापे तक कुल 18 किस्म के पारम्परिक औषधीय धान का उपयोग आपको सभी रोगो से मुक्त रख सकता है। यह आपकी प्रतिरोधक क्षमता बढाता है और रोगो से लडने के लिये शरीर को तैयार करता है। यदि आप समझ रहे है कि आपको इसे लेने मे देरी हो गयी है तो आप गलत है। आप उम्र के किसी भी पडाव से इसका उपयोग शुरु कर सकते है। आप रोग विशेष के लिये इसका उपयोग कर सकते है। यहाँ तक के लिये मधुमेह (डायबीटीज) के लिये भी। मधुमेह मे चावल? जी, आपने बिल्कुल सही पढा। औषधीय धान मे न केवल मधुमेह के उपचार की क्षमता है बल्कि इसका सही प्रयोग आपको इससे बचा भी सकता है। औषधीय धान कैंसर की चिकित्सा मे भी उपयोगी है। मुन्दरिया का प्रयोग इसके लिये पीढीयो से होता आ रहा है। केवल तेन्दुफूल के प्रयोग से दसो रोगो की चिकित्सा की जाती है। गठुअन जहाँ वात रोगो के लिये उपयोगी है वही रसरी का प्रयोग पुरानी खाँसी मे होता है। बायसूर आधासीसी (माइग्रेन) की चिकित्सा मे उपयोगी है। करहनी से पक्षाघात (पैरालिसिस) की चिकित्सा की जाती है। ये गिने-चुने नाम ही नही है औषधीय धान के जिनके प्रयोग से रोगमुक्त रहा जा सकता है बल्कि ऐसी सैकडो किस्मे एक समय मे छत्तीसगढ मे बोयी जाती थी। इन किस्मो के बारे मे पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान आज भी छत्तीसगढ के पारम्परिक चिकित्सको के पास है। जब इस ज्ञान को दस्तावेजो के रुप मे लिखने का प्रयास किया गया तो लाखो पन्ने रंग गये फिर भी पूरा ज्ञान अब तक नही लिखा जा सका है। कम्प्यूटर की भाषा मे 350 जीबी से अधिक के दस्तावेज औषधीय धान की महिमा पर तैयार किये जा चुके है। यह दस्तावेज सीजीबीडी (आफलाइन डेटाबेस आन छत्तीसगढ बायोडायवर्सिटी) नामक डेटाबेस मे सुरक्षित है। यदि यह कहे कि छत्तीसगढ के एक मात्र कृषि विश्वविद्यालय ने स्थापना के इतने वर्षो बाद आधुनिक धान पर इतना दस्तावेज नही तैयार किया होगा, तो गलत नही होगा। औषधीय धान की बात तो छोड ही दीजिये। औषधीय धान के नाम पर विश्वविद्यालय के पास कुछ भी नही है।
छत्तीसगढ को सदा से “धान का कटोरा” कहा जाता रहा। वास्तव मे यह “औषधीय धान का कटोरा” भी है। यह घोर आश्चर्य का विषय है कि आजादी के बाद इतने सालो तक कभी भी छत्तीसगढ के औषधीय धान की बात नही की गयी। अरबो रुपये धान पर अनुसन्धान के लिये पानी की तरह बहा दिये गये। धान का चित्र सजाये कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना भी हो गयी पर औषधीय धान पर कुछ भी नही किया गया। जब विश्विद्यालय की स्थापना हुयी तब भी बडे पैमाने पर औषधीय धान की खेती पूरे छत्तीसगढ मे हो रही थी। इन धानो का प्रयोग पारम्परिक चिकित्सा मे हो रहा था। विदेशी तकनीक और बातो के हिमयतियो ने पारम्परिक धान का महत्व नही समझा और नये धान की खेती को बढावा दिया जाने लगा। नतीजा यह हुआ कि न केवल पारम्परिक धान की खेती बन्द होने लगी बल्कि इससे जुडा पारम्परिक ज्ञान भी खतरे मे पड गया। अब औषधी ही न हो तो भला पारम्परिक चिकित्सक कैसे इन्हे चिकित्सा मे प्रयोग करे? डाक्टर रिछारिया ने अथक मेहनत से पारम्परिक किस्मो को पूरे छ्त्तीसगढ से एकत्र किया और फिर राज्य मे ही अंतरराष्ट्रीय धान अनुसन्धान संस्थान खोलने की वकालत की। आज उनकी मेहनत कृषि विश्वविद्यालय के जर्मप्लाज्म केन्द्र मे सुरक्षित (?) है। क्या उन्होने औषधीय धान के विषय मे भी उस समय उपलब्ध जानकारी का दस्तावेजीकरण किया? यदि हाँ, तो वह दस्तावेज है कहाँ? यदि वह धान की किस्मो के साथ विदेश चला गया तो क्यो नही इतने सालो बाद भी औषधीय धान पर पेटेंट दुनिया के सामने आये? आज अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसन्धान संस्थान, मनीला, फिलीपींस के पास दुनिया भर के देशो जिनमे भारत भी शामिल है, से एकत्र किये गये 90,000 से अधिक जर्मप्लाज्म है। इसकी एक प्रतिलिपि यानि 90,000 किस्मो का एक और सेट, अमेरिका मे है। यदि आप दुनिया भर की शोध सामग्रियो को खंगालेंगे तो मेडीसिनल राइस अर्थात औषधीय धान पर आपको ज्यादा कुछ नही मिलेगा। डाक्टर रिछारिया के समय तो औषधीय धान पर कुछ भी नही छपा। सम्भवत: पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान पर उन्होने विस्तार से जानकारी एकत्र न की हो। एक बार विश्वविद्यालय के अतिथि गृह मे मेरी उनसे मुलाकात हुयी थी। उन्होने इस बात की पुष्टि की कि औषधीय धान के विषय मे जानकारियो का अम्बार है पर उन्होने इसका दस्तावेजीकरण नही किया है। उन्होने मुझसे इस पर काम करने को कहा। उस समय मै छात्र जीवन मे ही था। इन बातो से यह स्पष्ट होता है कि विदेशो तक छत्तीसगढ का धान तो पहुँच गया पर इससे सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान नही पहुँचा। बडी विचित्र स्थिति है। हमारे पास ज्ञान है पर पारम्परिक धान नही और उनके पास हमारा धान है पर वे उसके चमत्कारिक उपयोग से अंजान है। यही बात मुझे शोध पत्रो के माध्यम से इस ज्ञान को प्रकाशित करने से रोकती रही है। आमतौर पर होता यह है कि पारम्परिक ज्ञान जिनके पास धान और धन है उनके पास पहुँचता है। पर इस बार हमे उल्टा करना होगा। कोहिनूर हीरे की वापसी की माँग की तरह अब छत्तीसगढ के परम्परिक चिकित्सको और किसानो को अंतरराष्ट्रीय शोध संस्थानो से अपना औषधीय धान वापस माँगना होगा। ताकि इसके पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान के उपयोग से न केवल यहाँ के लोग रोगमुक्त हो सके बल्कि इस ज्ञान से पूरी दुनिया को रोगमुक्त करके यहाँ के किसान पीढीयो तक धान से लाभार्जन कर सके।
प्राचीन ग्रंथो मे औषधीय धान का वर्णन मिलता है। पर इस विषय मे विस्तार से नही लिखा गया। साँठी धान का जिक्र बार-बार आता है। केरल मे वैज्ञानिक नवारा को आयुर्वेद मे वर्णित औषधीय धान मानते है। इस धान का उपयोग बाहरी और आँतरिक दोनो ही रुपो मे होता है। बाहरी तौर पर वात और त्वचा रोगो की चिकित्सा मे इसका उपयोग होता है। केरल के वैज्ञानिक यह दावा करने से नही चूकते कि नवारा के विषय मे जानकारी स्थानीय स्तर तक ही सीमित है। वे इस औषधीय धान के विभिन्न विषयो पर भिड कर काम कर रहे है। सबसे पहले इस धान को संरक्षित किया गया। फिर इसकी खेती की पारम्परिक विधियो पर अनुसन्धान किये गये। इसके औषधीय गुणो को आधुनिक विज्ञान की कसौटी मे कसा गया। शोध से पता चला कि इसके एक विशेष तरह का प्रोटीन होता है जो कैंसर की चिकित्सा मे उपयोगी है। इसके विभिन्न पहलुओ पर शोध के अलावा दुनिया भर मे इसे स्थापित करने के प्रयास हो रहे है। इससे सीधे-सीधे किसानो को फायदा मिलेगा। आप सोचिये औषधीय धान की एक किस्म से केरल इतना आगे बढ सकता है तो सैकडो किस्म के औषधीय धान की जन्मस्थली छत्तीसगढ मे ऐसे प्रयास राज्य को विश्व के मानचित्र मे कहाँ तक पहुँचा सकते है। केरल के वैज्ञानिक इस बात को नही जानते है कि नवारा के बारे मे छत्तीसगढ मे भी जानकारियो का भंडार है। इसे 46 प्रकार की विभिन्न विधियो से उगाकर औषधीय गुणो मे सम्पन्न करने की विधि हमारे पास है। नवारा को कैसे तेन्दुफूल, भेजरी, लाइचा और दूसरी पारम्परिक किस्मो के साथ प्रयोग किया जा सकता है इसकी जानकारी भी केवल छत्तीसगढ मे ही है।
वर्ष 1991 मे मैने औषधीय धान पर पहली जानकारी का दस्तावेजीकरण किया था। उसके बाद आज अठ्ठारह साल बाद केवल 350 जीबी की सामग्री तैयार कर पाया हूँ। इस दौरान मै हजारो पारम्परिक चिकित्सको से मिला। आज बहुत से पारम्परिक चिकित्सक हमारे बीच नही है। औषधीय धान की खेती मे भी जमीन-आसमान का अंतर आ गया है। नयी पीढी को इसके बारे मे बहुत कम जानकारी है। वर्ष 1993 मे मैने जहाँ सबसे पहले तेन्दुफूल की खेती और इसके पारम्परिक औषधीय उपयोग को देखा था, वहाँ जब पिछले वर्ष गया तो केवल एक किसान के पास ही यह मिला। उस किसान ने भी इसे बनिहारो के लिये उगाया था। उसे भी इसके औषधीय महत्व के बारे मे नही पता था। पारम्परिक ज्ञान का क्षय़ बहुत तेजी से हो रहा है। आज कई प्रकार के औषधीय धान किसानो के पास उपलब्ध है पर जानकारी के अभाव मे वे इसकी रासायनिक खेती कर रहे है। इस खेती से औषधीय गुण कम हो गये है। शुद्ध बीज किसी के पास नही मिल पा रहा है। विश्वविद्यालय मे भी यदि परम्परागत तरीके से इसकी खेती कर बीजो को बचाया जा रहा होगा तब ही शुद्ध बीज मिल पायेंगे। इसकी सम्भावना कम दिखती है। लगता है विदेशो मे ही राज्य के औषधीय धान के शुद्ध बीज मिल सकते है।
राज्य मे पीढीयो से प्रयोग हो रहे पारम्परिक नुस्खो मे औषधीय धान को विशिष्ट स्थान प्राप्त है। अब तक 15,000 से अधिक ऐसे पारम्परिक नुस्खो का दस्तावेजीकरण किया जा चुका है जो तेन्दुफूल के बिना अधूरे माने जाते है। मुन्दरिया के नाम से प्रदेश के अलग-अलग भागो मे अलग-अलग धान उपलब्ध है। मैदानी भागो से एकत्र किये गये मुन्दरिया को 9000 से अधिक पारम्परिक नुस्खो मे उपयोग किया जाता है। एक और प्रकार के मुन्दरिया धान का प्रयोग 16,000 से अधिक नुस्खो मे होता है। कोदो को मधुमेह के रोगियो के लिये स्वास्थ्यवर्धक आहार माना जाता है। शोध संस्थानो के लाख मना करने के बावजूद यह हमारे लिये सौभाग्य की बात है कि अभी भी कोदो की खेती हो रही है और मधुमेह की तरह और भी दूसरे आधुनिक रोगो की चिकित्सा मे इसका प्रयोग हो रहा है। यह बहुत कम लोग ही जानते है कि कोदो को 18 से अधिक विधियो से पकाया जा सकता है। कोदो को औषधीय धान के साथ भी उपयोग किया जाता है। कोदो और औषधीय धान को खेती के दौरान विशेष सत्वो से सिंचित किया जाता है जिससे वे विशेष औषधीय गुणो से परिपूर्ण हो सके।
कर्नाटक ने अपने पारम्परिक धान की सुध ली है। संस्कृत मे धान के लिये वृही शब्द है। बंगाल मे तो इस नाम से एक संस्था चल रही है जो पारम्परिक धान के बीजो को बचा कर रख रही है। बंगाल मे कविराज साल और अग्निसाल जैसे औषधीय़ धान है। पर यकीन मानिये औषधीय धान होने बस से काम नही चलने वाला। जिस विस्तार से ज्ञान छत्तीसगढ मे है उसकी मिसाल पूरी दुनिया मे नही मिलती।
मैने अपनी कृषि की शिक्षा के दौरान विदेशो के अत्याधुनिक खेती के बारे मे तो खूब पढा पर अपने ही राज्य के औषधीय धान के विषय मे एक शब्द नही जाना। आमतौर पर ऐसे विश्वविद्यालयो की स्थापना क्षेत्र विशेष की पारम्परिक फसलो के संरक्षण और संवर्धन के लिये की जाती है। यदि मै गलत नही हूँ तो आज भी औषधीय धान के विषय मे छात्रो को नही पढाया जाता है। आज राज्य मे अंतरराष्ट्रीय धान अनुसन्धान संस्थान की स्थापना की बात हो रही है। राज्य मे औषधीय धान के समृद्ध पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान को देखते हुये “अंतरराष्ट्रीय औषधीय धान अनुसन्धान संस्थान (इंटरनेशनल मेडीसिनल राइस रिसर्च इंस्टिट्यूट)” स्थापित करने की आवश्यकता है। यह संस्थान अपने दम पर चले और किसी भी तरह की विदेशी सहायता से बचे तभी इसका मूल उद्देश्य पूरा होगा। इस संस्थान को पारम्परिक चिकित्सको और किसानो के माध्यम से चलाया जाये। हमारे राज्य के “चाउर वाले बाबा” एक आयुर्वेद चिकित्सक भी है। मै उनसे कभी नही मिला पर मुझे लगता है कि यदि वे राज्य मे “औषधीय धान क्रांति” का सूत्रपात करे तो राज्य का हित सोचने वाले लोग मिलकर इसके माध्यम से छत्तीसगढ मे धान के किसानो का भविष्य़ पीढीयो तक सुरक्षित रख सकते है और जन-स्वास्थ्य के क्षेत्र मे सशक्त उदाहरण प्रस्तुत कर सकते है।
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
© सर्वाधिकार सुरक्षित
यह लेख रायपुर से प्रकाशित होने वाले दैनिक छत्तीसगढ मे 20 फरवरी, 2009 को प्रकाशित हो चुका है।
- पंकज अवधिया
गर्भावस्था की शुरुआत मे लाइचा के प्रयोग से शुरु होकर फिर प्रसूति के बाद शिशु को महाराजी, पाँचवे वर्ष मे कंठी बाँको, जवानी मे तेन्दुफूल, अधेड होने पर पाँच विशेष किस्म व बुढापे तक कुल 18 किस्म और रोगमुक्त जीवन की गारंटी। यहाँ बात हो रही है औषधीय धान और इसके दिव्य औषधीय गुणो की। बुढापे तक कुल 18 किस्म के पारम्परिक औषधीय धान का उपयोग आपको सभी रोगो से मुक्त रख सकता है। यह आपकी प्रतिरोधक क्षमता बढाता है और रोगो से लडने के लिये शरीर को तैयार करता है। यदि आप समझ रहे है कि आपको इसे लेने मे देरी हो गयी है तो आप गलत है। आप उम्र के किसी भी पडाव से इसका उपयोग शुरु कर सकते है। आप रोग विशेष के लिये इसका उपयोग कर सकते है। यहाँ तक के लिये मधुमेह (डायबीटीज) के लिये भी। मधुमेह मे चावल? जी, आपने बिल्कुल सही पढा। औषधीय धान मे न केवल मधुमेह के उपचार की क्षमता है बल्कि इसका सही प्रयोग आपको इससे बचा भी सकता है। औषधीय धान कैंसर की चिकित्सा मे भी उपयोगी है। मुन्दरिया का प्रयोग इसके लिये पीढीयो से होता आ रहा है। केवल तेन्दुफूल के प्रयोग से दसो रोगो की चिकित्सा की जाती है। गठुअन जहाँ वात रोगो के लिये उपयोगी है वही रसरी का प्रयोग पुरानी खाँसी मे होता है। बायसूर आधासीसी (माइग्रेन) की चिकित्सा मे उपयोगी है। करहनी से पक्षाघात (पैरालिसिस) की चिकित्सा की जाती है। ये गिने-चुने नाम ही नही है औषधीय धान के जिनके प्रयोग से रोगमुक्त रहा जा सकता है बल्कि ऐसी सैकडो किस्मे एक समय मे छत्तीसगढ मे बोयी जाती थी। इन किस्मो के बारे मे पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान आज भी छत्तीसगढ के पारम्परिक चिकित्सको के पास है। जब इस ज्ञान को दस्तावेजो के रुप मे लिखने का प्रयास किया गया तो लाखो पन्ने रंग गये फिर भी पूरा ज्ञान अब तक नही लिखा जा सका है। कम्प्यूटर की भाषा मे 350 जीबी से अधिक के दस्तावेज औषधीय धान की महिमा पर तैयार किये जा चुके है। यह दस्तावेज सीजीबीडी (आफलाइन डेटाबेस आन छत्तीसगढ बायोडायवर्सिटी) नामक डेटाबेस मे सुरक्षित है। यदि यह कहे कि छत्तीसगढ के एक मात्र कृषि विश्वविद्यालय ने स्थापना के इतने वर्षो बाद आधुनिक धान पर इतना दस्तावेज नही तैयार किया होगा, तो गलत नही होगा। औषधीय धान की बात तो छोड ही दीजिये। औषधीय धान के नाम पर विश्वविद्यालय के पास कुछ भी नही है।
छत्तीसगढ को सदा से “धान का कटोरा” कहा जाता रहा। वास्तव मे यह “औषधीय धान का कटोरा” भी है। यह घोर आश्चर्य का विषय है कि आजादी के बाद इतने सालो तक कभी भी छत्तीसगढ के औषधीय धान की बात नही की गयी। अरबो रुपये धान पर अनुसन्धान के लिये पानी की तरह बहा दिये गये। धान का चित्र सजाये कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना भी हो गयी पर औषधीय धान पर कुछ भी नही किया गया। जब विश्विद्यालय की स्थापना हुयी तब भी बडे पैमाने पर औषधीय धान की खेती पूरे छत्तीसगढ मे हो रही थी। इन धानो का प्रयोग पारम्परिक चिकित्सा मे हो रहा था। विदेशी तकनीक और बातो के हिमयतियो ने पारम्परिक धान का महत्व नही समझा और नये धान की खेती को बढावा दिया जाने लगा। नतीजा यह हुआ कि न केवल पारम्परिक धान की खेती बन्द होने लगी बल्कि इससे जुडा पारम्परिक ज्ञान भी खतरे मे पड गया। अब औषधी ही न हो तो भला पारम्परिक चिकित्सक कैसे इन्हे चिकित्सा मे प्रयोग करे? डाक्टर रिछारिया ने अथक मेहनत से पारम्परिक किस्मो को पूरे छ्त्तीसगढ से एकत्र किया और फिर राज्य मे ही अंतरराष्ट्रीय धान अनुसन्धान संस्थान खोलने की वकालत की। आज उनकी मेहनत कृषि विश्वविद्यालय के जर्मप्लाज्म केन्द्र मे सुरक्षित (?) है। क्या उन्होने औषधीय धान के विषय मे भी उस समय उपलब्ध जानकारी का दस्तावेजीकरण किया? यदि हाँ, तो वह दस्तावेज है कहाँ? यदि वह धान की किस्मो के साथ विदेश चला गया तो क्यो नही इतने सालो बाद भी औषधीय धान पर पेटेंट दुनिया के सामने आये? आज अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसन्धान संस्थान, मनीला, फिलीपींस के पास दुनिया भर के देशो जिनमे भारत भी शामिल है, से एकत्र किये गये 90,000 से अधिक जर्मप्लाज्म है। इसकी एक प्रतिलिपि यानि 90,000 किस्मो का एक और सेट, अमेरिका मे है। यदि आप दुनिया भर की शोध सामग्रियो को खंगालेंगे तो मेडीसिनल राइस अर्थात औषधीय धान पर आपको ज्यादा कुछ नही मिलेगा। डाक्टर रिछारिया के समय तो औषधीय धान पर कुछ भी नही छपा। सम्भवत: पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान पर उन्होने विस्तार से जानकारी एकत्र न की हो। एक बार विश्वविद्यालय के अतिथि गृह मे मेरी उनसे मुलाकात हुयी थी। उन्होने इस बात की पुष्टि की कि औषधीय धान के विषय मे जानकारियो का अम्बार है पर उन्होने इसका दस्तावेजीकरण नही किया है। उन्होने मुझसे इस पर काम करने को कहा। उस समय मै छात्र जीवन मे ही था। इन बातो से यह स्पष्ट होता है कि विदेशो तक छत्तीसगढ का धान तो पहुँच गया पर इससे सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान नही पहुँचा। बडी विचित्र स्थिति है। हमारे पास ज्ञान है पर पारम्परिक धान नही और उनके पास हमारा धान है पर वे उसके चमत्कारिक उपयोग से अंजान है। यही बात मुझे शोध पत्रो के माध्यम से इस ज्ञान को प्रकाशित करने से रोकती रही है। आमतौर पर होता यह है कि पारम्परिक ज्ञान जिनके पास धान और धन है उनके पास पहुँचता है। पर इस बार हमे उल्टा करना होगा। कोहिनूर हीरे की वापसी की माँग की तरह अब छत्तीसगढ के परम्परिक चिकित्सको और किसानो को अंतरराष्ट्रीय शोध संस्थानो से अपना औषधीय धान वापस माँगना होगा। ताकि इसके पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान के उपयोग से न केवल यहाँ के लोग रोगमुक्त हो सके बल्कि इस ज्ञान से पूरी दुनिया को रोगमुक्त करके यहाँ के किसान पीढीयो तक धान से लाभार्जन कर सके।
प्राचीन ग्रंथो मे औषधीय धान का वर्णन मिलता है। पर इस विषय मे विस्तार से नही लिखा गया। साँठी धान का जिक्र बार-बार आता है। केरल मे वैज्ञानिक नवारा को आयुर्वेद मे वर्णित औषधीय धान मानते है। इस धान का उपयोग बाहरी और आँतरिक दोनो ही रुपो मे होता है। बाहरी तौर पर वात और त्वचा रोगो की चिकित्सा मे इसका उपयोग होता है। केरल के वैज्ञानिक यह दावा करने से नही चूकते कि नवारा के विषय मे जानकारी स्थानीय स्तर तक ही सीमित है। वे इस औषधीय धान के विभिन्न विषयो पर भिड कर काम कर रहे है। सबसे पहले इस धान को संरक्षित किया गया। फिर इसकी खेती की पारम्परिक विधियो पर अनुसन्धान किये गये। इसके औषधीय गुणो को आधुनिक विज्ञान की कसौटी मे कसा गया। शोध से पता चला कि इसके एक विशेष तरह का प्रोटीन होता है जो कैंसर की चिकित्सा मे उपयोगी है। इसके विभिन्न पहलुओ पर शोध के अलावा दुनिया भर मे इसे स्थापित करने के प्रयास हो रहे है। इससे सीधे-सीधे किसानो को फायदा मिलेगा। आप सोचिये औषधीय धान की एक किस्म से केरल इतना आगे बढ सकता है तो सैकडो किस्म के औषधीय धान की जन्मस्थली छत्तीसगढ मे ऐसे प्रयास राज्य को विश्व के मानचित्र मे कहाँ तक पहुँचा सकते है। केरल के वैज्ञानिक इस बात को नही जानते है कि नवारा के बारे मे छत्तीसगढ मे भी जानकारियो का भंडार है। इसे 46 प्रकार की विभिन्न विधियो से उगाकर औषधीय गुणो मे सम्पन्न करने की विधि हमारे पास है। नवारा को कैसे तेन्दुफूल, भेजरी, लाइचा और दूसरी पारम्परिक किस्मो के साथ प्रयोग किया जा सकता है इसकी जानकारी भी केवल छत्तीसगढ मे ही है।
वर्ष 1991 मे मैने औषधीय धान पर पहली जानकारी का दस्तावेजीकरण किया था। उसके बाद आज अठ्ठारह साल बाद केवल 350 जीबी की सामग्री तैयार कर पाया हूँ। इस दौरान मै हजारो पारम्परिक चिकित्सको से मिला। आज बहुत से पारम्परिक चिकित्सक हमारे बीच नही है। औषधीय धान की खेती मे भी जमीन-आसमान का अंतर आ गया है। नयी पीढी को इसके बारे मे बहुत कम जानकारी है। वर्ष 1993 मे मैने जहाँ सबसे पहले तेन्दुफूल की खेती और इसके पारम्परिक औषधीय उपयोग को देखा था, वहाँ जब पिछले वर्ष गया तो केवल एक किसान के पास ही यह मिला। उस किसान ने भी इसे बनिहारो के लिये उगाया था। उसे भी इसके औषधीय महत्व के बारे मे नही पता था। पारम्परिक ज्ञान का क्षय़ बहुत तेजी से हो रहा है। आज कई प्रकार के औषधीय धान किसानो के पास उपलब्ध है पर जानकारी के अभाव मे वे इसकी रासायनिक खेती कर रहे है। इस खेती से औषधीय गुण कम हो गये है। शुद्ध बीज किसी के पास नही मिल पा रहा है। विश्वविद्यालय मे भी यदि परम्परागत तरीके से इसकी खेती कर बीजो को बचाया जा रहा होगा तब ही शुद्ध बीज मिल पायेंगे। इसकी सम्भावना कम दिखती है। लगता है विदेशो मे ही राज्य के औषधीय धान के शुद्ध बीज मिल सकते है।
राज्य मे पीढीयो से प्रयोग हो रहे पारम्परिक नुस्खो मे औषधीय धान को विशिष्ट स्थान प्राप्त है। अब तक 15,000 से अधिक ऐसे पारम्परिक नुस्खो का दस्तावेजीकरण किया जा चुका है जो तेन्दुफूल के बिना अधूरे माने जाते है। मुन्दरिया के नाम से प्रदेश के अलग-अलग भागो मे अलग-अलग धान उपलब्ध है। मैदानी भागो से एकत्र किये गये मुन्दरिया को 9000 से अधिक पारम्परिक नुस्खो मे उपयोग किया जाता है। एक और प्रकार के मुन्दरिया धान का प्रयोग 16,000 से अधिक नुस्खो मे होता है। कोदो को मधुमेह के रोगियो के लिये स्वास्थ्यवर्धक आहार माना जाता है। शोध संस्थानो के लाख मना करने के बावजूद यह हमारे लिये सौभाग्य की बात है कि अभी भी कोदो की खेती हो रही है और मधुमेह की तरह और भी दूसरे आधुनिक रोगो की चिकित्सा मे इसका प्रयोग हो रहा है। यह बहुत कम लोग ही जानते है कि कोदो को 18 से अधिक विधियो से पकाया जा सकता है। कोदो को औषधीय धान के साथ भी उपयोग किया जाता है। कोदो और औषधीय धान को खेती के दौरान विशेष सत्वो से सिंचित किया जाता है जिससे वे विशेष औषधीय गुणो से परिपूर्ण हो सके।
कर्नाटक ने अपने पारम्परिक धान की सुध ली है। संस्कृत मे धान के लिये वृही शब्द है। बंगाल मे तो इस नाम से एक संस्था चल रही है जो पारम्परिक धान के बीजो को बचा कर रख रही है। बंगाल मे कविराज साल और अग्निसाल जैसे औषधीय़ धान है। पर यकीन मानिये औषधीय धान होने बस से काम नही चलने वाला। जिस विस्तार से ज्ञान छत्तीसगढ मे है उसकी मिसाल पूरी दुनिया मे नही मिलती।
मैने अपनी कृषि की शिक्षा के दौरान विदेशो के अत्याधुनिक खेती के बारे मे तो खूब पढा पर अपने ही राज्य के औषधीय धान के विषय मे एक शब्द नही जाना। आमतौर पर ऐसे विश्वविद्यालयो की स्थापना क्षेत्र विशेष की पारम्परिक फसलो के संरक्षण और संवर्धन के लिये की जाती है। यदि मै गलत नही हूँ तो आज भी औषधीय धान के विषय मे छात्रो को नही पढाया जाता है। आज राज्य मे अंतरराष्ट्रीय धान अनुसन्धान संस्थान की स्थापना की बात हो रही है। राज्य मे औषधीय धान के समृद्ध पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान को देखते हुये “अंतरराष्ट्रीय औषधीय धान अनुसन्धान संस्थान (इंटरनेशनल मेडीसिनल राइस रिसर्च इंस्टिट्यूट)” स्थापित करने की आवश्यकता है। यह संस्थान अपने दम पर चले और किसी भी तरह की विदेशी सहायता से बचे तभी इसका मूल उद्देश्य पूरा होगा। इस संस्थान को पारम्परिक चिकित्सको और किसानो के माध्यम से चलाया जाये। हमारे राज्य के “चाउर वाले बाबा” एक आयुर्वेद चिकित्सक भी है। मै उनसे कभी नही मिला पर मुझे लगता है कि यदि वे राज्य मे “औषधीय धान क्रांति” का सूत्रपात करे तो राज्य का हित सोचने वाले लोग मिलकर इसके माध्यम से छत्तीसगढ मे धान के किसानो का भविष्य़ पीढीयो तक सुरक्षित रख सकते है और जन-स्वास्थ्य के क्षेत्र मे सशक्त उदाहरण प्रस्तुत कर सकते है।
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
© सर्वाधिकार सुरक्षित
यह लेख रायपुर से प्रकाशित होने वाले दैनिक छत्तीसगढ मे 20 फरवरी, 2009 को प्रकाशित हो चुका है।
Pankaj Oudhia’s Research Documents on Improvement of Alangium
salviifolium based Formulations of Peninsular India at http://www.pankajoudhia.com
Habenaria crinifera LINDL. (ORCHIDACEAE) in Pankaj Oudhia’s
report on Improvement of Alangium salviifolium based Traditional Herbal
Formulations of Peninsular India: Menses every two weeks (Indigenous
Traditional Medicines for Female Sexual Organs),
Habenaria diphylla DALZ. (ORCHIDACEAE) in Pankaj Oudhia’s
report on Improvement of Alangium salviifolium based Traditional Herbal
Formulations of Peninsular India: Sexual excitement during menses (Indigenous
Traditional Medicines for Female Sexual Organs),
Habenaria grandiflora LINDL. (ORCHIDACEAE) in Pankaj
Oudhia’s report on Improvement of Alangium salviifolium based Traditional
Herbal Formulations of Peninsular India: Bad dreams during menses (Indigenous
Traditional Medicines for Female Sexual Organs),
Habenaria longicorniculata GRAH. (ORCHIDACEAE) in Pankaj
Oudhia’s report on Improvement of Alangium salviifolium based Traditional
Herbal Formulations of Peninsular India: Uterine displacement with rheumatic
pains (Indigenous Traditional Medicines for Female Sexual Organs),
Habenaria ovalifolia WT. (ORCHIDACEAE) in Pankaj Oudhia’s
report on Improvement of Alangium salviifolium based Traditional Herbal
Formulations of Peninsular India: The skin of hands and face is covered with
multiple psoriatic eruptions (Indigenous Traditional Medicines for Psoriasis),
Habenaria plantaginea LINDL. (ORCHIDACEAE) in Pankaj
Oudhia’s report on Improvement of Alangium salviifolium based Traditional
Herbal Formulations of Peninsular India: The psoriatic eruptions are chiefly
located on the scalp (Indigenous Traditional Medicines for Psoriasis),
Habenaria rariflora A.RICH. (ORCHIDACEAE) in Pankaj Oudhia’s
report on Improvement of Alangium salviifolium based Traditional Herbal
Formulations of Peninsular India: Furfuraceous peeling off of epidermis
(Indigenous Traditional Medicines for Psoriasis),
Habenaria roxburghii (PERS.) R. BR. (ORCHIDACEAE) in Pankaj
Oudhia’s report on Improvement of Alangium salviifolium based Traditional
Herbal Formulations of Peninsular India: Psoriatic eruption especially around
eyes and ears (Indigenous Traditional Medicines for Psoriasis),
Hackelochloa granularis (L.) KUNTZE (POACEAE) in Pankaj
Oudhia’s report on Improvement of Alangium salviifolium based Traditional
Herbal Formulations of Peninsular India: Violent itching with tendency to
formation of thick crust (Indigenous Traditional Medicines for Psoriasis),
Haldina cordifolia (ROXB.) RIDSDALE (RUBIACEAE) in Pankaj
Oudhia’s report on Improvement of Alangium salviifolium based Traditional
Herbal Formulations of Peninsular India: Psoriatic eruptions are present on
face, hands and scalp (Indigenous Traditional Medicines for Psoriasis),
Hamelia patens JACQ. (RUBIACEAE) in Pankaj Oudhia’s report
on Improvement of Alangium salviifolium based Traditional Herbal Formulations
of Peninsular India: The psoriatic lesions ulcerate easily (Indigenous
Traditional Medicines for Psoriasis),
Haplanthodes verticillatus (ROXB.) MAJUMDAR (ACANTHACEAE) in
Pankaj Oudhia’s report on Improvement of Alangium salviifolium based
Traditional Herbal Formulations of Peninsular India: Psoriasis on palms and
soles (Indigenous Traditional Medicines for Psoriasis),
Hardwickia binata ROXB. (CAESALPINIACEAE) in Pankaj Oudhia’s
report on Improvement of Alangium salviifolium based Traditional Herbal
Formulations of Peninsular India: Psoriasis on folds of the skin (Indigenous
Traditional Medicines for Psoriasis),
Harpullia arborea (BLANCO) RADLK (SAPINDACEAE) in Pankaj
Oudhia’s report on Improvement of Alangium salviifolium based Traditional
Herbal Formulations of Peninsular India: Presence of irregular psoriatic patches
with shiny scales (Indigenous Traditional Medicines for Psoriasis),
Hedychium coronarium KOENIG (ZINGIBERACEAE) in Pankaj
Oudhia’s report on Improvement of Alangium salviifolium based Traditional
Herbal Formulations of Peninsular India: The cracks bleed very easily and exude
gluey moisture (Indigenous Traditional Medicines for Psoriasis),
Helianthus annuus L. (ASTERACEAE) in Pankaj Oudhia’s report
on Improvement of Alangium salviifolium based Traditional Herbal Formulations
of Peninsular India: The skin is dry, eroded and cracked in every angle
(Indigenous Traditional Medicines for Psoriasis),
Helicanthes elastica (DESR.) DANSER (LORANTHACEAE) in Pankaj
Oudhia’s report on Improvement of Alangium salviifolium based Traditional
Herbal Formulations of Peninsular India: Multiple psoriatic eruptions are
present with zig-zag and irregular margin (Indigenous Traditional Medicines for
Psoriasis),
Helicteres isora L. (STERCULIACEAE) in Pankaj Oudhia’s
report on Improvement of Alangium salviifolium based Traditional Herbal
Formulations of Peninsular India: The skin burn whenever the patient scratches
(Indigenous Traditional Medicines for Psoriasis),
Heliotropium indicum L. (BORAGINACEAE) in Pankaj Oudhia’s
report on Improvement of Alangium salviifolium based Traditional Herbal
Formulations of Peninsular India: The skin is extremely dry in appearance
(Indigenous Traditional Medicines for Psoriasis),
Heliotropium ovalifolium FORSK. (BORAGINACEAE) in Pankaj
Oudhia’s report on Improvement of Alangium salviifolium based Traditional
Herbal Formulations of Peninsular India: The skin surrounding the eruption is
excoriated (Indigenous Traditional Medicines for Psoriasis),
Heliotropium strigosum WILLD. (BORAGINACEAE) in Pankaj
Oudhia’s report on Improvement of Alangium salviifolium based Traditional
Herbal Formulations of Peninsular India: Psoriasis alternates with asthma
(Indigenous Traditional Medicines for Psoriasis),
Heliotropium subulatum HOCHST. (BORAGINACEAE) in Pankaj
Oudhia’s report on Improvement of Alangium salviifolium based Traditional
Herbal Formulations of Peninsular India: Psoriasis develops after suppression
of other skin diseases (Indigenous Traditional Medicines for Psoriasis),
Heliotropium supinum L. (BORAGINACEAE) in Pankaj Oudhia’s
report on Improvement of Alangium salviifolium based Traditional Herbal
Formulations of Peninsular India: Psoriatic eruptions develop in winter season
(Indigenous Traditional Medicines for Psoriasis),
Heliotropium zeylanicum HEYNE. EX C.B. CLARKE (BORAGINACEAE)
in Pankaj Oudhia’s report on Improvement of Alangium salviifolium based
Traditional Herbal Formulations of Peninsular India: Psoriasis usually follows
after unusual mental strains (Indigenous Traditional Medicines for Psoriasis),
Helixanthera wallichiana (SCHULT.) DANSER (LORANTHACEAE) in
Pankaj Oudhia’s report on Improvement of Alangium salviifolium based
Traditional Herbal Formulations of Peninsular India: The psoriatic eruptions
disappear in summer only to occur in winter (Indigenous Traditional Medicines
for Psoriasis),
Hemarthria compressa (L.F.) BR. (POACEAE) in Pankaj Oudhia’s
report on Improvement of Alangium salviifolium based Traditional Herbal
Formulations of Peninsular India: The patient scratches till it becomes raw and
bleed (Indigenous Traditional Medicines for Psoriasis),
Hemidesmus indicus (L.) SCHULT. (ASCLEPIADACEAE) in Pankaj
Oudhia’s report on Improvement of Alangium salviifolium based Traditional
Herbal Formulations of Peninsular India: Nape of neck, scalp, folds of the skin
and groins are typically affected (Indigenous Traditional Medicines for
Psoriasis),
Hemigraphis latebrosa NESS. (ACANTHACEAE) in Pankaj Oudhia’s
report on Improvement of Alangium salviifolium based Traditional Herbal
Formulations of Peninsular India: The eruptions are symmetrical with
serpigenous margin (Indigenous Traditional Medicines for Psoriasis),
Wendlandia heynei (R. & S.) SANTAPAU and Lantana camara
L. (Gotiphool) with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal
Plants of Chhattisgarh, India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database
(Traditional Knowledge Database) on use of Alien Invasive species as additional
ingredient in Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for
Generalities- weakness, enervation
Wendlandia tinctoria DC. and Lantana camara L. (Gotiphool)
with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of
Chhattisgarh, India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database
(Traditional Knowledge Database) on use of Alien Invasive species as additional
ingredient in Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for
Respiration-anxious .
Withania somnifera DUNAL and Lantana camara L. (Gotiphool) with
other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh,
India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge
Database) on use of Alien Invasive species as additional ingredient in
Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for Bladder-
urination, frequent
Wolffia globosa (ROXB.) HARTOG & PLAS and Lantana camara
L. (Gotiphool) with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal
Plants of Chhattisgarh, India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database
(Traditional Knowledge Database) on use of Alien Invasive species as additional
ingredient in Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for
Respiration-difficult .
Woodfordia fruticosa (L.) KURZ and Lantana camara L.
(Gotiphool) with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants
of Chhattisgarh, India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database
(Traditional Knowledge Database) on use of Alien Invasive species as additional
ingredient in Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for
Respiration-difficult, rheumatic of heart .
Wrightia arborea (DENNST.) MABB. and Lantana camara L.
(Gotiphool) with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants
of Chhattisgarh, India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database
(Traditional Knowledge Database) on use of Alien Invasive species as additional
ingredient in Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for
Respiration-impeded, obstructed .
Wrightia tinctoria R.BR. and Lantana camara L. (Gotiphool)
with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of
Chhattisgarh, India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database
(Traditional Knowledge Database) on use of Alien Invasive species as additional
ingredient in Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for
Chest- inflammation, heart, endocardium .
Xanthium indicum KOEN. and Lantana camara L. (Gotiphool)
with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of
Chhattisgarh, India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database
(Traditional Knowledge Database) on use of Alien Invasive species as additional
ingredient in Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for
Generalities- pain, pressing, load, as from
Xantolis tomentosa (ROXB.) RAF. and Lantana camara L.
(Gotiphool) with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants
of Chhattisgarh, India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database
(Traditional Knowledge Database) on use of Alien Invasive species as additional
ingredient in Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for
Bladder- urination, retarded, press, must, a long time before he can begin
Xylia xylocarpa
(ROXB.) TAUB. and Lantana camara L. (Gotiphool) with other Herbal Ingredients:
Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh, India) from Pankaj
Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge Database) on use of
Alien Invasive species as additional ingredient in Traditional Indigenous
Herbal Medicines (Herbal Formulations) for Bladder- urination, retarded, press,
must, painful and frequent urination with disposition to sit and strain a long
time, after which few drops pass
Xylosma longifolium CLOS and Lantana camara L. (Gotiphool)
with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of
Chhattisgarh, India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database
(Traditional Knowledge Database) on use of Alien Invasive species as additional
ingredient in Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for
Respiration-difficult
Xyris indica L. and Lantana camara L. (Gotiphool) with other
Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh,
India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge
Database) on use of Alien Invasive species as additional ingredient in
Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for Chest-
inflammation, pleura .
Xyris pauciflora WILLD. and Lantana camara L. (Gotiphool)
with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of
Chhattisgarh, India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database
(Traditional Knowledge Database) on use of Alien Invasive species as additional
ingredient in Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for
Generalities- pain, cutting, internally
Youngia japonica (L.) DC. and Lantana camara L. (Gotiphool)
with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of
Chhattisgarh, India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database
(Traditional Knowledge Database) on use of Alien Invasive species as additional
ingredient in Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for
Chest- pain, motion agg.
Yucca aloifolia L. and Lantana camara L. (Gotiphool) with
other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh,
India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge
Database) on use of Alien Invasive species as additional ingredient in
Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for Chest- pain,
rheumatic .
Yucca gloriosa L. and Lantana camara L. (Gotiphool) with
other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh,
India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge
Database) on use of Alien Invasive species as additional ingredient in
Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for Chest- pain,
sides, right .
Zanthoxylum armatum DC. and Lantana camara L. (Gotiphool)
with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of
Chhattisgarh, India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database
(Traditional Knowledge Database) on use of Alien Invasive species as additional
ingredient in Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for
Chest- pain, heart .
Zanthoxylum rhetsa (ROXB.) DC. and Lantana camara L.
(Gotiphool) with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants
of Chhattisgarh, India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database
(Traditional Knowledge Database) on use of Alien Invasive species as additional
ingredient in Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for
Generalities- pain, bones
Zea mays L. and Lantana camara L. (Gotiphool) with other
Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh,
India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge
Database) on use of Alien Invasive species as additional ingredient in
Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for Chest- pain,
heart, rheumatic .
Zehneria scabra (L.F.) SOND. and Lantana camara L.
(Gotiphool) with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants
of Chhattisgarh, India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database
(Traditional Knowledge Database) on use of Alien Invasive species as additional
ingredient in Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for
Chest- pain, burning, sides, right .
Zehneria umbellata THW. and Lantana camara L. (Gotiphool)
with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of
Chhattisgarh, India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database
(Traditional Knowledge Database) on use of Alien Invasive species as additional
ingredient in Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for
Chest- pain, cutting, heart .
Zephyranthes rosea LINDL. and Lantana camara L. (Gotiphool)
with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of
Chhattisgarh, India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database
(Traditional Knowledge Database) on use of Alien Invasive species as additional
ingredient in Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for
Back- pain
Zeuxine strateumatica (L.) SCHLECHTER and Lantana camara L.
(Gotiphool) with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants
of Chhattisgarh, India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database
(Traditional Knowledge Database) on use of Alien Invasive species as additional
ingredient in Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for
Chest- pain, drawing .
Zingiber capitatum ROXB. and Lantana camara L. (Gotiphool)
with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh,
India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge
Database) on use of Alien Invasive species as additional ingredient in
Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for Generalities-
lying agg.
Zingiber officinale ROSC. and Lantana camara L. (Gotiphool)
with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of
Chhattisgarh, India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database
(Traditional Knowledge Database) on use of Alien Invasive species as additional
ingredient in Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for
Chest- pain, drawing, motion, from .
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