Consultation in Corona Period-218
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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया
"जैसे मैं दूसरे मरीजों की चिकित्सा करता हूं वैसे ही मैंने अपने पिताजी की चिकित्सा की। जब उन्हें मेमोरी लॉस की समस्या होने लगी तो मैंने उन्हें दवा दी। जब उनकी जबान लड़खड़ाने लगी तो उसके लिए भी मैंने दवा दी। जब उन्हें अनिद्रा की शिकायत होने लगी तब मैंने उसका समाधान करने की कोशिश की। जब उन्हें मिर्गी जैसे फिट्स आने लगे तो मैंने अपनी ओर से सबसे अच्छी दवा दी पर अब तो उनकी समस्या बढ़ती ही जा रही है और इस तरह दवाओं की संख्या भी। मैंने समझ लिया कि यह मेरे बस की बात नहीं है इसलिए मैंने अपने चिकित्सक मित्रों के पास इस केस को भेजा पर उन्होंने भी वही किया जो कि मैंने किया अर्थात मेरी चिकित्सा में किसी भी प्रकार की कोई गलती नहीं थी पर पिताजी का स्वास्थ सुधरने का नाम ही नहीं ले रहा है।
उनकी दिमाग की समस्याएं बढ़ती ही जा रही है। वे जिंदगी भर स्वस्थ रहे और किसी भी तरह की दवाओं का सेवन नहीं किया। अब बुढ़ापे में उन्हें नाना प्रकार की दवाओं का सेवन करना पड़ रहा है।" दिल्ली से मेरे न्यूरोलाजिस्ट मित्र ने जब अपने पिताजी की समस्या के बारे में बताया तब मैं उनके सामने ही बैठा था। मेरी हाल की दिल्ली यात्रा में उन्होंने पहले से ही कह दिया था कि मैं कुछ समय उनके घर पर बिताऊँ और उनके पिताजी को एक बार देख लूँ। मित्र की आज्ञा भला कैसे टाली जा सकती है। मैंने उनकी सभी रिपोर्टर देखी और उनके शरीर के विभिन्न अंगों का मुआयना किया। फिर मित्र से पूछा कि इनकी समस्या का मूल कारण क्या है? इन्हें कौन सा रोग है तब मित्र ने कहा कि उन्हें भी इस बात की जानकारी नहीं हो रही है कि यह कौन सा रोग है पर उन्हें लगता है कि यह बुढ़ापे के कारण हो रहा है और ऐसे उन्होंने सैकड़ों मामले देखे हैं जो कि सभी तरह के उपाय करने के बाद भी ठीक नहीं होते हैं इसलिए इन कष्टों के साथ बुजुर्ग अच्छा जीवन जी सके ऐसे प्रयास किए जाते हैं।
मित्र के पिताजी के साथ 2 घंटे बिताने के बाद उनके अजीब से लक्षणों ने मेरा ध्यान खींचा। इस आधार पर मैंने उनके नाखूनों की जांच की। पैर के भी और हाथ के भी तो मुझे कुछ संदेह हुआ। मैंने मित्र से अनुरोध किया कि जल्दी ही वे अपने पिताजी को लेकर रायपुर आ जाएं ताकि मैं एक छोटा सा परीक्षण कर सकूं और उस आधार पर बता सकूँ कि इनकी समस्या का समाधान क्या है। मित्र ने कहा कि दिल्ली में जड़ी बूटियों का बड़ा बाजार है। यदि मैं उन्हें जड़ी बूटियों की सूची दे दूं जो कि परीक्षण के लिए आवश्यक है तो वे अपने किसी साथी को भेजकर उन बूटियों को मंगा सकते हैं। मैंने उन्हें बताया कि मैं स्वयं जंगल जाकर इन जड़ी बूटियों को एकत्र करता हूं। जड़ी बूटियों के एक बार सूख जाने पर उनकी सही पहचान करना मुश्किल हो जाता है। सही परीक्षण के लिए जरूरी है कि अपने हाथों से चुनी हुई जड़ी बूटियों का ही प्रयोग किया जाए। ऐसा कहकर मैं वापस लौट गया।
मित्र और उनके पिताजी अगले ही हफ्ते मुझसे मिलने रायपुर आ गए। मैंने एक सरल सा मिश्रण बना कर रखा था। जब वे मेरे पास आए तो मैंने एक एक चम्मच मिश्रण उन दोनों के मुंह में डाल दिया और उनसे कहा कि इस मिश्रण को मुंह में ही रखे रहे 20 मिनट तक और मुझे बताएं कि उन्हें कैसा स्वाद आ रहा है।
मिश्रण बहुत स्वादिष्ट था इसलिए उसे मुंह में रखते ही दोनों के चेहरे खिल गए। दोनों ने कहा कि यह तो बहुत मीठा है और इसका स्वाद बहुत बढ़िया है। 4 से 5 मिनट के बाद उनके पिताजी कहने लगे कि यह मिश्रण अचानक से कड़वा हो गया है। इतना कड़वा कि अब सहा नहीं जा रहा है। आप कहे तो मैं इसे थूक देता हूं।
मैंने कहा कि आप धैर्य रखें और इस कड़वाहट को सहन करने की कोशिश करें।
मित्र ने कहा कि उनके मुंह में रखा मिश्रण तो अभी भी मीठा है। क्या यह दूसरा मिश्रण है? मैंने कोई जवाब नहीं दिया। 10 मिनट के बाद उनके पिताजी ने कहना शुरू किया कि यह कड़वा मिश्रण अब खट्टा लग रहा है जबकि मित्र के मुंह में वही मिश्रण अभी भी मीठा मालूम पड़ रहा था। अब परीक्षण पूरा हो चुका था। मैंने उनसे कहा कि आप अपना मुंह अच्छे से साफ कर लीजिए। फिर उन्हें खुलासा किया कि मुझे लगता है कि यह किसी तरह की सल्फर टाक्सीसिटी के लक्षण है। आपके पिताजी के शरीर में सल्फर इतनी अधिक मात्रा में उपस्थित है कि यह दिमाग को प्रभावित कर रहा है और उसके कारण ही वे 18 लक्षण आ रहे हैं जिनकी दवा आप कर रहे हैं। यदि सल्फर की मात्रा कम कर दी जाए तो बिना किसी दवा के उनकी समस्या का पूरी तरह से समाधान हो सकता है। मित्र को यह जानकर आश्चर्य हुआ।
उसके बाद हम लोग मिलकर विचार करने लगे कि आखिर सल्फर इतनी अधिक मात्रा में पिताजी तक कैसे पहुंच रहा है। जब मैंने उनके खानपान के बारे में विस्तार से जानकारी ली तो मुझे पता चला कि वे ऐसी किसी भी खाद्य सामग्री का प्रयोग नहीं कर रहे हैं जिसमें कि सल्फर बहुत अधिक मात्रा में हो। मित्र ने बताया कि वे अपने घर में पानी का लगातार परीक्षण करते रहते हैं और उन्हें नहीं लगता कि वे जिस पानी का प्रयोग कर रहे हैं उसमें अधिक मात्रा में सल्फर है। यदि ऐसा होता तो घर के सभी सदस्यों में इस तरह के लक्षण आते हैं। मैंने मित्र से पूछा कि क्या आपके पिताजी आपकी दवाओं के अलावा भी किसी दवा का प्रयोग कर रहे हैं तो उन्होंने कहा कि पिताजी को अंडकोष की समस्या है। डॉक्टरों ने इसे हाइड्रोसील की समस्या बताया है। एक सड़क दुर्घटना के बाद उन्हें इस तरह की समस्या हुई है। इसके लिए वे एक आयुर्वेदिक चिकित्सक से दवा ले रहे हैं।
जब मैंने उन चिकित्सक से बात की तो पता चला कि वे पारंपरिक आयुर्वेदिक चिकित्सक न होकर एक वैद्य है जोकि पीढ़ियों से अपने ज्ञान का उपयोग कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि वे आयुर्वेद के ग्रंथों में लिखे एक फार्मूले का प्रयोग लंबे समय से कर रहे हैं जिससे कि हाइड्रोसील की समस्या पूरी तरह से ठीक हो जाती है। उन्होंने बहुत सारे पत्रों की बात की और बहुत सारे मरीजों की भी जो कि उनकी चिकित्सा से बिना किसी नुकसान के ठीक हुए थे। उन्होंने बताया कि वे गंधक रसायन का उपयोग कर रहे हैं जो कि हाइड्रोसील के लिए बहुत उपयोगी है। मैंने उनसे कहा कि आयुर्वेद के ग्रंथों में गंधक रसायन के नाम पर बहुत सारे नुस्खे मिलते हैं आप यदि मुझे पूरे नुस्खे की जानकारी दे सके तो मैं आपको बता सकता हूं कि आप कौन से गंधक रसायन का उपयोग कर रहे हैं। उन्होंने विस्तार से इस बारे में जानकारी दी। न केवल उस फार्मूले के सभी घटकों के बारे में बताया बल्कि यह भी बताया कि वे किस मात्रा में इस फार्मूले का प्रयोग करते हैं और कैसे निर्धारित करते हैं कि यह फार्मूला किसी के लिए उपयोगी होगा कि नहीं होगा। उनकी बातें सुनकर समस्या का समाधान होता नजर आया। उन्होंने जिस शोधन विधि का वर्णन किया था वह अधूरी थी अर्थात गंधक का सही ढंग से शोधन नहीं हो रहा था जिससे फार्मूला दोषपूर्ण हो रहा था।
मैंने उनसे पूछा कि आपने जिस फार्मूले का जिक्र किया है उस फार्मूले में तो भंगरा को एक आवश्यक घटक के रूप में डाला जाता है जबकि आपके फार्मूले में यह है ही नहीं। उन्होंने कहा कि भांगरा मिलना बहुत मुश्किल है इसीलिए उन्होंने निश्चय किया कि इस वनस्पति का प्रयोग वे अपने फार्मूले में नहीं करेंगे। उन्हें लगता है कि इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है।
मैंने उन्हें बताया कि आयुर्वेद के फार्मूले में जितने भी घटकों को डाला जाता है सभी का एक विशेष उद्देश्य होता है। उसमें घट बढ़ नहीं किया जा सकता। इस फार्मूले में भांगरे की एक विशेष महत्ता है। यदि आप इस फार्मूले में भांगरे का प्रयोग करते तो गंधक से इतना अधिक नुकसान नहीं होता। गंधक के नुकसानों को यह संभाल लेता पर अब जब फार्मूले में भंगरा नहीं है तो यह फार्मूला पूरी तरह से दोषयुक्त हो गया और इससे नुकसान होने की प्रबल संभावना है। मैंने उनसे यह भी कहा कि आयुर्वेद के ग्रंथों में रोगी की स्थिति देखकर विशेषकर उनकी उम्र देखकर मात्रा का निर्धारण करने के लिए कहा गया है और एक तोला से अधिक इसके प्रयोग की मनाही की गई है। आप जिस मात्रा में इसका प्रयोग मित्र के पिताजी पर कर रहे हैं उससे तो सल्फर टाक्सीसिटी होना सुनिश्चित है। इस पर वैद्य जी ने कहा कि शास्त्रीय ग्रंथों में जिस मात्रा का उल्लेख किया गया है उस मात्रा में तो दवाई ठीक से काम नहीं करती है इसलिए मैंने आधुनिक लोगों के लिए मात्रा को बढ़ा दिया है। मैंने उनसे कहा कि यह ठीक बात नहीं है। आपको ऐसा नहीं करना चाहिए।
वैद्य जी से बात हो जाने के बाद मैंने पूरी बात अपने मित्र और उनके पिताजी को बताई और उनसे कहा कि वे इस दोषपूर्ण फार्मूले का प्रयोग पूरी तरह से रोक दें और उसके बाद 1 महीने के बाद मुझे बताएं कि उनकी समस्या कैसी है। मैंने उन्हें हाइड्रोसील के लिए एक वृक्ष की छाल का लेप दिया और कहा कि इसे बाहरी रूप से प्रभावित भाग में लगाएं और सूखने पर धो लें। इससे उनका हाइड्रोसील बहुत कम समय में प्रभावी तरीके से ठीक हो जाएगा। इसके लिए आंतरिक दवा की जरूरत नहीं है। वे वापस लौट गए।
एक हफ्ते के बाद मित्र का फोन आया कि अब उनके पिताजी की तबीयत में काफी सुधार है पर बहुत अधिक कब्जियत हो रही है और शरीर में एलर्जी के लक्षण आ रहे हैं तब मैंने कहा कि 18 प्रकार के लक्षणों के आधार पर आप उन्हें जो आधुनिक दवाएं दे रहे हैं यदि आप चाहे तो उन दवाओं को अब बंद कर सकते हैं। अब उनकी जरूरत नहीं है क्योंकि समस्या का मूल का पता चल गया है और एक बार समस्या का कारण पता चल जाने के बाद यदि उपाय किए जाएं तो फिर पहले की दवाओं की कोई आवश्यकता नहीं है। उन्होंने मेरी बात मानी और सभी दवाओं को बंद कर दिया। धीरे-धीरे उनके शरीर से सल्फर की मात्रा कम होने लगी और उनके लक्षण घटने लगे। उन्हें पूरी तरह से तंदुरुस्त होने में कई महीनों का समय लगा।
मैंने मित्र से कहा कि भारत की पारंपरिक चिकित्सा में बहुत सारे ऐसे मेडिसिनल राइस है जो शरीर में सल्फर की अधिकता को कम करते हैं पर बहुत अधिक उम्र के लोगों को ऐसे मेडिसिनल राइस नहीं दिए जाते हैं इसलिए मैंने इनका अनुमोदन आपके पिताजी को नहीं किया।
मित्र ने धन्यवाद दिया और कहा कि मेरे पास भी ऐसे बहुत सारे मरीज आते रहे हैं जिन्हें मैं साधारण तरीके से दवा देता रहा। अब मुझे उस मिश्रण की आवश्यकता है ताकि मैं पता लगा सकूं कि मेरे मरीजों को भी तो कहीं सल्फर टाक्सीसिटी नहीं हो रही है।
मैंने उन्हें बताया कि इस मिश्रण पर बहुत से आधुनिक चिकित्सक शोध कर रहे हैं और जल्दी ही उनके शोध परिणाम आने वाले हैं। मुझे उम्मीद है कि जल्दी ही यह मिश्रण व्यवसायिक उत्पाद के रूप में भारत के बाजारों में उपलब्ध होगा। मित्र को तब तक इंतजार करना होगा। उन्होंने धन्यवाद दिया।
मैंने उन्हें शुभकामनाएं दी।
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