Consultation in Corona Period-216
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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया
"पिताजी रेलवे में लोको पायलट थे। एक बार जब कुछ बच्चे उनकी ट्रेन के नीचे आकर मर गए तब उन्हें बहुत अधिक मानसिक आघात लगा। उनकी नौकरी पर तो किसी भी तरह का कोई असर नहीं हुआ पर वे अपने आप ही नौकरी से दूर हो गए और घर में अपना समय बिताने लगे। उनके साथियों ने उनको बहुत समझाने की कोशिश की कि उनकी गलती कहीं नहीं थी। बच्चे ही खेलते खेलते रेलवे ट्रैक पर आ गए थे पर वे इसे मानने को तैयार नहीं थे और दोबारा उन्होंने फिर कभी लोको पायलट की भूमिका नहीं निभाई।
धीरे-धीरे उनके सिर में दर्द होना शुरू हुआ जो कि असहनीय होता गया। डॉक्टरों ने पहले बताया कि यह मानसिक आघात के कारण हो रहा है और उन्होंने बहुत सारी दिमाग को शांत करने वाली दवाएं दी पर जब यह दर्द बढ़ता गया तब डॉक्टर ने बताया कि यह एक तरह का माइग्रेन हो सकता है। जब हमें माइग्रेन का पता चला तब हमने इसके बारे में सारी जानकारी जुटाई। अलग-अलग चिकित्सकों से मिले और लगभग सभी प्रकार की दवा पद्धतियों को आजमा कर देखा पर पिताजी के दर्द में किसी भी तरह से कोई परिवर्तन नहीं हुआ। धीरे-धीरे उनकी आंखों की रोशनी कम होने लगी। पहले चिकित्सकों ने डायबिटीज पर शक किया पर वे डायबिटिक नहीं थे। फिर एक न्यूरोलॉजिस्ट ने जांच कर बताया कि माइग्रेन के कारण उनकी आंखें कमजोर होती जा रही है और यदि माइग्रेन को ठीक कर लिया गया तो उनकी आंखों की समस्या पूरी तरह से ठीक हो सकती है। इस बीच में यह जानकारी मिली कि उत्तर भारत के एक वैद्य एक विशेष तरह के तेल का प्रयोग करते हैं। इसे नाक में डालना होता है और आंखों में लगाना होता है। इससे माइग्रेन पूरी तरह से ठीक हो जाता है। हम उनसे जाकर मिले और उनके द्वारा दिए गए तेल का प्रयोग पिताजी करने लगे।
इससे उनके माइग्रेन की समस्या धीरे-धीरे ही सही पर ठीक हो गई पर उनकी आंखों की रोशनी का कम होना लगातार जारी रहा। इससे यह पता चल रहा था कि आंखों की रोशनी का कम होना माइग्रेन के कारण नहीं हो रहा था बल्कि इसका कोई और कारण था। इसके बाद आंखों की रोशनी बहुत तेजी से कम हुई और उन्हें दिखना पूरी तरह से बंद हो गया पर उन्हें इस बात की तसल्ली थी कि उन्हें सिर में होने वाले तेज दर्द से पूरी तरह से मुक्ति मिल गई थी। इस घटना को अब 3 साल से अधिक हो गए हैं।
पिताजी की आंखों की रोशनी पूरी तरह से जा चुकी है। केवल उन्हें किसी के आने जाने का आभास होता है पर वे उस वस्तु को पहचान नहीं पाते हैं। माइग्रेन के लिए वैद्य जी द्वारा दिए गए तेल का प्रयोग हम लगातार कर रहे हैं। हमने अपने व्हाट्सएप मैसेज के साथ में सारी रिपोर्ट भेज दी है और उन दवाओं की सूची भी भेज दी है जिनका प्रयोग इन सालोँ में पिताजी ने किया। क्या आप अपने पारंपरिक चिकित्सकीय ज्ञान के आधार पर किसी तरह का मार्गदर्शन दे सकते हैं?" मध्य भारत से आए इस संदेश के जवाब में मैंने संदेश भेजने वाले युवक से कहा कि मैं तुम्हारी मदद करूंगा। मैंने सभी रिपोर्ट देखी पर उनसे इस बात का पता नहीं चला कि समस्या का मूल कारण क्या है। मैंने उस युवक से कहा कि वह यदि संभव हो तो अपने पिताजी को लेकर रायपुर आ जाए ताकि मैं एक छोटा सा परीक्षण कर सकूं। इससे इस समस्या के मूल को जानने में आसानी होगी। वह इस बात के लिए तैयार हो गया और अगले ही हफ्ते अपॉइंटमेंट लेकर मिलने चला आया। जब मैंने जड़ी बूटियों की सहायता से परीक्षण किया तो मुझे एक विशेष तरह की वनस्पति की अधिकता के लक्षण दिखे। वनस्पति की अधिकता के लक्षण दिखते ही मैंने वैद्य जी के फार्मूले पर अपना ध्यान केंद्रित किया और वैद्य जी से बात करके उनसे पूछा कि वे किस तरह के फॉर्मूलेशन का प्रयोग कर रहे हैं विशेषकर आंखों के लिए।
उन्होंने बताया कि वे काकमाची पर आधारित एक तेल का निर्माण करते हैं। इस तेल में 18 किस्म के घटक होते हैं। यह तेल आंखों में जब डाला जाता है तो न केवल माइग्रेन में फायदा होता है बल्कि रतौंधी की समस्या भी कभी नहीं होती है। उन्होंने उन आयुर्वेद के ग्रंथों के बारे में बताया जिनमें इस फार्मूले के बारे में जानकारी दी गई थी। मैंने उनसे पूछा कि क्या काकमाची आप बाजार से खरीदते हैं या स्वयं जाकर एकत्र करते हैं तब उन्होंने कहा कि वे बाजार पर विश्वास नहीं करते हैं और स्वयं खेतों में जाकर काकमाची को एकत्र करते हैं और फिर अपनी निगरानी में इस तेल का निर्माण करते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि उनका पूरा परिवार पीढ़ियों से इस तेल का नियमित प्रयोग कर रहा है और उन्हें आंखों की किसी भी तरह की कोई समस्या नहीं हो रही है। मैंने युवक से पूछा कि क्या उसके पिताजी किसी और तरह के तेल का प्रयोग कर रहे हैं अपनी आंखों की समस्या के लिए या अपने माइग्रेन की समस्या के लिए तो उसने कहा कि अमरकंटक से गुलबकावली का अर्क वह खरीदता है और उसका प्रयोग भी पिताजी की आंखों में किया जाता है।
मैंने उससे कहा कि वह मुझे काकामाची पर आधारित उस तेल का सैंपल दे ताकि मैं उसका वैज्ञानिक विधि से परीक्षण कर सकूं। जब मैंने उस तेल का वैज्ञानिक विधि से परीक्षण किया तो मुझे उसमें किसी भी प्रकार का दोष नजर नहीं आया। इस बीच वैद्य जी ने भी अपने द्वारा तैयार किए गए तेल का एक नमूना मेरे पास भेजा ताकि मैं उसकी अच्छे से जांच कर सकूं। वैद्य जी द्वारा भेजा गया नमूना और युवक द्वारा दिया गया नमूना बिल्कुल ही अलग था जबकि उन दोनों के बारे में यह बताया गया था कि वे एक ही है। जब मैंने यह बात युवक को बताई तो उसने कहा कि उसके द्वारा उपयोग किया गया तेल अलग इसलिए दिखाई पड़ रहा है क्योंकि इसने उसमें गुलबकावली के अर्क को भी मिला दिया है। इसका अर्थ यह था कि उस युवक के पिता जी एक ऐसे तेल का उपयोग कर रहे थे जिसमें गुलबकावली का अर्क डाला गया था जो कि अनुमोदित नहीं था।
गुलबकावली के अर्क को इस तरह मिलाने का अनुमोदन वैद्य जी ने नहीं किया था। यह उसका अपना प्रयोग था जिसके पीछे आलस्य एक कारण था। अब समस्या का समाधान दिखने लगा था। मैंने उस युवक को बताया कि काकमाची के साथ कभी भी गुलबकावली का प्रयोग नहीं किया जाता है। जब काकमाची के तेल का उपयोग आंखों के लिए किया जा रहा था तब उस समय गुलबकावली का प्रयोग किसी भी रूप में नहीं करना चाहिए था पर उसने तो इस तेल के साथ में गुलबकावली को मिला दिया बिना किसी विशेषज्ञ से राय लिए। इससे ही सारी समस्या उत्पन्न हुई।
मैंने उसे सलाह दी कि वह गुलबकावली के अर्क का प्रयोग कुछ समय के लिए रोक दे। मैंने उससे यह भी कहा कि गुलबकावली का जो अर्क मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में मिलता है उसमें फिटकरी की मिलावट की जाती है जोकि गुलबकावली के अर्क के दोषों को बहुत बढ़ा देती है।
मेरी बात मानने के लिए वह युवक तैयार हो गया और मैंने उससे कहा कि वह काकामाची के तेल का प्रयोग जारी रख सकता है। उसे किसी भी तरह की और दवा की जरूरत नहीं है। बस वह गुलबकावली के अर्क का प्रयोग रोक दें और फिर 15 दिनों के बाद मुझे बताएं कि क्या पिताजी की आंखों की रोशनी में किसी तरह का फर्क पड़ा है?
25 दिनों के बाद उस युवक का फोन आया और उसने बताया कि अब उसके पिताजी की आंखों की रोशनी में सुधार आ रहा है ऐसा प्रतीत हो रहा है। अब राह मिल गई थी इसलिए मैंने उस युवक से कहा कि वह अब कई महीनों तक इस गुलबकावली के अर्क का प्रयोग बिल्कुल भी न करे और जैसे ही आंखों की रोशनी पूरी तरह से लौटने लगे तो फिर मुझसे एक बार संपर्क करें। उसके पिताजी की आंखों की रोशनी को लौटने में 4 महीनों का समय लगा।
मैंने उस युवक को फिर से बुलाया और उसे एक विशेष तरह का लेप दिया जिसे उसके पिताजी को रोज अपने पैरों में लगाना था और सूखने पर धो लेना था।
युवक ने पूछा कि क्या इस लेप को लगाने से पिताजी की आंखों पर कोई सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा तब मैंने उस युवक को समझाते हुए कहा कि ये लेप उनकी मानसिक दशा के लिए है, आंखों के लिए नहीं है। इससे उनका अवसाद दूर होगा। उनकी सोचने की शक्ति बढ़ेगी और मुझे उम्मीद है कि इस लेप का कुछ समय तक प्रयोग करने के बाद वे फिर से सामान्य स्थिति में आ जाएंगे।
युवक ने धन्यवाद दिया और वापस लौट गया।
3 सालों के बाद उस युवक के पिताजी युवक सहित मुझसे मिलने आए। उन्होंने बताया कि जितने समय तक आपने बताया था कि लेप लगाना है उस अवधि के खत्म होने तक मेरी मानसिक स्थिति में बहुत अधिक सुधार हो गया। मैंने रेलवे की नौकरी फिर से शुरू कर दी है और अब मुझे किसी भी तरह की कोई समस्या नहीं है।
यह एक सुकून भरा समाचार था।
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