Consultation in Corona Period-230
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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया
"जब तक मेरे सिर में बाल नहीं उगेंगे तब तक मैं आपका पीछा नहीं छोड़ने वाला। मैं रायपुर में ही रहूंगा और रोज आपके ऊपर दबाव बनाऊंगा कि आप मुझे वह विशेष तरह का लेप दें जिससे कि बाल तुरंत उगने शुरू हो जाते हैं।" ब्रिटेन से आए ये पत्रकार मुझसे यह उम्मीद कर रहे थे कि मैं उन्हें जड़ी बूटियों का एक विशेष तरह का लेप दूंगा जिससे उनकी गंजी खोपड़ी पर 30 दिनों के अंदर बाल उग जाएंगे।
उनकी बात सुनकर मुझे विश्वास हो गया कि वे मुझे बहुत पहले से जानते हैं। उस समय से जबकि गूगल ने विकिपीडिया के तर्ज पर गूगल नोल की शुरुआत की थी जिसमें मैं लगातार अपना योगदान दिया करता था। एक ऐसे ही नोल में मैंने देश की पारंपरिक चिकित्सा के बारे में लिखा था जिसमें 30 दिनों के अंदर गंजी खोपड़ी में बाल उग जाने की बात कही गई थी। यह लेख बहुत लोकप्रिय हुआ और अचानक ही लोगों की भीड़ बढ़ने लगी। सब बड़ी उम्मीद से आते थे पर उपचार के तरीकों को जानकर निराश होकर लौट जाते थे। लोगों की भीड़ जब नियंत्रण से बाहर हो गई तब मैंने निश्चय किया कि इस नोल को इंटरनेट से हटा दिया जाए ताकि चैन से रहा जा सके। उसके बाद भी कई वर्षों तक लोग पीछे पड़े रहे और अब इन पत्रकार महोदय की बात सुनकर लगता था कि लोग अभी तक उस लेख को नहीं भूले हैं। दरअसल वह लेख ऐसे पारंपरिक चिकित्सकों के ऊपर केंद्रित था जो कि दावा करते हैं कि यदि युवावस्था में ही कुछ समय के लिए विशेष विधि से उपचार किया जाए तो आजीवन जटिल रोग नहीं होते हैं। इन जटिल रोगों में डायबिटीज, थायराइड और ब्लड प्रेशर की समस्या शामिल है। इस उपचार पद्धति में यह भी दावा किया जाता है कि इसे अपनाने से ही जीवन भर कोई व्यक्ति किसी भी तरह के संक्रमण का शिकार नहीं हो सकता है आम लोगों की तरह।
इस उपचार में 52 दिनों का समय लगता है और 52 दिनों तक बहुत संभल कर रहना होता है। तरह-तरह के परहेज करने होते हैं जो कि कॉन्क्रीट जंगल में रहने वाले लोगों के लिए किसी भी हालत में संभव नहीं है। यही कारण है कि उपचार शुरू होने के 3 से 4 दिनों में ही वे या तो नियमों को तोड़ देते हैं या फिर वापस लौट जाते हैं। उन्हें लगता है कि बाल नहीं उगे तो एक बार वे जी लेंगे पर जिन सामग्रियों से परहेज करने की बात की जाती है उनका परहेज वे किसी तरह से नहीं कर सकते हैं।
मैंने इस पारंपरिक ज्ञान के बारे में बहुत विस्तार से लिखा और महीनों तक पारंपरिक चिकित्सकों के साथ रहकर उनके सहयोगी के रुप में मरीजों की चिकित्सा की यानी उन्हें भविष्य में पूर्ण रूप से स्वस्थ बनाने के लिए अपना योगदान दिया। मैंने देखा कि ज्यादातर मामलों में 25 से 30 दिनों में गंजी खोपड़ी में बाल आने लगते हैं। यह बात सही है कि पहले दिन से ही शरीर में एक विशेष तरह का लेप लगाया जाता है जिससे कि सिर को बहुत अधिक फायदा होता है पर बाल केवल लेप के कारण नहीं उगते हैं बल्कि दिन भर प्रभावितों को जो भोजन सामग्री दी जाती है उनकी अहम भूमिका होती है।
52 दिनों तक प्रतिदिन एक विशेष तरह का काढ़ा दिया जाता है जो कि रोज बदलता रहता है। यह काढ़ा स्वाद में बुरा नहीं होता है फिर भी शहर के लोग इसे कम ही पसंद करते हैं। जिस तरह की उपचार पद्धति का प्रयोग पारंपरिक चिकित्सक करते हैं उसके बारे में उन्हें मालूम होता है कि प्रभावित के शरीर में किस तरह के लक्षण आएंगे पहले दिन से लेकर 52 दिनों तक। उन्हीं लक्षणों के आधार पर वे आगे बढ़ते जाते हैं। यदि उन्हें उस तरह के लक्षण नहीं दिखते हैं या लक्षणों में किसी तरह का विचलन दिखता है तो वे तुरंत ही साफ शब्दों में बता देते हैं कि आपने नियम का पालन नहीं किया है और अब यह उपचार जारी नहीं रह सकता है। यहाँ मुझे एक उदाहरण याद आ रहा है।
एक व्यक्ति ने मुझसे इस उपचार के लिए संपर्क किया था और जब उसे सभी तरह के परहेजों के बारे में बताया गया तो उसने वचन दिया था कि वह सभी बातों को पूरी तरह से मानेगा। उसे टाइफाइड हुआ था और उसके बाद उसके बाल पूरी तरह से झड़ गए थे। उसने दुनिया भर की पद्धतियों को अपनाया था पर बालों का उगना संभव नहीं हो सका था। पारंपरिक चिकित्सक के मार्गदर्शन में जब उसका उपचार शुरू हुआ तो 22 दिनों में ही उसके बाल आने लगे। इससे वह बहुत उत्साहित हुआ और नियमपूर्वक सभी कार्य करता रहा। तीसवें दिन पारंपरिक चिकित्सक को उसके शरीर में उस तरह के लक्षण नहीं दिखे जिस तरह के दिखने चाहिए थे तब उन्हें शक हुआ। उन्होंने एक विशेष तरह का परीक्षण किया और साफ शब्दों में बता दिया कि उस व्यक्ति ने कुचला नामक विष का प्रयोग किसी रूप में किया है। उस व्यक्ति ने साफ शब्दों में कहा कि उसने तो इस वनस्पति का नाम कभी सुना ही नहीं है इसलिए प्रयोग करने का सवाल ही नहीं उठता है।
जब बात मुझ तक पहुंची तो मैंने उस व्यक्ति से कहा कि क्या उसने किसी तरह की होम्योपैथिक दवा का प्रयोग किया है विशेष कर नक्स वॉमिका का तो उसने बताया है कि उसने हाल में ही nux-vomica का प्रयोग शुरू किया है। मैंने उस व्यक्ति से कहा कि यह बात आपको पारंपरिक चिकित्सक को बतानी चाहिए थी और उनकी अनुमति के बाद ही इस तरह की दवा का प्रयोग करना चाहिए था। मैं आपको बताना चाहता हूं कि nux-vomica को ही स्थानीय भाषा में कुचला कहा जाता है।
उस व्यक्ति ने बहुत मिन्नतें की पर पारंपरिक चिकित्सक फिर से उपचार करने को तैयार नहीं हुए। उस व्यक्ति के जो बाल उगे थे वे तो स्थाई रूप से थे पर जैसे ही उपचार खत्म हुआ और उसने परहेज से ध्यान हटाना शुरू किया उसकी खोपड़ी फिर से गंजी होती गई। फिर दोबारा बाल नहीं उगे।
उन पारंपरिक चिकित्सक के मार्गदर्शन में सैकड़ों लोगों ने उस उपचार पद्धति को अपनाया। मैंने हर मामले के बारे में विस्तार से लिखा और यह भी लिखा कि कहां लोगों ने गलती की और जिन लोगों को सफलता मिली क्या उनके बाल स्थाई तौर पर जमे रहे या कुछ सालों के बाद फिर वही स्थिति हो गई।
इस उपचार पद्धति की एक अच्छी बात यह है कि परहेज केवल उपचार के दौरान ही रखना होता है फिर आजीवन किसी तरह का परहेज नहीं रखना होता है। 10 साल पूर्व जब इस पूरी उपचार पद्धति को करने वाले पारंपरिक चिकित्सक हमारे बीच नहीं रहे तब उनके घर वालों ने बताना शुरू किया कि इस पूरे उपचार के बारे में जानकारी दस्तावेज के रूप में मेरे पास है। इससे लोग मुझसे संपर्क करने लगे पर यह उपचार पारंपरिक चिकित्सक के गांव में ही संभव था जहां उन्होंने अलग से झोपड़िया बना कर रखी थी जिनमें उपचार कराने वाले लोगों को 52 दिनों तक रहना होता था। पारंपरिक चिकित्सक के निर्देशानुसार ही उन्हें भोजन सामग्रियों का प्रयोग करना होता था और तो वे चौबीसों घंटे पारंपरिक चिकित्सक की निगरानी में रहते थे। यह सब कुछ तो शहर में संभव नहीं है।
जिन लोगों को लाभ हुआ था उन्होंने उपचार पद्धति के बारे में पूरी जानकारी दूसरे लोगों को नहीं उपलब्ध कराई। केवल यही बताया कि एक विशेष तरह का लेप लगाने से उनकी गंजी खोपड़ी में बाल उग गए। इससे लोग भ्रमित हो गए। उन्होंने इसे ही सच समझा और उम्मीद करने लगे कि वह लेप मिल जाए जिससे कि इतने कम समय में प्रभावी रूप से बाल उग सकते हैं। पारंपरिक चिकित्सक जब थे तब उनके उपचार में मुश्किल से कुछ हजार रुपए ही खर्च आते थे पर जब मैंने एक हर्बल रिसोर्ट के मालिक से कहा कि वे अपने रिसॉर्ट में दक्ष पारंपरिक चिकित्सकों के माध्यम से इस तरह के उपचार को शुरू करें तो वे तैयार हो गए पर उन्होंने इस उपचार को इतना अधिक महंगा बना दिया कि पारंपरिक चिकित्सकों ने इससे दूरी बनाना ही उचित समझा। वे बाल उगाने के लिए फीस के रूप में 52 दिनों तक रिसोर्ट में रहने का खर्च मांग लेते थे जो कि कई लाख रुपए होता था। इससे बहुत अधिक लोग इस उपचार पद्धति को अपना नहीं पाते थे। बाद में जब रिसोर्ट मालिक का लालच बढ़ा तो वे चोरी छुपे इलाज कराने वाले लोगों को शराब की आपूर्ति करने लगे और साथ में नशीली औषधियों की भी जिससे कि उपचार पूरी तरह से असफल साबित हो जाता था। इससे पारंपरिक चिकित्सकों को अपयश मिलता था और उपचार के असफल हो जाने पर भी लोगों को रिसोर्ट मालिक किसी भी तरह से पैसे वापस नहीं करते थे। धीरे धीरे इस उपचार का उस रिसॉर्ट में अंत हो गया। जब पारंपरिक चिकित्सक इस प्रोजेक्ट से हट गए तब रिसोर्ट मालिक ने दूसरे लोगों को विशेषज्ञ बनाकर यह प्रक्रिया शुरू की पर वे इस गुप्त ज्ञान के बारे में बिल्कुल भी नहीं जानते थे इसलिए जल्दी ही उनका धंधा चौपट हो गया।
ब्रिटेन के पत्रकार महोदय को मैंने सारी प्रक्रिया के बारे में विस्तार से बताया और यह भी बताया कि यह मेरे मार्गदर्शन में शायद ही हो पाए और मुश्किल यह है कि दक्ष पारंपरिक चिकित्सक अब इस दुनिया में नहीं है पर पत्रकार महोदय अपनी बात पर अड़े रहे कि उन्हें केवल लेप की जरूरत है न कि 52 दिन की उपचार पद्धति की। मैंने उन्हें साफ इनकार कर दिया।
अब उन्हें बार-बार समझाने से कोई लाभ नहीं था। उन्होंने रायपुर में 3 महीने गुजारे और फिर कई सालों तक लंबी अवधि तक आकर मुझ पर दबाव बनाते रहे। आखिर थक हार कर वापस लौट गए पर यह कह गए कि आपको फार्मूले की जानकारी है पर आप बताना नहीं चाहते हैं।
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