Consultation in Corona Period-232
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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया
"आप मेरी बात उन वैद्य से कराइये जो कि आपके पेट के कैंसर की चिकित्सा कर रहे हैं। उनसे बात करके ही मैं पता लगा सकता हूं कि आप का कैंसर इतनी तेजी से क्यों फैल रहा है और क्यों आधुनिक दवाएं असफल साबित हो रही हैं।" यह बात मैंने उन सज्जन से कहीं जिन्होंने पेट के कैंसर के लिए मुझसे संपर्क किया और बताया कि उनकी सभी तरह की चिकित्सा अब बंद हो चुकी है। उन्हें बहुत असहनीय दर्द हो रहा है और वे चाहते हैं कि कैसे भी उन्हें इस दर्द से मुक्ति मिले। भले ही उनका कैंसर पूरी तरह से ठीक हो या न हो पर यह दर्द नहीं सहा जाता है।
उन्होंने मार्फिन का भी प्रयोग किया था पर उससे बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ा था और उसके प्रयोग से उनको दूसरी तरह की स्वास्थ समस्याएं हो रही थी। उन्होंने बताया कि बहुत मुश्किल से केरल के एक वैद्य ने उनकी चिकित्सा करने की सहमति दी और कुछ वर्षों से वे उनकी ही दवा ले रहे हैं पर इससे उन्हें किसी तरह का लाभ नहीं हो रहा है और समस्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। हाल ही में जब उन्होंने टेस्ट करवाया तो पता चला कि कैंसर शरीर के दूसरे भागों में भी फैल रहा है और अब लाइलाज हो चुका है। उनके चिकित्सक कह रहे हैं कि रेडिएशन थेरेपी और कीमोथेरेपी के लिए उनका शरीर तैयार नहीं है। वह बहुत कमजोर हो गया है इसलिए बहुत जरूरी है कि पहले शरीर को मजबूत किया जाए ताकि इन उपचारों को फिर से आरंभ किया जा सके।
उनके वैद्य दक्षिण भारत के थे पर यह अच्छी बात थी कि उन्हें अच्छे से हिंदी आती थी। उन्होंने बताया कि वे उपचार के रूप में 5 तरह के पारंपरिक चावल का उपयोग कर रहे हैं और उससे एक व्यंजन बनाकर अपने मरीज को दे रहे हैं ताकि पेट का कैंसर पूरी तरह से ठीक हो जाए। वैद्य ने यह भी बताया कि यह उनका पारंपरिक ज्ञान है और उनके पिताजी पूरी तरह से इस कार्य को देखते हैं। अभी वे विदेश की यात्रा में है इसीलिए उनसे बात नहीं हो सकती है।
मैंने जब 5 तरह के पारंपरिक चावल का नाम सुना तो उनसे सीधा प्रश्न पूछा कि क्या इसमें आप निवार या नवारा चावल का प्रयोग कर रहे हैं तो उन्होंने कहा कि हां, आपको कैसे पता?
मैंने उन्हें बताया कि इस चावल का प्रयोग करने से कई तरह की स्वास्थ समस्याएं उत्पन्न हो जाती है जिनमें से पेट का कैंसर भी एक है। यह पेट का कैंसर पैदा नहीं करता पर उसे फैलने में मदद करता है। इस पर वैद्य महोदय थोड़े से आवेश में आ गए और उन्होंने कहा कि आपको पता नहीं, यह प्राचीन चावल है और इसके बारे में हमारे ग्रंथों में काफी कुछ लिखा गया है। इससे तो किसी तरह का नुकसान हो ही नहीं सकता। यह देवताओं का भोजन है और देवता भला ऐसा भोजन क्यों करेंगे जिससे कि उन्हें किसी तरह का नुकसान हो। मैंने वैद्य जी की बात से सहमत होते हुए कहा कि आपका कहना सही है कि यह चावल अपने आप में अधिक नुकसानदायक नहीं है। यह नुकसानदायक तब हो जाता है जब इसका गलत प्रयोग किया जाता है। यदि आप छत्तीसगढ़ के पारंपरिक चिकित्सक से मिलेंगे तो वे आपको बताएंगे कि कैसे नवारा चावल का प्रयोग किया जाता है। कैसे इसे पकाने से पहले शोधित किया जाता है ताकि इसके दुर्गुणों को हटाया जा सके विशेषकर जब इसका प्रयोग पेट की किसी बीमारी के लिए होता है।
यदि आप बंगाल के पारंपरिक चिकित्सकों से मिलेंगे तो वे आपको बताएंगे कि कैसे इस चावल का प्रयोग पेट के कैंसर में करना है जिससे कि किसी तरह का नुकसान न हो। वे कई तरह की जड़ी बूटियां इस चावल में मिलाते हैं और उन्हें चावल के साथ ही पकाते हैं। उसके बाद ही इस चावल का प्रयोग करने की सलाह दी जाती है।
इस पर वैद्य जी ने आश्चर्य जताते हुए कहा कि मुझे तो यह बताया गया है कि यह चावल पेट के कैंसर में बहुत उपयोगी है। इंटरनेट में भी इसके बारे में बहुत जानकारी है और बहुत सारे किसान इसकी खेती कर रहे हैं। मैंने कहा कि यह बात सही है कि इसके बारे में बहुत प्रचार प्रसार किया गया है पर इसके सही उपयोग के बारे में जानकारी आम लोगों को नहीं है। वे इसे साधारण चावल की तरह उपयोग करते हैं यानी भोजन के रूप में प्रयोग करते हैं। इससे उन्हें नाना प्रकार की समस्याएं हो जाती है। इस पर वैद्य जी ने बिफरते हुए कहा कि उन्होंने तो सभी आयुर्वेद के ग्रंथों का अध्ययन किया है
उसमें तो कहीं नहीं लिखा है कि नवारा चावल का प्रयोग करने से किसी प्रकार की हानि होती है।
मैंने उन्हें समझाते हुए कहा कि सभी पुस्तकों में सभी बातें नहीं लिखी होती। बहुत सी पुस्तकों के रचनाकार बहुत सी जानकारी अपने पास रखते हैं। सभी जानकारियों को पुस्तकों में व्यक्त नहीं करते हैं। उनके शिष्यों के पास भी बहुत सारी जानकारियां रहती है। हो सकता है ऐसा ही हमारे प्राचीन ऋषियों ने किया हो और उन्होंने इस बारे में जानकारी प्रकाशित न की हो। वैसे मैंने उन्हें बताया कि आयुर्वेद के ग्रंथों में इस चावल के बारे में जितना लिखा है उससे कई गुना ज्यादा देश के पारंपरिक चिकित्सक जानते हैं जिनका ज्ञान पूरी तरह से अभी तक लिखा नहीं गया है।
वैद्य जी मेरी बातों से संतुष्ट होते दिखे और उन्होंने कहा कि जब उनके पिताजी लौटकर आएंगे तब एक बार उनसे बात करवाएंगे और उनके कहने पर ही वे इस फार्मूले से नवारा चावल को पूरी तरह से हटाएंगे।
पेट के कैंसर से प्रभावित सज्जन ने निर्णय किया कि वे पारंपरिक चावल से बने व्यंजन का प्रयोग बतौर चिकित्सा नहीं करेंगे। मैंने उन्हें कई तरह की हस्त मुद्राएं बताई और खानपान में सुधार के सुझाव दिए। उनसे कहा कि अब आप के दर्द की समस्या का पूरी तरह से समाधान हो जाएगा। आपको मार्फिन लेने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी और इस तरह की जीवन पद्धति से आपके शरीर की कमजोरी दूर होगी जिससे कि आपके चिकित्सक फिर से आपकी चिकित्सा शुरू कर पाएंगे। कुछ समय बाद दक्षिण भारत के वैद्य जी का फिर से फोन आया। इस बार उनके पिताजी फोन लाइन पर थे। उन्होंने कहा कि वे बहुत लंबे समय से नवारा चावल का प्रयोग कर रहे हैं पर इसके दोषों के बारे में उन्होंने कभी जानकारी एकत्र नहीं की। उन्होंने यह भी खुलासा किया कि कुछ विशेष तरह के लक्षण उन्होंने अपने मरीजों पर भी देखे हैं पर उन्हें लगा कि यह मरीजों को उनकी स्वास्थ समस्याओं के कारण आ रहे हैं न कि नवारा चावल के कारण। मैंने उन्हें विस्तार से इस चावल के शोधन की विधियों के बारे में बताया। इस पूरी प्रक्रिया को बताने में कई घंटों का समय लगा पर यह अच्छी बात यह रही कि वे ध्यानपूर्वक और लगन पूर्वक मेरी बातों को सुनते रहे और बीच-बीच में प्रश्न भी करते रहे।
मेरी बात खत्म होने के बाद उन्होंने मुझे आश्वस्त किया कि अब वे जब भी अपने पारंपरिक व्यंजनों और औषधियों में इस चावल का प्रयोग करेंगे तो पूरी तरह से शोधन करने के बाद ही करेंगे।
उन्होंने बताया कि वे अपने मरीजों के लिए नवारा चावल की खेती खुद करते हैं, बाजार पर निर्भर नहीं रहते हैं। मैंने उनसे कहा कि यह तो और भी अच्छी बात है। मैंने उन्हें कई तरह के वानस्पतिक सत्वों के बारे में बताया जिनका प्रयोग वे नवारा चावल की खेती के दौरान कर सकते थे फसल की अलग-अलग अवस्था में। इससे नवारा चावल विशेष रूप से औषधि गुणों से परिपूर्ण हो जाते हैं और उनका प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है। यह जानकारी भी वैद्य जी को नहीं थी।
उन्होंने बताया कि जिन वानस्पतिक सत्वों की बात मैंने उनसे की है उसके बहुत सारे घटक उनके क्षेत्र में नहीं मिलते हैं। समाधान के रूप में मैंने उन जड़ी बूटी विक्रेताओं के पते उनको दिए जिनके पास उन्हें साल भर ये घटक निर्बाध रूप से मिल सकते हैं। वैद्य जी ने मुझसे कहा कि आप कितनी फीस लेंगे। आपने इतनी महत्वपूर्ण जानकारियां दी है। इसके लिए मैं कितनी भी फीस देने के लिए तैयार हूं।
मैंने उनसे कहा कि मैं आपसे किसी भी तरह की फीस नहीं लूँगा तब उन्होंने कहा कि उनके पास एक विशेष तरह का फार्मूला है जिसका प्रयोग हर्पिस में किया जाता है। ऐसा कहकर उन्होंने उस फार्मूले के बारे में पूरी जानकारी दी और कहा कि अब आप इस फार्मूले का उपयोग कर सकते हैं। यह मेरे लिए सर्वथा नई जानकारी थी क्योंकि हर्पिस की चिकित्सा के लिए आसानी से दवा नहीं मिलती है और वायरल रोग होने के कारण आधुनिक चिकित्सक पहले ही हाथ खड़े कर देते हैं।
अब उन सज्जन की हालत पर लौटते हैं। पहली बार मुलाकात के बाद उन्होंने लगातार संपर्क बनाए रखा। सबसे पहले उनके कैंसर के दर्द में कमी आई और जब उन्होंने दोबारा परीक्षण कराया तो डॉक्टरों ने उन्हें बताया कि अब उनका कैंसर तेजी से नहीं फैल रहा है। 3 सालों के बाद उनकी शारीरिक स्थिति बहुत मजबूत हो गई और चिकित्सकों ने फिर से उनकी चिकित्सा शुरू कर दी।
अभी वे कैंसर से लड़ाई कर रहे हैं पर उनके साथ मुझे भी विश्वास है कि जल्दी ही वे पूरी तरह से कैंसर से मुक्त हो सकेंगे।
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