Consultation in Corona Period-215
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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया
"हम पिछले 50 सालों से पारिजात पर शोध कर रहे हैं। इसके औषधीय गुणों के बारे में और इससे बनने वाले फ़ार्मूलेशन्स के बारे में। हम चाहते हैं कि आप पूरे 3 दिनों तक हमारे साथ रहें। हम दिन भर इसी वनस्पति पर बात करेंगे और अपनी समस्याओं को आपके सामने रखेंगे। आप उनके समाधान बताइएगा। फिर उस पर हम अमल करने की कोशिश करेंगे। हम जानते हैं कि आपने पारिजात पर बहुत अधिक शोध किया है और उन शोध कार्यों को अपनी पुस्तकों के माध्यम से इंटरनेट पर ऑनलाइन किया है। आपकी सभी पुस्तकें हमारे पास उपलब्ध हैं और हम पिछले कई सालों से उनका अध्ययन कर रहे हैं। हमने आपके आने-जाने की व्यवस्था कर दी है। आपने बताया कि आप रात को जल्दी सो जाते हैं और आपका आखिरी भोजन दोपहर को तीन बजे हो जाता है। उसी हिसाब से हमने पूरे कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार की है। हमने आपकी यात्रा का प्रबंध कर दिया है और साथ ही आपकी फीस भी जमा कर दी है। आशा है कि आप जल्दी ही हमें समय देंगे।" उत्तर भारत के प्रसिद्ध आयुर्वैदिक शोध संस्थान के डायरेक्टर का जब यह संदेश आया तब मैंने उन्हें तैयारी के अनुसार समय दे दिया और नियत समय पर मैं उनके शोध संस्थान में पहुंच गया।
सबसे पहले उन्होंने प्रक्षेत्र भ्रमण का कार्यक्रम रखा था। वे मुझे अपने प्रक्षेत्र के उस हिस्से में लेकर गए जहां उन्होंने पारिजात के बहुत सारे पौधे लगाकर रखे थे। एक तरह से यह पारिजात की खेती हो रही थी। पारिजात के खेतों को देखने के बाद मैंने उनसे पूछा कि आप इन पौधों को पानी कब देते हैं? उन्होंने बताया कि हम जब भी मिट्टी को सूखा देखते हैं उस समय ही पानी डाल देते हैं। इसके लिए हमने विशेष तरह की समय सारणी बनाकर नहीं रखी है। मैंने उनसे पूछा कि क्या जब आप पारिजात के काढ़े का प्रयोग अपने मरीजों पर करते हैं? उन मरीजों पर जो कि डायबिटीज के लिए मेटफार्मिन या Glimepiride नामक आधुनिक दवा का प्रयोग करते हैं तब क्या उन्हें विशेष तरह की खुजली होती है तो उन्होंने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि हां, यह समस्या तो होती है और इसी समस्या की चर्चा हम आपसे दोपहर में करने वाले हैं। मैंने कहा कि पारिजात को बहुत अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती है। जब उसे बहुत अधिक पानी दिया जाता है तो उसमें कई तरह के विकार उत्पन्न हो जाते हैं और इन्हीं विकारों के कारण जब पारिजात का किसी भी रूप में प्रयोग डायबिटीज की आधुनिक दवा के साथ किया जाता है तो विपरीत लक्षण आने लग जाते हैं और मरीज बेकार ही नई स्वास्थ समस्याओं से घिर जाते हैं। मैंने उन्हें कृषि वैज्ञानिकों द्वारा अनुमोदित सिंचाई की पद्धति और विधि बताई। यह भी बताया कि कितने दिनों के बाद किस मौसम में पारिजात के पौधों को पानी देना है ताकि उनमें इस तरह के कोई विकार उत्पन्न न हो।
मैंने उन्हें छत्तीसगढ़ के पारंपरिक चिकित्सकों द्वारा प्रयोग किया जाने वाला एक वानस्पतिक घोल भी बना कर दिखाया जिसका प्रयोग अगर वे पारिजात के पौधे में करेंगे तो उनमें विशेष तरह के गुण आ जाएंगे। फिर इन परिजात के पौधों से तैयार काढ़े में किसी भी प्रकार का दोष नहीं रहता है और उनकी आधुनिक डायबिटीज की दवाओं से किसी भी प्रकार की विपरीत प्रतिक्रिया नहीं होती है। उनके संस्थान के वैज्ञानिक बड़े ध्यान से मेरी बातों को सुनते रहे और फिर बहुत देर तक प्रश्न पूछते रहे।
नाश्ते के बाद जब हम चर्चा के लिए बैठे हैं तो उन्होंने बताया है कि जब वे पारिजात के काढ़े का प्रयोग या पारिजात के किसी फार्मूले का प्रयोग च्यवनप्राश के साथ करते हैं तो बहुत से मरीजों को सिर में तेज दर्द होने लग जाता है जो कि माइग्रेन की तरह होता है और बड़ी मुश्किल से कई घंटों बाद ठीक होता है। वह भी विशेष तरह की दवाओं को देने के बाद। मैंने उनसे पूछा कि क्या हर तरह के च्यवनप्राश के साथ यह समस्या होती है तब उन्होंने कहा कि हर समय यह समस्या नहीं होती। कभी-कभी कुछ मरीजों में यह समस्या देखी गई है इसलिए हम आपके सामने इसे रख रहे हैं।
मैंने उनसे पूछा कि क्या आप च्यवनप्राश खुद तैयार करते हैं या बाजार से खरीदते हैं तब उन्होंने बताया कि च्यवनप्राश वे खुद नहीं बनाते हैं बल्कि बाजार से अलग-अलग ब्रांडों के च्यवनप्राश लेकर उनका प्रयोग करते हैं। मैंने खुलासा करते हुए बताया कि जब च्यवनप्राश में ऐसे आंवले का प्रयोग किया जाता है जो कि ऐसे वृक्षों से एकत्र किए जाते हैं जिन्हें कि कैल्शियम की कमी वाली मिट्टी में उगाया जाता है तब च्यवनप्राश में कई तरह के दोष उत्पन्न हो जाते हैं। नंगी आंखों से च्यवनप्राश देखने में ये दोष नजर नहीं आते हैं पर आधुनिक दवाओं के साथ जब इनकी प्रतिक्रिया होती है या पारंपरिक दवाओं को इस च्यवनप्राश के साथ लेने से नाना प्रकार के विकार उत्पन्न होते हैं तब पता चलता है कि च्यवनप्राश में ही किसी प्रकार का दोष है। च्यवनप्राश बनाने वाली कंपनियां इस बात पर गौर नहीं करती है। वे तो व्यापारियों के माध्यम से बड़ी मात्रा में आंवले का एकत्रण करती हैं और फिर उससे च्यवनप्राश का निर्माण कर लेती हैं इसीलिए किसी लाट में कम कैल्शियम वाला आंवला पहुंच जाता है तो किसी लाट में अति कैल्शियम वाला। इसीलिए सभी तरह के च्यवनप्राश चाहे वे एक ही विधि और एक ही प्रकार के घटकों से बनाए गए हो उनमें समानता नहीं पाई जाती है और वे अपना अलग-अलग प्रभाव दिखाते हैं।
मेरी बात खत्म होने पर संस्थान के डायरेक्टर ने कहा कि अगली बार से वे जिस च्यवनप्राश का उपयोग अपने संस्थान में और अपने अस्पताल में करेंगे उसका निर्माण वे अपनी निगरानी में करेंगे। उन्होंने उम्मीद जताई कि इससे समस्या का पूरी तरह से समाधान हो जाएगा।
पारिजात से विभिन्न तरह के कैंसर की चिकित्सा करने वाले वैज्ञानिकों ने कहा कि जब हम इसका प्रयोग कीमोथेरेपी की आधुनिक दवा कार्बोप्लैटिन के साथ करते हैं तो कैंसर ठीक होने की बजाय बहुत तेजी से फैलने लग जाता है। मैंने उनसे कहा कि ऐसा मैंने भी बहुत से मामलों में देखा है और इस बारे में काफी कुछ लिखा है। यह एक तरह का ड्रग इंटरेक्शन है। पर पारिजात और कार्बोप्लैटिन आपस में मिलकर कैंसर को बढ़ने में मदद करते हैं ऐसी बात नहीं है बल्कि पारिजात का उपयोग करने से कार्बोप्लैटिन का प्रभाव पूरी तरह से नहीं हो पाता है और इस तरह कैंसर को बढ़ने में मदद मिल जाती है। इसलिए बेहतर यही है कि इन दोनों दवाओं में से एक दवा का प्रयोग किया जाए और एक साथ कभी भी इन दोनों दवाओं का प्रयोग नहीं किया जाए।
इस तरह 3 दिनों में 600 से अधिक समस्याओं पर विस्तार से चर्चा हुई। मैंने उन्हें बहुत सारे सकारात्मक सुझाव दिए जिन पर अमल करने का आश्वासन उन्होंने दिया।
3 दिन की ताजगी भरी परिचर्चा के बाद मैं वापस अपने शहर आ गया। यह अच्छी बात है कि संस्थान के वैज्ञानिक अभी भी लगातार संपर्क में है।
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