Consultation in Corona Period-222

Consultation in Corona Period-222 Pankaj Oudhia पंकज अवधिया "गर्भपात के 3000 मामलों की जानकारी मैं आपके पास भेज रहा हूं। हमने इन केस स्टडीज को तैयार किया है। हमने बहुत विस्तार से अध्ययन किया पर हमें गर्भपात के लिए जिम्मेदार कारणों का पता नहीं चला। हो सकता है आप अपने अनुभव के आधार पर कुछ बता सके।" उत्तर भारत के एक शोध संस्थान के डायरेक्टर ने जब इस तरह के मामले मेरे पास भेजे तो मैंने उनसे कहा कि मैं आपकी मदद करने की कोशिश करूँगा। मैं किसी समय सीमा में आपकी मदद नहीं कर पाऊंगा। मुझे जब भी अपने शोध कार्यों से फुरसत मिलेगी तब मैं इन मामलों को देख लूँगा और फिर आपसे इस बारे में चर्चा करूँगा। वे सहमत हो गए। गर्भपात से संबंधित मामलों को जब मैंने गहराई से देखना शुरू किया तो मुझे एक ही तरह के कई मामले दिखाई दिए। इन मामलों में एक सामान्य बात यह थी कि प्रभावित महिला को लीवर की समस्या थी और जिस समय गर्भपात हुआ उसके 15 दिन पहले से उनका ब्लड प्रेशर बहुत बढ़ा हुआ था। इतना अधिक कि उन्हें अस्पताल में भर्ती करना पड़ा था। ऐसे मामलों को मैंने एक अलग से सेट बना कर रख लिया और फिर जब डायरेक्टर साहब ने अगली बार मुझसे फोन पर संपर्क किया तो मैंने उनसे पूछा कि क्या ये सभी मामले किसी विशेष क्षेत्र के हैं। ऐसे क्षेत्र के जहां पर लोग कम पढ़े लिखे हैं और जिन्हें की तंत्र मंत्र में बहुत अधिक विश्वास है। उन्होंने कहा कि मैं इन सब मामलों की पड़ताल करके आपको जल्दी ही सूचना देता हूं। जल्दी ही उन्होंने पुष्टि कर दी कि मेरा अनुमान सही था और ये सभी मामले एक विशेष इलाके से थे। इन मामलों का खुलासा करते हुए मैंने उन्हें विस्तार से समझाया कि बहुत से तांत्रिक गर्भवती महिलाओं को यह सुझाव देते हैं कि यदि उन्हें गोरे बच्चे चाहिए चाहे माता-पिता क्यों न काले हो तब उन्हें गर्भावस्था के दौरान सुबह और शाम ताड़ी का सेवन करना चाहिए। ताड़ी अर्थात ताजी ताड़ी नहीं बल्कि शराब वाली ताड़ी। इस अनुमोदन का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है और न ही आयुर्वेद के ग्रंथों में इस बारे में कुछ लिखा गया है। तांत्रिक इस अनुमोदन के साथ कई तरह के मंत्र बताते हैं और कहते हैं कि इस मंत्र से अभिमंत्रित करने के बाद ही ताड़ी का प्रयोग किया जाए। इससे बच्चे गोरे पैदा होंगे। गर्भावस्था में शराब का किसी भी रूप में प्रयोग पूर्णतया वर्जित होता है। इससे कई तरह के विकार हो सकते हैं जिनमें गर्भपात एक है। यदि गर्भपात नहीं भी होता है तो बच्चे के मानसिक रूप से कमजोर और विकलांग पैदा होने की संभावना बढ़ जाती है। अलग-अलग क्षेत्र के तांत्रिक अलग-अलग मात्रा में ताड़ी के प्रयोग की बात कहते हैं पर वे इस बात पर एकमत होते हैं कि ताड़ी का प्रयोग नियमित तौर से सुबह और शाम किया जाए। यही कारण है कि गर्भवती महिलाओं का ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है और उन्हें लीवर संबंधी समस्याएं हो जाती हैं। मैंने डायरेक्टर साहब को यह भी बताया कि ऐसे मैंने सैकड़ों मामले देखे हैं और इस बारे में अपने लेखों के माध्यम से लिखा है। इस बारे में व्यापक जन जागरण की आवश्यकता है ताकि नई पीढ़ी के लोग इस तरह के बेकार उपायों में न पड़े और फिर गर्भपात जैसी समस्या को बार-बार झेलते रहे। मैंने उन्हें यह भी बताया कि वेजाइनल कैंसर भी इन्हीं तांत्रिकों के उपायों से जुड़ा हुआ है जो कि इस क्षेत्र की महिलाओं को अक्सर हो जाता है। बाद में यह लाइलाज हो जाता है और महिलाओं को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है। डायरेक्टर साहब ने कहा कि उन्हें इस बारे में जानकारी नहीं है पर वे इस बारे में पता करके बताएँगे। कुछ समय बाद उनका फोन आया कि उस क्षेत्र में वेजाइनल कैंसर की समस्या भी बहुत अधिक है और ऐसा कह कर उन्होंने कई मामलों के बारे में विस्तार से जानकारी दी। जब मैंने इन मामलों का अध्ययन किया तो वही बात फिर से सामने आई जो मैंने पहले देखी थी। जिन महिलाओं को बच्चा नहीं हो रहा होता है उन्हें तांत्रिक सलाह देते हैं कि वे एक विशेष प्रकार की वनस्पति को अपनी वेजाइना में रखें और इसे लंबे समय तक वैसा ही रहने दें। इससे उनकी वैजाइना की फर्टिलिटी बढ़ जाएगी और बच्चों के न होने की समस्या का पूरी तरह से समाधान हो जाएगा। ये तांत्रिक पलाश के वृक्ष में होने वाले एक विशेष तरह के परजीवी पौधे का इस्तेमाल करते हैं जिसे कि तांत्रिकीय भाषा में पलाश का बांदा कहा जाता है। इसे दुर्लभ बताया जाता है और इसके लिए मनमानी कीमत वसूली जाती है। यदि आप बाजार में पलाश का बांदा की तलाश करेंगे तो आपको बहुत से तांत्रिक मिल जाएंगे जो इसे 15000 रुपए से लेकर कई लाख तक में बेचते हैं। कई बार तो पलाश के बांदा के नाम पर दूसरी वनस्पति दे दी जाती है जो कि बहुत जहरीली होती है और इसे वेजाइना में रखते ही महिलाओं को तकलीफ होने लग जाती है पर अपने पति या परिवारजन के दबाव में वे कुछ नहीं कर पाती हैं और इस कष्ट को सहती रहती हैं। पलाश के बांदा को एकत्र करने के बाद तांत्रिक से फिर से मिलना होता है जो कि इसे अभिमंत्रित करने के नाम पर मोटी फीस वसूलते हैं। फिर उसके बाद इसके प्रयोग की सलाह दी जाती है। एक ही बांदा का प्रयोग कुछ हफ्तों तक किया जाता है और फिर लाभ न होने की स्थिति में प्रयोग करने वाले को फिर से नए बांदा को खरीदना पड़ता है। इस तरह प्रयोग करने वाले को न केवल मानसिक और शारीरिक रूप से हानि होती है बल्कि आर्थिक रूप से भी उनका शोषण होता है। मैंने पलाश का बांदा का एक नमूना डायरेक्टर साहब को भेजा और साथ में उसके बारे में अपने शोध पत्रों और शोध रिपोर्ट को भी। इन रिपोर्टों में बांदा का रासायनिक विश्लेषण भी दिया गया था और यह बताया गया था कि इसमें कौन-कौन से ऐसे रसायन पाए जाते हैं जो कि कैंसर के लिए जिम्मेदार हैं। मैंने उन्हें यह भी बताया कि जब इस बांदा के प्रयोग से वेजाइनल कैंसर हो जाता है तो उसकी चिकित्सा बहुत कठिन हो जाती है क्योंकि चिकित्सक इस बात को नहीं जानते हैं कि वेजाइनल कैंसर किस कारण से हुआ है इसलिए वे अपना नियमित उपचार करते हैं जिससे कि प्रभावितों को किसी भी प्रकार से लाभ नहीं होता है। यदि उन्हें पता चल जाए कि यह किसी वनस्पति के कारण हुआ है तो वे उसके एंटीडोट का इस्तेमाल करके उस वनस्पति की विषाक्तता को वजाइना से दूर कर सकते हैं और इससे शरीर अपने आप ही कैंसर से लड़कर उसे ठीक कर देता है। यह जरूरी है कि चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े सभी लोगों को इस बारे में विस्तार से बताया जाए और उन्हें सतर्क किया जाए। डायरेक्टर साहब ने धन्यवाद दिया और मुझे आश्वस्त किया कि वे इस दिशा में सशक्त कदम उठाएंगे। मैंने उन्हें शुभकामनाएं दी। सर्वाधिकार सुरक्षित

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