Consultation in Corona Period-141

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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया


"नए साल की पार्टी मना कर जब जंगल से गगन और उसके मित्र लौटे तो तबियत तो सबकी खराब हुई पर गगन की तबियत बहुत ज्यादा खराब हुई। 

उस समय चीन में कोरोना फैला हुआ था और भारत में इसका नामोनिशान नहीं था। 

जब गगन की तबियत बहुत बिगड़ने लगी तो हमने उसे अस्पताल में भर्ती कराया। उसे सांस लेने में बहुत दिक्कत हो रही थी। जब स्थानीय अस्पताल में उसकी तबियत में किसी भी तरह का सुधार नहीं हुआ तो एयर एंबुलेंस की सहायता से हम उसे दिल्ली लेकर गए जहां के डॉक्टरों ने बताया कि ये उसी तरह के लक्षण है जो कि चीन में नए वायरस के कारण प्रभावित हुए लोगों को आ रहे हैं। 

उस समय जांच की अच्छी व्यवस्था नहीं थी इसलिए उसकी किसी तरह से जांच नहीं हुई। उसकी हालत बिगड़ती ही चली गई और उसे वेंटिलेटर पर रखना पड़ा।

 बड़ी मुश्किल से 15 से 20 दिनों के बाद उसकी स्थिति में सुधार हुआ और उसकी जान बच गई। उसकी चिकित्सा कर रहे डॉक्टर उससे दूरी बनाए हुए थे और लगातार डर रहे थे कि यह हो सकता है कि चीन के वायरस के कारण हो रहा हो पर उन्हें यह आश्चर्य हो रहा था कि जो व्यक्ति कभी भी देश से बाहर नहीं गया और चीनी के सम्पर्क में नही आया तो उसे इस वायरस ने कैसे पकड़ लिया। 

जब वह पूरी तरह से ठीक हो गया तो हमने उसे बंगलुरू भेजा जहां पर एक नेचुरोपैथी के चिकित्सालय में 20 दिनों तक उसे रखा गया। धीरे-धीरे उसकी सेहत में सुधार होने लगा और वह पूरी तरह से ठीक हो गया। फरवरी के अंत में उसने फिर से जिद की कि वह फिर से जंगल जाएगा और वहां कैंपिंग करेगा। हम इस बात के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं थे क्योंकि उसकी हालत अभी पूरी तरह से ठीक नहीं हुई थी। 

हमने उसके साथ दो सहायक भेजें ताकि किसी भी तरह की इमरजेंसी होने पर उसे वापस बुलवाया जा सके। मार्च के पहले हफ्ते में जब वह कैंपिंग से वापस आया तो एक बार फिर उसके सभी साथी बीमार पड़ गए पर गगन सबसे अधिक प्रभावित हुआ। उसकी स्थिति पहले जैसी हो गई।

 उस समय कोरोनावायरस के टेस्ट होने शुरू हो गए थे। हमने उसकी दो बार जांच कराई पर हमें दोनों ही बार नेगेटिव रिपोर्ट मिली। डॉक्टरों ने उसकी हालत देखकर कहा कि यह है तो कोरोनावायरस भले ही यह टेस्ट में नहीं आ रहा हो पर हम इसे कोरोनावायरस प्रभावित जैसे ही उपचारित करेंगे और सारी सावधानियां बरतेंगे। 

एक बार फिर वह वेंटिलेटर पर पहुंच गया और उसका बचना पूरी तरह से मुश्किल हो गया। 

कुछ समय बाद जब उसकी हालत में सुधार होना शुरू हुआ तब चिकित्सकों ने हमें बताया है कि उसका फेफड़ा बहुत अधिक प्रभावित हुआ है और उसे आजीवन सांस लेने में तकलीफ होती रहेगी इसलिए उसे बहुत देखभाल की जरूरत है और यदि आवश्यक हो तो उसे बार-बार अस्पताल में भर्ती करने में हम को किसी भी तरह की हिचक नहीं होनी चाहिए।

 हमने चिकित्सकों की बात ध्यान से सुनी और उन्हें आश्वस्त किया कि हम अपने बेटे का अच्छे से ध्यान रखेंगे। जैसे ही बेटे की हालत ठीक हुई वह फिर से जंगल में कैंपिंग की जिद करने लगा। इस बार जब वह जंगल में कैंपिंग के लिए गया तो उसके साथ एक पूरी एंबुलेंस गई। 

उसे बीच-बीच में ऑक्सीजन की जरूरत होती थी। एक दिन रात को हमें अचानक ही सूचना मिली कि उसकी हालत फिर से बिगड़ गई है और उसे कैंपिंग साइट से सीधे ही अस्पताल ले जाना पड़ा।

 रात को ही हमने एयर एंबुलेंस की व्यवस्था की और उसे बिना किसी देरी के दिल्ली लेकर गए। उस समय लॉकडाउन लगा हुआ था। दिल्ली में हाहाकार मचा हुआ था। कोई भी अस्पताल उसकी हालत देखकर उसकी चिकित्सा के लिए तैयार नहीं था।

 सभी अस्पताल कह रहे थे कि एक भी बेड खाली नहीं है। एक भी वेंटिलेटर उपलब्ध नहीं था और बिना वेंटीलेटर के उसकी हालत बिगड़ती जा रही थी। 

थक हार कर हम उसे वापस अपने शहर लेकर आ गए। यह गनीमत रही कि शहर में एक वेंटीलेटर मिल गया और वह फिर से सांस लेने लगा।

 इस बार फिर से उसकी जांच की गई पर फिर से वह निगेटिव पाया गया। उसे नया जीवन तो मिल गया पर वह पूरी तरह से बिस्तर पर ही रहने लगा। आज भी वह चौबीसों घंटे बिस्तर पर ही रहता है और अप्रैल के बाद उसने किसी भी तरह की कैंपिंग नहीं की पर फिर भी हर 15 से 20 दिन में उसे वैसे ही लक्षण आते हैं और उसकी हालत बहुत ज्यादा बिगड़ जाती है। 

हमें इस बात का आश्चर्य होता है कि यदि यह कोरोना के कारण हो रहा है तो फिर टेस्ट में यह क्यों नहीं पकड़ में आता है और अगर यह कोरोना के कारण नहीं हो रहा है तो आखिर उसकी समस्या का कारण क्या है?

 अमेरिका के एक चिकित्सक ने हमें आपका पता दिया और कहा कि ये वैज्ञानिक कोरोनावायरस जैसे वायरल रोगों पर अनुसंधान कर रहे हैं। एक बार हम चाहे तो उनसे मिल सकते हैं इसलिए हमने आपसे परामर्श का समय लिया है।" 

बंगलुरु से पधारे एक सज्जन अपनी व्यथा सुना रहे थे। मैंने उनसे कहा कि मैं आपकी मदद करूंगा।

 मैंने उनके लिए एक विशेष प्रश्नावली तैयार की और कहा कि वे अपने बेटे से कहे कि धीरे-धीरे ही सही पर वह इस प्रश्नावली को अच्छे से भरे। साथ ही मुझे उसकी दिन भर की गतिविधियों की एक वीडियो बनाकर भेजें।

 मैंने उनसे पूछा कि क्या यह संभव है कि उसे रायपुर लाया जा सकता है तो उन्होंने कहा कि यह संभव नहीं है। उसकी हालत बहुत नाजुक है और जरा सा भी श्रम करने से उसे बुखार आ जाता है।

 1 सप्ताह बाद जब मुझे प्रश्नावली उत्तर सहित प्राप्त हुई तो स्थिति साफ होने लगी। मैंने उसके द्वारा प्रयोग की जा रही है सारी दवाओं के बारे में जानकारी मांगी और फिर उनके सैंपल मंगवाए। इन दवाओं की मैंने अपनी प्रयोगशाला में जांच की और यह पाया कि इनमें किसी भी प्रकार का दोष नहीं है और उसकी इस हालत के लिए ये दवाएं जिम्मेदार नहीं है।

 उसके बाद मैंने उसके खान-पान पर ध्यान दिया और उससे उन खाद्य सामग्रियों की सूची मांगी जिनका प्रयोग वह लंबे समय से बिना रुके कर रहा था। इस सूची में भी मुझे किसी भी प्रकार का दोष नजर नहीं आया तब मैंने उन सहायकों से बात की जो कि उसके साथ पिछले दो बार से जंगल कैंपिंग में जा रहे थे। 

मैंने उनसे साफ शब्दों में पूछा कि वहां किस प्रकार का खाना गगन और उसके मित्र खाते थे। सहायकों ने पूरी जानकारी दी और यह भी बताया कि वे बुशमीट के बहुत शौकीन थे।

 जंगल में कैंपिंग एक ही स्थान पर किया करते थे जहां पास में ही एक गांव था। वहां के युवा जंगलों में जाते थे और विभिन्न जानवरों का मांस लेकर आते थे। 

इसी माँस के लालच में गगन और उसके मित्र जंगल की कैंपिंग में बार-बार जाया करते थे। मैंने सहायकों से पूछा कि वे किन-किन पशुओं का मांस एकत्र करके लाते थे और इन्हें देते थे? 

सहायकों ने बताया कि अधिकतर वे चमगादड़ का माँस लेकर आते थे और उसे आग में पकाकर मसालों के साथ इन्हें परोसते थे। इस महत्वपूर्ण जानकारी के लिए मैंने उन दोनों सहायकों को बहुत धन्यवाद दिया और फिर उन सज्जन को बताया कि कोरोनावायरस की तरह बहुत से वायरस चमगादड़ के शरीर में भी पाए जाते हैं और जो लोग चमगादड़ के मांस का नियमित प्रयोग करते हैं उनमें कोरोनावायरस जैसे लक्षण आने लग जाते हैं।

 जो लोग पीढ़ियों से इसका प्रयोग कर रहे हैं वे एक तरह से इसके प्रति प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न कर लेते हैं और उन्हें और उनके स्वास्थ पर ज्यादा अधिक विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता है पर ऐसे युवा जो कि कभी कभार इसका प्रयोग करते हैं विशेषकर जब बिना ठीक से पके माँस का प्रयोग करते हैं और अधिक मात्रा में करते हैं तो उन्हें बहुत ही खतरनाक लक्षण आ जाते हैं और कई बार तो उनकी जान पर भी बनाती है।

 एक बार चमगादड़ का मांस खा लेने के बाद उसका असर कई सालों तक रहता है। संभवत: गगन के मित्रों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत अच्छी रही होगी। या हो सकता है कि वे लंबे समय से चमगादड़ के मांस का प्रयोग करते रहे हो पर गगन विशेष रूप से संवेदी था इसलिए हर बार उसकी तबीयत बिगड़ जाती थी।

 उसे पहली बार में ही इस बात का एहसास हो जाना चाहिए था कि चमगादड़ का मांस उसके लिए नहीं है और उसे इससे बच कर रहना होगा। पर स्वाद के लालच में वह इसका लगातार प्रयोग करता रहा और धीरे-धीरे मरणासन्न स्थिति तक पहुंच गया। 

सज्जन को यह सब सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने कहा कि गगन तो बचपन से शाकाहारी था और हमारा परिवार भी कई पीढ़ियों से शाकाहारी है। कैसे उसे इस तरह की बुरी लत लग गई। उन्हें इस बात का पता ही नहीं चला। 

मैंने कहा कि अब उसे ज्यादा डाँटने की जरूरत नहीं है बल्कि यह बता देने की जरूरत है कि यदि वह जीवन में कभी भी इस तरह के बुशमीट का प्रयोग करेगा तो उसका बचना बहुत मुश्किल है। 

उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या आजीवन उसे इसी तरह ही बार बार बुखार आता रहेगा और उसकी हालत बिगड़ती रहेगी तो मैंने उनसे कहा कि यह संभव है। 

उन्होंने जब समाधान पूछा तो मैंने उन्हें बताया कि भारतीय पारंपरिक चिकित्सा में इसके लिए कई प्रकार के देसी नुस्खे हैं जिनका प्रयोग आजीवन करना पड़ता है ताकि शरीर में चमगादड़ के शरीर से आए वायरस कभी भी उग्र अवस्था में न आएं।

 आठ प्रकार के जंगली वृक्षों की छाल पर आधारित एक नुस्खा मैंने उन्हें दिया और कहा कि वे गगन से कहें कि इसका प्रयोग बिना किसी अंतराल के वह लगातार करता रहे। यदि दो-तीन साल तक उसे इस तरह के लक्षण नहीं आते हैं तो वह एक बार फिर मुझसे परामर्श ले सकता है।

 उसकी स्थिति को देखकर मैं यह बता सकता हूं कि उसे अब लगातार इस नुस्खे को लेने की जरूरत है कि नहीं और यदि जरूरत है तो क्या नुस्खे को लेने के अंतराल को बढ़ाया जा सकता है? 

इस नुस्खे को दिन में एक बार एक चुटकी की मात्रा में गर्म पानी के साथ लेना था। मैंने उन सज्जन को उन दवाओं की सूची भी दी जिनका प्रयोग वे इस नुस्खे के साथ कर सकते हैं बिना किसी नुकसान के और साथ ही उन खाद्य सामग्रियों के बारे में बताया जिनका प्रयोग इस नुस्खे के साथ करने से शरीर को किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं होता है।

 मैंने उन्हें बताया कि यह नुस्खा कारगर है और देश के बहुत से वैज्ञानिक मेरे तकनीकी मार्गदर्शन में इस नुस्खे को कोविड-19 पर आजमा कर देख रहे हैं और उन्हें अच्छी सफलता मिल रही है। 

उन सज्जन ने मुझे धन्यवाद दिया और कहा कि वे लगातार मेरे संपर्क में रहेंगे। 

मैंने उनसे कहा कि आप उस अमेरिकी चिकित्सक को भी धन्यवाद दें जिन्होंने मेरे बारे में आपको बताया। एक तरह से उनके माध्यम से ही इस समस्या का पूरी तरह से समाधान हुआ। 

मैंने उन्हें शुभकामनाएं दी। 


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