Consultation in Corona Period-124
Consultation in Corona Period-124
Pankaj Oudhia पंकज अवधिया
"अरे ये वैज्ञानिक है। पुलिस के जासूस नहीं। इन्हें इस बुरी तरह से मत मारिए।
अरे रुकिए, मेरी बात तो सुनिए।" मेरा ड्राइवर चीखता जा रहा था और नक्सली मुझे मारते जा रहे थे।
मैं दक्षिण छत्तीसगढ़ के एक सुदूर गांव में था। मेरे हाथ में कैमरा था। मेरे साथ मेरा ड्राइवर था जो मेरी गाड़ी चला रहा था और साथ में एक वरिष्ठ पारंपरिक चिकित्सक थे जो कि मुझे दुर्लभ जड़ी बूटियों के बारे में बता रहे थे।
हम एक दिन पहले भी इस जगह पर जा चुके थे। किसी ने यह अफवाह फैला दी थी कि हम पुलिस के आदमी हैं पर यह सोचने वाली बात थी कि पुलिस का आदमी दूर नक्सली इलाके में अकेले अपने ड्राइवर के साथ कैसे आ सकता है?
बिना मेरी बात सुने नक्सली चोट पर चोट करते गए। आखिर में मुझे याद है जब मेरे सिर में तेज दर्द हुआ और उसके बाद फिर मैं अपने होश खो बैठा।
उन दिनों मैंने अपने ड्राइवर को साफ शब्दों में कह दिया था कि यदि ऐसी कोई घटना हो तो घर में वह फोन करके बता दें कि किसी कारणवश साहब रात को नहीं आ पाएंगे। घबराने की जरूरत नहीं है।
मुझे एक दिन बाद जब होश आया तो मैंने अपने बिस्तर के पास ड्राइवर को पाया। उसने बताया कि चोट आपको बहुत गहरी लगी है और जो पारंपरिक चिकित्सक आपके साथ गए थे वे आपकी चिकित्सा कर रहे हैं।
यह उनका गांव है और आप उनके घर पर ही हैं। उस दिन जब आप बेहोश हो गए तो नक्सलियों ने चेतावनी देकर हमें वापस भेज दिया।
हम सीधे पारंपरिक चिकित्सक के गांव पहुंचे और गांव पहुंचते ही उन्होंने आपकी सेवा आरंभ कर दी।
मेरे सिर पर जड़ी बूटियों का लेप लगाया गया था। दांतों में बहुत दर्द था। कई दांत टूट गए थे और मैं बार-बार बेहोश हो जाया करता था।
मुझे अर्थ बेहोशी की हालत में बहुत ही अधिक कड़वा काढ़ा पिलाया जाता था पर इस बुरी स्थिति के बावजूद मैं दो दिन में पूरी तरह से ठीक हो गया।
मैंने पारंपरिक चिकित्सक का बहुत धन्यवाद किया और अपने ड्राइवर को कहा कि अब फिर से उसी स्थान पर चलना है जहां पर नक्सली मिले थे।
अगर हम डर जाएंगे तो इस घने जंगल में दोबारा कभी नहीं आ पाएंगे। यह हमारी मातृभूमि हैं और हमें यहां घूमने से कोई नहीं रोक सकता।
अगर वे फिर से मारते हैं तो हम फिर से आएंगे लेकिन डरेंगे नहीं।
ड्राइवर ने बताया कि आपके बेहोश होने के बाद उस दिन कुछ देर बाद उसी रास्ते से फौज की कई गाड़ियां निकली।
हमने पहले सोचा कि उन्हें रोककर पूरी घटना की जानकारी दें फिर आपसे पूछे बिना हम यह कैसे फैसला करते इसलिए हमने चुप रहने का मन बनाया।
पारंपरिक चिकित्सक से विदा लेकर मैं फिर से उसी स्थान पर गया और करीब 3 घंटे तक हम वहां रुके रहे।
जब हम लौट रहे थे तो हमें रास्ते में वही नक्सली मिले। हमने उन्हें साफ शब्दों में कहा कि हम अपना काम करते रहेंगे। आपको जो करना है वो कर लीजिए। वे कुछ नहीं बोले और हम वापस रायपुर लौट आए।
उसके बाद मैं कई बार उन पारंपरिक चिकित्सक से मिलने गया। उनकी बड़ी इच्छा थी कि वे कैंसर के विशेषज्ञ बने।
मैंने उन्हें देश के पारंपरिक चिकित्सा पर आधारित कैंसर के बहुत सारे नुस्खों के बारे में बताया और उन पारंपरिक चिकित्सकों से मिलाया जो कि कैंसर की चिकित्सा में माहिर थे।
धीरे-धीरे ये पारंपरिक चिकित्सक भी इस हुनर में माहिर हो गए और कुछ ही समय में दुनिया भर के लोग कैंसर की चिकित्सा कराने के लिए उनके पास आने लगे।
उन्होंने मेरा धन्यवाद दिया पर मैंने उनसे कहा कि धन्यवाद तो मुझे देना चाहिए क्योंकि आपने उस दिन मेरी जान बचाई।
यदि सिर की चोट का सही समय पर इलाज नहीं होता तो दिमाग को स्थाई रूप से नुकसान पहुंच सकता था और हमें एक अच्छे अस्पताल तक पहुंचने में कई घंटों का समय लग सकता था।
आपने न केवल बहते हुए रक्त को रोका बल्कि बेहोशी की अवस्था से भी मुझे निकाला इसलिए आप मुझे धन्यवाद न करें।
मैं आपका आभारी हूं और सदा रहूंगा।
यह घटना वर्ष 2004 की है। उसके बाद मैं 2015 तक उनके निरंतर संपर्क में रहा।
हाल ही में मुझे एक फोन आया जो कि उनके बेटे का था। उनका बेटा भी उनसे ही पारंपरिक चिकित्सा सीख रहा था।
उनके बेटे ने कहा कि पिताजी की हालत बहुत खराब है। वे रत्ती पर आधारित एक नुस्खे को पिछले 2 सालों से बना रहे थे। इस नुस्खे में कई प्रकार की जहरीली जड़ी बूटियां थी।
इन जहरीली जड़ी बूटियों का वे शोधन कर रहे थे। उन्हें मालूम था कि इन जड़ी बूटियों का शोधन करने से उन्हें और उनके परिवार को बहुत नुकसान हो सकता है इसलिए उन्होंने गांव से बहुत दूर जंगल में अपनी कुटिया बना ली थी और वहां इन जड़ी बूटियों का शोधन कर रहे थे।
इस कुटिया में किसी को भी आने की इजाजत नहीं थी। मुझे भी। वे दूर से ही निर्देश देकर वापस लौटा देते थे।
इन जहरीली जड़ी बूटियों के लगातार संपर्क में आने से उनका शरीर काला पड़ता जा रहा था और उनकी आंखें लाल होती जा रही थी। उन्हें इस बात की जानकारी थी कि यह सब जहरीली जड़ी बूटियों के कारण हो रहा है।
वे इसके तोड़ के रूप में दूसरी जड़ी बूटी ले रहे थे पर वे इन दोषों को दूर नहीं कर पा रही थी। धीरे-धीरे वे कमजोर होते गए। उनका शरीर सूखकर हड्डी हो गया।
उन्होंने अपने बेटे को बताया कि अब ज्यादा दिन नहीं है। सिर्फ एक महीने में यह औषधि तैयार हो जाएगी जो कि दिमाग के कैंसर के लिए रामबाण सिद्ध होगी।
एक दिन सुबह-सुबह जब मैं उनकी कुटिया में गया तो वहां किसी भी प्रकार की हलचल नहीं दिखाई दी। मैंने खिड़की से झांक कर देखा तो पिताजी बेसुध पड़े हुए थे।
मैंने उनके कमरे की तलाशी ली और उन्हें उठाने की कोशिश की पर वे ज्यादा कुछ बोल नहीं पाए। एक कागज की ओर इशारा करते रहे।
जब मैंने उस कागज को पढ़ा तो उसमें आपका नाम लिखा था और उन्होंने कहा था कि यदि उन्हें कुछ हो जाए तो मैं आपसे संपर्क करूं इसीलिए मैंने आपको फोन लगाया है।
इस कोरोनावायरस के समय क्या आप लॉक डाउन का उल्लंघन करके हमारे गांव आ पाएंगे? मुझे नहीं लगता कि पिताजी ज्यादा दिन के मेहमान हैं।
कोई दूसरे वैद्य या पारंपरिक चिकित्सक उन्हें छूने को तैयार नहीं है क्योंकि उन्हें पता है कि पिताजी जहरीली जड़ी बूटियों का शोधन कर रहे थे।
इस कोरोना काल में तो और भी कोई किसी भी प्रकार का जोखिम नहीं लेना चाहता है। वे मेरे पिता और गुरु दोनों है इसलिए मुझे किसी बात का डर नहीं है।
अगर आप यहां आएंगे तो आप जैसा भी निर्देश देंगे मैं उनका पालन करूंगा और कुटिया में रहकर उनकी सेवा करूंगा। ऐसा कहकर उसने अपनी बात पूरी की।
मैंने प्रशासन से जुड़े हुए अपने मित्रों से संपर्क किया और उनको पूरी बात बताई। उन्होंने कहा कि इस कोरोनावायरस काल मे अपनी जान की परवाह करना जरूरी है। पहले अपनी जान फिर दूसरे की जान।
उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि अभी यात्रा करना खतरनाक होगा। हम आपको अनुमति दे सकते हैं पर हम आपको खोना नहीं चाहते हैं।
मेरे बहुत अधिक जिद करने पर उन्होंने न केवल मेरे आने जाने की व्यवस्था कर दी बल्कि संबंधित थाने को भी सूचित कर दिया ताकि किसी भी प्रकार की परेशानी होने पर मैं उनकी सहायता ले सकूं।
जब मैं वहाँ पहुंचा तो उनके बेटे ने कहा कि अभी शाम हो गई है। कल सुबह हम जंगल में स्थित उनकी कुटिया पर चलेंगे।
मैंने कहा कि देर करना ठीक नहीं है। हम रात को ही उनके पास पहुंच जाएंगे।
उनके बेटे ने कहा कि आजकल नक्सलियों की गतिविधियां बहुत बढ़ गई है। कहीं पहले जैसी घटना हो गई तो सब कुछ गड़बड़ हो जाएगा।
मैंने उससे कहा कि घबराने की जरूरत नहीं है जो होगा देखा जाएगा।
हम रात दस बजे जब मशालों के सहारे उनकी कुटिया तक पहुंचे तो वे बहुत बुरी स्थिति में थे। मैंने जड़ी बूटियों का लेप लगाकर उनकी जांच की और फिर उनके बेटे से कहा कि कल सुबह से हमें भिड़ना होगा इनकी चिकित्सा करने के लिए।
उनके बेटे ने पूछा कि क्या आप किसी तरह की दवा पिताजी को देंगे तो मैंने कहा कि किसी तरह की दवा की जरूरत नहीं है।
हम उन्हें तरह-तरह की वनस्पतियों पर सुलायेंगे और मुझे उम्मीद है कि इससे उनकी तबीयत में तेजी से सुधार होगा।
दूसरे दिन सुबह हम जंगल की ओर निकल गए तरह तरह के वृक्षों की पत्तियां एकत्र करने के लिए। उन पत्तियों से हमने एक बिछावन बनाया और उसमें पारंपरिक चिकित्सक को लिटा दिया।
इन सभी पत्तियों की तासीर गर्म थी और इसके कारण उनके शरीर से बहुत अधिक पसीना निकलने लगा। दिन भर उन्हें पत्तियों के बिछावन पर रखने के बाद हमने महुआ की मिट्टी से लिपि हुई जमीन पर उन्हें सुलाया।
दूसरे दिन हमने पत्तियों के स्थान पर दूसरे वृक्षों की छालों का उपयोग किया और फिर रात को कुसुम की मिट्टी से लिपी हुई जमीन पर उन्हें सुलाया।
तीसरे दिन जब हम जंगल से पुराने वृक्षों की जड़े लेकर आए तो हमने देखा कि पारंपरिक चिकित्सक कुटिया के बाहर बैठे हुए हैं और काफी सक्रिय नजर आ रहे हैं।
सफलता मिलती देखकर हम बहुत उत्साहित हुए।
उस रात हमने उन्हें मोदगर की मिट्टी से लिपी हुई जमीन पर सुलाया। फिर अगले 1 हफ्ते तक के लिए निर्देश देकर मैं वापस रायपुर आ गया।
इस समय तक लॉकडाउन खुल चुका था पर लोगों की आवाजाही ज्यादा नहीं हो रही थी।
एक दिन जब सुबह चार बजे घर के गेट की खटखटाने की आवाज आई तब मैंने कयास लगाया कि पास के राज्य से कोई मरीज आया होगा और आपातकालीन स्थिति में होगा।
यह सोचकर मैंने जल्दी से घर का दरवाजा खोला तो देखा कि पूरी तरह से ठीक पारंपरिक चिकित्सक अपने बेटे के साथ खड़े हुए हैं। मैंने उन्हें अंदर आमंत्रित किया।
उन्होंने बताया कि उनकी तबीयत अब पूरी तरह से ठीक है। वे अपने साथ उस फार्मूले को भी लेकर आए थे जिसे बनाने के लिए उन्होंने अपनी जान तक को जोखिम में डाल दिया था।
उन्होंने इस फार्मूले के बारे में मुझे विस्तार से जानकारी दी और उसका नमूना मुझे दिया। मुझे इस फार्मूले के बारे में थोड़ी जानकारी पहले से थी।
इस बात का ज्ञान था कि यह फार्मूला बेहद कारगर है पर इसे इसे बनाना बहुत मुश्किल का काम है। मुझे बताया गया था कि जिसने भी इस फार्मूले को बनाने का प्रयास किया वह जीवित नहीं बचा।
यह फार्मूला कैंसर के रोगियों के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं है।
मैंने उन्हें और उनके बेटे को शुभकामनाएं दी।
उन्होंने मेरा धन्यवाद किया।
सर्वाधिकार सुरक्षित
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