Consultation in Corona Period-129

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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया


"इन महोदय को जो बाएं घुटने में दर्द है और जिसके कारण वे लंगड़ा कर चलते हैं उसके लिए आपके फॉर्म में मेड़ों पर होने वाली एक वनस्पति जिम्मेदार है जिस की पत्तियों का सेवन वे रोज आकर करते हैं।


आप कहें तो मैं उन सज्जन को इस बारे में समझा देता हूँ। यह भी बता देता हूँ कि यदि वे लगातार इसका प्रयोग करते रहेंगे तो उनका घुटना पूरी तरह से खराब हो जाएगा। फिर ऑपरेशन के अलावा उनके पास किसी तरह का विकल्प नहीं रहेगा।" मैंने कंपनी के मालिक से कहा।


 यह उन दिनों की बात है जब पुणे की एक कंपनी ने हर्बल फार्मिंग के लिए मुझसे 2 वर्षों का अनुबंध किया था और इस अनुबंध के तहत मुझे हर महीने 2 दिनों के लिए पुणे जाना होता था। उनके फार्म में रुकना होता था और मैं इन 2 दिनों में उन्हें तकनीकी मार्गदर्शन देकर फिर वापस लौट जाता था। 


सुबह-सुबह जब एक दिन मैंने एक सज्जन को फॉर्म में घूमते हुए देखा तो उनकी गतिविधियों पर मेरा ध्यान गया। उनकी गतिविधियां बड़ी ही अजीब सी थी। 


उस समय उस फार्म में 18 किस्मों की जड़ी बूटियों की खेती हो रही थी। साथ ही ढेरों वनस्पतियां खरपतवार के रूप में मेड़ों और खेत में खाली जगहों पर उगी हुई थी। 


ये सज्जन सुबह-सुबह लाठी लेकर निकलते थे और किसी वनस्पति की एक पत्ती तो किसी वनस्पति की दो पत्ती खाते जाते थे. मानो वे इंसान न हो बल्कि किसी बकरी के बच्चे हो। 


जब मैंने गौर से देखा कि वे बहुत ही नुकसान करने वाली वनस्पतियों की पत्तियां भी ऐसे ही खा रहे हैं तो मेरा मन हुआ कि मैं उन्हें टोकूँ और उन्हें बताऊं कि यह ठीक नहीं है। 


मैंने फार्म के मालिक से बात की तो उन्होंने कहा कि आप इस मामले में न पड़े तो ही अच्छा है। उन्हें अपना काम करने दीजिए। आप अपना काम करिए। 


कुछ महीनों बाद जब मैंने उन्हें लंगड़ाते हुए देखा और फिर उनके घुटने की तकलीफ को बढ़ते हुए देखा तब मुझसे रहा नहीं गया। मैंने फिर से फार्म के मालिक से कहा कि इस तरह वे वनस्पतियों को खाते रहेंगे तो उनकी समस्या बढ़ती जाएगी। 


तब फार्म मालिक ने खुलासा किया कि उन्हें समझाने की जरूरत इसलिए नहीं है क्योंकि वे दुनिया के जाने-माने बॉटनी के प्रोफेसर है। रिटायरमेंट के बाद हमारे फार्म के पास में रहते हैं।


 वे शुरू से ऐसे नहीं है बल्कि पिछले कुछ महीनों से उन्होंने इस तरह के प्रयोग शुरू किए हैं। उनकी देखा देखी मेरी पत्नी ने भी ऐसे ही वनस्पतियों को खाना शुरू किया तो उसकी तबीयत बिगड़ने लगी। 


जब उसने प्रोफेसर साहब से इसकी शिकायत की तो प्रोफ़ेसर साहब ने कहा कि आपको किसने कहा कि वनस्पतियों को खाएं। यह तो मेरा एक प्रयोग है और मैं नहीं चाहता कि मेरे इस प्रयोग में कोई भी किसी भी प्रकार की दखलअंदाजी करे। 


इसके बाद से हम लोगों ने निश्चय किया कि हम प्रोफेसर साहब को बिल्कुल भी परेशान नहीं करेंगे। आपसे भी अनुरोध है कि आप इसे देख कर भी अनदेखा कर दें। 


पहले 1 साल तक मैं उनको लगातार इस तरह की गतिविधियां करते हुए देखता रहा और यह भी देखता रहा कि उनका स्वास्थ बहुत तेजी से गिरता जा रहा है। 


साल के अंत में मैंने देखा कि वे व्हीलचेयर पर आ गए हैं। मुझे बताया गया कि उनके दोनों घुटने खराब हो गए हैं और इसके लिए वे आधुनिक और पारंपरिक दवाओं का सेवन कर रहे हैं और किसी भी तरह से उन्हें लाभ नहीं हो रहा है इसलिए अब वे अकेले नहीं आते हैं।



 उनके साथ उनका नौकर आता है जो व्हीलचेयर लेकर आता है। उनकी पुरानी गतिविधि वैसे ही जारी थी। वे तरह-तरह की पत्तियों का सेवन कर ही रहे थे। 


मैंने महसूस किया कि उनकी साँस बहुत फूलने लगी है। थोड़ा सा भी बोलने पर वे थक जाते थे। मुझे बताया गया कि उन्हें अस्थमा की समस्या हो गई है और उनकी बिगड़ती हालत को देखकर उनका बेटा अमेरिका से वापस आ गया है और अच्छे से अच्छे चिकित्सक अब उनकी चिकित्सा में लगे हुए हैं। 


फार्म के मालिक के कहने पर मैंने चुप रहना ही उचित समझा। अगले महीने जब मैं आया तो मुझे वे प्रोफेसर फार्म में नहीं दिखे। पहले दिन भी नहीं और दूसरे दिन भी नहीं। 


मैंने फॉर्म के मजदूरों से पूछा तो उन्होंने कहा कि वे गंभीर रूप से बीमार है और पुणे के एक बड़े अस्पताल में भर्ती है। उनके बचने की संभावना बहुत कम है। 


मैंने फार्म के मालिक से बात की कि यदि आप मुझे अनुमति दें तो हम चलकर उनसे मिल सकते हैं। फार्म के मालिक ने बताया कि उनका बेटा फॉर्म में आया था और उसने आपके बारे में पूछताछ की थी। 


जब उसे बताया गया कि मैंने कई बार फार्म के मालिक से कहा है कि उन्हें इस तरह की गतिविधियों से बचना चाहिए तो उनके बेटे ने फार्म के मालिक से कहा कि अगली बार जब भी मैं आऊँ तो वह मुझसे मिलना पसंद करेगा। 


अगले दिन जब हम प्रोफेसर साहब से मिलने अस्पताल पहुंचे तो उनकी हालत बहुत बुरी थी। डॉक्टर जवाब दे चुके थे।


 डॉक्टरों का यही कहना था कि उनके शरीर के बहुत सारे अंग ठीक से काम नहीं कर रहे हैं पर ऐसा क्यों हो रहा है इसका कारण नहीं पता चल रहा है। 


जब मैंने उनके डॉक्टरों को बताया कि मैंने उनको खेतों में घूमकर विभिन्न वनस्पतियों की पत्तियों को खाते देखा है तो डॉक्टरों ने अपना सिर पकड़ लिया। 


उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या आप बता सकते हैं कि वे कौन-कौन सी पत्तियां कितनी मात्रा में और किस तरह के मिश्रण के रूप में प्रयोग करते थे तो मैंने उन्हें बताया कि वे बहुत किस्म की वनस्पतियों का प्रयोग करते थे और उसकी कोई निश्चित विधि नहीं थी। 


कभी किसी की एक पत्ती खा लेते थे कभी किसी की तीन पत्तियां इसलिए कुछ भी ठीक-ठीक बता पाना संभव नहीं है। 


उन्होंने कहा कि ऐसे में हम चिकित्सा कैसे करेंगे?


 हमें पहले लगा था कि यह किसी तरह का जहर है जिसका असर इनके शरीर पर हो रहा है पर हमें इस बात का बिल्कुल भी अंदाज नहीं था कि वे इस तरह के विचित्र प्रयोग कर रहे हैं। 


मैंने डॉक्टरों को अपने विषय में पूरा परिचय दिया तो उनमें से अधिकतर डॉक्टरों ने मुझे पहचान लिया। उस समय मैं बॉटेनिकल डॉट कॉम पर नियमित स्तंभ लिखा करता था। 


उन्होंने कहा कि आप अगर चाहे तो हमारी चिकित्सा टीम में आप भी शामिल हो सकते हैं और यदि आप इस अज्ञात जहर को खत्म करने की किसी औषधि के बारे में जानते हैं तो हमें बताएं।


 हम अस्पताल से अनुमति लेकर उसका प्रयोग इन सज्जन पर करेंगे। हो सकता है कि इनकी तबीयत में सुधार हो जाए। मैं उनकी मदद करने के लिए तैयार हो गया। 


जब मैं अपना परिचय दे रहा था तो प्रोफ़ेसर साहब भी इसे सुन रहे थे। उन्होंने मुझे पास बुलाकर नमस्कार किया और कहा कि मैंने आपके लेखों के आधार पर अपने 20 छात्रों को पीएचडी करवाई है।


 अगर मुझे मालूम होता कि जिन सज्जन को बड़ी सी टोपी लगाए मैं फार्म में देखता हूँ वे पंकज अवधिया है तो मैं उसी समय आपसे मिल लेता और अगर आपने मुझे यह कहा होता कि आप ऐसे वनस्पतियों का प्रयोग नहीं करें तो मैं उसी समय रोक देता। 


मैंने उन्हें बताया कि मैंने दसों बार यह कोशिश की कि आपको चेतावनी दूं। पर फार्म के मालिक ने हर बार मुझे रोक दिया कि किसी के निजी मामले में दखल देने से कोई मतलब नहीं है। 


बहरहाल मैंने उनके लड़के से कहा कि आप उत्तर पूर्व जाने की तैयारी करें। वहां एक पारंपरिक चिकित्सक है।

 उनके पास ममीरा का पौधा है। आप उसे ले आए तो मैं उससे एक फार्मूला तैयार करके आपके पिताजी को दे दूंगा जिससे उनके शरीर में किसी भी प्रकार का भी जहर होगा वह पूरी तरह से निकल जाएगा। 


अमेरिका से लौटा उनका बेटा बहुत बुद्धिमान था। उसने इंटरनेट पर इस शब्द को खोजा और फिर मुझसे कहा कि इसके लिए इतनी दूर उत्तर पूर्व जाने की जरूरत नहीं है क्योंकि यह तो आसानी से उनके खेतों में मिल जाएगा। 


मैंने उनसे कहा कि यह तो बड़े आश्चर्य की बात है कि पुणे में ममीरा मिल जा रहा है। 


मैंने उनसे कहा कि आप मुझे उसका नमूना दिखा दे ताकि मैं यह सुनिश्चित कर सकूं कि यह ममीरा ही है या और कुछ। 


जब उन्होंने उस वनस्पति का नमूना दिखाया तो मैंने उनसे कहा कि यह ममीरा नहीं है बल्कि घमीरा है और इसकी कोई उपयोगिता नहीं है इस नुस्खे में।


 आपको उत्तर पूर्व ही जाना होगा। उनके बेटे ने उत्तर पूर्व जाकर 2 दिनों के अंदर उस बूटी का प्रबंध कर लिया।


 मैंने पुणे के पारंपरिक चिकित्सकों से मुलाकात की और पूरी घटना के बारे में उन्हें विस्तार से बताया। उन्हें यह भी बताया कि छत्तीसगढ़ के पारंपरिक चिकित्सक किस तरह विष की चिकित्सा करने के लिए ममीरा पर आधारित इस नुस्खे का प्रयोग करते हैं। 


मैंने उनसे कहा कि इस नुस्खे के अन्य घटकों के लिए मुझे आपकी मदद की जरूरत है। क्या आप आसपास के जंगलों से इन घटकों की उपलब्धि करवा पाएंगे? 


पारंपरिक चिकित्सकों ने बहुत मदद की और जल्दी ही हमारा फार्मूला तैयार हो गया। इस फार्मूले के घटक के बारे में हमने अस्पताल के वरिष्ठ डॉक्टरों को पूरी जानकारी दी। फिर इन घटकों से संबंधित संबंधित शोध संदर्भ में उन्हें दिखाए।


 वे इसका प्रयोग प्रोफेसर साहब पर करने के लिए तैयार हो गए। मैंने डॉक्टरों से कहा कि इस फार्मूले के प्रयोग करने के बाद बहुत अधिक मात्रा में बार-बार पेशाब होगी। चिंता करने की जरूरत नहीं है। 


आपने इतने सारे उपकरण लगा कर रखे हैं जो कि उनकी स्थिति पर लगातार नजर बनाए हुए हैं। किसी भी परिस्थिति में विपरीत प्रभाव दिखने पर आप मुझे तुरंत रायपुर फोन करें। मैं अगली ही फ्लाइट से पुणे आ जाऊंगा। 


पहले दिन पूरी रात मैं जागता रहा। दूसरे दिन मैंने आधी रात तक जागने के बाद जब पुणे के अस्पताल में फोन किया तो उन्होने बताया कि उनकी स्थिति में काफी सुधार हो रहा है और आपको चिंता करने की जरूरत नहीं है। 


प्रोफेसर साहब को पूरी तरह से ठीक होने में 10 दिनों का समय लग गया। सबसे आश्चर्य की बात यह थी कि अब उनका घुटना फिर से ठीक से काम कर रहा था और उन्हें किसी तरह के ऑपरेशन की जरूरत नहीं थी। 


हम सभी के लिए यह एक नया अनुभव था और हम सब प्रसन्न थे कि प्रोफेसर साहब पूरी तरह से ठीक हो कर फिर से फार्म में घूमने लगे हैं और अच्छी बात यह थी कि वे अब किसी भी प्रकार की वनस्पति का भक्षण नहीं कर रहे थे।


 मैंने उन्हें शुभकामनाएं दी। 


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