Consultation in Corona Period-132
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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया
"क्या ब्रेन स्ट्रोक होने के 24 से 48 घंटे पहले इसके बारे में संदेश मिल सकता है? अगर ऐसा है तो यह किसी चमत्कार से कम नहीं होगा। यदि 24 से 48 घंटे पहले इस बात का पता चल जाता है तो बहुत सारे लोगों की जान बचाई जा सकती है और उनके जीवन को लंबा किया जा सकता है।
हम पिछले 10 वर्षों से ऐसे उपायों पर शोध कर रहे हैं। हमने आपके बहुत सारे आलेख पढ़े हैं।
जिसमें कि आपने बताया है कि भारतीय पारंपरिक चिकित्सा में पैरों के तलवों पर जड़ी बूटियों का लेप लगाकर यह जाना जा सकता है कि किसी व्यक्ति को कौन-कौन सी बीमारी है और कौन-कौन सी बीमारियां होने वाली है।
आपने यह भी लिखा है कि इससे भविष्य के हृदय रोगियों की पहचान बचपन में ही की जा सकती है और साथ ही ब्रेन स्ट्रोक से पहले यह बताया जा सकता है कि अमुक व्यक्ति को कितने समय बाद इस तरह की समस्या हो सकती है।
आपने बहुत सारी फिल्में भी इंटरनेट पर अपलोड की है पर उनसे ज्यादा कुछ समझ में नहीं आता है क्योंकि उनसे संबंधित रिपोर्ट हमें पढ़ने को नही मिली।
मैं अहमदाबाद में प्रोफेसर हूं और अपने दस सहायकों के साथ आपसे मिलने रायपुर आना चाहता हूं। हमें इस विषय पर एक अंतरराष्ट्रीय प्रोजेक्ट मिला हुआ है।
हम एक पूरा दिन आपके साथ बिताएंगे। साथ में भोजन करेंगे और इस विषय में विस्तार से चर्चा करेंगे।"
अहमदाबाद के प्रोफेसर ने 8 घंटों का समय परामर्श के लिए लिया और निश्चित दिन पर निश्चित समय पर वे रायपुर आ गए। हम लोगों की चर्चा शुरू हो गई।
उन्होंने चर्चा की शुरुआत इस बात से कि पहले वे जड़ी बूटियों के लेप का असर आंखों से देखना चाहते हैं। उसके बाद इस पर चर्चा करेंगे।
मैंने कहा कि आप यह प्रयोग अपने किस सहायक पर देखना चाहेंगे तो उन्होंने एक सहायक का नाम आगे कर दिया।
जल्दी ही उस सहायक के पैरों के तलवों में जड़ी बूटियों का लेप लगा था और उसके शरीर में तरह-तरह के लक्षण आ रहे थे।
जब यह आरंभिक परीक्षण खत्म हुआ तो उसके आधार पर मैंने प्रोफेसर साहब को बताया कि इन सहायक को लीवर की गंभीर समस्या है और इन्हें तुरंत ही चिकित्सक से मिलना चाहिए।
सहायक ने अपने आप ही बताया कि उन्हें पिछले 5 सालों से लीवर की समस्या है। यह एक गंभीर समस्या है और जल्दी ही उनका ऑपरेशन भी होने वाला है।
मेरे इस परीक्षण से उत्साहित होकर उनके सभी सहायक और वे खुद इस तरह का परीक्षण कराने के लिए उत्सुक नजर आए।
मैंने आनन-फानन में जड़ी बूटियों का लेप तैयार किया और एक-एक करके उन सभी के तलवों में लगा दिया। इस पूरी प्रक्रिया में 3 से 4 घंटे लग गए।
जब इन परीक्षणों के परिणाम मैंने उन्हें बताने शुरू किए तो वे चिंता में पड़ गए। उनके तीन सहायकों को तो लीवर की समस्या थी जबकि एक सहायक की तिल्ली में समस्या थी। 2 सहायक किडनी के गंभीर रोग के चंगुल में थे और एक सहायक को गले का कैंसर था पर इसका उन्हें पता नहीं था।
प्रोफेसर साहब की किडनी के अलावा लीवर और दिमाग में भी समस्या थी। प्रोफेसर साहब ने कहा कि हमें अपना डॉक्टरी परीक्षण कराना पड़ेगा।
उसके बाद ही यह बात सही साबित होगी कि आपने जो कही है। इसलिए हम इस परामर्श को यहीं पर रोकते हैं।
हम वापस जाकर अपने शहरों में सभी तरह के परीक्षण कराते हैं और इन परीक्षणों के परिणाम सहित हम फिर से आपके पास आते हैं।
पूरे 8 घंटे का समय लेकर काफी मशक्कत और विचार करने के बाद उनकी टीम ने यह निर्णय किया है कि ये सभी परीक्षण रायपुर में ही करा लिए जाएं।
वापस अहमदाबाद जाने में बहुत समय लगेगा। जब उन्होंने यहां परीक्षण कराए तो मेरे द्वारा किए गए पारंपरिक परीक्षण सही साबित हुए।
प्रोफेसर साहब और उनकी टीम के सभी सहायक बड़े प्रभावित हुए। उन्होंने कहा कि उन्हें उन जड़ी बूटियों की जानकारी चाहिए जिनका प्रयोग मैं परीक्षण के दौरान कर रहा था।
मैंने उन्हें विस्तार से बताया कि यह मेरा पारंपरिक ज्ञान नहीं है। मैंने पारंपरिक चिकित्सकों से यह प्राप्त किया है इसलिए इसके बारे में विस्तार से जानने के लिए आप उन्हीं पारंपरिक चिकित्सकों से संपर्क करें और फिर उनकी अनुमति लेकर इस पर आगे शोध कार्य आरंभ करें।
मैंने उन्हें उन पारंपरिक चिकित्सकों के पते दिए और वे पारंपरिक चिकित्सक जो कि अब इस दुनिया में नहीं है उनके परिवार के पते दिए ताकि वैज्ञानिकों की टीम वहां जाकर उनसे आवश्यक पूछताछ कर सकें और अपने शोध को आगे बढ़ा सके।
वे इस बात के लिए तैयार हो गए और उन्होंने मुझसे अनुरोध किया कि मैं भी उनके साथ चलूं पर मैंने उन्हें अपनी व्यस्तता का हवाला देते हुए उनसे अनुरोध किया कि वे ही जाएं और किसी भी तरह की समस्या होने पर मुझसे फोन पर बात कर ले।
सभी पारंपरिक चिकित्सकों से मिलने में उन्हें 1 महीने का समय लग गया। जब वे वापस रायपुर लौटे तो बड़े उत्साहित थे।
उन्होंने बताया कि कुछ पारंपरिक चिकित्सक तो उनके साथ काम करने के लिए तैयार हो गए जब उन्होंने यह आश्वासन दिया कि अंतिम परिणाम में यह साफ लिखा जाएगा कि यह नुस्खा उनका है और यह उनका पारंपरिक ज्ञान है।
यह बात 3 से 4 साल पुरानी है।
उसके बाद प्रोफेसर साहब सतत संपर्क में रहे पर यह संपर्क फोन तक ही सीमित था। उनका शोध कार्य अच्छे से चलता रहा और उन्होंने बताया कि इस शोध कार्य के अच्छे परिणाम मिल रहे हैं।
अभी कुछ हफ्तों पहले उन्होंने फिर से मुझसे परामर्श के लिए समय लिया। उन्होंने बताया कि पिछले कुछ महीनों से उन्हें ल्यूकोडर्मा की शिकायत हो गई है।
उन्होंने बताया कि जनवरी में वे चीन में थे। कोरोना से उबरने के बाद उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत कम हो गई और नाना प्रकार की स्वास्थ समस्याएं उत्पन्न हो गई।
उनका कहना था कि ल्यूकोडर्मा भी इसी के कारण हुआ है। उनके बहुत से अंग तो पहले से ही अच्छी अवस्था में नहीं थे पर वे डायबिटिक नहीं थे।
कोरोना के बाद वे डायबिटीज के भी मरीज बन गए थे। मैंने उनसे कहा कि फोन पर सारी जानकारी देना संभव नहीं है। यदि आप रायपुर आएंगे तो मैं आपके पैरों के तलवों में जड़ी बूटियों का लेप लगाकर इस समस्या के मूल कारण को जानने की कोशिश करूंगा।
वे इस बात के लिए तैयार हो गए और अगले ही दिन रायपुर आ गए।
आरंभिक परीक्षण के बाद मैंने उन्हें बताया कि इस समस्या का कारण आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता का कम होना नहीं है बल्कि किसी तरह के ड्रग इंटरेक्शन के कारण यह हो रहा है।
मैंने उनसे अनुमति मांगी कि मैं कुछ और परीक्षण करना चाहता हूं जिसमें उनके हाथों की हथेलियों में जड़ी बूटियों का लेप लगाया जाएगा और फिर आधे घंटे बाद उसकी प्रतिक्रिया देखी जाएगी।
इस बात के लिए वे तैयार हो गए और धैर्य पूर्वक परीक्षण करवाते रहे।
उसके बाद मैंने उनको बताया कि संभवत: यह समस्या अदरक के अति प्रयोग के कारण हो रही है।
उन्हें यह जानकर आश्चर्य हुआ और उन्होंने खुलासा किया कि वे अदरक के बहुत बड़े फैन हैं और दिन भर दसों कप जो चाय पीते हैं उसमें अधिक मात्रा में अदरक का प्रयोग किया जाता है।
उन्होंने पूछा कि क्या मैं अदरक का प्रयोग पूरी तरह से रोक दूं तो मेरी समस्या का समाधान हो जाएगा तो मैंने कहा कि इसके साथ आपको एक छोटा सा प्रयास और करना होगा।
यदि आप अदरक को पूरी तरह छोड़ सके तो सबसे अच्छा है और अगर आप इसका प्रयोग जारी रखना चाहते हैं तो जो डायबिटीज के लिए आप दवा ले रहे हैं उसे आप को बदलनी होगी।
आपने बताया था कि आप डायबिटीज के लिए मेटफॉर्मिन नामक दवा का प्रयोग कर रहे हैं।
मैं आपको बताना चाहता हूं कि अदरक और मेटफॉर्मिन की विपरीत प्रतिक्रिया होती है जिसके कारण ल्यूकोडर्मा की समस्या हो जाती है।
अगर आप इन दोनों को एक साथ लेना बंद कर देंगे तो आपकी समस्या का पूरी तरह से समाधान हो जाएगा। आपको इसके अतिरिक्त किसी दवा की जरूरत नहीं है न ही बाहरी दवा की और न ही आंतरिक दवा की।
उन्होंने धन्यवाद दिया और अपनी आदत के अनुसार पूछ ही लिया कि आपने जो परीक्षण में जड़ी बूटियों का उपयोग किया उनके नाम क्या थे?
मैंने उन्हें फिर से कहा कि वे इस ज्ञान के असली हकदार पारंपरिक चिकित्सक से मिलें और उनसे इस बारे में जानकारी लें।
वे मेरी बात को समझ गए और मुस्कुराने लगे।
उन्होंने धन्यवाद दिया।
मैंने उन्हें शुभकामनाएं दी।
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