Consultation in Corona Period-119
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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया
"रात सोने के लिए होती है कि बार-बार उठ कर पेशाब जाने के लिए?" पश्चिमी भारत की एक महिला मुझसे फोन पर बात कर रही थी और अपनी समस्या बता रही थी।
उन्होंने बताया कि पिछले कुछ समय से उन्हें रात को बहुत अधिक गर्मी लगती है और इस गर्मी के कारण बहुत अधिक बेचैनी होती है।
इस गर्मी को शांत करने के लिए उन्हें बार-बार ठंडा पानी पीना पड़ता है और जब वे ठंडा पानी पीती है तो गर्मी कुछ देर के लिए शांत होती है और उसके बाद फिर वही स्थिति हो जाती है।
अधिक मात्रा में रात को ठंडा पानी पीने से उन्हें बार-बार पेशाब जाना पड़ता है जिससे न केवल उनकी बल्कि उनके पति की भी नींद बुरी तरह से प्रभावित होती है।
उनकी समस्या सुनकर मैंने उनसे कहा कि मुझसे जो भी हो सकेगा मैं मदद करूंगा।
आप अपनी समस्या और विस्तार से बताएं। उन्होंने बताया कि उनकी उम्र 38 वर्ष है और उन्हें हृदय की समस्या है इसलिए वे एक वैद्य से अर्जुन पर आधारित एक नुस्खा ले रही हैं।
इसके अलावा उन्हें डायबिटीज की भी समस्या है। इसके लिए वे आधुनिक दवा ले रही हैं। लंबे समय से वे इन दोनों दवाओं को ले रही हैं।
अचानक ही कुछ समय पूर्व उनको इस तरह के लक्षण आने शुरू हुए तब उन्होंने अपने चिकित्सक को इस बारे में बताया।
उन्हें यह भी बताया कि वे अर्जुन पर आधारित एक आयुर्वेदिक नुस्खा ले रही हैं। क्या उन्हें इसे नहीं लेना चाहिए?
तब चिकित्सक ने कहा कि अर्जुन का प्रयोग तो प्रमाणित है और उन्होंने अनुमति दी कि इसका प्रयोग उनकी डायबिटीज की दवा के साथ बिना किसी समस्या के किया जा सकता है।
चिकित्सक ने उन्हें कई तरह की दवाएं दी जिनमें नींद की भी कई दवाएं थी और उम्मीद की कि इनके प्रयोग से उनकी रात को गर्मी लगने की समस्या का पूरी तरह से समाधान हो जाएगा पर जब बहुत दिनों तक इन दवाओं को लेने से भी समस्याओं का समाधान नहीं हुआ तब महिला ने आयुर्वेदिक चिकित्सक से संपर्क किया।
आयुर्वेदिक चिकित्सक ने उन्हें बताया कि यह पित्त की समस्या हो सकती है इसलिए उन्होंने पित्त का नाश करने वाली बहुत सारी जड़ी बूटियां उन्हें दी।
उन्होंने यह भी परामर्श दिया कि वे आधुनिक चिकित्सक द्वारा बताए गए नुस्खों का प्रयोग तुरंत रोक दें।
उन्होंने अनुमति दी कि वे डायबिटीज की आधुनिक दवा का प्रयोग जारी रख सकती हैं। आयुर्वेदिक चिकित्सक के फार्मूले से भी जब बहुत लंबे समय तक लाभ नहीं हुआ तो उन्होंने नेचुरोपैथी का सहारा लिया।
नेचुरोपैथी से उन्हें कुछ समय तक लाभ हुआ पर समस्या का पूरी तरह से स्थाई समाधान नहीं हुआ।
उनकी समस्या सुनकर मैंने उनसे कहा कि आयुर्वेदिक चिकित्सक की बात सही लगती है कि यह समस्या पित्त के बढ़ने के कारण हो रही है पर क्या वे यह बता पा रहे हैं कि पित्त क्यों बढ़ जा रहा है?
क्योंकि उन्होंने आप की रिपोर्ट में आपको कफ़ प्रवृत्ति का बताया है फिर पित्त की समस्या आपको अचानक से क्यों होने लगी?
इसके जवाब में उन महिला ने कहा कि आयुर्वेदिक चिकित्सक कह रहे हैं कि शरद ऋतु में ऐसा ही होता है। शरद ऋतु गुजर जाने के बाद आपकी पित्त की समस्या पूरी तरह से ठीक हो जाएगी पर उनकी बात सही नहीं निकली।
शरद ऋतु को गुजरे तो बहुत समय हो गया पर समस्या जस की तस है और मुझे लगता है कि अब यह बढ़ती भी जा रही है।
मैंने उनसे पूछा कि आपको क्या दोनों कानों में बहुत अधिक गर्मी लगती है तो उन्होंने कहा कि कानों में गर्मी तो दिन में भी बनी रहती है।
उन्होंने यह भी बताया कि बाई नाक का नथुना हमेशा फड़कता रहता हैं और रात को यह फड़कना बहुत अधिक हो जाता है।
अन्य लक्षणों में उन्होंने बड़ी बहुत देर तक सोचकर यह बताया कि उनके नाखून बहुत कमजोर हो गए हैं और जल्दी-जल्दी टूट जाते हैं।
उन्होंने यह भी बताया कि यदि छोटा सा घाव उनके शरीर में हो जाए तो वह जल्दी से भरता नहीं है और बहुत देर बाद ठीक होता है।
उन्हें मीठा और नमकीन दोनों ही पसंद है। वे शाकाहारी हैं और चाय का प्रयोग बिल्कुल भी नहीं करती हैं।
गाय का दूध उन्हें पाचन संबंधी समस्या पैदा कर देता है। आलू का प्रयोग वे बहुत संभलकर करती हैं।
लौकी का प्रयोग अधिक करने से उन्हें साइनस की समस्या हो जाती है और परवल का प्रयोग करने से उन्हें कब्जियत की शिकायत हो जाती हैं।
खजूर का प्रयोग करने से उनके शरीर में बहुत अधिक खुजली होने लग जाती है। काजू का प्रयोग करने से उनकी आंखों में बहुत अधिक खुजली होने लग जाती है।
उन्होंने ढेर सारी दिलचस्प बातें बताई। उनमें से ज्यादातर बातें मैंने जीवन में कम ही सुनी थी।
उन्होंने बताया कि सौंफ का प्रयोग करने से उन्हें बहुत छींक आने लग जाती है और अदरक का प्रयोग करने से उन्हें सांस लेने में तकलीफ होने लग जाती है।
यदि वे गलती से दूध के साथ नमकीन का प्रयोग कर लेती है तो उनके जोड़ों में दर्द शुरू हो जाता है। उन्हें तरबूज अधिक अच्छा लगता है पर खरबूज किसी भी तरह से नहीं जमता है।
जब भी वे कॉफी का प्रयोग करती हैं तब उनकी आंखों में प्रकाश के प्रति संवेदनशीलता बहुत बढ़ जाती है और उनका दिन में बाहर निकलना बिल्कुल बंद हो जाता है।
बचपन में उन्हें नींद में चलने की आदत थी और उस समय अनजाने में ही बिछावन में पेशाब हो जाती थी पर अभी ये दोनों समस्याएं पूरी तरह से ठीक हो चुकी थी।
उनके बाल तेजी से सफेद होते जा रहे थे पर बिल्कुल भी गिर नहीं रहे थे। उनके द्वारा बताई गई बहुत सारी बातें एक विशेष वनस्पति के बुरे प्रभाव की ओर इशारा कर रही थी।
मैंने उनसे कहा कि अगर संभव हो तो वे रायपुर में आकर मुझसे मिले ताकि मैं जड़ी बूटियों का लेप उनके पैरों में लगाकर कुछ विशेष तरह का परीक्षण कर सकूं।
मुझे लगता है कि ये सारे प्रभाव किसी वनस्पति की अधिकता के कारण आ रहे हैं। परीक्षण से इस बारे में आरंभिक जानकारी मिल सकती है।
वे इस बात के लिए तैयार हो गई और जल्दी ही रायपुर आ गई। जब मैंने उनके पैरों में जड़ी बूटियों का लेप किया और 5 मिनट बाद उन्हें दो अक्षर के कई शब्द कहने को कहा तो उनकी जुबान लड़खड़ाने लगी।
जब मैंने चार अक्षर के कई शब्द कहने को कहा तो वे आशा के विपरीत बहुत सारे शब्द कह गई। इस तरह परीक्षण का उद्देश्य पूरा हुआ और फिर मैंने उनसे विस्तार से उनके द्वारा ली जा रही दवाओं के बारे में जानकारी ली।
यह भी पूछा कि हृदय रोग के लिए जो भी अर्जुन पर आधारित नुस्खा ले रही हैं उनमें और कौन-कौन से घटक हैं?
उन घटकों को जानने के बाद मैंने उनसे अनुरोध किया है कि आप कुछ समय के लिए अर्जुन पर आधारित नुस्खा प्रयोग करना बंद कर दें। मुझे उम्मीद है कि आपको अपनी समस्याओं से जल्दी ही मुक्ति मिल जाएगी।
आप अपने वैद्य से कहकर दूसरा नुस्खा ले सकती हैं जो कि हृदय की समस्या को ठीक रखें। यदि आपके वैद्य इसके लिए तैयार न हो तो आप उनसे मेरी बात करा दे मैं उन्हें इस बारे में सब कुछ समझा दूंगा।
उन्होंने धन्यवाद दिया और वे वापस लौट गई। कुछ समय बाद उन्होंने फोन कर बताया कि वैद्य ने दूसरा फार्मूला दे दिया है।
इसके बाद 1 महीने के बाद उन्होंने फिर से संपर्क किया और बताया कि उनकी समस्या का लगभग पूरी तरह से समाधान हो गया है।
वे यह जानना चाहती थी कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा था?
मैंने उन्हें समझाते हुए बताया कि अर्जुन के वृक्षों में एक विशेष प्रकार के गाल माइट्स का आक्रमण होता है जिससे कि अर्जुन की छाल की गुणवत्ता बुरी तरह से प्रभावित होती है।
अर्जुन की छाल इकट्ठा करते समय इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि ऐसे वृक्षों से छाल एकत्र नहीं किया जाना चाहिए जिसमें गाल माइट्स का आक्रमण होता है पर हमारे देश में अर्जुन की छाल को एकत्रित करने वाले लोग इस बात को नहीं जानते हैं और वे सभी तरह के वृक्षों से छाल को एकत्रित कर लेते हैं।
छाल को देखने पर उसमें कोई विशेष तरह का परिवर्तन नजर नहीं आता है पर जब उसे किसी नुस्खे में प्रयोग किया जाता है तो उसकी नुस्खे के दूसरे घटकों के साथ में विपरीत प्रतिक्रिया होती है।
वैद्य ने आपको जो नुस्खा दिया था उसमें बहुत सारे ऐसे घटक थे जिनकी विपरीत प्रतिक्रिया दोषयुक्त अर्जुन की छाल से हो रही थी। इनमें से मुंडी एक है।
अगर इस एक ही वनस्पति की विपरीत प्रतिक्रिया होती है तो मैं वैद्य जी से अनुरोध करता है कि वे अपने नुस्खे से इस वनस्पति को हटा दें ताकि नुस्खे का दोष पूरी तरह से दूर हो जाए पर जब मैंने देखा कि बहुत से घटक है जोकि अर्जुन से विपरीत प्रतिक्रिया कर रहे हैं तब मैंने कहा कि इस नुस्खे को पूरी तरह से बंद कर दिया जाए।
नुस्खे का प्रयोग बंद करते ही आपकी समस्या का पूरी तरह से समाधान हो गया। इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है।
उन्होंने धन्यवाद ज्ञापित किया।
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