Consultation in Corona Period-130

Consultation in Corona Period-130



Pankaj Oudhia पंकज अवधिया


"हमारी माता जी जब भी उपवास रहती हैं उनकी हालत बहुत खराब हो जाती है। उन्हें सांस लेने में तकलीफ होने लग जाती है। 


पेट में तेज जलन होने लगती है और कई बार तो उल्टी होने लग जाती हैं। सांस लेने में तकलीफ होने पर हम घरेलू उपाय करते हैं पर ये उपाय किसी भी तरह से समस्या का समाधान नहीं करते हैं और हमें उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ता है। 


मुश्किल की बात यह है कि माताजी महीने के 20 दिन उपवास रहती हैं। वे बहुत अधिक धार्मिक प्रवृत्ति की है। 


ऐसा नहीं है कि उन्होंने उपवास करना अभी से शुरू किया है। अभी उनकी उम्र 65 वर्ष है। वे 5 साल की उम्र से उपवास कर रही है। 


उनके घर में सभी उपवास करते रहे हैं। उन्हें डायबिटीज की बीमारी नहीं है और न ही ब्लड प्रेशर की। 


जब भी उनकी तबीयत खराब होती है तो वे तुरंत उपवास कर लेती हैं और इस तरह शरीर से विजातीय तत्वों को बाहर निकाल कर फिर से स्वस्थ हो जाती हैं। 


उन्होंने पूरी उम्र किसी भी तरह की दवाइयों का सेवन नहीं किया। उन्हें न तो जिंदगी में कभी सर्दी हुईं न खांसी। 


हमें याद है कि बचपन से 3 बार ही उन्हें वायरल फीवर हुआ है अन्यथा वे पूरी तरह से स्वस्थ रहीं। 


उनके पिता प्राकृतिक चिकित्सक थे और उपवास रहने की आदत उन्हीं से विरासत में उन्हें मिली। उनका उपवास बिना किसी भोजन का होता है। 


वे फलाहार का प्रयोग करती हैं। जब उन्हें चिकित्सक के पास ले जाया जाता है तो चिकित्सक कहते हैं कि अब इतनी उम्र में इतना कड़ा उपवास करने की जरूरत नहीं है। 


महीने के 20 दिन बहुत अधिक होते हैं। उन्हें महीने में एक या दो बार ही उपवास करना चाहिए अन्यथा बहुत ज्यादा कमजोरी आ सकती है। 


इस पर हमारी माताजी हंसती हैं और कहती हैं कि उपवास से कमजोरी नहीं आती बल्कि मजबूती आती है। 


जब वे उपवास करती है और उन्हें अस्पताल में भर्ती करना पड़ता है तो तरह-तरह की दवाएं उन्हें दी जाती है। इन दवाओं को लेने से उनकी समस्या का समाधान तो हो जाता है पर वे बहुत खिन्न रहती हैं। 


उन्हें इन दवाओं का सेवन बिल्कुल भी पसंद नहीं है। हमने आपसे इसलिए परामर्श लिया है कि आप बता सकते हैं कि कौन सी हस्त मुद्राएं या योगाभ्यास उन्हें इस समस्या से मुक्ति दिला सकते हैं?"


 उत्तर भारत से आए एक सज्जन ने मुझसे परामर्श के लिए समय लिया और अपनी माता जी की समस्या के बारे में विस्तार से बताया। 


मैंने उनसे कहा कि मैं आपकी मदद करूंगा।


मैंने कई प्रकार के प्रश्न उनसे पूछे जिनमें से प्रमुख प्रश्न थे कि जब उपवास रहने पर उनकी स्थिति बिगड़ती है तो क्या उनके मुंह का स्वाद बिगड़ जाता है? क्या उनके हाथ पैरों में झुनझुनी होने लग जाती है?


 क्या पेट से तरह-तरह की आवाजें आने लग जाती हैं? क्या उल्टी हो जाने पर समस्या का बिना किसी दवा से समाधान हो जाता है? क्या अटैक आने से पहले उन्हें बहुत अधिक नींद आती है? 


क्या अटैक आने से पहले उनका मुंह पूरी तरह से सूख जाता है या पूरी तरह से लार से भर जाता है? पेट में जलन के अलावा क्या गले में भी जलन होती है?


 अटैक से पहले क्या कान में किसी तरह की खुजली होनी शुरू हो जाती है? आदि आदि। 


उन्होंने अपनी माता जी से पूछ कर सभी प्रश्नों के विस्तार से जवाब दिए। मैंने उनसे कहा कि क्या यह संभव है कि आपकी माताजी रायपुर आयें और मैं उनके पैरों के तलवों में कुछ जड़ी बूटियों का लेप लगाकर यह सुनिश्चित कर सकूं कि इस समस्या का मूल क्या है?


 वे इस बात के लिए तैयार हो गए और जल्दी ही अपनी माताजी को लेकर मेरे पास आ गए। माताजी का स्वास्थ्य देखते ही बनता था। 


उनके चेहरे पर एक विशेष प्रकार का तेज था और वे पूरी तरह से हष्ट पुष्ट थी। इतनी हष्ट पुष्ट कि उनका बेटा भी उनके सामने बीमार नजर आता था। 


75 की उम्र में उनके बहुत ही कम बाल सफेद हुए थे। दांत पूरी तरह से बचे हुए थे और सबसे अच्छी बात थी कि वे सदा प्रसन्न रहती थी। 


उनके पैरों पर जड़ी बूटियों का लेप लगाकर जब मैंने आरंभिक परीक्षण किया तो स्थिति कुछ-कुछ साफ होने लगी। मैंने उन लोगों से कहा कि मुझे आपकी समस्या का मूल कारण पता चल गया है। यह किसी प्रकार की फूड एलर्जी है। 


मैं आपको इस समस्या को दूर करने के लिए योगाभ्यास और हस्त मुद्राएं बता सकता हूं पर मुझे लगता है कि अगर हम समस्या का मूल कारण खोज लें तो समस्या जड़ से खत्म हो सकती है। 


इसके लिए आपको मुझे बताना होगा कि आप उपवास के दौरान किन तरह की भोजन सामग्रियों का प्रयोग करती हैं और उन भोजन सामग्रियों को कहां से खरीदते हैं?


 क्या इनमे से कोई ऐसी भोजन सामग्री है जिसका प्रयोग आप ने हाल ही में शुरू किया है विशेषकर जब से आपकी ऐसी समस्या शुरू हुई है?


 माताजी ने झट से पूरी सूची मुझे सौंप दी। उनकी भोजन सामग्री की सूची में मुझे उस सामग्री का नाम दिख गया जिस पर मेरा शक था और मैंने उन्हें सलाह दी कि अगली बार जब भी वे उपवास करें तो राजगीर के आटे का प्रयोग किसी भी रूप में नहीं करें। 


उन्होंने मेरी बात मानी। 


अगली बार जब उन्होंने परामर्श के लिए समय मांगा है तब तक उनके पांच उपवास हो चुके थे। उन्होंने खुशी से बताया कि अब उन्हें किसी भी तरह का अटैक नहीं आ रहा है।


 उन्होंने यह जानना चाहा कि क्या राजगीर के आटे के कारण ही यह समस्या हो रही थी? 


मैंने उन्हें विस्तार से बताया कि बहुत से लोगों को राजगीर के आटे से एलर्जी होती है। इसका प्रयोग उपवास के दौरान किया जाता है इसलिए किसी का ध्यान नहीं जाता है। 


जब राजगीर की खेती की जाती है तो उसमें विविल नामक एक कीट का आक्रमण होता है। जब इस कीड़े का आक्रमण होता है तब पौधों में विशेष प्रकार के विकार उत्पन्न हो जाते हैं और उनके बीजों में दोष उत्पन्न हो जाता है। 


इसी दोष के कारण इसके बीजों से तैयार आटे का प्रयोग करने वाले को वैसे ही लक्षण आते जैसे कि आप को आ रहे थे। 


दुर्भाग्य की बात यह है कि राजगीर की खेती करने वाले इस नग्न सत्य को नहीं जानते हैं और जब फसल पर कीड़े का आक्रमण होता है तो वे इस पर ज्यादा ध्यान नहीं देते हैं। 


पिछले कई सालों में मेरे पास ऐसे बहुत से मामले आए हैं। 


अब यदि आपका प्रश्न यह है कि राजगीर के आटे में किसी प्रकार का दोष है तो इसकी परीक्षा घर में की जा सकती है या नहीं?


 तो मेरा जवाब है कि की जा सकती है पर यह एक कठिन प्रक्रिया है। हमारे देश के पारंपरिक चिकित्सक आटे के दोष को तुरंत पहचान लेते हैं।


 वे विशेष प्रकार की जड़ी बूटियों का लेप जीभ में लगाते हैं कुछ मिनटों के लिए। उसके बाद ठीक से कुल्ला कर लेने को कहते हैं। 


कुल्ला कर लेने के बाद जब जीभ पूरी तरह से साफ हो जाती है तब उसमें आटे का लेप लगा देने से उसका दोष उसके बदले हुए स्वाद से तुरंत ही पता चल जाता है पर इसके लिए जरूरी है कि आपको बिना दोष युक्त आटे के स्वाद का ज्ञान होना चाहिए।


 पारंपरिक चिकित्सक और भी दूसरी विधियों से परीक्षण करते हैं पर इन विधियों से परीक्षण करना आम लोगों के लिए सरल काम नहीं है। 


मैंने उन्हें कहा कि आप राजगीर के आटे का प्रयोग फिर से शुरू कर सकती हैं पर इस बार आपने पहले जहां से इसे खरीदा था उसके स्थान पर दूसरी जगह से इसे खरीदें और फिर इस्तेमाल करें। 


उन्होंने धन्यवाद दिया और जब अगली बार उन्होंने राजगीर के आटे का प्रयोग उपवास के दौरान किया तो उन्हें फिर से अटैक आने लगा पर यह अटैक बहुत अधिक उग्र नहीं था। 


उन्होंने फोन पर बताया कि उनके शहर में राजगीर का आटा एक ही स्त्रोत से आता है। संभवतः इसके कारण ही ऐसी गड़बड़ी हो रही है। 


मैंने उन्हें दूसरा समाधान बताया। मैंने बताया कि आप उसी राजगीर के आटे का प्रयोग जारी रखें है पर उसमें थोड़ी मात्रा में सिंघाड़े के आटे का प्रयोग करिए। इससे राजगीर के आटे का यह दोष पूरी तरह से समाप्त हो जाएगा और आपको किसी भी प्रकार की समस्या नहीं होगी। 


मैंने उन्हें चेताया कि सिंघाड़े के आटे का प्रयोग करने से बहुत से लोगों को कब्जियत की शिकायत हो जाती है इसलिए आवश्यक है कि बहुत कम मात्रा में सिंघाड़े के आटे का प्रयोग किया जाए। 


यह उनके लिए स्थाई समाधान साबित हुआ और उनकी समस्या पूरी तरह से ठीक हो गई। 


उन्होंने फोन पर मुझे धन्यवाद दिया।


 मैंने उन्हें शुभकामनाएं दी। 


सर्वाधिकार सुरक्षित


Comments

Popular posts from this blog

गुलसकरी के साथ प्रयोग की जाने वाली अमरकंटक की जड़ी-बूटियाँ:कुछ उपयोगी कड़ियाँ

कैंसर में कामराज, भोजराज और तेजराज, Paclitaxel के साथ प्रयोग करने से आयें बाज

भटवास का प्रयोग - किडनी के रोगों (Diseases of Kidneys) की पारम्परिक चिकित्सा (Traditional Healing)