कैंसर की जड़ी-बूटी के साथ जरूरी नही है तीतर का मांस, ढेरों विकल्प हैं जानकारों के पास


कैंसर की जड़ी-बूटी के साथ जरूरी नही है तीतर का मांस, ढेरों विकल्प हैं जानकारों के पास

पंकज अवधिया 





तो आपकी समस्या का कारण आपका शाकाहारी होना है. आप चिंता न करें पारम्परिक चिकित्सा में ऐसे बहुत से विकल्प हैं जो आपकी मदद कर सकते हैं.



आपने बताया कि आपको लीवर का कैंसर है और हिमाचल प्रदेश के किसी वैद्य की दवा चल रही है. आपका आधुनिक उपचार अब बंद हो चुका है.



कैंसर का पता लगने के बाद पहले आपने मुम्बई में उपचार करवाया और फिर उसके बाद कोलकाता में. वहां जब आपको लाभ नही मिला तो आप अमेरिका चले गये .



वहां लम्बे इलाज के बाद जब डाक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए तब आपने वापस भारत आकर वैद्य की दवा लेनी शुरू की. आपके वैद्य ने आपको साफ शब्दों में कहा है कि उनकी दवाएं आप सही ढंग से लें अन्यथा आपको लाभ नही होगा.



आप उनकी दवाएं नियमित रूप से ले रहे हैं पर आपको कुछ समस्याएं हैं. आपके वैद्य आपको रोज पोई, मकोय, बेंत की पत्ती, शतावरी और चौलाई की शाक काला नमक के साथ खाने को कहते हैं. आपको इन शाकों को खाने के बाद तीतर का मांस खाने को कहा गया है.



आप शाकाहारी हैं. आपने यह बात वैद्य को बताई तो उन्होंने कहा कि मौत से बचने के लिए आपको तीतर का मांस खाना जरूरी है. आप इसे भोजन नही दवा समझकर खाएं. आप मन मसोस कर रह गये.



आपने वैद्य से कहा कि आप तीतर का मांस खाने लगे हैं पर वास्तव में आप इससे बचते रहे. आपके वैद्य का कहना है कि इसका कैंसर पर सीधा असर नही होता है पर तीतर के मांस से शाकों के औषधीय गुण बढ़ जाते हैं और वे अच्छे से दूसरी जड़ी-बूटियों के साथ मिलकर कैंसर से लडती हैं.



एक दिन आप अधिक बारिश की वजह से वैद्य के घर रात में रुके. आपको शाकों के साथ तीतर का मांस परोसा गया तो सारा राज खुल गया.  सच्चाई जानकार आपके वैद्य बहुत नाराज हुए और उन्होंने दवा बंद कर दी.



अब आप मेरे पास आये हैं. आप चाहते हैं कि मैं कोई रास्ता निकालूँ ताकि आप वैद्य की दवा ले सकें और आपको तीतर का मांस भी न खाना पड़े. मैं आपकी मदद करूंगा.



मैंने आपके वैद्य से विस्तार से फोन पर चर्चा की है . उनका परिवार पीढीयों से तीतर के मांस का प्रयोग इस तरह कर रहा है. उन्होंने बताया कि बहुत से ऐसे रोगी जो तीतर के मांस के सेवन से इंकार कर देते हैं बेवजह ही परेशानी में पड़ जाते हैं. उन्हें चिकित्सा बीच में ही रोकनी पडती है.



मैंने उन्हें जब तीतर के मांस के  विकल्प बताये तो उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ. मैंने उन्हें बताया कि मुस्कैनी, बोहार और कुसुम की शाक तीतर के माँस का सशक्त विकल्प हैं. यदि रोगी तीतर के मांस के स्थान पर इन शाकों का प्रयोग दूसरी शाकों के साथ करें तो उन्हें तीतर के मांस से भी अधिक लाभ होगा. मैंने अपने लम्बे अनुभवों से इसे जाना है.



आपके वैद्य इन्हें आजमाने के लिए तैयार हैं. उन्होंने मुझे धन्यवाद दिया है.



आप उनसे फिर से उपचार शुरू करें. आप जल्दी ही ठीक हो जायेंगे.  

   

मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं.

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कैंसर की पारम्परिक चिकित्सा पर पंकज अवधिया द्वारा तैयार की गयी 1000 घंटों से अधिक अवधि की  फिल्में आप इस लिंक पर जाकर देख सकते हैं. 




सर्वाधिकार सुरक्षित


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