Consultation in Corona Period-3
Consultation in Corona Period-3
Pankaj Oudhia पंकज अवधिया
परदेस से आए फोन ने मेरी नींद खराब कर दी। मैंने फोन उठाकर कहा कि आप अपॉइंटमेंट लेकर बात करें और फोन रख दिया।
थोड़ी देर के बाद फिर से उसी नंबर से फोन आया। मैंने अपनी बात दोहराई और जब फोन रखने लगा तब उधर से आवाज आई "पंकज मैं तुम्हारे स्कूल का दोस्त बोल रहा हूं. मुझे तुम्हारी मदद की जरूरत है."
अब तो बात करनी ही थी।
उसने बताया कि पहला फोन उसकी पत्नी का था जिसके पिता कोविड-19 के मरीज है और उनकी आयु 80 वर्ष है।
उनके देश में बिस्तर की कमी होने के कारण उसके पिता यानी मित्र के ससुर को गंभीर मरीज होने के बावजूद घर में रहने के लिए कह दिया गया था।
मेरा मित्र डॉक्टर है और उसकी पत्नी भी।
दोनों मिलकर बुजुर्ग की सेवा कर रहे थे पर उन्हें लग रहा था कि अब उनके पास ज्यादा समय नहीं है क्योंकि उस समय कोरोना के बारे में दुनिया को बहुत कम जानकारी थी इसलिए उनके पास ज्यादा विकल्प नहीं थे।
उनके देश में लॉकडाउन की स्थिति थी और किसी भी हालत में वे घर से बाहर नहीं निकल पा रहे थे।
मदद की आशा में सात समुंदर पार से उन्होंने मुझसे संपर्क करने का मन बनाया था।
वे ट्विटर पर मुझे फॉलो कर रहे थे और कोरोनावायरस पर मेरे विचारों को पढ़ रहे थे।
मैंने उन्हें बहुत सारी देसी औषधियां सुझाई पर उनके साथ सबसे बड़ी मुश्किल यह थी कि उनके देश में यह औषधियां नहीं मिलती थी। इंडियन स्टोर्स में भी नहीं।
कोरोना ने उनके पिता के फेफड़े को बुरी तरह से प्रभावित किया था और उनका दिमागी संतुलन भी बिगड़ रहा था। उन्हें तेज बुखार था और साथ में उनकी पुरानी तकलीफें बहुत बढ़ गई थी।
हमारी टीम ने क्लिनिकल ट्रायल में जिन औषधियों की सहायता से थोड़ी बहुत सफलता प्राप्त की थी वे भी परदेस में उनके पास उपलब्ध नहीं थी। मैं चाह कर भी उनकी मदद नहीं कर सकता था पर वे चाहते थे कि मैं कुछ न कुछ उन्हें सुझाऊँ ताकि बुजुर्ग की जान बच सके।
मैंने मदद करने का फैसला किया।
मैंने उनसे कहा कि उनके किचन में जितनी भी तरह की खाद्य सामग्रियां मसाले आदि हैं उनकी मात्रा और उनके नामों की सूची मुझे व्हाट्सएप करें।
जल्दी ही मुझे 40 तरह की सामग्रियों की सूची मिल गई।
मैंने उन्हें बताया कि इससे हम कोरोना से सीधे नहीं लड़ सकते पर कोरोना के कारण आ रहे लक्षणों से लड़ने की कोशिश कर सकते हैं।
उनमें उत्साह का संचार हुआ और हम तीनों इस असाध्य रोग से जूझने के लिए तैयार हो गए।
उन्होंने बुजुर्ग की रक्षा के लिए जी जान लगा दिया और इसका परिणाम धीरे धीरे दिखने लगा।
उनकी हालत में सुधार होने लगा और 10 से 12 दिनों में वे सहारे की सहायता से बाथरूम जाने लगे।
मैं डॉक्टर दंपत्ति के समर्पण को प्रगति का कारक मानता रहा और वे किचन की सामग्री और मेरे ज्ञान को।
सब कुछ धीरे धीरे चलता रहा। अचानक मुझे खबर मिली कि उनका देहावसान हो गया है।
वे सीढ़ियों से गिर गए थे और तुरंत ही उनकी मृत्यु हो गई थी। यह हम सब के लिए बड़े दुख का समय था।
कोरोना के जाल से तो हमने उन्हें काफी हद तक निकाल दिया था पर काल के जाल से उन्हें हम नहीं बचा सके।
किचन की सामग्रियों के प्रभाव से पति-पत्नी इतने अधिक प्रभावित हुए कि उन्होंने अपनी यूनिवर्सिटी में इस पर क्लिनिकल ट्रायल करने के प्रयास शुरू कर दिए।
मुझे बार-बार उन भारतीय पारंपरिक चिकित्सकों की याद आती रही जो सदा कहते रहे कि किसी भी हालत में हार नहीं माननी चाहिए और प्रयास जारी रखने चाहिए।
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