Consultation in Corona Period-10

Consultation in Corona Period-10

Pankaj Oudhia पंकज अवधिया


"सादर प्रणाम, क्या आप मुझे दर्द से मुक्ति दिलवा सकते हैं? क्या आप मेरी मदद करेंगे?" इंटरनेशनल कॉल पर इतनी अच्छी हिंदी सुनकर मैं चौका।


 यह फोन ब्रिटेन के किसी कस्बाई इलाके से आया था और एक 75 वर्षीय महिला का था जोकि ब्रेस्ट कैंसर से प्रभावित थी।


 उन्होंने बताया कि कोरोना के कारण अलग-थलग पड़ गई है। उनका परिवार उनके साथ नहीं है और उनके कैंसर ने उग्र रूप धारण कर लिया है।


 वे घर पर अकेली है और बिस्तर से उठ नहीं पा रही है। दर्द के मारे उनकी हालत खराब है। प्रभावित ब्रेस्ट पर एक खुला जख्म है इसलिए कई दिनों से ड्रेसिंग न होने के कारण उसकी बदबू चारों ओर फैल गई है और पड़ोसी भी अब आपत्ति करने लगे हैं-ऐसा उन्होंने बताया।


 मैंने उनसे पूछा कि आप डॉक्टर की सहायता क्यों नहीं लेती हैं?


 उन्होंने कहा कि सारी दवा खत्म हो गई है और डॉक्टरों तक पहुंचना संभव नहीं है।


उनका कहना था कि वे मेरे कार्यों से मुझे कई वर्षों से जानती हैं और मेरे इंटरनेट पर लेख पढ़ती रहती हैं इसीलिए आपातकाल में उनको मेरी याद आई और उन्होंने आनन-फानन में फोन किया।


मैंने उन्हें याद दिलाया कि मैं डॉक्टर नहीं हूं इसलिए बेहतर होगा कि आप किसी डॉक्टर से संपर्क करें जो आपके आसपास हो।


 यदि यह संभव न हो तो आप मेरी अपने डॉक्टर से बात करा सकती हैं ताकि मैं पूरी स्थिति जानकर जो संभव हो वह मदद कर सकूं।


वे मान गई। उन्होंने अपने डॉक्टर से बात कराई। डॉक्टर ने बताया कि उन्हें मेटास्टैटिक ब्रेस्ट कैंसर है अर्थात कैंसर पूरे शरीर में फैल चुका है और वे अब इसकी अंतिम अवस्था में है जहां किसी भी दवा का असर नहीं के बराबर होता है।


 मैंने डॉक्टर से अनुरोध किया कि इतनी दूर से मदद करने की बजाय बेहतर होता कि आप उनकी मदद करते। कम से कम उनकी देखभाल की व्यवस्था करवा दें और उनके जख्म की रोजाना ड्रेसिंग करवा दें पर डॉक्टर ने मुंह बना लिया और फोन रख दिया।


 उस महिला ने बताया कि वे काफी समय तक भारत में रही है इसीलिए उसकी उनकी हिंदी इतनी अच्छी है।


 मैंने उनकी मदद करने का फैसला किया।


 मैंने उनसे विस्तार से उनकी तकलीफों के बारे में पूछा। सारी रिपोर्ट मंगाई और अध्ययन के बाद उन्हें बताया कि आपके व्यान, प्राण, अपान और उदान में समस्या है यानी कि शरीर की स्थिति बहुत बुरी है।


 उन्होंने कहा कि वे दर्द से मुक्ति चाहती हैं और उन्हें बदबू से निजात चाहिए। बस इन्हीं दो समस्याओं के लिए उन्होंने मुझसे संपर्क किया था।


 जख्म की बदबू के लिए तो मैंने उनको घरेलू औषधि सुझाई जो उनके किचन से मिल गई और 3 से 4 दिनों में बदबू जाती रही।


मैंने उनसे कहा कि आपके व्यान पर फोकस करने की आवश्यकता है पर मैं सबसे पहले अपान पर फोकस करूंगा और मुझे लगता है कि इससे आप बिस्तर पर लेटे लेटे ही 5 से 7 दिनों में दर्द से मुक्त हो जाएंगी। दर्द कुछ ही घंटों में कम होने लगेगा पर पूरी तरह से जाने में समय लगेगा।


 आपको किसी भी प्रकार की दवा देना संभव नहीं है इसीलिए योगाभ्यास से ही इतनी दूर बैठकर मैं आपकी मदद की कोशिश करूंगा।


 यह सौभाग्य की बात थी कि उन्हें योग के विषय में बहुत सारी जानकारी थी और उनका कहना था कि उन्होंने भारत में रहकर योग सीखा है।


 यह मेरे लिए प्रसन्नता की बात थी। अब मेरी राह थोड़ी आसान हो गई थी।


 दर्द तो 2 से 3 दिनों में कम हो गया पर उसे पूरी तरह खत्म होने में 10 दिनों का समय लग गया यानि लक्ष्य से 3 दिन अधिक।


अब वे चलने फिरने लगी।


अपान को सुधारने के बाद मैंने पूरा ध्यान व्यान को सुधारने में लगाया और उसके बाद फिर उदान को ठीक करने में। 


वे पूरी तरह सामान्य महसूस करने लगी और हिम्मत करके उस डॉक्टर के पास गई और जैसा कि उन्होंने बताया कि डाक्टर उनकी स्थिति देखकर आश्चर्यचकित रह गए। उन्होंने फिर से चिकित्सा आरंभ करने की बात कही।


 महिला का कहना था कि अब वे आधुनिक दवा नहीं लेना चाहती और योग की सहायता से ही इस घातक बीमारी से मुक्त होना चाहती हैं।


 मैंने उनसे विनम्रतापूर्वक कहा कि आप अपने आसपास उचित योगाचार्य खोजें और उनकी सहायता से इस बीमारी से मुक्ति पाएं।


मैं यह भी सलाह दूंगा कि आप अपने डॉक्टर की सहायता फिर से लेना शुरू करें। हो सकता है कि वे कारगर ढंग से आपकी मदद कर सकें।


मेरी जरूरत आपातकालीन थी। वह अब पूरी हुई।


अब लंबे समय तक मैं आपको मदद नहीं कर पाऊंगा।हां, अगर आप कहेंगी तो मैं आपके योगाचार्य और डॉक्टर  से लगातार संपर्क में रहूंगा और यदि वे चाहेंगे तो अपने ज्ञान के आधार पर उनकी मदद करता रहूंगा।


 फैसला उनको करना है।


 उन्होंने अनमने ने ढंग से ही सही पर मेरी बात मान ली। 


इस तरह एक बार फिर कोरोना काल मे भारत का पारंपरिक चिकित्सकीय ज्ञान दुनिया के काम आया।


सर्वाधिकार सुरक्षित






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