Consultation in Corona Period-19

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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया


" जेठ और आषाढ़ के महीनों का हमारे जीवन में बहुत अधिक महत्व है। अगर हमने इन 2 महीनों के महत्व को जान लिया तो हम जीवन भर शायद ही कभी बीमार पड़ें। जेठ और आषाढ़ के महीने हमें कोरोना से विजय दिलाने के लिए पर्याप्त हैं।"


 जनवरी में मैं एक वेबीनार में व्याख्यान दे रहा था। उस समय चीन में यह वायरस बहुत तेजी से फैल रहा था और पूरी संभावना थी कि कुछ महीनों में यह भारत में फैलने लगेगा।


 और तब स्थिति भयावह हो जाएगी क्योंकि यहां करोड़ों की संख्या में लोग रहते हैं और इनके बीच यदि यह वायरस फैला तो नियंत्रण करने में नानी याद आ जाएगी। 


विश्व स्वास्थ्य संगठन से जुड़े बहुत से विशेषज्ञों ने मुझे बीच में रोककर पूछा कि जेठ और आषाढ़ का महीना! क्या यह पूरी दुनिया के लिए आप कह रहे हैं या केवल भारत के लिए?


 मैंने उन्हें कहा कि केवल भारतीय ही सौभाग्यशाली हैं जो उनके पास जेठ और आषाढ़ का महीना है।


 पूरी दुनिया के पास ये दो महीने नहीं है इसलिए अगर हम पूरी योजना से काम करें तो इन 2 महीनों में हम कोरोना को अपने देश से पूरी तरह से खत्म कर देंगे।


 भले ही चीन भारत से सटा हुआ है और दोनों की सीमाएं एक है फिर भी कोरोना इन सीमाओं से न आकर दक्षिण कोरिया, इटली, स्पेन इस तरह के दूसरे देशों से घूम कर भारत पहुंचा। 


बतौर विशेषज्ञ मुझे इस बात का बहुत डर था कि कैसे हम चैत्र और वैशाख का महीना निकालेंगे क्योंकि उस समय शरीर में कफ का प्रकोप होता है और यही दो महीने बीमारी के लिए अनुकूल माने जाते हैं।


इस समय सभी लोग बीमार पड़ते हैं और हमारे शास्त्रों में इन दो महीनों में बहुत सम्भलकर रहने को कहा जाता है। 


चूँकि यह वायरस श्वसन तंत्र से जुड़ा हुआ था इसलिए ऐसे समय में जबकि कफ़ प्रकुपित हुआ हो आम जनता की रक्षा करना बहुत मुश्किल हो जाएगा। 


चैत्र वैशाख के महीने में कड़वी चीजों का सेवन करने की सलाह दी जाती है। 


देश के बहुत से हिस्सों में इस समय नीम की पत्ती का सेवन किया जाता है ताकि इन दो महीनों में होने वाली बीमारियों से पूरी तरह से बचा जा सके। 


यह भी कहा जाता है कि इस समय गुनगुना पानी पिया जाए ताकि कफ़ का प्रकोप कम हो और डॉक्टर के पास जाने की जरूरत न पड़े।


 भारत के संभावित मरीजों के लिए इन दो महीनों के लिए हमने ऋतुचर्या का निर्माण किया था। 


इसमें यह सुझाया गया था कि भारत के लोग मुश्किल से 25 से 30 जड़ी बूटियों का बार-बार लंबे समय तक प्रयोग करते हैं इसलिए ये जड़ी बूटियां अब उनके रोगों में कारगर नहीं रह गई है।


 इसलिए जंगलों में जो हजारों जड़ी बूटियां है जिनके बारे में हमारे पास समृद्ध पारंपरिक ज्ञान है और जिनके बारे में हमारे पूर्वजों ने विस्तार से शोध किया है इन जड़ी-बूटियों को इस खतरनाक वायरस के विरुद्ध प्रयोग किया जाए। 


चूंकि ये जड़ी बूटियां बाजार में नहीं मिलती है इसलिए हम लोगों ने व्यवस्था की कि जंगलों से इसे एकत्र करने में किसी प्रकार की दिक्कत न हो।


 इसे भारत की बहुत बड़ी आबादी को देना था और अगर किसी प्रकार की कमी होती तो हमारी जनता खतरे में पड़ जाती।


 इसी बीच आयुष का अनुमोदन आ गया। इसमें कहा गया कि आम जनता कोरोना से बचने के लिए काढे का प्रयोग करें और साथ में अणु तेल का प्रयोग करें। 


काढ़े के लिए जो जड़ी बूटियां सुझाई गई थी वे वही जड़ी बूटियां थी जिनका प्रयोग पीढ़ियों से भारतीय कर रहे थे और जिनका असर अब कम हो गया था। 


हम लोगों ने उस समय और भी दूसरी जड़ी बूटियों की सलाह दी पर इस ओर ध्यान नहीं दिया गया।


 जैसे तैसे चैत्र और वैशाख का महीना निकल गया और अब उम्मीद की गई कि जेठ और आषाढ़ के महीने में कोरोना को हम पूरे देश से पूरी तरह से हटा सकेंगे।


 मुझ जैसे विशेषज्ञों ने कहा कि जेठ और आषाढ़ के महीने यानी ग्रीष्म ऋतु में आम लोग ग्रीष्म ऋतु की तरह ही रहें। शीत ऋतु की तरह नहीं अर्थात वह कूलर और एसी का प्रयोग कम से कम करें। ताकि तेज गर्मी में इस वायरस का सत्यानाश हो जाए। 


इस आशय की कई खबरें दुनिया भर के मीडिया में भी छपी पर दुनिया भर के मीडिया ने बहुत गैर जिम्मेदाराना रवैया अपनाया और किसी छोटे-मोटे विशेषज्ञ के कंधे पर बंदूक रखकर यह बयान छपवा दिया कि एसी और कूलर से कोरोना पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा इसलिए जितना इसका प्रयोग कर सकते हैं करें जबकि हकीकत कुछ और थी। 


विशेषज्ञ देख चुके थे कि ठंडे देशों में यह वायरस बहुत तेजी से फैल रहा था और जिन स्थानों पर थोड़ी भी गर्मी थी वहां इसका फैलाव बहुत कम गति से हो रहा था और भारत के लिए यह सौभाग्य था कि गर्मी के पूरे दो महीने सामने खड़े थे। 


मीडिया ने जिन विशेषज्ञों का सहारा लिया उन्हें कोरोनावायरस के बारे में कुछ भी पता नहीं था पर फिर भी उन्हें विशेषज्ञ के रूप में प्रस्तुत किया गया। 


इस वायरस के बारे में स्थापित सत्य एक भी नहीं है और इस वायरस का सत्य हर घण्टे बदलता रहता है। 


यह वायरस दुनिया के लिए नया है और इसके बारे में पूरी तरह से कोई नहीं जानता है इसीलिए इससे बचने के लिए हिट एंड ट्राय विधि का प्रयोग किया जा रहा है पर मीडिया ने मठाधीश की भूमिका निभाते हुए सारी सलाह को दरकिनार कर दिया और खुद को विशेषज्ञ घोषित कर दिया। 


बाद में हमारी सरकार ने और हमारे योजनाकारों ने इस प्रमाणित सत्य को पहचाना। 


यही कारण है कि उन्होंने जब कई महीनों बाद ट्रेनें चलाई तो स्पष्ट कर दिया कि ट्रेन में एसी का तापक्रम बहुत कम नहीं रहेगा बल्कि सामान्य रखा जाएगा।


 जब मॉल खुलने लगे तो उन्हें भी सलाह दी गई कि एसी का प्रयोग न करें और बिना मतलब अधिक ठंड न फैलाएं। 


छत्तीसगढ़ में तो मंत्रालय से पूरे एसी हटा दिए गए और भरी गर्मी में पंखों का प्रयोग किया गया। 


अब लोगों को स्पष्ट होने लगा था कि गर्मी को अगर गर्मी की तरह सहा जाए तो कोरोना से बचा जा सकता है पर अगर गर्मी में घर का माहौल ठंड जैसा रखा जाए अर्थात एसी और कूलर का प्रयोग किया जाए तो यह महामारी और विकट रूप धारण कर सकती है पर तब तक देर हो चुकी थी। 


दुनियाभर की मीडिया ने इस प्रमाणित सत्य को आम लोगों के सामने नहीं रखा और लोग मजे से कूलर और एसी का प्रयोग करते रहे। 


ग्रीष्म ऋतु अर्थात जेठ और आषाढ़ के महीने में कफ़ का शमन हो जाता है और वायु का संचय होने लग जाता है।


 यही वायु सावन और भादो के मौसम में प्रकुपित हो जाती है और एक बार फिर नाना प्रकार के रोग घेर लेते हैं।


 इसीलिए हमारे देश में चौमास में बहुत संभलकर खाने-पीने और रहने की सलाह दी गई है। चौमास मतलब सावन, भादो, क्वार और कार्तिक। 


विशेषज्ञों ने पहले ही कह दिया था कि बरसात में मामले बहुत तेजी से बढ़ेंगे क्योंकि इस समय शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बहुत कम होती है।


 वायु के प्रकुपित होने के कारण पित्त और कफ भी कुपित होते हैं। ऐसे में शरीर अपनी समस्याओं से जूझता रहता है तो फिर वह वायरस से कैसे बचेगा?


 सावन और भादो के लिए भी हमने ऋतुचर्या तैयार की थी और हमें विश्वास था कि अगर योजनाकार इसे लागू करें तो बहुत हद तक इन दो महीनों को भी निकाला जा सकता है पर हम योजनाकारों की मजबूरी को भी समझते है।


 इतने बड़े देश में इतने सारे लोगों को समझाना वह भी इतने कम समय में टेढ़ी खीर है। 


काश! यह हमारे पाठ्यक्रम में शामिल होता और हम बचपन से इस बारे में पढ़ते ताकि ऐसे संकट के समय में लोगों को जागरुक नहीं करना पड़ता और वे अपने आप ही ऋतुचर्या का पालन करने लग जाते। 


सावन भादो के बाद फिर क्वांर कार्तिक का महीना है जब शरीर में पित्त प्रकुपित हो जाता है। यह वर्ष का सबसे कठिन समय है। 


चैत्र वैशाख को बसंत कहा जाता है जबकि क्वांर कार्तिक को शरद कहा जाता है। आपने कितने बसंत देखे, इसकी बजाय लोग यह पूछना पसंद करते हैं कि आपने कितने शरद जिये क्योंकि शरद का समय बहुत कठिन होता है और बहुत संभल कर रहना होता है।


 अब हमें इस बात की चिंता है कि जब यह वायरस इतनी तेजी से फैल चुका है और पूरे देश में लोगों को परेशान कर रहा है ऐसे में शरद के दो महीने कैसे निकलेंगे। 


ऋतुचर्या तो हमने तैयार कर ली है और लगातार विभिन्न माध्यमों से योजनाकारों को कह रहे हैं कि वे अपनी तरफ से लोगों को इस ऋतुचर्या के बारे में बताएं ताकि क्वांर और कार्तिक में यह महामारी विकराल रूप धारण न कर ले। 


उसके बाद फिर अगहन और पूस का महीना है यानी कोरोनावायरस के लिए सबसे उपयुक्त महीना। 


ठंड में ही उसने फैलना शुरू किया था और विशेषज्ञों का मानना है कि ठंड में फिर यह तेजी से फैलना शुरू होगा और सारे समीकरण बिगड़ जाएंगे। 


उसके बाद फिर चैत्र वैशाख यानी गर्मी में अभी बहुत अधिक समय है। 


जो बीत गई वह बात गई, को ध्यान में रखते हुए अब हम इस सावन के अंत में क्वार और कार्तिक की तैयारी कर रहे हैं ताकि जो एक महीने का समय भादो के रूप में हमारे बीच है उसमें हम जनता को अधिक से अधिक जागरूक कर सकें और उन्हें शरद ऋतु की कठिन मगर प्रभावी ऋतुचर्या को अपनाने के लिए प्रेरित कर सकें। 


देखिए हमारा प्रयास कितना रंग लाता है।


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