Consultation in Corona Period-16

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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया


"जब परिवार पर संकट आता है तो परिवार के हर सदस्य से सलाह लेनी चाहिए। भले ही उसकी राय अच्छी लगे या बुरी।" पारंपरिक सर्प विशेषज्ञों को संबोधित करते हुए मैंने यह कहा।


" इसीलिए मैं आपके बीच में आया हूं एक नई बीमारी के साथ। इस विषय में आप की राय जानने के लिए क्योंकि हो सकता है कि बहुत जल्दी यह बीमारी हमारे देश में भी आ जाए और सैकड़ों लोगों की जानें ले ले। इसलिए जरूरी है कि महामारी आने से पहले पूरे इंतजाम कर लिए जाएं।" मैंने आगे कहा।


यह बात जनवरी की है जबकि चीन में तेजी से कोरोना फैल रहा था और वहां से बहुत सारे वीडियो आ रहे थे जिसमें मरीजों को दिखाया जा रहा था।


 मैंने छत्तीसगढ़ के पारंपरिक सर्प विशेषज्ञों से कहा कि मैं आपसे मिलकर आपसे कुछ बातें करना चाहता हूं। जितने लोग भी एकत्र हो जाए उन्हें एकत्र करिए और एक छोटी सी बैठक कर लीजिए। ऐसा मैंने जाने-माने सर्प गुरु से भी कहा।


 जब मैं रायपुर से 2 घंटों की दूरी में स्थित उनके गांव पहुंचा तो देखा कि बड़ी संख्या में उनके चेले उपस्थित थे। उनकी संख्या 500 से भी अधिक थी और वे बड़ी उत्सुकता से मेरा इंतजार कर रहे थे।


जब मैंने उन्हें चीन के वीडियो दिखाएं तो पहले तो वे शांत रहे। उसके बाद एक-एक करके उन्होंने अपनी राय व्यक्त करना शुरू किया।


उन्होंने डेढ़ हजार से अधिक जड़ी बूटियां सुझायी और कहा कि इनका प्रयोग इस बीमारी में कारगर सिद्ध हो सकता है।


 उनमें से कुछ ने यह भी बताया है कि कौन से जंगली जानवर के मांस को खाने के बाद इस तरह के लक्षण आते हैं।


 2 घंटे की बातचीत में बहुत महत्वपूर्ण जानकारियां मिली। मैंने सर्प गुरु को धन्यवाद दिया और सारी जानकारी लेकर वापस रायपुर आ गया।


 मैंने इन सर्प गुरु और उनके चेलों के बारे में पहले विस्तार से लिखा है और साथ ही उन पर कई घंटों की फिल्में भी बनाई है।


 उनके चेले पूरे भारत में फैले हुए हैं और सर्प काटने पर गांव वाले सीधे उनके पास चले आते हैं। ये इलाज का कोई पैसा नहीं लेते हैं और अपनी जान को जोखिम में डालकर चिकित्सा करते हैं।


इनमें से अधिकतर सर्प विशेषज्ञ मुंह में जड़ी बूटियों का लेप लगाकर मुंह से सांप का जहर सीधे ही खींच लेते हैं और रोगी को पूरी तरह से ठीक कर देते हैं।


 जहर खींचने के बाद उनके मुंह की हालत बहुत बिगड़ जाती है और वे कई सप्ताहों तक भोजन नहीं कर पाते हैं। बावजूद इसके वे इस चिकित्सा का कोई शुल्क नहीं लेते हैं।


 छत्तीसगढ़ के बहुत से अस्पताल सर्पदंश से पीड़ित मृतप्राय लोगों की चिकित्सा के लिए इन्हें और उनके चेलों को बुला लेते हैं और फिर उनसे चिकित्सा करवाते हैं।


सर्प गुरु जिस गांव में रहते हैं वहां कई पीढ़ियों से सर्पदंश से कोई भी नहीं मरा है। 


हरेली अमावस्या से वे नए चेलों की भर्ती करते हैं और फिर ऋषि पंचमी के दिन उनकी शिक्षा पूरी होती है। इस बीच उन्हें सांपों के साथ रहने, सांपों को समझने और सांपों से बचने के गुर सिखाए जाते हैं।


 ऋषि पंचमी के दिन शिष्यों को चावल के साथ सांप का जहर प्रसाद के रूप में दिया जाता है और जिन साँपों के साथ रहकर वे इस विद्या को सीखते हैं उन साँपों को पास के जंगलों में वापस छोड़ दिया जाता है।


 इसी तरह अगले ही दिन मैं उड़ीसा के 1000 से अधिक पारंपरिक सर्प विशेषज्ञों से मिला जो कि एक मेले में आए हुए थे। उनसे भी इस नई बीमारी के विषय में राय ली और उनके ज्ञान का दस्तावेजीकरण किया।


देश के दूसरे हिस्सों के पारंपरिक सर्प विशेषज्ञों से या तो टेलीफोन से बात हुई या फिर व्हाट्सएप के माध्यम से।


1990 से ये पारंपरिक सर्प विशेषज्ञ मेरे संपर्क में है और हमारे बीच ज्ञान का आदान-प्रदान होता रहता है। 


महाराष्ट्र के पारंपरिक सर्प विशेषज्ञ अब किसान भी बनते जा रहे हैं क्योंकि वे जिन जड़ी बूटियों का प्रयोग करते हैं वे जंगल से खत्म होती जा रही है।


 मैंने उन्हें सलाह दी कि वे इन जड़ी-बूटियों की खेती करें और आर्थिक आय प्राप्त करें और साथ ही अपनी चिकित्सा में भी इनका उपयोग करें।


वे बड़ी मुश्किल से तैयार हुए। उनका कहना था कि खेती से जड़ी बूटियों के प्राकृतिक गुण खत्म हो जाते हैं।


 इसके लिए मैंने एलिलोपैथिक ज्ञान का प्रयोग किया और बहुत सारे जैविक सत्वों का प्रयोग किया।


 इससे उनकी फसल गुणवत्ता से युक्त हो गई और वे जब इसका प्रयोग चिकित्सा में करने लगे तो उनको वैसे ही परिणाम मिलने लगे जैसे कि जंगल की जड़ी बूटियों से मिलते हैं।


 इससे उनमें उत्साह का संचार हुआ और वे दूसरी औषधीय फसलों की खेती भी करने लगे।


 कुछ वर्षों पहले कनाडा की एक कंपनी को बड़ी मात्रा में भारत में उत्पादित हड़जोड़ की आवश्यकता थी।


 मैंने कनाडा की कंपनी को इन सर्प विशेषज्ञों से मिलाया और फिर सर्प विशेषज्ञों ने 70 एकड़ में इस औषधीय फसल की खेती कर कनाडा में इसकी आपूर्ति की।


 ऐसे ही देश के दूसरे हिस्सों के सर्प विशेषज्ञों के साथ खेती के प्रयोग चल रहे हैं।


 बंगाल के पारंपरिक सर्प विशेषज्ञ औषधीय फसलों के स्थान पर मेडिसिनल राइस की खेती करना चाहते थे।


 मैंने उनका मार्गदर्शन किया और वे अब पारंपरिक या विलुप्त हो चुकी धान की किस्मों की खेती कर रहे हैं।


 फरवरी में जब विदर्भ के युवा वैज्ञानिकों ने कोरोनावायरस की सम्भावित दवाओं पर क्लिनिकल ट्रायल्स करने के लिए मुझसे संपर्क किया तो मैंने उन्हें सलाह दी कि वे विदर्भ के पारंपरिक सर्प विशेषज्ञों से मिले और उनके हितों का ध्यान रखते हुए उनके द्वारा सुझायी गई दवाओं पर ट्रायल्स करें।


मैंने इन दवाओं को बहुत अधिक उपयोगी पाया है। मुझे आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है कि इसमें आपकी टीम को जरुर सफलता मिलेगी।" मैंने उनसे कहा।


विदर्भ के युवा वैज्ञानिक अब जुलाई में सफलता की राह पर हैं और सबसे अच्छी बात यह है कि उनकी टीम में पारंपरिक सर्प विशेषज्ञ भी है जो ट्रायल्स के दौरान उनकी मदद कर रहे हैं और एक तरह से उनका मार्गदर्शन कर रहे हैं।


 देश के ज्यादातर राज्यों के पारंपरिक सर्प विशेषज्ञों ने 50 ऐसी जड़ी बूटियों सुझाई जिनके प्रयोग पर भी वे एकमत थे। 


इनमें से बहुत सी जड़ी बूटियां ऐसी थी जो कि वेंटीलेटर में जीवन जी रहे कोरोनावायरस रोगियों के लिए वरदान साबित हो सकती हैं।


 मैंने इस बारे में विस्तार से लिखा और इच्छुक वैज्ञानिकों को इन पारम्परिक सर्प विशेषज्ञों का पता दिया।


 तेलंगाना के पारंपरिक सर्प विशेषज्ञों ने मुझे सर्प कन्द दिया और कहा कि वायरल रोगों में यह कंद महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।


 उन्होंने बताया कि उन्होंने इसकी सहायता से हर्पीज की सफल चिकित्सा की है।


केरल के पारंपरिक सर्प विशेषज्ञों ने धान के खेतों में उगने वाले खरपतवारों की उपयोगिता के बारे में बताया और सुझाया कि इनका प्रयोग साल भर जटिल से जटिल रोगों से रक्षा करता है।


यह मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण जानकारी थी। 


बिहार के पारंपरिक सर्प विशेषज्ञों ने मेरे पास पारंपरिक धान के बीज भेजें। जिन्हें उन्होंने नेपाल से एकत्र किए थे।


 अब इस बार मैं इन बीजों से नए पौधे तैयार कर रहा हूं जिनका उपयोग कोरोना के कारण उत्पन्न होने वाली स्वास्थ समस्याओं के लिए करने की तैयारी है।


पंजाब के पारंपरिक सर्प विशेषज्ञों के पास इस गर्मी में जाने की तैयारी थी पर कोरोनावायरस से सब कुछ गड़बड़ हो गया।


 वे औषधीय फसलों और पारंपरिक धान की खेती तो कर रहे हैं पर उन्हें मेरे मार्गदर्शन की बहुत आवश्यकता है।


 फोन के माध्यम से खेती संभव नहीं है। 


मैंने उन्हें आश्वस्त किया है कि अगले वर्ष मैं जरूर आऊंगा और आप की खेती को सुधारने की कोशिश करूंगा।


 उन्होंने धन्यवाद ज्ञापित किया है।


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