Consultation in Corona Period-277 Pankaj Oudhia पंकज अवधिया

Consultation in Corona Period-277





Pankaj Oudhia पंकज अवधिया


"क्या आप मुझे यह बता सकते हैं कि स्किन कैंसर किस कारण से हुआ है और इसके लिए कौन से कारक जिम्मेदार हैं? यदि आप कारण मुझे बताएंगे तो मैं उसका समाधान आपको जल्दी से बता पाऊंगा या फिर यदि आप कारण नहीं जानते हैं तो मुझे अपना परीक्षण करने दीजिए ताकि मैं उस परीक्षण की सहायता से कारण को जानने की कोशिश करूं।" मैंने अपना विचार व्यक्त किया। 

इस पर एक विशेषज्ञ ने कहा कि कैंसर का कारण बता पाना बहुत मुश्किल है। कैंसर कई कारणों से हो सकता है। जिन महोदय के केस की चर्चा हम लोग कर रहे हैं वे लंबे समय तक पायलट रहे और अंतरराष्ट्रीय उड़ानों में भाग लेते रहे। अक्सर लंबे समय तक सूर्य के सीधे संपर्क में आने के कारण पायलटों को स्किन कैंसर की समस्या हो जाती है विशेषकर जब वे सेवानिवृत्त हो जाते हैं। हो सकता है इनकी समस्या का कारण भी यही हो पर निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता। न ही ऐसे विशेष तरह के परीक्षण उपलब्ध है जिनकी सहायता से यह पता लगाया जा सके कि इन्हें कैंसर किस कारण से हुआ है। बस हमें तो इनके लक्षणों को देखकर इनकी चिकित्सा करनी है। हमें मालूम है यह एक लाइलाज रोग है। इसकी चिकित्सा नहीं हो सकती है इसलिए लक्षणों को दूर करके हम अधिक से अधिक आराम रोगी को पहुंचाना चाहते हैं। यही हमारा लक्ष्य है और यही लक्ष्य होना भी चाहिए। आपसे भी अनुरोध है कि आप लक्षणों के आधार पर यदि कोई हर्बल मेडिसिन बता सके या किसी तरह के मेडिसिनल राइस या फंक्शनल फूड की जानकारी दे सके तो हमारी मदद हो सकती है इसीलिए हमने आपको रायपुर से नागपुर बुलवाया है ताकि आप से सीधी चर्चा हो सके और आप अपने प्रश्नों को हमारे सामने रख सकें। ऐसा कहकर उन विशेषज्ञ ने अपनी बात पूरी की।

 मैं नागपुर के प्रवास पर था इसी केस के सिलसिले में। संस्थान के निदेशक ने मुझे आमंत्रित किया था कि मैं विशेषज्ञों की एक बैठक में शामिल होऊं और इस गंभीर मामले के बारे में अपने विचार व्यक्त करूँ। उन्होंने प्रभावित व्यक्ति का वीडियो पहले ही भेज दिया था और सारी रिपोर्ट भी। वे तो रायपुर से ही उम्मीद कर रहे थे कि मैं वहीं से कुछ फंक्शनल फूड उन्हें बता दूं या मेडिसिनल राइस के बारे में जानकारी दे दूँ पर मैंने कहा कि मैं एक बार उन व्यक्ति से मिलना चाहता हूं, प्रश्न पूछना चाहता हूं और यदि संभव हो तो कुछ परीक्षण करना चाहता हूं जिसके आधार पर मैं बेहतर मदद कर पाऊंगा। वे इसके लिए तैयार हो गए और उन्होंने मेरे आने जाने की व्यवस्था कर दी। 

चर्चा के दौरान मैं विशेषज्ञों के पीछे पड़ा रहा कि मुझे इस कैंसर के कारण के बारे में बताया जाए ताकि मैं उचित समाधान बता सकूं पर कारणों की चर्चा करने के लिए कोई भी तैयार नहीं दिखा। जब मुझे निदेशक महोदय ने अपना अनुमोदन देने की बात कही तब भी मैंने यही बात दोहराई। मैंने विशेषज्ञों से पूछा कि प्रभावित व्यक्ति की त्वचा में ल्यूकोडर्मा जैसे लक्षण दिख रहे हैं। क्या उनको यह समस्या अभी हुई है या पहले से थी? 

बहुत से विशेषज्ञों ने कहा कि यह ल्यूकोडर्मा नहीं है बल्कि स्किन कैंसर के कारण उत्पन्न हुए लक्षण है तब मैंने खुलासा करते हुए उनसे कहा कि मुझे तो जो वीडियो भेजा गया था उसमें मरीज की आवाज बैठी हुई है जो साफ बताती है कि वे ल्यूकोडर्मा से प्रभावित हैं और इसके लिए वे बावची का प्रयोग कर रहे हैं किसी रूप में। संभवत: वे आंतरिक रूप से लिए जाने वाले किसी मिश्रण में बावची का प्रयोग कर रहे हैं और बावची का प्रयोग जब इतने लंबे समय तक किया जाता है तो गले से विशेष तरह से आवाज आने लग जाती है जिसे आसानी से पहचाना जा सकता है। मैंने उनसे यह भी कहा कि जब वे आंतरिक दवा का सेवन कर रहे होंगे तो साथ ही उन्होंने बाहरी दवा का भी प्रयोग किया होगा जिसके बारे में अगर मुझे जानकारी मिले तो बहुत बेहतर होगा। 

जब कुछ विशेषज्ञ उन मरीज से मिलने गए और इस बारे में जानकारी एकत्र की तो उन्होंने बताया कि वे लंबे समय से एक बाहरी लेप का प्रयोग कर रहे हैं अपनी ल्यूकोडर्मा की समस्या के लिए पर जब से स्किन का कैंसर हुआ है तब से वे इसका प्रयोग कम कर रहे हैं। जब वे घर पर थे तो वे इसका लगातार प्रयोग कर रहे थे। अब अस्पताल में यह संभव नहीं है। जब उनसे पूछा गया कि स्किन कैंसर क्या शरीर के उन्ही भागों में हुआ है जहां पर लेप लगाया जाता था या जहां पर पहले ल्यूकोडरमा की शिकायत थी तो उन्होंने इस बात की पुष्टि की। इससे मेरा उत्साह बहुत अधिक बढ़ गया। जल्दी ही प्रभावित व्यक्ति के परिजन उस लेप को लेकर आ गए जिसका प्रयोग वे लंबे समय से कर रहे थे।

 लेप को सूँघने से किसी भी प्रकार की जानकारी नहीं मिली। मुझे बताया गया है कि यह लेप विदर्भ के ही एक वैद्य ने दिया है जो कि ल्यूकोडर्मा की चिकित्सा करने के लिए पूरी दुनिया में जाने जाते हैं। वैद्य जी से इस बारे में बात करने की कोशिश की गई तो पता चला कि वे देश से बाहर हैं और उन्हें वापस आने में कई सप्ताह का समय लगेगा। जब मैंने अपने डेटाबेस में उन वैद्य के बारे में जानकारी खोजी तो मुझे उनके फार्मूले के बारे में जानकारी हो गई।

 वे आंतरिक दवा के रूप में तीन प्रकार के फॉर्मूलेशन का प्रयोग करते थे जबकि बाहरी लेप के रूप में एक तरह के फॉर्मूलेशन का उपयोग करते थे। उनके फॉर्मूलेशन का अध्ययन करने के बाद कई तरह की जानकारियां मिली। इस आधार पर मैंने एक छोटे से परीक्षण की अनुमति मांगी जो कि मुझे आसानी से मिल गई।

 मैंने एक विशेष तरह का लेप तैयार किया और इस लेप को शरीर के उस छोटे से हिस्से में लगाया जहां पर स्किन कैंसर का प्रभाव था। लेप को लगाने के बाद मैं थोड़ा इंतजार करने लगा था कि मुझे किसी तरह की प्रतिक्रिया दिख सके। लेप का रंग सफेद था जो कि कुछ समय बाद हल्का नीला होने लगा। यह रंग परिवर्तन बता रहा था कि ऐसा एक विशेष तरह की वनस्पति की विषाक्तता के कारण है।

 परीक्षण पूरा हो जाने के बाद जब हम लोग फिर से चर्चा के लिए उपस्थित हुए तो मैंने परीक्षण का परिणाम बताते हुए उन विशेषज्ञों से कहा कि मुझे यह Calotropis toxicity के लक्षण दिखते हैं। वैद्य महोदय जिस फॉर्मूलेशन का प्रयोग करते हैं उसमें वे आक की जड़ का प्रयोग करते हैं। मुझे लगता है इस आक की जड़ का सही रूप से शोधन नहीं किया जाता है। यही कारण है कि कैलोट्रोपिन लंबे समय से प्रयोग होने के कारण त्वचा में अभी भी उपस्थित है और इसके कारण ही स्किन कैंसर हुआ है या इसके जैसे लक्षण आ रहे हैं। हो सकता है कि यह टाक्सीसिटी के लक्षण हो और स्किन कैंसर न हो।

 यदि इस टॉक्सिन को त्वचा से हटा दिया जाए तो मुझे लगता है कि इन व्यक्ति को इस समस्या से पूरी तरह से मुक्ति मिल जाएगी। मेरी बात खत्म होने से पहले ही सारे विशेषज्ञ मोबाइल पर जुट गए और इंटरनेट पर Calotropis toxicity या Calotropis root toxicity सर्च करने लगे। उन्हें ज्यादातर मेरे द्वारा किए गए शोध के बारे में ही जानकारी मिली इसलिए उन्होंने मोबाइल बंद करके मुझसे ही विस्तार से जानकारी जाननी चाहिए। मैंने उन्हें इंटरनेट पर उपलब्ध एक पुस्तक के बारे में बताया जिसे मैंने लिखा था। इस पुस्तक में ऐसे 300 से अधिक मामलों की चर्चा की गई थी जिसमें ल्यूकोडर्मा के लिए प्रयोग किए गए लेपों के कारण स्किन कैंसर जैसे लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं और बहुत से मामलों में स्किन कैंसर भी हो जाता है। इस पुस्तक में आक की जड़ के प्रयोग से होने वाले स्किन कैंसर के बारे में भी विस्तार से लिखा गया था। मैंने उनसे कहा कि अब संदर्भ आपके पास उपलब्ध है। मेरी तो यही सलाह है कि यदि हम इस विष को हटाने की कोशिश करें तो हमें सफलता मिलना तय है।

 विशेषज्ञ लंबी चर्चा करते रहें। मैं अपने कक्ष में विश्राम के लिए चला गया। जब वापस शाम को हम लोग फिर से बैठे तब उन्होंने कहा कि वे मेरे मार्गदर्शन में काम करने को तैयार हैं। मैंने उन्हें सलाह दी कि यदि 8 तरह के मेडिसिनल राइस पर आधारित फॉर्मूलेशन पर काम किया जाए तो शरीर से इस विष की विषाक्तता कम हो सकती है और साथ ही यदि मेडिसिनल राइस पर आधारित बाहरी लेप का प्रयोग प्रभावित स्थान पर किया जाए तो भी यह प्रक्रिया तेजी से विष को दूर कर सकती है। मैंने अनुमान लगाया कि यदि आज से इसका लगातार उपयोग शुरू किया जाए तो कम से कम 2 वर्षों का समय लगेगा पर लाभ होना कुछ महीनों में ही शुरू हो जाएगा। इसके अलावा प्रभावित व्यक्ति को किसी भी प्रकार की दवा की जरूरत नहीं है। विशेषज्ञों ने जब प्रभावित व्यक्ति से इस बारे में चर्चा की तो उनकी आंखों में चमक आ गयी। उनको उम्मीद की किरण दिखने लगी। उन्होंने इस तरह के चिकित्सा की मंजूरी दे दी। 

डायरेक्टर साहब ने कहा कि आप वापस लौट कर इन सभी मेडिसिनल राइस की व्यवस्था करें। हमारा संस्थान इनके प्रयोग से इन प्रभावित व्यक्ति को जल्दी से जल्दी आराम दिलाने की कोशिश करेगा। उन्होंने पूछा कि क्या यह उपचार घर पर रहकर हो सकता है मेरे हां कहने पर उन्होंने अगले ही दिन उन्हें वापस घर भेज दिया जहां

 उन्होंने बहुत सुकून महसूस किया। 


सर्वाधिकार सुरक्षित






Comments

Popular posts from this blog

गुलसकरी के साथ प्रयोग की जाने वाली अमरकंटक की जड़ी-बूटियाँ:कुछ उपयोगी कड़ियाँ

कैंसर में कामराज, भोजराज और तेजराज, Paclitaxel के साथ प्रयोग करने से आयें बाज

भटवास का प्रयोग - किडनी के रोगों (Diseases of Kidneys) की पारम्परिक चिकित्सा (Traditional Healing)