Consultation in Corona Period-275 Pankaj Oudhia पंकज अवधिया

Consultation in Corona Period-275




Pankaj Oudhia पंकज अवधिया


"20 सालों के बाद हमें एक बड़ी सफलता मिली है और सफेद मूसली पर हमारे फॉर्मूलेशन को अंतर्राष्ट्रीय पेटेंट मिल गया है। इसका श्रेय आपको भी जाता है जो आप लंबे समय तक हमसे जुड़े रहे और हर संभव मदद करने की कोशिश की।" मुंबई के एक उद्यमी यह बात कह रहे थे जब उन्होंने खुशखबरी सुनाई कि उन्हें एक बड़ी सफलता मिली है।

 90 के दशक में जब सारी दुनिया सफेद मूसली की चर्चा कर रही थी और सफेद मूसली को जड़ों के लिए देशभर में उगाने की तैयारी चल रही थी तब मैंने सफेद मूसली के फूलों और उसकी पत्तियों के औषधीय महत्व के बारे में कई शोध पत्र प्रकाशित किए और अखबारों में विस्तार से इस बारे में लिखा। उस समय मैं देश भर में घूम-घूम कर व्याख्यान दिया करता था हर्बल फार्मिंग पर अपने हर व्याख्यान में सफेद मूसली के इस अनोखे उपयोग के बारे में भी बताया करता था और नवउद्यमियों को प्रेरित करता था कि इस उद्देश्य के लिए भी वह सफेद मूसली का चयन करें। आखिर मुझे सफलता मिली।

 मुंबई के व्याख्यान में जब एक उद्यमी ने इस प्रोजेक्ट में अपनी रुचि दिखाई और कहा कि सफेद मूसली की पत्तियों के लिए सफेद मूसली की खेती करेंगे और फिर एक फॉर्मूलेशन का निर्माण करेंगे। इसके लिए जितना भी खर्च होगा वे वहन करने के लिए तैयार थे और साथ ही उन्होंने कहा कि उन्हें समय की कमी नहीं है। यह प्रोजेक्ट वे अपने बेटे को सामने रखकर कर रहे हैं। उन्हें उम्मीद थी कि इस प्रोजेक्ट को पूरे होने में 20 से 25 साल का समय लग जाएगा। तब तक उनका बेटा इस लायक हो जाएगा कि वह नए सिरे से इसे संभाल सके। उनका अनुमान गलत नहीं निकला। 

उस समय उन्होंने मुझे मुंबई आमंत्रित किया और विस्तार से इस प्रोजेक्ट के बारे में अपनी शंकाओं का समाधान किया। उन्होंने कहा कि मुझे इस प्रोजेक्ट में लंबे समय के लिए जुड़ना होगा। मेरी जो भी फीस होगी वे देने को तैयार है पर उनकी यही एक शर्त होगी कि आप इस प्रोजेक्ट के बारे में अपने व्याख्यान में किसी भी प्रकार का कोई जिक्र न करें। पूरी तरह से गोपनीयता बरतें। मैं इसके लिए तैयार हो गया और उसके बाद फिर मैंने व्याख्यान में सफेद मूसली की पत्तियों के औषधीय महत्व के बारे में कहना बंद कर दिया। प्रोजेक्ट की शुरुआत में यह तय किया गया कि देशभर में उन जंगलों में जाया जाए जहां पर सफेद मूसली प्राकृतिक रूप से उगती है और ऐसे पौधों का चयन किया जाए जिनमें कि बहुत अधिक मात्रा में प्राकृतिक रूप से पत्तियां रहती हैं। यह सर्वेक्षण उनकी टीम के साथ कई महीनों तक चलता रहा और अंततः ऐसे बहुत सारे सफेद मूसली के पौधे एकत्र कर लिए जिनमें पत्तियों की संख्या पर्याप्त मात्रा में थी और जब उन्हें प्रयोगशाला में परखा गया तो उसमें प्राकृतिक रसायन भरपूर मात्रा में पाए गए। जब हम जंगलों का भ्रमण कर रहे थे तब उद्यमी महोदय ने मेरे और दूसरे विशेषज्ञों के तकनीकी मार्गदर्शन में एक टिशू कल्चर लैब की स्थापना कर ली थी। जब जंगलों से एकत्र की गई सफेद मूसली उनके लैब में पहुंची तो उनके वैज्ञानिकों ने बिना किसी देरी के उनसे बहुत सारे पौधे तैयार लिए है। इसके बाद ग्रीन हाउस में इन पौधों को लगाने का क्रम शुरू हुआ। जब उनकी टीम ने ग्रीन हाउस में उग रहे पौधों की पत्तियों का रासायनिक विश्लेषण किया तो उन्हें पता चला कि खेतों में सफेद मूसली को लगाने से उनके औषधीय गुणों में विशेषकर उन की पत्तियों के औषधीय गुणों में बहुत कमी आ रही है। मैंने उन्हें कई तरह के वानस्पतिक सत्व सुझाये जिसकी सहायता से प्राकृतिक परिस्थितियों में सफेद मूसली के औषधीय गुणों में वृद्धि की जा सकती थी। ये सभी सत्व पहले आजमाए जा चुके थे और उनसे अच्छी सफलता मिली थी पर इन सत्वों के इस्तेमाल के बाद भी उस स्तर की सफलता नहीं मिली। उद्यमी महोदय किसी भी तरह से निराश नहीं हुए। वे बड़े ही दूर दृष्टि वाले थे। 

उन्होंने उन जंगलों के पास के गांव में जमीन लेनी शुरू की जहां से सफेद मूसली को एकत्र किया गया था और जंगल के पास स्थित गांव में सफेद मूसली की खेती करनी शुरू की। इस खेती को पूरी तरह से गोपनीय रखा गया और सफेद मूसली का प्रचार करने से पूरी तरह से बचा गया। इस बीच उनकी टीम ने सफेद मूसली पर आधारित एक आयुर्वेदिक फॉर्मूलेशन पर काम करना शुरू किया जिसके बारे में बहुत कम जानकारी थी विशेषकर प्रकाशित ग्रंथों में तो उस फॉर्मूलेशन का जिक्र ही नहीं मिलता था। यह फार्मूलेशन सफेद मूसली की पत्तियों के उपयोग के बारे में बताता था और इसका प्रयोग करने से नर्वस सिस्टम की जटिल से जटिल बहुत सी बीमारियों का जड़ से समाधान हो जाता था। बाद में जब उनकी टीम ने क्लिनिकल ट्रायल किए तो उन्हें पता चला है कि यह फॉर्मूलेशन अल्जाइमर डिजीज के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। 

कुछ सालों में मेरे तकनीकी मार्गदर्शन में उनकी टीम ने सफेद मूसली को पत्तियों के लिए उगाने की कला में महारत हासिल कर ली। जब कृषि विभाग को इस गोपनीय प्रोजेक्ट की भनक लगी तो उनके कान खड़े हो गए और उनके विशेषज्ञ उनके खेतों में जाने लगे यह जानने के लिए कि यह किस तरह का प्रयोग चल रहा है। इससे उद्यमी महोदय थोड़े परेशान हो गए। मैंने उन्हें रास्ता दिखाया और कहा कि सफेद मूसली की एक प्रजाति का प्रयोग ऑस्ट्रेलिया में घर के अंदर हवा को शुद्ध करने के लिए किया जाता है। मैंने उनसे कहा कि आप विशेषज्ञों को कहे कि वे सजावटी पौधे के रूप में सफेद मूसली की खेती कर रहे हैं। उन्हें न तो इसकी जड़ से मतलब है न ही इसकी पत्तियों से। उनके इस तर्क से विशेषज्ञ संतुष्ट हो गए और उन्होंने इस प्रोजेक्ट में रुचि लेना बंद कर दिया। इसके बाद प्रोजेक्ट निर्बाध रूप से चलता रहा।

 पांच व्यक्ति की उनकी टीम धीरे-धीरे बढ़कर 200 व्यक्तियों की हो गई और उस टीम में विशेषज्ञों की संख्या बढ़ने लगी। अभी इस प्रोजेक्ट में किसी भी तरह का आर्थिक लाभ नहीं था और लगातार पैसे लग रहे थे। जैसा कि मैंने कहा कि उद्यमी महोदय लंबी योजना बनाकर चल रहे थे इसलिए उन्हें इस बात की बिल्कुल भी चिंता नहीं थी।

 जब सफेद मूसली की पत्तियों से तैयार फार्मूला अपने अंतिम रूप में आ गया तब उन्होंने पेटेंट की प्रक्रिया शुरू कर दी और कई तरह के दूसरी औपचारिकताओं को पूरा करने लगे। इस बीच उन्होंने एक दूसरे फॉर्मूलेशन पर काम करना शुरू किया जिसमें कि वे सफेद मूसली की पत्तियों के साथ काली मूसली की पत्तियों का भी प्रयोग करना चाहते थे। काली मूसली की खेती वैसे भी दुनिया के किसी कोने में नहीं होती थी इसलिए उसकी खेती की विधि विकसित करने में उन्होंने मेरा तकनीकी मार्गदर्शन लिया और जब इसकी पत्तियों के लिए खेती की बात आई तो थोड़ी असफलता के बाद हम लोगों ने सफलता प्राप्त कर ली। इस तरह दूसरे फॉर्मूलेशन पर काम शुरू हुआ।

 यह फॉर्मूलेशन अंतिम अवस्था में कैंसर से जूझ रहे रोगियों के लिए वरदान की तरह था। अब पूरी टीम इसी फॉर्मूलेशन पर काम करने के लिए जुट गई। जहां  अधिकतर सफेद मूसली की खेती में जड़ों पर ध्यान दिया जाता है हमारे इस प्रोजेक्ट में जड़ों पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं था। हमें केवल पत्तियों से मतलब था और हम चाहते थे कि उसमें जड़े भले ही कमजोर हो पर पत्तियां अधिक से अधिक संख्या में हो जिससे कि हमें कच्चे माल की लगातार आपूर्ति होती रहे।

 कालांतर में जब यूरोप और दूसरे पश्चिमी देशों में क्लिनिकल ट्रायल को सफलता मिलने लगी और यह अल्जाइमर्स के लिए सही मायने में कारगर सिद्ध होने लगा तो पूरी दुनिया का ध्यान इस ओर जाने लगा। हाल ही में उन उद्यमी महोदय ने बताया कि 20 साल की मेहनत के बाद अब उन्हें इस पहले फॉर्मूलेशन का अंतरराष्ट्रीय पेटेंट मिल गया है और अब इस बारे में बात करने में किसी भी तरह की कोई दिक्कत नहीं है। उन्होंने मुझे अनुमति प्रदान की कि मैं अब इस बारे में विस्तार से लिख सकता हूं। सफेद मूसली की पत्तियों और काली मूसली की पत्तियों के साथ उन्होंने दूसरे घटक मिलाकर जो फार्मूला तैयार किया है वह भी मध्यम अवस्था में है और उस प्रोजेक्ट को खत्म होने में 8 से 10 सालों का समय लग सकता है। अब उनका बेटा भी इस प्रोजेक्ट में हिस्सा लेने लगा है।

 उद्यमी महोदय ने मुझे बताया कि अब वे अपने बेटे के बुढ़ापे के लिए निश्चित हो गए हैं क्योंकि ये दो फॉर्मूलेशन उसके जीवन को सरल बना देंगे और वह अपनी मर्जी का जीवन जी सकेगा। अब उन्हें अपने पोते की चिंता है इसलिए उन्होंने एक तीसरे फॉर्मूलेशन में काम करने के लिए मुझसे परामर्श लेने का समय लिया है। अब वे सफेद मूसली, काली मूसली और श्री मूसली को आजमाना चाहते हैं। एक साथ इन सभी की पत्तियों से उन्होंने एक विशेष तरह का फॉर्मूलेशन तैयार किया है जिसकी जांच अभी हो रही है। मुझे श्री मूसली की जैविक खेती की विधि विकसित करने का कार्य सौंपा गया है और यह भी अनुरोध किया गया है कि मैं शुरुआती दिनों की तरह ही पूरे देश में घूम कर इसके नमूने एकत्र करूँ और फिर टिशु कल्चर की लैब की सहायता से नए पौधे तैयार करूं। मैंने अपनी सहमति दे दी है।

 आज इतने लंबे समय के बाद इस प्रोजेक्ट को, उसकी सफलता को देखते हुए मैं सोचता हूं कि यदि सरकारी स्तर पर यह कार्य शुरू हुआ होता तो आपसी टांग खिंचाई और नौकरशाही के चलते हम आधी दूरी तक भी नहीं पहुंच पाते और इससे पहले ही कोई प्राइवेट फर्म इस प्रोजेक्ट को ले जाती और इसकी गोपनीयता पूरी तरह से खत्म हो जाती है।

 वह तो दूर दृष्टि वाले उद्यमी महोदय थे जिन्होंने बड़े धैर्य का परिचय देते हुए इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट में अपने जीवन की सारी पूंजी लगा दी और अब सफलता उनके कदम चूमने के लिए तैयार खड़ी है। 


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