Consultation in Corona Period-272 Pankaj Oudhia पंकज अवधिया
Consultation in Corona Period-272
Pankaj Oudhia पंकज अवधिया
"हम जानते हैं कि आपने कृषि की विधिवत शिक्षा ली है और अभी देश के पारंपरिक चिकित्सकीय ज्ञान का डॉक्यूमेंटेशन कर रहे हैं। हम आपको एक अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान सम्मेलन में बतौर अतिथि वक्ता आमंत्रित करना चाहते हैं। आप हम लोगों के बीच एक व्याख्यान दीजिए जिसमें बताइए कि आप किस तरह का काम कर रहे हैं और भविष्य में आपकी क्या योजना है? हमने आपकी यात्रा का पूरा प्रबंध कर दिया है और आपके ठहरने के लिए मुंबई में एक नामी होटल बुक कर दिया है। आप यदि हमारा आमंत्रण स्वीकार करेंगे तो हमें बहुत प्रसन्नता होगी।" 90 के दशक में जब मुझे यह आमंत्रण मिला तो मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई। उस समय मैंने अपनी कृषि की शिक्षा पूरी कर ली थी और देशभर के अखबारों में मेरे लेख छप रहे थे। ये लेख पारंपरिक चिकित्सा और हर्बल फार्मिंग के ऊपर थे। जब मैंने उस सम्मेलन के बारे में विस्तार से पढ़ा तो मुझे पता चला कि यह चिकित्सकों का सम्मेलन था न कि वैज्ञानिकों का। मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ और साथ में खुशी भी कि मुझे चिकित्सकों को संबोधित करने के लिए बुलाया जा रहा है सम्मेलन में।
मेरी यात्रा सफल रही और मेरे व्याख्यान को लोगों ने पसंद किया। व्याख्यान के बाद काफी देर तक लोग मुझसे प्रश्न पूछते रहे और मैं बेबाकी से उनके जवाब देता रहा। रात के समय जब मैं अपने होटल में पहुंचा तब वहां एक वैज्ञानिक मेरा इंतजार कर रहे थे।
उन्हें भी मेरी तरह ही अतिथि वक्ता के रूप में आमंत्रित किया गया था। उन्होंने बताया कि उनके पास एक 5 वर्षों का अंतरराष्ट्रीय प्रोजेक्ट है जो कि Autism पर आधारित है। वे चाहते थे कि मैं उन्हें अपने अनुभव के आधार पर ऐसे नुस्खों के बारे में बताऊं जिनका प्रयोग Autism के रोगियों पर करने से उन्हें लाभ हो सके। मैंने उन्हें पांच तरह के जंगली फल सुझाये जो कि छत्तीसगढ़ के जंगल में प्राकृतिक रूप से उगते हैं और लंबे समय से उनका प्रयोग Autism की चिकित्सा में होता रहा है। मैंने उन्हें आमंत्रित किया कि आप छत्तीसगढ़ आएं और छत्तीसगढ़ के जंगलों से इन फलों को एकत्र करें। इन फलों को एकत्र करने की एक विशेष विधि है। इसकी जानकारी मैं आपको दे दूंगा और यदि जरूरत पड़ेगी तो मैं आपके साथ ही जंगल भी चला जाऊंगा। मैंने उनसे यह भी कहा कि आप अपने प्रोजेक्ट में भले ही मेरा नाम न लिखें पर छत्तीसगढ़ के पारंपरिक चिकित्सकों को और यहां की पारंपरिक चिकित्सा को विशेष रूप से धन्यवाद दें क्योंकि आप उनके ज्ञान का ही प्रयोग अपने इस प्रोजेक्ट में करेंगे। उन्होंने कहा कि ऐसा करने में उन्हें खुशी होगी।
जब मैं वापस रायपुर लौटा तो मेरे पीछे पीछे ही वे भी मेरे साथ आ गए और यहां के जंगलों से 5 तरह के जंगली फल लेकर चले गए। मैंने इन फलों की प्रयोग विधि के बारे में उनको समझा दिया। कुछ महीनों तक वे इन फलों के साथ प्रयोग करते रहे और फिर उन्होंने एक बार फिर से रायपुर की यात्रा की और अपनी सफलता के बारे में मुझे बताया। उन्होंने बताया कि ये फल Autism में चमत्कारिक रूप से काम कर रहे हैं और छोटे बच्चों को विशेष रूप से फायदा हो रहा है। उन्होंने बताया कि शहरों के बच्चे इन फलों को बड़े चाव से खाते हैं और इस तरह फलों के माध्यम से उनकी चिकित्सा भी हो जाती है। लंबी चर्चा के बाद उन्होंने पूछा कि क्या आपको मालूम है कि इन फलों का असर Autism के रोगियों पर किस तरह से होता है? इसका मोड ऑफ एक्शन क्या है? मैंने उनसे कहा यह तो आप को खोज करनी चाहिए कि आखिर किस कारण से इन जंगली फलों के सरल से प्रयोग से Autism की समस्या का काफी हद तक समाधान हो रहा है।
उन्होंने कहा कि इसमें कोई दो राय नहीं है कि ये फल बेहद कारगर है पर इसके असर के पीछे कौन से कारण उत्तरदाई है इस बात को वे अभी नहीं जान पा रहे हैं। यही कारण है कि वे अपने शोध को प्रकाशित नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि शोध पत्र में लिखना होता है कि यदि किसी दवा का असर हो रहा है तो उसके पीछे क्या संभावित कारण हो सकते हैं। उन्होंने यह भी खुलासा किया कि इन जंगली फलों के ऊपर पहले किसी ने भी किसी तरह का शोध नहीं किया है। यही कारण है कि हमें किसी भी तरह का रिफरेंस नहीं मिल रहा है। फिर वे वापस लौट गए और इस बीच उन्होंने फोन पर बताया है कि उनके प्रोजेक्ट की सफलता को देखते हुए उनके प्रोजेक्ट को एक्सटेंशन मिल गया है।
वे जब अगली बार मुझसे मिलने आए तो मैंने उन्हें 18 प्रकार के मेडिसिनल राइस दिए और कहा कि आप इनका प्रयोग भी ऑटिज्म पर कर सकते हैं। मुझे उम्मीद है कि आपको सफलता मिलेगी। मैंने उन्हें यह भी कहा कि इन राइस का प्रयोग भोजन के रूप में करना है न कि दवा के रूप में पर ये राइस दवा के रूप में ही वास्तव में काम करेंगे। कुछ सालों तक वैज्ञानिक महोदय इस पर गहन अध्ययन करते रहे और फिर जब वे मुझसे मिलने आए तो उन्होंने बताया कि इन अट्ठारह में से 15 किस्म के राइस ने कमाल का काम किया है और जब उन्होंने अमेरिका में अपने इस शोध के बारे में वहां के वैज्ञानिकों को बताया तो उन्होंने इस प्रोजेक्ट को हाथों-हाथ ले लिया पर वे बार-बार यही पूछते रहे कि आखिर इन मेडिसिनल राइस में ऐसा क्या है जिससे कि शरीर में परिवर्तन होते हैं और Autismकी समस्या काफी हद तक के सुलझ जाती है। उन वैज्ञानिक महोदय के पास इसका कोई जवाब नहीं था। उन्होंने कई तरह के परीक्षण उन रोगियों के शरीर पर किए पर उन्हें इस बात का उत्तर नहीं मिला कि आखिर ये मेडिसिनल राइस शरीर के अंदर किस तरह से ऐसे परिवर्तन करते हैं जिससे Autism जैसी लाइलाज समझी जाने वाली समस्या का समाधान होने लग जाता है। उनके प्रोजेक्ट को एक बार फिर से एक्सटेंशन मिल गया और वे Autism के विशेषज्ञ के रूप में पूरी दुनिया में स्थापित हो गए।
अगली बार जब वे मुझसे मिलने आए तो मैंने उन्हें कुछ विशेष तरह की जड़ी बूटियों के बीज दिए और कहा कि वे अपने बगीचे में इन जड़ी-बूटियों को निश्चित क्रम में लगा ले। फिर उसके बाद Autism से प्रभावित बच्चों को नंगे पाँव सुबह के समय उन जड़ी बूटियों पर कुछ समय तक चलने की सलाह दें। इसके बाद वे अध्ययन करें कि क्या उनके व्यवहार में किसी तरह का सकारात्मक परिवर्तन आया है या नहीं।
मैंने बेअरफूट वाकिंग के सिद्धांत पर आधारित अपने कई शोध आलेख उन्हें दिए। उन्होंने लगनपूर्वक इस नए प्रयोग को किया और उन्हें जब सफलता मिलने लगी तो वे एक बार फिर असमंजस में पड़ गए कि आखिर इन नए तरह के उपायों की सफलता के पीछे कौन से कारण जिम्मेदार है? इन उपायों के बारे में न पहले किसी ने पढ़ा था और न ही किसी ने इन्हें आजमाया था। उन्हें पहली बार यह जानकारी मिल रही थी और हर जानकारी सटीक थी। यही कारण है कि वे लगातार सफल होते जा रहे थे। उनके इस कार्य को भी पूरी दुनिया में सराहा गया और दुनिया भर के बहुत से वैज्ञानिकों ने उनकी टीम में शामिल होने में रुचि दिखाई और सब मिलकर इस नए विषय पर काम करने लगे। अगली बार जब वे मुझसे मिलने आए तो मैंने उन्हें कई तरह के लेप दिए जो कि जड़ी बूटियों से तैयार किए गए थे। इन लेपों को दिन में निश्चित समय में कुछ घंटों के लिए पैरों के तलवों में लगाना था और फिर उसके बाद उन्हें धो लेना था। मैंने कहा कि ये लेप भी Autism के रोगियों के लिए वरदान साबित हो सकते हैं। उन्होंने बाद में बताया कि उन्हें इन लेपों से बहुत अधिक सफलता मिली पर मुश्किल यह है कि छोटे बच्चे इन लेपों को पैरों में लगाकर लंबे समय तक बैठने के लिए तैयार नहीं होते हैं तब मैंने उन्हें वैकल्पिक सुझाव बताया कि वे चाहे तो मैं उनके लिए लकड़ी की छोटी चप्पलें तैयार करके दे सकता हूं। इन्हें पहनकर वे घूम सकते हैं और उनसे वैसा ही असर होगा जैसा कि लेप से होता है।
उन्हें यह सुझाव पसंद आया, उन्होंने इस पर कई प्रयोग किए और अच्छी डिजाइन की चप्पलें बनानी शुरू की। इसके बाद लंबे समय तक उनसे किसी तरह का संपर्क नहीं रहा। वे इंटरनेट पर बार-बार दिखते रहे पर उनसे सीधी मुलाकात नहीं हो पाई। हाल ही में जब उन्होंने फिर से मुझसे संपर्क किया तो उन्होंने बताया कि वे अभी भी Autism पर काम कर रहे हैं और मैंने उन्हें जितने भी उपाय सुझाए थे अब उनके पास उन सुझावों के कारगर होने के कारणों की पूरी तरह से जानकारी है।
उन्होंने बताया कि वैसे तो Autism के रोगियों को कई तरह के लक्षण आते हैं पर मेरे द्वारा सुझाए गए नुस्खे उनके और उनके मां-बाप के बीच संबंध स्थापित करने में विशेष भूमिका निभा रहे हैं। यह ऑटिज्म से प्रभावित बच्चों की हाइपरएक्टिविटी को भी कम करने में कारगर साबित हो रहे हैं। साथ ही जो उनमें अजीब सी बेचैनी जैसे लक्षण दिखते हैं वे भी इन उपायों से काफी हद तक नियंत्रण में आ जाते हैं।
उन्होंने खुलासा किया कि मेरे द्वारा बताए गए उपायों से शरीर में हार्मोन के स्तर पर कई तरह के परिवर्तन होते हैं विशेषकर ऑक्सीटॉसिन नामक हार्मोन की सक्रियता बढ़ जाती है और आधुनिक वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर दिया है कि ऑक्सीटोसिन की सहायता से Autism की समस्याओं को काफी हद तक ठीक किया जा सकता है। आपके द्वारा सुझाए गए उपाय ऑक्सीटॉसिन की सक्रियता को बढ़ा रहे थे पर आज से 20 साल पहले हम किसी परीक्षण के द्वारा इसे सिद्ध नहीं कर पा रहे थे। यही कारण है कि यह महत्वपूर्ण शोध अपने मूल रूप में आम लोगों के बीच नहीं पहुंच पा रहा था। अब हम इन उपायों की वैज्ञानिकता को सिद्ध करने के लिए पूरी तरह से तैयार है और यही कारण है कि एक बार फिर दुनिया का ध्यान इन सरल पर प्रभावी उपायों पर जा रहा है। ऐसा कहकर उन्होंने अपनी बात पूरी की।
जल्दी ही वे मुझसे मिलने आ गए और उन्होंने अपनी रिपोर्ट दिखाई जो कि शीघ्र ही प्रकाशित होने वाली थी। उन्होंने रिपोर्ट में न केवल छत्तीसगढ़ के पारंपरिक ज्ञान व पारंपरिक चिकित्सकों बल्कि मुझे भी विशेष रूप से धन्यवाद दिया था और कहा था कि ये सारे उपाय उनके अपने नहीं है बल्कि यह देश का पारंपरिक चिकित्सकीय ज्ञान है।
मैंने उन्हें हृदय से धन्यवाद दिया और भविष्य के लिए शुभकामनाएं दी।
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