जब नर तितलियाँ लेने जाये प्रणय उपहार, तो पीछा करे और पाये आनन्दमय उपहार
जब नर तितलियाँ लेने जाये प्रणय उपहार, तो पीछा करे और पाये आनन्दमय उपहार
- पंकज अवधिया
कुछ वर्षो पहले मै बस्तर की प्रसिध्द कोटमसर गुफा के वन्य क्षेत्र मे वानस्पतिक सर्वेक्षण के लिये गया हुआ था। वहाँ मैने तितलियो मे बहुत विविधता देखी। सैकडो-ह्जारो की संख्या मे तितलियाँ एक स्थान पर जमीन मे बैठ जाती है और कुछ सत्व पीने लगती है। साथ मे चल रहे लोगो ने बताया कि गर्मी मे पानी की तलाश मे नम स्थानो पर ये तितलियाँ बैठ जाती है। पिछली रात हल्की वर्षा हुयी थी इसलिये चारो ओर की जमीन नम थी। फारेस्ट गाँर्ड ने बताया कि जब भी कोई जानवर या मनुष्य पेशाब करता है तब भी ये तितलियाँ ऐसे ही बैठ जाती है। मैने कई तस्वीरे खीची और फिर बाद मे मैने यह दृश्य दूसरी जगहो पर भी देखा। कीटविज्ञान से जुडे साहित्यो मे इसके बारे मे काफी जानकारी मिली। तकनीकी भाषा मे इसे ‘मड-पडलिंग’ कहा जाता है। हाँगकाँग के जाने-माने कीट वैज्ञानिक डाँ. रोजर से मुझे पता चला कि केवल नर ही ऐसे स्थानो मे बैठते है। वे लवण और दूसरे आवश्यक तत्व घोल के रूप मे लेते है और जब वे मादा से मिलते है तो इन्हे उन तक पहुँचा देते है। इनकी जरूरत मादा को अंडो के लिये होती है। इस रोचक जानकारी से मै बडा ही प्रसन्न हुआ पर असली जानकारी तो बाद मे मिली।
बरसात के बाद जब उस वर्ष मै पारम्परिक चिकित्सको के साथ जंगल गया तो रास्ते मे मैने यह बात उन्हे बताई। पारम्परिक चिकित्सको ने खुलासा किया कि ऐसे स्थानो से एकत्र की गई मिट्टी का प्रयोग वे बाहरी और आंतरिक तौर पर दवा के रूप मे करते है। उन्होने बताया कि वे खास तरह की तितलियो का पीछा करते है फिर वे जहाँ बैठती है वहाँ की मिट्टी एकत्र कर लेते है। इस मिट्टी मे किसी भी भाग की गर्मी सोखने की जबरदस्त क्षमता होती है। वे इसका प्रयोग उन लेपो मे भी करते है जिनका प्रयोग टूटी हड्डियो को जोडने के लिये होता है। इसका आंतरिक प्रयोग उचित मार्गदर्शन मे वृक़्क़ रोगो की चिकित्सा मे होता है। उन्होने पीली तितलियो के अलावा विशेष प्रकार की बैगनी और नारंगी तितलियो के झुंड दिखाये जो खास स्थानो मे बैठती थी। यह सब बडा ही रोचक लगा।
वापस आकर जब मै मैदानी क्षेत्रो के पारम्परिक चिकित्सको से मिला तो पता चला कि उनके पास भी इस विषय मे जानकारी का अम्बार है। जब मैने उनसे कहा कि कन्ही भी पेशाब कर देने पर वे आकर बैठ जाती है तो उन्होने मेरे अल्प ज्ञान पर व्यंग्य किया। सभी तरह के पेशाब पर वे नही बैठती है। और इसी सूक्ष्म दृष्टि के चलते तितलियो के इस विशेष आचरण से पहले पारम्परिक चिकित्सक नाना प्रकार के रोगो विशेषकर मूत्र रोगो का पता लगाते थे। आज भी कई पारम्परिक चिकित्सको को इस ज्ञान का प्रयोग करते देखा जा सकता है। अलग-अलग प्रकार के रोगियो के मूत्र मे अलग-अलग प्रकार की तितलियो का आगमन होता है। कुछ पारम्परिक चिकित्सको ने तो यह कह कर विस्मित कर दिया कि वे इस ज्ञान की सहायता से जंगली जानवरो के रोगो का पता लगाते रहे है।
‘मड-पडलिंग’ के बारे मे तरह-तरह की जानकारी देने वाले वैज्ञानिक साहित्यो मे यह जानकारी नही है। यह पारम्परिक चिकित्सको का विशिष्ट ज्ञान है। यह एक और प्रमाण है इन प्रकृति पुत्रो के दिव्य ज्ञान का। पहले मैने उनके हवाले से इस ज्ञान का दस्तावेजीकरण किया अंग्रेजी मे फिर अब इस लेख के माध्यम से आपको इस विषय मे बता रहा हूँ। अब आप भी अपने क्षेत्र मे तितलियो की गतिविधियो पर नजर रखे और साथ ही पारम्परिक चिकित्सको से भी मिले ताकि उनका ज्ञान दस्तावेज के रूप मे हमारे बीच रहे और वह गलत हाथो मे जाने से बच सके।
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे है।)
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