बालों को झड़ने से रोकने में कारगर पारम्परिक फार्मूले पर पंकज अवधिया का शोधपरक आलेख


बालों को झड़ने से रोकने में कारगर पारम्परिक फार्मूले पर पंकज अवधिया का शोधपरक आलेख



बालों के झड़ने के लिए मुस्कैनी और तिल के पुष्प पर आधारित बहुत से पारंपरिक औषधि मिश्रणों का उल्लेख भारत की पारंपरिक चिकित्सा में मिलता है.



इन दोनों वनस्पतियों का प्रयोग दूसरी उपयोगी वनस्पतियों के साथ शहद और घी मिलाकर किया जाता है.



इन दोनों वनस्पतियों को बाहरी तौर पर उन भागों में लगाया जाता है जहां के बाल झड़ रहे हैं.



अधिकतर सिर के बालों के झड़ने पर इनका प्रयोग किया जाता है.



हमारे पारंपरिक ग्रंथ बताते हैं कि इससे बालों का झड़ना रुक जाता है और बहुत से मामलों में बाल दोबारा उगने लग जाते हैं.



शहरी इलाकों में इन दोनों वनस्पतियों का मिलना आसान नहीं है.



यदि आप पंसारी की दुकान में जाएं तो इन वनस्पतियों के नाम पर आपको कुछ भी दिया जा सकता है.



कुछ भी का अर्थ वे वनस्पतियां भी है जो आपके सिर में उग रहे बालों को भी खत्म कर सकती है और आपको स्थाई तौर पर गंजा बना सकती है.



ग्रामीण इलाकों में ये दोनों वनस्पतियां आसानी से मिल जाती है पर इनकी उपलब्धता साल भर नहीं रहती है.



जहां एक और मुस्कैनी धान के खेतों में पाई जाती है खरपतवार के रूप में. वही तिल की फसल से तिल के पुष्प को एकत्र करना होता है.



तिल की फसल साल भर नहीं होती है.



उसी तरह मुस्कैनी भी साल भर नहीं होती है.



ज्यादातर पारंपरिक चिकित्सक ताजी मुस्कैनी और ताजे टिल के पुष्प के प्रयोग के पक्षधर हैं.



ऐसे में बड़ी असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो जाती है.



बहुत से पारंपरिक चिकित्सक छांव में सुखाए गए मुस्कैनी के पौधों और तिल के पुष्पों का प्रयोग करते हैं.



यहां आप मुस्कैनी और मूसाकानी के बीच अंतर करने की चूक कर सकते हैं.



यह दोनों अलग अलग प्रकार की वनस्पतियां है.



भले ही यह खेत में एक साथ उगते देखी जा सकती है पर ज्यादातर मामलों में मूसाकानी बेकार जमीन में जिसे कि वेस्टलैंड कहा जाता है में ज्यादा होती है,



मूसाकानी का इस फार्मूले में कोई योगदान नहीं है.



यह सही बात है कि मूसाकानी की पत्तियां चूहे के कान की तरह दिखती हैं इसलिए हिंदी भाषी क्षेत्र के लोग इसे मूसाकानी के नाम पर जानते हैं.



इसी तरह मुस्कैनी की पत्तियां मुसवा यानी चूहे के कान की तरह दिखती हैं इसलिए छत्तीसगढ़ के लोग इसे मुस्कैनी के नाम से जानते हैं पर गुणों में यह दोनों वनस्पतियां औषधि रूप से अलग है.



मुझसे ऐसे बहुत से लोग अक्सर मिलते हैं जिन्होंने बालों के लिए तिल के पुष्पों का प्रयोग किया है और उनकी शिकायत रहती है कि इससे उनके बाल उगने की जगह गिरने लगे हैं.



जब उनकी बातों को विस्तार से जाना जाता है तब पता चलता है कि उन्होंने तिल के पुष्प यानि फूल के स्थान पर तिलपुष्पी नामक वनस्पति का प्रयोग किया है जिसका गलत प्रयोग मनुष्य को सदा के लिए गंजा बना देता है इसलिए इस दिशा में सावधानी की जरूरत है.



पिछले 3 दशकों में मैं बस्तर के 600 से अधिक ऐसे पारंपरिक चिकित्सकों से मिला जिन्हें बालों के झड़ने के लिए मुस्कैनी और तिल के पुष्प के फार्मूले के बारे में जानकारी थी.





90 के दशक में मेरी मुलाकात कांकेर के एक बुजुर्ग पारंपरिक चिकित्सक से हुई जिनकी उस समय आयु 80 वर्ष से अधिक थी.



वे इस फार्मूले का प्रयोग अपने रोगियों पर करते थे.



उन्होंने बताया कि लीवर के रोगों के कारण यदि बालों का झड़ना जारी है ऐसे में यह फार्मूला काम नहीं करता है.



वे इस फार्मूले को शक्तिशाली बनाने के लिए 50 से अधिक प्रकार की वनस्पतियों का प्रयोग करते थे पर उनका कहना था कि मुख्य भूमिका इन दोनों वनस्पतियों की ही होती है.



उन्होंने बताया कि उन्हें इस फार्मूले की जानकारी अपने पूर्वजों से हुई.



इस फार्मूले में वे सुधार कर रहे थे ताकि यह प्रभावी बना रहे.



उन्होंने आशा जताई कि उनके बाद के पारंपरिक चिकित्सक इसमें और अधिक सुधार करेंगे जिससे कि यह आगे कई पीढ़ियों तक के प्रभावशाली रहेगा.



वे इस फार्मूले का बाहरी प्रयोग करते हैं पर इसके साथ शहद और घी का प्रयोग नहीं करते हैं.



उन्होंने बताया कि उनके पूर्वज कर्रा नामक वृक्ष से एकत्र की गई शहद का उपयोग करते थे पर इसका प्रभाव अधिक न होने के कारण धीरे-धीरे इसका प्रयोग बंद हो गया.



उन्होंने बताया कि पारे के विष के कारण जब बाल झड़ते हैं तब यह फार्मुला इस रुप में काम नहीं आता है.



ऐसे में वे सरई नामक जंगली वृक्ष की छाल का प्रयोग इस फार्मूले में करते हैं,



जब बालों के झड़ने का कारण बहुत अधिक मात्रा में दिन में कई बार चाय पीना होता है तब ऐसे मामलों में यह फार्मूला काम नहीं करता है.



इसी तरह ह्रदय रोगियों पर भी यह फार्मूला काम नहीं करता है.



उनका कहना था कि त्वचा रोगियों को इस फार्मूले का प्रयोग संभलकर करना चाहिए अन्यथा लेने के देने पड़ सकते हैं.



कैंसर के रोगियों में कीमोथैरेपी के बाद अक्सर बालों के झड़ने की समस्या रहती है पर वह अपने आप ठीक हो जाती है पर बहुत से मामलों में बाल दोबारा नहीं उगते हैं.



ऐसे मामलों में यह फार्मूला बेहद कारगर है.



ऐसे मामलों में पारंपरिक चिकित्सक कुरु की गोंद और कुरुम की छाल का प्रयोग इस फार्मूले में करते हैं.



मैंने अपने अनुभव से इस फार्मूले को बेहद कारगर पाया है.





उन्होंने बताया कि पीले पलाश के फूल और सफेद कंटकारी के फूल भी इस फार्मूले में शामिल किए जा सकते हैं.



इससे यह फार्मूला बहुत अधिक शक्तिशाली हो जाता है पर मुश्किल यह है कि ये दोनों वनस्पतियां बड़ी मुश्किल से मिलती है और बहुत अधिक कीमत में मिलती है इसलिए पारंपरिक चिकित्सक इन दोनों वनस्पतियों का चाहकर भी प्रयोग नहीं कर पाते हैं.



व्यावसायिक दृष्टिकोण से यह जानकारी उपयोगी न हो पर अकादमिक दृष्टिकोण से यह एक महत्वपूर्ण जानकारी है.





इसी तरह अकादमिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण एक जानकारी और मिली इन्हीं पारंपरिक चिकित्सक से.



उन्होंने बताया कि चेतकी नामक हर्रा की एक विशेष किस्म का प्रयोग यदि फार्मूले में किया जाए तो यह फार्मूला बहुत अधिक शक्तिशाली हो जाता है पर हर्रा या हरड़ की इस किस्म को जंगल में खोज पाना टेढ़ी खीर है इसलिए ज्यादातर पारंपरिक चिकित्सक फार्मूले में इसका प्रयोग नहीं करते हैं



यदि औद्योगिक प्रदूषण के कारण बाल झड़ते हैं तब ऐसे स्थानों पर रहने वाले लोगों से पारंपरिक चिकित्सक कहते हैं कि वह दिन में दो बार बालों को अच्छे से साफ करें.



उसके बाद ही इस फार्मूले का प्रयोग करें अन्यथा इस फार्मूले का ज्यादा असर नहीं दिखाई देगा



कांकेर के बुजुर्ग पारंपरिक चिकित्सक ने बताया कि मोतियाबिंद से प्रभावित लोग इस फार्मूले का प्रयोग संभलकर करें क्योंकि अधिक समय तक इसे सिर में लगाने से आंखो की ज्योति प्रभावित होती है.





उन्होंने यह भी बताया कि माइग्रेन से प्रभावित लोगों के लिए यह फार्मूला बहुत उपयोगी है क्योंकि इससे न केवल उन्हें माइग्रेन से राहत मिल सकती है बल्कि उनके बालों के झड़ने की समस्या का भी स्थाई समाधान हो सकता है.





गर्भावस्था में वे इस फार्मूले का प्रयोग दक्ष पारंपरिक चिकित्सक के मार्गदर्शन में ही करने की सलाह देते हैं.





कांकेर के पारंपरिक चिकित्सक बताते हैं कि शिकाकाई के साथ इस फार्मूले का प्रयोग जहां तक हो सके नहीं करना चाहिए.



ऐसे रोगी जो किसी रोग की चिकित्सा के लिए सफेद मूसली का किसी भी रुप में प्रयोग कर रहे हो उन्हें बाहरी तौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले इस फार्मूले के प्रयोग से बचना चाहिए.



यदि वे काली मूसली और सेमल मूसली का प्रयोग कर रहे हो तब वे इसका प्रयोग बिना किसी मुश्किल के कर सकते हैं.



काली हल्दी तो एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में इस फार्मूले को शक्तिशाली बनाने के लिए प्रयोग की जाती है.



पारंपरिक चिकित्सक जंगलों से ही काली हल्दी का एकत्रण करते हैं और फिर उसे अपने फार्मूला में उपयोग करते हैं.



चिकित्सा से संबंधित हमारे प्राचीन ग्रंथों में कई स्थानों पर यह लिखा है कि तिल के पुष्पों के साथ गोखरू का प्रयोग भी किया जा सकता है.



जब इस बारे में कांकेर के पारंपरिक चिकित्सक से चर्चा की गई तो उन्होंने कहा कि गोखरू का सिर पर सीधा प्रयोग नाना प्रकार के मस्तिष्क रोग उत्पन्न कर सकता है इसीलिए उन्होंने ऐसे प्रयोग की अनुमति देने से इंकार कर दिया.





कांकेर के बुजुर्ग पारंपरिक चिकित्सक लंबे समय तक इस फार्मूले के प्रयोग के पक्षधर नहीं है.



उनका कहना है कि इसका 1 सप्ताह तक लगातार प्रयोग करना चाहिए फिर 1 सप्ताह तक रुकना चाहिए और उसके बाद फिर 1 सप्ताह तक इसका प्रयोग करना चाहिए.



यदि सकारात्मक परिणाम मिलते हैं तब ही आगे 2 सप्ताह तक इसका प्रयोग करना चाहिए.



इससे अधिक समय तक वे इसके प्रयोग के पक्षधर नहीं है.



किसी भी तरह का लाभ दिखने पर वे रोगियों को फिर से अपने पास बुलाते हैं और फिर शक्तिशाली रूप में फार्मूले को देकर 1 सप्ताह तक उसके बाहरी प्रयोग की सलाह देते हैं.



उनका मानना है कि ज्यादातर मामलों में यह फार्मूला अच्छे परिणाम देता है.



मैं उनकी इस बात से सहमत हूं और मैंने इसे बहुत से मामलों में सफलतापूर्वक आजमाया है.





जब मैं कांकेर के बुजुर्ग पारंपरिक चिकित्सक के साथ मुस्कैनी को इकट्ठा करने गया तो उन्होंने बताया कि धान के ऐसे खेतों से जहां आधुनिक कृषि रसायनों का प्रयोग होता है इस वनस्पति का एकत्रण नहीं करना चाहिए.



उन्होंने ऐसे खेतों का चुनाव किया जहां धान की पारंपरिक खेती हो रही थी और किसी भी प्रकार के कृषि रसायनों का प्रयोग नहीं हो रहा था.



उन्होंने बताया कि धान के खेत के अलावा उसके आसपास की बेकार जमीन या मेड से भी इसका एकत्रण किया जा सकता है.



मुस्कैनी के पौधों को चुनते समय वे इस बात का ध्यान रखते हैं कि उसमें किसी भी प्रकार के रोग या कीटों का आक्रमण न हो.



पुराने पौधों की अपेक्षा वे नए पौधों के उपयोग पर जोर देते हैं.



ऐसे पौधे जो कि कम पानी के कारण किसी तरह की मुश्किल में हो उनका प्रयोग फार्मूले में नहीं किया जाता है.



उन्होंने बताया कि वे जंगली हल्दी और कमल के फूलों से तैयार घोल को अपने साथ लेकर चलते हैं और 1 सप्ताह बाद एकत्रित की जाने वाली वनस्पति पर इसे डाल देते हैं.



उनका मानना है कि इस उपचार से 1 सप्ताह बाद जब वे उस वनस्पति को एकत्र करने के लिए आते हैं तब वह वनस्पति दिव्य औषधीय गुणों से परिपूर्ण हो जाती है.



मैंने प्रयोगशाला और बड़े स्तर पर उनकी इस अनोखी उपचार विधि का परीक्षण किया और वैज्ञानिक तौर पर उसे बेहद कारगर पाया.



बाजार में या पंसारी के पास मिलने वाली मुस्कैनी में वैसे गुण नहीं पाए जाते जैसे कि पारंपरिक चिकित्सक द्वारा प्रयोग की जा रही मुस्कैनी में पाए जाते हैं.



इसका मुख्य कारण यही है मुस्कैनी की तरह ही वे फार्मूले के सभी घटकों को इसी तरह दिव्य औषधीय गुणों से परिपूर्ण करते हैं और उसके बाद ही फार्मूले में प्रयोग करते हैं.



यह एक श्रमसाध्य कार्य है पर पारंपरिक चिकित्सक पूरी मेहनत से और लगन से यह कार्य करते हैं यही कारण है कि उन का फ़ार्मूला सही ढंग से हर परिस्थिति में कार्य करता है. (क्रमश)



देशभर के पारम्परिक चिकित्सकों के विचार जानने के लिए इस सीरीज को पढना जारी रखें.



© सर्वाधिकार सुरक्षित  

pankajoudhia@gmail.com  



Comments

Popular posts from this blog

कैंसर में कामराज, भोजराज और तेजराज, Paclitaxel के साथ प्रयोग करने से आयें बाज

गुलसकरी के साथ प्रयोग की जाने वाली अमरकंटक की जड़ी-बूटियाँ:कुछ उपयोगी कड़ियाँ

भटवास का प्रयोग - किडनी के रोगों (Diseases of Kidneys) की पारम्परिक चिकित्सा (Traditional Healing)