वट्टाकाका, पन्च पत्री और भिलावा पर पारम्परिक चिकित्सकों के अभिनव प्रयोग
पंकज अवधिया की जंगल डायरी ( अक्टूबर, २०११ से आगे) भाग-२
वट्टाकाका, पन्च पत्री और भिलावा पर पारम्परिक चिकित्सकों के अभिनव प्रयोग
- पंकज अवधिया
"इतने दुबले कैसे हो गये? और सिर के बाल कहां गये?" मैंने आश्चर्य से पूछा|
युवा पारम्परिक चिकित्सक ने कुछ नही कहा| उसके साथी ने राज खोला कि पिछले कुछ समय से प्रयोग चल रहा है और शरीर की यह बुरी हालत उसी प्रयोग का परिणाम है| मै समझ गया कि पारम्परिक चिकित्सकों ने कोई नई बूटी खोजी है जिसके बारे में उन्हें बिलकुल भी ज्ञान नही है| यह कैसे असर करती है- इस प्रश्न का उत्तर पाने के लिए उन्होंने स्वयम पर प्रयोग आरम्भ कर दिए|
लम्बे समय से पारम्परिक चिकित्सकों के साथ काम करते हुए मुझे सदा ही इन प्रयोगों पर अचरज होता रहा है| एक ओर हम शहरी लोग खान-पान में बड़ी सावधानी रखते हैं| किसी भी नये भोज्य पदार्थ को खाने से पहले इंटरनेट खंगाल लेते हैं| पूरी तरह आश्वस्त होने के बाद ही उसे ग्रहण करते हैं पर पारम्परिक चिकित्सक अपने जीवन को खतरे में डालकर बूटियों का परीक्षण करते हैं| छोटी मात्रा से शुरुआत करके बड़ी मात्रा तक पहुंचा जाता है फिर लम्बे समय तक इनका सेवन किया जाता है| बूटियों के असर को बड़े ध्यान से महसूस किया जाता है| कई बार तो पारम्परिक चिकित्सक प्राण खो बैठते हैं| ऐसे प्रयोगों के लिए उन्हें घर के सदस्यों और मित्रों की ओर से उलाहना ही मिलती है| वे पारम्परिक चिकित्सकों को कोसते रहते हैं| सारे कष्ट सहने के बाद जब पारम्परिक चिकित्सक की पहचान नई जड़ी-बूटी से हो जाती है तो पीढीयों तक इस प्रयोग के लाभ मिलते रहते हैं| ज्यादातर पारम्परिक चिकित्सक अपने अनुभवों को दूसरे पारम्परिक चिकित्सकों के साथ बाँट लेते हैं| बदले में उन्हें दूसरे पारम्परिक चिकित्सकों का ज्ञान और अनुभव मिलता है| इस तरह पारम्परिक चिकित्सा समृद्ध होती रहती है| ऐसे प्रयोगों के बारे में लिख कर नही रखा जाता है| यही कारण है कि इनके बारे में आधुनिक विज्ञान को जानकारी नही हो पाती है|
"क्या आप कैमरे में विस्तार से बतायेंगे कि इस जड़ी-बूटी ने आपके ऊपर कैसा असर किया?" मैंने जब पारम्परिक चिकित्सक से प्रश्न किया तो वह युवा तुरंत तैयार हो गया| मैंने तीन घंटे तक विस्तार से उससे बात की और सारी बातों को कैमरे में कैद करता रहा| पारम्परिक चिकित्सक ने जिस जड़ी-बूटी पर प्रयोग किये थे उसका वैज्ञानिक नाम वट्टाकाका है| एक महत्वपूर्ण औषधीय वनस्पति पर आश्चर्य कि इंटरनेट पर इसके विषय में ज्यादा जानकारी नही मिलती| ज्यादतर गूगल परिणाम उन लेखों के हैं जिन्हें मैंने लिखा है| मुझे लगता था कि मैंने इसके बारे में ढेरों जानकारियाँ एकत्र कर ली है पर युवा पारम्परिक चिकित्सक के अनुभव जानने के बाद लगा कि जैसे मै कुछ भी नही जानता|
इस प्रयोग में पारम्परिक चिकित्सक ने केवल वट्टाकाका का सेवन किया पर आने वाले दिनों में वह इसका प्रयोग आस-पास जंगलों में उपलब्ध ढेरों जड़ी-बूटियों के साथ करने की मंशा रखता है| निश्चित ही वट्टाकाका पर महाग्रंथ की रचना होती दिखती है| मैंने अपने अनुभव के आधार पर उस पारम्परिक चिकित्सक को ऐसी जड़ी-बूटियाँ बताई जो वट्टाकाका के बुरे प्रभावों को काटती हैं| मुझे यह जानकारी झारखंड यात्रा के दौरान मिली थी| यह जानकारी मेरे दिमाग के किसी कोने में रह गयी थी पर मैंने कभी नही सोचा था कि इससे किसी का भला हो सकेगा|
जब मैं इस तरह के अनूठे प्रयोगों की बात करता हूँ तो मुझे अनायास ही सिवनी के एक लेक्चरर याद आ जाते हैं जिन्हें जड़ी-बूटियों के विषय में गहन रूचि थी| वे प्राचीन ग्रंथों में लिखे प्रयोगों को न केवल पढ़ते थे बल्कि जड़ी-बूटियों का जुगाड़ कर उन्हें अपने ऊपर आजमाते भी थे| उनके प्रयोग दिल दहलाने वाले होते थे| एक बार तो वे भिलावा का सेवन लम्बे समय तक करते रहे| मौत के करीब जा पहुंचे तब उन्होंने प्रयोगों को रोका| उनके अनुभव की कोई मिसाल नही मिलती है मुझे| भिलावा के विषय में मैंने उनसे ढेरों जानकारी हासिल की| मैंने उनके अनुभवों को प्रकाशित करने की सलाह दी पर वे तैयार नही हुए| एक समय उन्होंने आंवला का सेवन करना शुरू किया| बड़ी मात्रा में लम्बे समय तक और फिर उसके दिव्य प्रभावों को अनुभव किया| कुछ कडवे अनुभव भी उन्हें मिले|
जड़ी-बूटियों के ऐसे प्रयोग करने वालों को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पडती है| बहुत कम सौभाग्यशाली पारम्परिक चिकित्सक होते हैं जिन्हें लाभ करने वाली जड़ी-बूटी ही मिलती है और ऐसे प्रयोगों से वे रोगमुक्त लम्बा जीवन प्राप्त करते हैं| ज्यादातर पारम्परिक चिकित्सक तो विषाक्तता के कारण जटिल रोगों के शिकार हो जाते हैं| उनका अंतिम समय कष्टमय हो जाता है| सिवनी के जिन महान आत्मा की बात मै कर रहा हूँ वे कालान्तर में श्वेत कुष्ठ के शिकार हो गए| वे जानते थे कि उन्होंने बावची का मनमाना प्रयोग किया था | शायद श्वेत कुष्ठ उसी का परिणाम था| भिलावा वाले प्रयोग ने अपना रंग उन पर दिखाया और वे मुंह के कैंसर के शिकार हो गये| वे आख़िरी समय तक वापस लौटकर अपने प्रयोगों को दोहराने की बात करते रहे ताकि कैंसर से वे मुकाबला कर सके पर परिवार वालों ने उन्हें आधुनिक यातना गृह यानी कैंसर अस्पताल में रखना तय किया| वे नही बच सके|
अभी लेख में बावची का जिक्र आया| ल्यूकोडर्मा या श्वेत कुष्ठ हुआ नही कि बावची का नाम लिया जाता है| चाहे रोगी बच्चा हो या वृद्ध बस बावची के उपयोग की सलाह दी जाती है| भारत में ही नही अपितु आयुर्वेद का हवाला देकर अमेरिका जैसे देशों में भी| बावची उपयोगी है पर सबके लिए सभी दशाओं में नही| बच्चों के लिए तो बिलकुल भी नही| यह तो हमारे प्राचीन ग्रंथों में भी लिखा है साफ़-साफ़| पारम्परिक चिकित्सक वैज्ञानिक तर्कों के साथ इसे समझाते हैं पर फिर भी बावची का प्रयोग जारी है| बावची की बाजार मांग से आप इस बात का अंदाज लगा सकते हैं|
मुझे याद आते हैं कालेज के वे दिन जब हम अम्बिकापुर के समीप अजीरमा फ़ार्म में ट्रेनिंग ले रहे थे| जड़ी-बूटियों में मेरी रूचि देखकर एक पारम्परिक चिकित्सक ने पंच पत्री का पौधा दिखाया और कहा कि यह कामोत्तेजना बढाने के लिए वरदान है| बस फिर क्या था, जवानी के जोश में मैंने पारम्परिक चिकित्सक द्वारा बताई गयी विधि के अनुसार पन्च पत्री का सेवन करना शुरू कर दिया| पर यह क्या| सारी प्रतिक्रियाये उल्टी साबित हुयी| सारे यौन अंग शिथिल पड़ गए और मन निराशा या कहे आशंका से भर गया| काम विषय पर चर्चा भी व्यर्थ लगने लगी| ऐसा एक सप्ताह के अंदर हो गया|
दौड़ा-दौड़ा पारम्परिक चिकित्सक के पास गया तो पता चला कि महोदय तो एक सप्ताह के लिए किसी मरीज को देखने गये हैं| उस समय तो मोबाइल भी नही था| अब क्या करे| दूसरे पारम्परिक चिकित्सकों से चर्चा की तो उन्होंने टिप्पणी करने से इन्कार कर दिया| जैसे- तैसे दिन बीते और अल सुबह ही पारम्परिक चिकित्सक के आने की खबर सुनते ही मै साइकिल लेकर उनके गांव की ओर चल पड़ा|
मैंने एक सांस में सारी बाते कह दी पर उनके चहरे पर आश्चर्य का भाव ही नही आया| मुझे अब गुस्सा आने लगा| मुझे गर्म चाय देकर वे स्नान और पूजा करने चले गए| चाय का स्वाद अजीब था| मै पास के तालाब की ओर निहारने लगा| कुछ युवतियां पानी भरने जा रही थी| शायद नहाने भी| पर मै किसी सन्यासी की तरह बिना किसी शारीरिक प्रतिक्रिया के उन्हें देखता रहा| अपनी उस बुरी स्थिति से मै रो पड़ा|
"पहला सबक जीवन का- कोई अनजान (या जानकार भी) यदि कुछ खिलाये तो सावधानी बरतो| आँखे मूँद कर किसी पर विश्वास न करो| यदि नई वनस्पति है तो खाने से पहले उसकी काट के बारे में पता करो या फिर वह स्थान देख आओ जहां यह उग रही है| वहां इसकी काट मिल जाएगी| " पारम्परिक चिकित्सक ने कड़े शब्दों में कहा|
"मैंने जानबूझकर सबक सिखाने के लिए यह सब किया| तुमने जो माँगा मैंने उसका विपरीत दिया| यह जड़ी-बूटी सन्यासियों की जड़ी-बूटी है| पर चिंता की बात नही| चलो उस स्थान पर चलते हैं जहां से मैंने इसे एकत्र किया| " ऐसा कहकर वे पास के जंगलो की ओर चल पड़े| फिर पंच पत्री के पौधों के पास रूककर बोले " वो तीन पत्तियों वाली जड़ी एकत्र करो| यही तुम्हे वापस लेकर जाएगी|"
उस जड़ी के कुछ समय के सेवन के बाद मैंने अपनी प्राकृतिक यौन क्षमता को फिर से पा लिया| उस समय कम उम्र होने के कारण मेरी प्रतिक्रिया मिली-जुली रही| ऐसे किसी और प्रयोग के डर से मैंने उनसे दूरी बढा ली| उन्होंने भी जोर नही लगाया पर आज जब दो दशकों के बाद मै उन्हें याद करता हूँ तो मेरा सर आदर से झुक जाता है| उन्होंने जो सीख दी उसने मेरी जान कई बार बचाई| मुझे नई वनस्पति पर प्रयोग का गुर भी उन्होंने सीखाया| उनका दिया ज्ञान मेरे माध्यम से जड़ी-बूटियों का स्वयम पर प्रयोग करने वाले लोगो की भी जान बचा रहा है| पंच पत्री का जो प्रयोग मैंने किया अपने ऊपर जीवन में मैंने उसे कई बार दोहराया और फिर दूसरी वनस्पतियों के माध्यम से अपनी मूल स्थिति में लौटा| इससे पंच पत्री के नए गुणों और अवगुणों का पता चला| आधुनिक विज्ञान इससे अभी भी अपरिचित है और शायद हमेशा रहेगा क्योंकि उनके सारे प्रयोग बेजुबान पशुओं पर होते हैं| और स्वयम पर प्रयोग के लिए कोई तैयार नही होता है| (क्रमश:)
(लेखक जैव-विविधता विशेषज्ञ हैं और वनस्पतियों से सम्बन्धित पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान का दस्तावेजीकरण कर रहे हैं|)
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वट्टाकाका, पन्च पत्री और भिलावा पर पारम्परिक चिकित्सकों के अभिनव प्रयोग
- पंकज अवधिया
"इतने दुबले कैसे हो गये? और सिर के बाल कहां गये?" मैंने आश्चर्य से पूछा|
युवा पारम्परिक चिकित्सक ने कुछ नही कहा| उसके साथी ने राज खोला कि पिछले कुछ समय से प्रयोग चल रहा है और शरीर की यह बुरी हालत उसी प्रयोग का परिणाम है| मै समझ गया कि पारम्परिक चिकित्सकों ने कोई नई बूटी खोजी है जिसके बारे में उन्हें बिलकुल भी ज्ञान नही है| यह कैसे असर करती है- इस प्रश्न का उत्तर पाने के लिए उन्होंने स्वयम पर प्रयोग आरम्भ कर दिए|
लम्बे समय से पारम्परिक चिकित्सकों के साथ काम करते हुए मुझे सदा ही इन प्रयोगों पर अचरज होता रहा है| एक ओर हम शहरी लोग खान-पान में बड़ी सावधानी रखते हैं| किसी भी नये भोज्य पदार्थ को खाने से पहले इंटरनेट खंगाल लेते हैं| पूरी तरह आश्वस्त होने के बाद ही उसे ग्रहण करते हैं पर पारम्परिक चिकित्सक अपने जीवन को खतरे में डालकर बूटियों का परीक्षण करते हैं| छोटी मात्रा से शुरुआत करके बड़ी मात्रा तक पहुंचा जाता है फिर लम्बे समय तक इनका सेवन किया जाता है| बूटियों के असर को बड़े ध्यान से महसूस किया जाता है| कई बार तो पारम्परिक चिकित्सक प्राण खो बैठते हैं| ऐसे प्रयोगों के लिए उन्हें घर के सदस्यों और मित्रों की ओर से उलाहना ही मिलती है| वे पारम्परिक चिकित्सकों को कोसते रहते हैं| सारे कष्ट सहने के बाद जब पारम्परिक चिकित्सक की पहचान नई जड़ी-बूटी से हो जाती है तो पीढीयों तक इस प्रयोग के लाभ मिलते रहते हैं| ज्यादातर पारम्परिक चिकित्सक अपने अनुभवों को दूसरे पारम्परिक चिकित्सकों के साथ बाँट लेते हैं| बदले में उन्हें दूसरे पारम्परिक चिकित्सकों का ज्ञान और अनुभव मिलता है| इस तरह पारम्परिक चिकित्सा समृद्ध होती रहती है| ऐसे प्रयोगों के बारे में लिख कर नही रखा जाता है| यही कारण है कि इनके बारे में आधुनिक विज्ञान को जानकारी नही हो पाती है|
"क्या आप कैमरे में विस्तार से बतायेंगे कि इस जड़ी-बूटी ने आपके ऊपर कैसा असर किया?" मैंने जब पारम्परिक चिकित्सक से प्रश्न किया तो वह युवा तुरंत तैयार हो गया| मैंने तीन घंटे तक विस्तार से उससे बात की और सारी बातों को कैमरे में कैद करता रहा| पारम्परिक चिकित्सक ने जिस जड़ी-बूटी पर प्रयोग किये थे उसका वैज्ञानिक नाम वट्टाकाका है| एक महत्वपूर्ण औषधीय वनस्पति पर आश्चर्य कि इंटरनेट पर इसके विषय में ज्यादा जानकारी नही मिलती| ज्यादतर गूगल परिणाम उन लेखों के हैं जिन्हें मैंने लिखा है| मुझे लगता था कि मैंने इसके बारे में ढेरों जानकारियाँ एकत्र कर ली है पर युवा पारम्परिक चिकित्सक के अनुभव जानने के बाद लगा कि जैसे मै कुछ भी नही जानता|
इस प्रयोग में पारम्परिक चिकित्सक ने केवल वट्टाकाका का सेवन किया पर आने वाले दिनों में वह इसका प्रयोग आस-पास जंगलों में उपलब्ध ढेरों जड़ी-बूटियों के साथ करने की मंशा रखता है| निश्चित ही वट्टाकाका पर महाग्रंथ की रचना होती दिखती है| मैंने अपने अनुभव के आधार पर उस पारम्परिक चिकित्सक को ऐसी जड़ी-बूटियाँ बताई जो वट्टाकाका के बुरे प्रभावों को काटती हैं| मुझे यह जानकारी झारखंड यात्रा के दौरान मिली थी| यह जानकारी मेरे दिमाग के किसी कोने में रह गयी थी पर मैंने कभी नही सोचा था कि इससे किसी का भला हो सकेगा|
जब मैं इस तरह के अनूठे प्रयोगों की बात करता हूँ तो मुझे अनायास ही सिवनी के एक लेक्चरर याद आ जाते हैं जिन्हें जड़ी-बूटियों के विषय में गहन रूचि थी| वे प्राचीन ग्रंथों में लिखे प्रयोगों को न केवल पढ़ते थे बल्कि जड़ी-बूटियों का जुगाड़ कर उन्हें अपने ऊपर आजमाते भी थे| उनके प्रयोग दिल दहलाने वाले होते थे| एक बार तो वे भिलावा का सेवन लम्बे समय तक करते रहे| मौत के करीब जा पहुंचे तब उन्होंने प्रयोगों को रोका| उनके अनुभव की कोई मिसाल नही मिलती है मुझे| भिलावा के विषय में मैंने उनसे ढेरों जानकारी हासिल की| मैंने उनके अनुभवों को प्रकाशित करने की सलाह दी पर वे तैयार नही हुए| एक समय उन्होंने आंवला का सेवन करना शुरू किया| बड़ी मात्रा में लम्बे समय तक और फिर उसके दिव्य प्रभावों को अनुभव किया| कुछ कडवे अनुभव भी उन्हें मिले|
जड़ी-बूटियों के ऐसे प्रयोग करने वालों को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पडती है| बहुत कम सौभाग्यशाली पारम्परिक चिकित्सक होते हैं जिन्हें लाभ करने वाली जड़ी-बूटी ही मिलती है और ऐसे प्रयोगों से वे रोगमुक्त लम्बा जीवन प्राप्त करते हैं| ज्यादातर पारम्परिक चिकित्सक तो विषाक्तता के कारण जटिल रोगों के शिकार हो जाते हैं| उनका अंतिम समय कष्टमय हो जाता है| सिवनी के जिन महान आत्मा की बात मै कर रहा हूँ वे कालान्तर में श्वेत कुष्ठ के शिकार हो गए| वे जानते थे कि उन्होंने बावची का मनमाना प्रयोग किया था | शायद श्वेत कुष्ठ उसी का परिणाम था| भिलावा वाले प्रयोग ने अपना रंग उन पर दिखाया और वे मुंह के कैंसर के शिकार हो गये| वे आख़िरी समय तक वापस लौटकर अपने प्रयोगों को दोहराने की बात करते रहे ताकि कैंसर से वे मुकाबला कर सके पर परिवार वालों ने उन्हें आधुनिक यातना गृह यानी कैंसर अस्पताल में रखना तय किया| वे नही बच सके|
अभी लेख में बावची का जिक्र आया| ल्यूकोडर्मा या श्वेत कुष्ठ हुआ नही कि बावची का नाम लिया जाता है| चाहे रोगी बच्चा हो या वृद्ध बस बावची के उपयोग की सलाह दी जाती है| भारत में ही नही अपितु आयुर्वेद का हवाला देकर अमेरिका जैसे देशों में भी| बावची उपयोगी है पर सबके लिए सभी दशाओं में नही| बच्चों के लिए तो बिलकुल भी नही| यह तो हमारे प्राचीन ग्रंथों में भी लिखा है साफ़-साफ़| पारम्परिक चिकित्सक वैज्ञानिक तर्कों के साथ इसे समझाते हैं पर फिर भी बावची का प्रयोग जारी है| बावची की बाजार मांग से आप इस बात का अंदाज लगा सकते हैं|
मुझे याद आते हैं कालेज के वे दिन जब हम अम्बिकापुर के समीप अजीरमा फ़ार्म में ट्रेनिंग ले रहे थे| जड़ी-बूटियों में मेरी रूचि देखकर एक पारम्परिक चिकित्सक ने पंच पत्री का पौधा दिखाया और कहा कि यह कामोत्तेजना बढाने के लिए वरदान है| बस फिर क्या था, जवानी के जोश में मैंने पारम्परिक चिकित्सक द्वारा बताई गयी विधि के अनुसार पन्च पत्री का सेवन करना शुरू कर दिया| पर यह क्या| सारी प्रतिक्रियाये उल्टी साबित हुयी| सारे यौन अंग शिथिल पड़ गए और मन निराशा या कहे आशंका से भर गया| काम विषय पर चर्चा भी व्यर्थ लगने लगी| ऐसा एक सप्ताह के अंदर हो गया|
दौड़ा-दौड़ा पारम्परिक चिकित्सक के पास गया तो पता चला कि महोदय तो एक सप्ताह के लिए किसी मरीज को देखने गये हैं| उस समय तो मोबाइल भी नही था| अब क्या करे| दूसरे पारम्परिक चिकित्सकों से चर्चा की तो उन्होंने टिप्पणी करने से इन्कार कर दिया| जैसे- तैसे दिन बीते और अल सुबह ही पारम्परिक चिकित्सक के आने की खबर सुनते ही मै साइकिल लेकर उनके गांव की ओर चल पड़ा|
मैंने एक सांस में सारी बाते कह दी पर उनके चहरे पर आश्चर्य का भाव ही नही आया| मुझे अब गुस्सा आने लगा| मुझे गर्म चाय देकर वे स्नान और पूजा करने चले गए| चाय का स्वाद अजीब था| मै पास के तालाब की ओर निहारने लगा| कुछ युवतियां पानी भरने जा रही थी| शायद नहाने भी| पर मै किसी सन्यासी की तरह बिना किसी शारीरिक प्रतिक्रिया के उन्हें देखता रहा| अपनी उस बुरी स्थिति से मै रो पड़ा|
"पहला सबक जीवन का- कोई अनजान (या जानकार भी) यदि कुछ खिलाये तो सावधानी बरतो| आँखे मूँद कर किसी पर विश्वास न करो| यदि नई वनस्पति है तो खाने से पहले उसकी काट के बारे में पता करो या फिर वह स्थान देख आओ जहां यह उग रही है| वहां इसकी काट मिल जाएगी| " पारम्परिक चिकित्सक ने कड़े शब्दों में कहा|
"मैंने जानबूझकर सबक सिखाने के लिए यह सब किया| तुमने जो माँगा मैंने उसका विपरीत दिया| यह जड़ी-बूटी सन्यासियों की जड़ी-बूटी है| पर चिंता की बात नही| चलो उस स्थान पर चलते हैं जहां से मैंने इसे एकत्र किया| " ऐसा कहकर वे पास के जंगलो की ओर चल पड़े| फिर पंच पत्री के पौधों के पास रूककर बोले " वो तीन पत्तियों वाली जड़ी एकत्र करो| यही तुम्हे वापस लेकर जाएगी|"
उस जड़ी के कुछ समय के सेवन के बाद मैंने अपनी प्राकृतिक यौन क्षमता को फिर से पा लिया| उस समय कम उम्र होने के कारण मेरी प्रतिक्रिया मिली-जुली रही| ऐसे किसी और प्रयोग के डर से मैंने उनसे दूरी बढा ली| उन्होंने भी जोर नही लगाया पर आज जब दो दशकों के बाद मै उन्हें याद करता हूँ तो मेरा सर आदर से झुक जाता है| उन्होंने जो सीख दी उसने मेरी जान कई बार बचाई| मुझे नई वनस्पति पर प्रयोग का गुर भी उन्होंने सीखाया| उनका दिया ज्ञान मेरे माध्यम से जड़ी-बूटियों का स्वयम पर प्रयोग करने वाले लोगो की भी जान बचा रहा है| पंच पत्री का जो प्रयोग मैंने किया अपने ऊपर जीवन में मैंने उसे कई बार दोहराया और फिर दूसरी वनस्पतियों के माध्यम से अपनी मूल स्थिति में लौटा| इससे पंच पत्री के नए गुणों और अवगुणों का पता चला| आधुनिक विज्ञान इससे अभी भी अपरिचित है और शायद हमेशा रहेगा क्योंकि उनके सारे प्रयोग बेजुबान पशुओं पर होते हैं| और स्वयम पर प्रयोग के लिए कोई तैयार नही होता है| (क्रमश:)
(लेखक जैव-विविधता विशेषज्ञ हैं और वनस्पतियों से सम्बन्धित पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान का दस्तावेजीकरण कर रहे हैं|)
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Bridelia retusa as Allelopathic ingredient to enrich herbs
of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Mouth (Tough saliva),
Bridelia stipularis as Allelopathic ingredient to enrich
herbs of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Mouth (Frothy saliva),
Brugmansia suaveolens as Allelopathic ingredient to enrich
herbs of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Mouth (Bloody saliva),
Bruguiera cylindrica as Allelopathic ingredient to enrich
herbs of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Mouth (Saliva runs out while asleep),
Bruguiera gymnorrhiza as Allelopathic ingredient to enrich
herbs of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Mouth (Inflamed),
Buchanania axillaris as Allelopathic ingredient to enrich
herbs of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Mouth (Dry),
Buchanania lanzan as Allelopathic ingredient to enrich herbs
of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Mouth (Inflamed gum),
Buddleja asiatica as Allelopathic ingredient to enrich herbs
of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Mouth (Swollen gum),
Buddleja davidii as Allelopathic ingredient to enrich herbs
of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous Traditional
Medicines) used for Mouth (Gums stand off the teeth),
Bulbophyllum neilgherrense as Allelopathic ingredient to
enrich herbs of Pankaj Oudhia’s Complex Herbal Formulations (Indigenous
Traditional Medicines) used for Tongue (Dry),
Selaginella
bryopteris (L.) BAK. and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or Chakvad)
with other Herbal/Insect Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of
Chhattisgarh, Jharkhand and Orissa) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants
Database (Traditional Knowledge Database) on use of Indigenous Herbal Medicines
(Entomophagy and Entomotherapy based Herbal Formulations) for Extremities-
tied, sensation as if, upper limbs.
Selaginella
involvens SPRENG. and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or Chakvad) with
other Herbal/Insect Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of
Chhattisgarh, Jharkhand and Orissa) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants
Database (Traditional Knowledge Database) on use of Indigenous Herbal Medicines
(Entomophagy and Entomotherapy based Herbal Formulations) for Sleep-dreams,
anxious.
Selaginella
repanda (DESV. EX POIR.) SPRENG and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or
Chakvad) with other Herbal/Insect Ingredients: Research Documents (Medicinal
Plants of Chhattisgarh, Jharkhand and Orissa) from Pankaj Oudhia’s Medicinal
Plants Database (Traditional Knowledge Database) on use of Indigenous Herbal
Medicines (Entomophagy and Entomotherapy based Herbal Formulations) for
Extremities- weakness.
Semecarpus
anacardium L. F. and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or Chakvad) with
other Herbal/Insect Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of
Chhattisgarh, Jharkhand and Orissa) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants
Database (Traditional Knowledge Database) on use of Indigenous Herbal Medicines
(Entomophagy and Entomotherapy based Herbal Formulations) for Extremities-
weakness, upper limbs.
Senecio
nudicaulis HAM. EX D. DON and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or
Chakvad) with other Herbal/Insect Ingredients: Research Documents (Medicinal
Plants of Chhattisgarh, Jharkhand and Orissa) from Pankaj Oudhia’s Medicinal
Plants Database (Traditional Knowledge Database) on use of Indigenous Herbal Medicines
(Entomophagy and Entomotherapy based Herbal Formulations) for Extremities-
weakness, knee.
Sesamum
indicum L. and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or Chakvad) with other
Herbal/Insect Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh,
Jharkhand and Orissa) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database
(Traditional Knowledge Database) on use of Indigenous Herbal Medicines
(Entomophagy and Entomotherapy based Herbal Formulations) for Extremities-
weakness, ankle.
Sesbania
bispinosa (JACQ.) W.F. WIGHT and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or
Chakvad) with other Herbal/Insect Ingredients: Research Documents (Medicinal
Plants of Chhattisgarh, Jharkhand and Orissa) from Pankaj Oudhia’s Medicinal
Plants Database (Traditional Knowledge Database) on use of Indigenous Herbal
Medicines (Entomophagy and Entomotherapy based Herbal Formulations) for
Extremities- pain, thigh.
Sesbania
grandiflora (L.) POIRET and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or
Chakvad) with other Herbal/Insect Ingredients: Research Documents (Medicinal
Plants of Chhattisgarh, Jharkhand and Orissa) from Pankaj Oudhia’s Medicinal
Plants Database (Traditional Knowledge Database) on use of Indigenous Herbal
Medicines (Entomophagy and Entomotherapy based Herbal Formulations) for
Extremities- weakness, leg, evening.
Sesbania
sesban (L.) MERR. and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or Chakvad) with
other Herbal/Insect Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of
Chhattisgarh, Jharkhand and Orissa) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants
Database (Traditional Knowledge Database) on use of Indigenous Herbal Medicines
(Entomophagy and Entomotherapy based Herbal Formulations) for Extremities-
pain, hip, rheumatic.
Seseli
diffusum (ROXB. EX. SM.) SAMT and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or
Chakvad) with other Herbal/Insect Ingredients: Research Documents (Medicinal
Plants of Chhattisgarh, Jharkhand and Orissa) from Pankaj Oudhia’s Medicinal
Plants Database (Traditional Knowledge Database) on use of Indigenous Herbal
Medicines (Entomophagy and Entomotherapy based Herbal Formulations) for
Extremities- pain, knee.
Setaria
italica (L.) BEAUV and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or Chakvad)
with other Herbal/Insect Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of
Chhattisgarh, Jharkhand and Orissa) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants
Database (Traditional Knowledge Database) on use of Indigenous Herbal Medicines
(Entomophagy and Entomotherapy based Herbal Formulations) for Extremities-
pain, knee, morning.
Setaria
plicata (LAM.) COOKE and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or Chakvad)
with other Herbal/Insect Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of
Chhattisgarh, Jharkhand and Orissa) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database
(Traditional Knowledge Database) on use of Indigenous Herbal Medicines
(Entomophagy and Entomotherapy based Herbal Formulations) for Sleep-dreams,
dogs.
Setaria
verticillata (L.) P. BEAUV. and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or
Chakvad) with other Herbal/Insect Ingredients: Research Documents (Medicinal
Plants of Chhattisgarh, Jharkhand and Orissa) from Pankaj Oudhia’s Medicinal
Plants Database (Traditional Knowledge Database) on use of Indigenous Herbal
Medicines (Entomophagy and Entomotherapy based Herbal Formulations) for
Sleep-dreams, dogs, mad dog.
Shorea
robusta GAERTN. F. and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or Chakvad)
with other Herbal/Insect Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of
Chhattisgarh, Jharkhand and Orissa) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants
Database (Traditional Knowledge Database) on use of Indigenous Herbal Medicines
(Entomophagy and Entomotherapy based Herbal Formulations) for Extremities-
pain, hip, afternoon.
Sida
acuta BURM. F. and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or Chakvad) with
other Herbal/Insect Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of
Chhattisgarh, Jharkhand and Orissa) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants
Database (Traditional Knowledge Database) on use of Indigenous Herbal Medicines
(Entomophagy and Entomotherapy based Herbal Formulations) for Extremities-
paralysis, upper limbs, sensation of.
Sida
alba L. and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or Chakvad) with other
Herbal/Insect Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of
Chhattisgarh, Jharkhand and Orissa) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants
Database (Traditional Knowledge Database) on use of Indigenous Herbal Medicines
(Entomophagy and Entomotherapy based Herbal Formulations) for Extremities- paralysis,
lower limbs.
Sida
cordata (BURM.F.) BOISS. and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or
Chakvad) with other Herbal/Insect Ingredients: Research Documents (Medicinal
Plants of Chhattisgarh, Jharkhand and Orissa) from Pankaj Oudhia’s Medicinal
Plants Database (Traditional Knowledge Database) on use of Indigenous Herbal
Medicines (Entomophagy and Entomotherapy based Herbal Formulations) for
Extremities- pain, knee, afternoon.
Sida
cordifolia L. and Cassia tora L. (Syn. Senna tora; Charota or Chakvad) with
other Herbal/Insect Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of
Chhattisgarh, Jharkhand and Orissa) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants
Database (Traditional Knowledge Database) on use of Indigenous Herbal Medicines
(Entomophagy and Entomotherapy based Herbal Formulations) for Extremities-
paralysis, lower limbs, right.
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