तैयारी शरद पूर्णिमा की श्वांस रोगियों के लिए उपयोगी जड़ी-बूटियों के साथ
पंकज अवधिया की जंगल डायरी ( अक्टूबर, २०११ से आगे) भाग-१
तैयारी शरद पूर्णिमा की श्वांस रोगियों के लिए उपयोगी जड़ी-बूटियों के साथ
- पंकज अवधिया
शरद पूर्णिमा आने वाली है| सालों से उन पारम्परिक चिकित्सकों के अथक परिश्रम और निस्वार्थ सेवाओं को देख रहा हूँ जो हर साल बेसब्री से इस दिन की प्रतीक्षा करते हैं और फिर शरद पूर्णिमा की रात जब हजारों की संख्या में श्वांस रोग से प्रभावित आम लोग एकत्र हो जाते हैं तो रात भर जागकर बिना थके उन्हें अपने हाथों से बनाई विशेष खीर खिलाते रहते हैं| इसके लिए कोई पैसे नही लिए जाते हैं| दूध से लेकर शक्कर और सबसे महत्वपूर्ण जड़ी-बूटियों सभी का खर्च स्वयम वहन करते हैं|
"ये तो जस का काम है|" वे कहते हैं|
उन्हें असंख्य लोगो की दुआएं मिलती है| इससे बढ़कर और क्या हो सकता है भला|
क्या एक बार एक चम्मच या उससे कुछ अधिक मात्रा में खीर का सेवन मौसम भर श्वांस रोगों से मुक्त रख सकता है? यह अहम् प्रश्न है विशेषकर आधुनिक युग के सन्दर्भ में क्योंकि आज का मानव दूषित वातावरण में रहने को मजबूर है| खाने और पीने का कोई भरोसा नही है| फिर वह आधुनिक दवाओं का आदि हो गया है | ऐसे में जड़ी-बूटियाँ भला कब तक उन्हें श्वांस रोगों से बचा कर रखेंगी? फिर समय के साथ श्वांस रोग भी जटिल हो गए हैं| जड़ी-बूटियाँ वही पुरानी की पुरानी है| ज्यादातर पारम्परिक चिकित्सकों ने अपने पारम्परिक मिश्रणों को मजबूती नही प्रदान की है नई जड़ी-बूटियाँ मिलाकर| इसलिए कभी-कभी तो लगता है कि जैसे शरद पूर्णिमा के दिन का आयोजन मात्र एक औपचारिकता ही रह गयी है| पर ऐसा सभी मामलो में नही है|
वर्ष १९८८ में जब पहली बार ऐसे आयोजनों के बारे में सुना तो इनमे रूचि जागी| उसके बाद जो पारम्परिक चिकित्सकों से मिलने का सिलसिला आरम्भ हुआ वह अभी तक जारी है| हजारों पारम्परिक चिकित्सकों से मुलाक़ात हुयी| कुछ वर्षों तक शरद पूर्णिमा के दिन खीर बांटने का पवित्र काम किया| रात भर चलने वाले भजन में भाग लिया| भंवरे की तरह पारम्परिक चिकित्सक रूपी फूलों से रस एकत्र करता हुआ अनायस ही विशेष खीर का जानकार बन बैठा| इतने सालों बाद इस बार मन हुआ कि क्यों न इस बार मेरे अपने गाँव में इस अनूठी सेवा को आरम्भ किया जाये| मुनादी करवा दी गयी| दूध और चावल का प्रबंध किया जा रहा है| कौन सा औषधीय मिश्रण खीर में मिलाया जाए, इस पर माथापच्ची होती रही| ज्यादा ज्ञान अनिर्णय की स्थिति में ला देता है| पारम्परिक चिकित्सकों की शरण ली तो उन्होंने दो टूक कहा कि उन वनस्पतियों का प्रयोग करो जो गांव में उगती है पर कभी भी आम लोगों को इनके बारे में न बताओ| उन्हें कहो कि बड़ी मुश्किल से दूर घने जंगल से बूटियाँ लाई गयी है| इसका असर कुछ और ही होगा|
मुझे आज बस्तर के पारम्परिक चिकित्सकों की याद आ रही है जो कहते रहे हैं कि शरद पूर्णिमा उपयोगी जड़ी-बूटियों की शुरुआत का दिन है| जड़ी-बूटियाँ हर सप्ताह ली जानी चाहिए शीत ऋतु की समाप्ति तक| उनका कहना है कि यदि शीत ऋतु में जंगल और खेतों का नियमित भ्रमण करे तो हर सप्ताह नई वनस्पति दिखाई देगी और ये नई वनस्पतियाँ ही माद्दा रखती हैं उस समय काल में होने वाले रोगों की चिकित्सा में| यह माँ प्रकृति का उपहार है| सारा कुछ आस-पास बिखरा हुआ है| आवश्यकता है तो बस माँ की बात समझने की|
पारम्परिक चिकित्सकों से लम्बी चर्चा और शोध यात्रा के दौरान कुछ ऐसे भी पारम्परिक चिकित्सक मिले जो हजारों की संख्या में श्वांस रोगियों को एक ही प्रकार की जड़ी बूटी देने से नाखुश दिखाई दिए| उनका कहना था कि प्रत्येक रोगी के लिए उसकी जीवनी शक्ति और रोग की स्थिति के आधार पर औषधी का निर्धारण करना चाहिए| ये वही पारम्परिक चिकित्सक हैं जिन्होंने स्वाइन फ़्लू के समय सभी लोगों को गिलोय उपयोग करने के अनुमोदन को सही नही ठहराया था| वे अपनी बात को स्पष्ट करने के लिए अदरक का उदाहरण देते हैं| जरा सी भी सर्दी हुयी नही कि आम लोग घरेलू नुस्खे के रूप में अदरक की चाय का उपयोग करने लगते हैं| लम्बे समय तक अदरक की चाय पीने वाले लोगों की संख्या भी कम नही है| बहुत कम लोग जानते हैं कि अदरक त्वचा रोगियों के लिए हानिकारक है| श्वेत कुष्ठ के रोगियों को तो अदरक से दूरी बनाये रखने को कहा जाता है| बहुत से पारम्परिक चिकित्सक हृदय रोगियों को अदरक का प्रयोग सम्भल कर करने की सलाह देते हैं| इसलिए बड़ी संख्या में लोगों को साधारण अनुमोदन के स्थान पर प्रत्येक व्यक्ति के लिए औषधी विशेष का प्रयोग जरुरी है| ऐसा विचार रखने वाले पारम्परिक चिकित्सक संख्या में कम है पर पारम्परिक चिकित्सा में उनकी बात भी सुनी और मानी जाती है|
मेरे गाँव के आस-पास जंगल नही है, भले ही यहां से कुछ दूरी पर बड़ी संख्या में जंगली सूअर और सियार जैसे जंगली जीव मिल जाते हैं| ये दूर जंगल से भागकर आये हैं और फिर पास के सदा भरे रहने वाले बाँध के आस-पास डेरा जमाए हुए हैं| बेशरम की सघन झुरमुट को ही जंगल मान बैठे हैं| उनके पास और कोई रास्ता भी नही है| जंगली जानवरों के "मॉस मर्डर" की खबरे तो आपने पढ़ी ही होंगी| हाल ही में राजधानी के पास के इलाके में दसों बन्दर मरे पाए गए| उन्हें जहर दिया गया था| कुछ दिनों तक ये दिल दहला देने वाली खबरे सुर्ख़ियों में रही| उसके बाद उन अभागे बंदरों की ही तरह खामोश हो गयी (या कर दी गयी)| पेंड्रा में आम लोगों ने एक भालू को पीट-पीट कर मार डाला| यह खबर भी हाशिये में चली गयी| फिर पिछले सप्ताह एक शेरनी के साथ भी ऐसा ही हुआ है| लगता है कि मॉस मर्डर की एक गलत परम्परा ने राज्य में जन्म ले लिया है और फल-फूल रही है| चलिए, विषय पर वापस लौटते हैं| तो गाँव के आस-पास जंगल न होने के कारण खेत में उग रही जड़ी-बूटियों का सहारा लेना होगा|
अभी धान की फसल लगी हुयी है| धान की खेती में भरपूर कृषि रसायनों का प्रयोग होता है| इतना अधिक की जिन खेतों से पहले पकते धान की मादक सुगंध आती थी अब वहां से असहनीय बदबू आती है| ये रसायन निश्चित ही कीटों को मारते होंगे पर मुझे लगता है कि इतनी बदबू से कीट पहले ही किनारा कर लेते होंगे| इन खेतों से उपयोगी वनस्पतियों का एकत्रण यानि नये रोगों को आमन्त्रण है| मुझे अपने ही खेत दिखाई पड़ रहे हैं जहां इस बार औषधीय धान की किस्मे लगाई गयी है| जैविक खेती हो रही है| वैसे इस बार अधिक वर्षा होने के बावजूद अधिक जैविक आदानो की आवश्यकता नही पड़ी| लगता है कि पारम्परिक औषधीय ज्ञान अभी भी नये मजबूत कीटों और रोगों से लड़ने का माद्दा रखते हैं|
यदि ताजी जड़ी-बूटियाँ प्रयोग करनी है तो जिस दिन इनका प्रयोग किया जाना है उसी दिन एकत्र की जानी चाहिए| यदि सूखी जड़ी-बूटियाँ प्रयोग करनी है तो सीधे सूरज की रोशनी में सुखाने से बचना चाहिए और छायेदार स्थानों में सुखाना बहुत श्रम साध्य और समय लेने वाला काम है| ऐसे में जड़ी-बूटियों को काफी समय पहले से एकत्र करना जरुरी है| बहुत सी जड़ी-बूटियों और विशेष औषधीय मिश्रणों को सुखाने की विशेष विधियाँ है| मधुमेह के बहुत से नुस्खों में प्रयोग होने वाली जड़ी-बूटियों को पीपल, गस्ती, कलमी, कांके जैसे औषधीय वृक्षों की छाँव में सुखाने का नियम है| छाँव का कार्य विशेष है| यह जड़ी-बूटियों के गुणों को नष्ट नही होने देती और उन्हें औषधीय गुणों से परिपूर्ण भी करती है|
जब मैं इन विधियों के बारे में लिखता हूँ तो बड़ी दवा कम्पनियों में काम कर रहे मेरे मित्र और प्रशंसक प्रश्न खड़ा करते हैं कि मै ये सब किसके लिए लिखता हूँ? क्योंकि दवा कम्पनियां तो ये सब करने से रही| आम आदमी भी इन सब ताम-झामो से दूर रहना उचित समझता है| फिर किसके लिए इन विधियों की व्याख्या? क्या महज दस्तावेजीकरण के लिए? मैं उन्हें उत्तर देता हूँ कि यह सब लिखा जा रहा है नई पीढी के शोधकर्ताओं के लिए| भले ही जड़ी-बूटियों के पारम्परिक ज्ञान में रूचि लेने वाले लोग घट रहे हैं पर ऐसे प्रयास जरूरी है कि पारम्परिक ज्ञान को उसके मूल रूप में दस्तावेजों के रूप में सुरक्षित रखा जाए| दस्तावेज ही क्यों फिल्मों के माध्यम से भी, जैसा कि आजकल मैं यूट्यूब के माध्यम से करने की कोशिश कर रहा हूँ| सो, भले ही परिस्थिति आशाजनक न हो पर फिर भी बहुत से युवा शोधकर्ता इन दस्तावेजों से प्रभावित दिखते हैं| वे पारम्परिक प्रयोगों को आधुनिक विज्ञान की कसौटी पर कसना चाहते हैं| वे दुनिया को दिखाना चाहते हैं कि उनका अपना देश भारत पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान के क्षेत्र में सदा से ही अग्रणी रहा और रहेगा| कुछ वर्षों पहले अंकोल पर लिखे मेरे लेख से प्रभावित होकर कुछ युवा शोधकर्ताओं ने इसके फलों के एकत्रण की पारम्परिक विधियों पर शोध किया| फलों को जमीन पर गिरने से पहले एकत्र करना था| इसके लिए नाना प्रकार की लकड़ियों के पात्र तैयार किये गये और फिर बांस की सहायता से बिना फलों को हाथ लगाये सीधे ही पात्रों में एकत्र कर लिया गया| उन्होंने अपने प्रयोगों से दिखाया कि इस तरह से फलों के एकत्रण से उनके औषधीय गुण नष्ट नही हो पाते हैं और उनसे तैयार औषधीय मिश्रण विशेष रूप से लाभकारी होते हैं| (क्रमश:)
(लेखक जैव-विविधता विशेषज्ञ हैं और वनस्पतियों से सम्बन्धित पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान का दस्तावेजीकरण कर रहे हैं|)
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तैयारी शरद पूर्णिमा की श्वांस रोगियों के लिए उपयोगी जड़ी-बूटियों के साथ
- पंकज अवधिया
शरद पूर्णिमा आने वाली है| सालों से उन पारम्परिक चिकित्सकों के अथक परिश्रम और निस्वार्थ सेवाओं को देख रहा हूँ जो हर साल बेसब्री से इस दिन की प्रतीक्षा करते हैं और फिर शरद पूर्णिमा की रात जब हजारों की संख्या में श्वांस रोग से प्रभावित आम लोग एकत्र हो जाते हैं तो रात भर जागकर बिना थके उन्हें अपने हाथों से बनाई विशेष खीर खिलाते रहते हैं| इसके लिए कोई पैसे नही लिए जाते हैं| दूध से लेकर शक्कर और सबसे महत्वपूर्ण जड़ी-बूटियों सभी का खर्च स्वयम वहन करते हैं|
"ये तो जस का काम है|" वे कहते हैं|
उन्हें असंख्य लोगो की दुआएं मिलती है| इससे बढ़कर और क्या हो सकता है भला|
क्या एक बार एक चम्मच या उससे कुछ अधिक मात्रा में खीर का सेवन मौसम भर श्वांस रोगों से मुक्त रख सकता है? यह अहम् प्रश्न है विशेषकर आधुनिक युग के सन्दर्भ में क्योंकि आज का मानव दूषित वातावरण में रहने को मजबूर है| खाने और पीने का कोई भरोसा नही है| फिर वह आधुनिक दवाओं का आदि हो गया है | ऐसे में जड़ी-बूटियाँ भला कब तक उन्हें श्वांस रोगों से बचा कर रखेंगी? फिर समय के साथ श्वांस रोग भी जटिल हो गए हैं| जड़ी-बूटियाँ वही पुरानी की पुरानी है| ज्यादातर पारम्परिक चिकित्सकों ने अपने पारम्परिक मिश्रणों को मजबूती नही प्रदान की है नई जड़ी-बूटियाँ मिलाकर| इसलिए कभी-कभी तो लगता है कि जैसे शरद पूर्णिमा के दिन का आयोजन मात्र एक औपचारिकता ही रह गयी है| पर ऐसा सभी मामलो में नही है|
वर्ष १९८८ में जब पहली बार ऐसे आयोजनों के बारे में सुना तो इनमे रूचि जागी| उसके बाद जो पारम्परिक चिकित्सकों से मिलने का सिलसिला आरम्भ हुआ वह अभी तक जारी है| हजारों पारम्परिक चिकित्सकों से मुलाक़ात हुयी| कुछ वर्षों तक शरद पूर्णिमा के दिन खीर बांटने का पवित्र काम किया| रात भर चलने वाले भजन में भाग लिया| भंवरे की तरह पारम्परिक चिकित्सक रूपी फूलों से रस एकत्र करता हुआ अनायस ही विशेष खीर का जानकार बन बैठा| इतने सालों बाद इस बार मन हुआ कि क्यों न इस बार मेरे अपने गाँव में इस अनूठी सेवा को आरम्भ किया जाये| मुनादी करवा दी गयी| दूध और चावल का प्रबंध किया जा रहा है| कौन सा औषधीय मिश्रण खीर में मिलाया जाए, इस पर माथापच्ची होती रही| ज्यादा ज्ञान अनिर्णय की स्थिति में ला देता है| पारम्परिक चिकित्सकों की शरण ली तो उन्होंने दो टूक कहा कि उन वनस्पतियों का प्रयोग करो जो गांव में उगती है पर कभी भी आम लोगों को इनके बारे में न बताओ| उन्हें कहो कि बड़ी मुश्किल से दूर घने जंगल से बूटियाँ लाई गयी है| इसका असर कुछ और ही होगा|
मुझे आज बस्तर के पारम्परिक चिकित्सकों की याद आ रही है जो कहते रहे हैं कि शरद पूर्णिमा उपयोगी जड़ी-बूटियों की शुरुआत का दिन है| जड़ी-बूटियाँ हर सप्ताह ली जानी चाहिए शीत ऋतु की समाप्ति तक| उनका कहना है कि यदि शीत ऋतु में जंगल और खेतों का नियमित भ्रमण करे तो हर सप्ताह नई वनस्पति दिखाई देगी और ये नई वनस्पतियाँ ही माद्दा रखती हैं उस समय काल में होने वाले रोगों की चिकित्सा में| यह माँ प्रकृति का उपहार है| सारा कुछ आस-पास बिखरा हुआ है| आवश्यकता है तो बस माँ की बात समझने की|
पारम्परिक चिकित्सकों से लम्बी चर्चा और शोध यात्रा के दौरान कुछ ऐसे भी पारम्परिक चिकित्सक मिले जो हजारों की संख्या में श्वांस रोगियों को एक ही प्रकार की जड़ी बूटी देने से नाखुश दिखाई दिए| उनका कहना था कि प्रत्येक रोगी के लिए उसकी जीवनी शक्ति और रोग की स्थिति के आधार पर औषधी का निर्धारण करना चाहिए| ये वही पारम्परिक चिकित्सक हैं जिन्होंने स्वाइन फ़्लू के समय सभी लोगों को गिलोय उपयोग करने के अनुमोदन को सही नही ठहराया था| वे अपनी बात को स्पष्ट करने के लिए अदरक का उदाहरण देते हैं| जरा सी भी सर्दी हुयी नही कि आम लोग घरेलू नुस्खे के रूप में अदरक की चाय का उपयोग करने लगते हैं| लम्बे समय तक अदरक की चाय पीने वाले लोगों की संख्या भी कम नही है| बहुत कम लोग जानते हैं कि अदरक त्वचा रोगियों के लिए हानिकारक है| श्वेत कुष्ठ के रोगियों को तो अदरक से दूरी बनाये रखने को कहा जाता है| बहुत से पारम्परिक चिकित्सक हृदय रोगियों को अदरक का प्रयोग सम्भल कर करने की सलाह देते हैं| इसलिए बड़ी संख्या में लोगों को साधारण अनुमोदन के स्थान पर प्रत्येक व्यक्ति के लिए औषधी विशेष का प्रयोग जरुरी है| ऐसा विचार रखने वाले पारम्परिक चिकित्सक संख्या में कम है पर पारम्परिक चिकित्सा में उनकी बात भी सुनी और मानी जाती है|
मेरे गाँव के आस-पास जंगल नही है, भले ही यहां से कुछ दूरी पर बड़ी संख्या में जंगली सूअर और सियार जैसे जंगली जीव मिल जाते हैं| ये दूर जंगल से भागकर आये हैं और फिर पास के सदा भरे रहने वाले बाँध के आस-पास डेरा जमाए हुए हैं| बेशरम की सघन झुरमुट को ही जंगल मान बैठे हैं| उनके पास और कोई रास्ता भी नही है| जंगली जानवरों के "मॉस मर्डर" की खबरे तो आपने पढ़ी ही होंगी| हाल ही में राजधानी के पास के इलाके में दसों बन्दर मरे पाए गए| उन्हें जहर दिया गया था| कुछ दिनों तक ये दिल दहला देने वाली खबरे सुर्ख़ियों में रही| उसके बाद उन अभागे बंदरों की ही तरह खामोश हो गयी (या कर दी गयी)| पेंड्रा में आम लोगों ने एक भालू को पीट-पीट कर मार डाला| यह खबर भी हाशिये में चली गयी| फिर पिछले सप्ताह एक शेरनी के साथ भी ऐसा ही हुआ है| लगता है कि मॉस मर्डर की एक गलत परम्परा ने राज्य में जन्म ले लिया है और फल-फूल रही है| चलिए, विषय पर वापस लौटते हैं| तो गाँव के आस-पास जंगल न होने के कारण खेत में उग रही जड़ी-बूटियों का सहारा लेना होगा|
अभी धान की फसल लगी हुयी है| धान की खेती में भरपूर कृषि रसायनों का प्रयोग होता है| इतना अधिक की जिन खेतों से पहले पकते धान की मादक सुगंध आती थी अब वहां से असहनीय बदबू आती है| ये रसायन निश्चित ही कीटों को मारते होंगे पर मुझे लगता है कि इतनी बदबू से कीट पहले ही किनारा कर लेते होंगे| इन खेतों से उपयोगी वनस्पतियों का एकत्रण यानि नये रोगों को आमन्त्रण है| मुझे अपने ही खेत दिखाई पड़ रहे हैं जहां इस बार औषधीय धान की किस्मे लगाई गयी है| जैविक खेती हो रही है| वैसे इस बार अधिक वर्षा होने के बावजूद अधिक जैविक आदानो की आवश्यकता नही पड़ी| लगता है कि पारम्परिक औषधीय ज्ञान अभी भी नये मजबूत कीटों और रोगों से लड़ने का माद्दा रखते हैं|
यदि ताजी जड़ी-बूटियाँ प्रयोग करनी है तो जिस दिन इनका प्रयोग किया जाना है उसी दिन एकत्र की जानी चाहिए| यदि सूखी जड़ी-बूटियाँ प्रयोग करनी है तो सीधे सूरज की रोशनी में सुखाने से बचना चाहिए और छायेदार स्थानों में सुखाना बहुत श्रम साध्य और समय लेने वाला काम है| ऐसे में जड़ी-बूटियों को काफी समय पहले से एकत्र करना जरुरी है| बहुत सी जड़ी-बूटियों और विशेष औषधीय मिश्रणों को सुखाने की विशेष विधियाँ है| मधुमेह के बहुत से नुस्खों में प्रयोग होने वाली जड़ी-बूटियों को पीपल, गस्ती, कलमी, कांके जैसे औषधीय वृक्षों की छाँव में सुखाने का नियम है| छाँव का कार्य विशेष है| यह जड़ी-बूटियों के गुणों को नष्ट नही होने देती और उन्हें औषधीय गुणों से परिपूर्ण भी करती है|
जब मैं इन विधियों के बारे में लिखता हूँ तो बड़ी दवा कम्पनियों में काम कर रहे मेरे मित्र और प्रशंसक प्रश्न खड़ा करते हैं कि मै ये सब किसके लिए लिखता हूँ? क्योंकि दवा कम्पनियां तो ये सब करने से रही| आम आदमी भी इन सब ताम-झामो से दूर रहना उचित समझता है| फिर किसके लिए इन विधियों की व्याख्या? क्या महज दस्तावेजीकरण के लिए? मैं उन्हें उत्तर देता हूँ कि यह सब लिखा जा रहा है नई पीढी के शोधकर्ताओं के लिए| भले ही जड़ी-बूटियों के पारम्परिक ज्ञान में रूचि लेने वाले लोग घट रहे हैं पर ऐसे प्रयास जरूरी है कि पारम्परिक ज्ञान को उसके मूल रूप में दस्तावेजों के रूप में सुरक्षित रखा जाए| दस्तावेज ही क्यों फिल्मों के माध्यम से भी, जैसा कि आजकल मैं यूट्यूब के माध्यम से करने की कोशिश कर रहा हूँ| सो, भले ही परिस्थिति आशाजनक न हो पर फिर भी बहुत से युवा शोधकर्ता इन दस्तावेजों से प्रभावित दिखते हैं| वे पारम्परिक प्रयोगों को आधुनिक विज्ञान की कसौटी पर कसना चाहते हैं| वे दुनिया को दिखाना चाहते हैं कि उनका अपना देश भारत पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान के क्षेत्र में सदा से ही अग्रणी रहा और रहेगा| कुछ वर्षों पहले अंकोल पर लिखे मेरे लेख से प्रभावित होकर कुछ युवा शोधकर्ताओं ने इसके फलों के एकत्रण की पारम्परिक विधियों पर शोध किया| फलों को जमीन पर गिरने से पहले एकत्र करना था| इसके लिए नाना प्रकार की लकड़ियों के पात्र तैयार किये गये और फिर बांस की सहायता से बिना फलों को हाथ लगाये सीधे ही पात्रों में एकत्र कर लिया गया| उन्होंने अपने प्रयोगों से दिखाया कि इस तरह से फलों के एकत्रण से उनके औषधीय गुण नष्ट नही हो पाते हैं और उनसे तैयार औषधीय मिश्रण विशेष रूप से लाभकारी होते हैं| (क्रमश:)
(लेखक जैव-विविधता विशेषज्ञ हैं और वनस्पतियों से सम्बन्धित पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान का दस्तावेजीकरण कर रहे हैं|)
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Pankaj Oudhia’s Research Documents on Improvement of Arjun
based Formulations of Peninsular India at http://www.pankajoudhia.com
Chrozophora rottleri (GEIS.) A.JUSS. EX SPRENG.
(EUPHORBIACEAE) in Pankaj Oudhia’s report on Improvement of Arjun based
Traditional Herbal Formulations of Peninsular India: बच्चों की खाँसी (Indigenous Traditional Medicines for
Respiratory Diseases),
Chrysanthemum indicum L. (ASTERACEAE) in Pankaj Oudhia’s
report on Improvement of Arjun based Traditional Herbal Formulations of
Peninsular India: काली खाँसी (Indigenous
Traditional Medicines for Respiratory Diseases),
Chrysopogon aciculatus TRIN. (POACEAE) in Pankaj Oudhia’s
report on Improvement of Arjun based Traditional Herbal Formulations of
Peninsular India: श्लेष्मा की
घडघडाहट के साथ खाँसी (Indigenous Traditional
Medicines for Respiratory Diseases),
Chrysopogon fulvus (SPRENG.) CHIOV. (POACEAE) in Pankaj
Oudhia’s report on Improvement of Arjun based Traditional Herbal Formulations
of Peninsular India: गले में बलगम और
मस्तक में पसीना (Indigenous Traditional Medicines
for Respiratory Diseases),
Chukrasia tabularis A.JUSS. (MELIACEAE) in Pankaj Oudhia’s
report on Improvement of Arjun based Traditional Herbal Formulations of
Peninsular India: खट्टे पदार्थ का
वमन (Indigenous
Traditional Medicines for Respiratory Diseases),
Cicer arietinum L. (FABACEAE) in Pankaj Oudhia’s report on
Improvement of Arjun based Traditional Herbal Formulations of Peninsular India:
गले में खुजली के
कारण सूखी खरोचने वाली खाँसी (Indigenous Traditional
Medicines for Respiratory Diseases),
Cinnamomum macrocarpum HOOK. (LAURACEAE) in Pankaj Oudhia’s
report on Improvement of Arjun based Traditional Herbal Formulations of
Peninsular India: जाड़े में ठंडक
लगकर होने वाली खाँसी (Indigenous Traditional
Medicines for Respiratory Diseases),
Cinnamomum malabathrum BATKA (LAURACEAE) in Pankaj Oudhia’s
report on Improvement of Arjun based Traditional Herbal Formulations of
Peninsular India: अचेतनता लाने वाली
खाँसी (Indigenous
Traditional Medicines for Respiratory Diseases),
Cinnamomum sulphuratum NEES. (LAURACEAE) in Pankaj Oudhia’s
report on Improvement of Arjun based Traditional Herbal Formulations of
Peninsular India: शाम को होने वाली
सूखी खाँसी (Indigenous Traditional Medicines for
Respiratory Diseases),
Cinnamomum travancoricum GAMB. (LAURACEAE) in Pankaj
Oudhia’s report on Improvement of Arjun based Traditional Herbal Formulations
of Peninsular India: सुबह अधिक मात्रा
में बलगम निकलना (Indigenous Traditional
Medicines for Respiratory Diseases),
Cinnamomum verum PRESL (LAURACEAE) in Pankaj Oudhia’s report
on Improvement of Arjun based Traditional Herbal Formulations of Peninsular
India: छाती में कडापन (Indigenous
Traditional Medicines for Respiratory Diseases),
Cinnamomum wightii C.F.W.MEISSN (LAURACEAE) in Pankaj
Oudhia’s report on Improvement of Arjun based Traditional Herbal Formulations
of Peninsular India: खाँसी आने से पहले
बच्चे का रोना (Indigenous Traditional Medicines for
Respiratory Diseases),
Cipadessa baccifera (ROTH.) MIQ. (MELIACEAE) in Pankaj
Oudhia’s report on Improvement of Arjun based Traditional Herbal Formulations
of Peninsular India: कष्टमय श्वांस (Indigenous Traditional Medicines for
Respiratory Diseases),
Cissampelos pareira L. (MENISPERMACEAE) in Pankaj Oudhia’s
report on Improvement of Arjun based Traditional Herbal Formulations of
Peninsular India: पहाड़ पर चढने में
तकलीफ होना (Indigenous Traditional Medicines for
Respiratory Diseases),
Cissus adnata ROXB. (VITACEAE) in Pankaj Oudhia’s report on
Improvement of Arjun based Traditional Herbal Formulations of Peninsular India:
आगे झुकने से
खाँसी का बढना (Indigenous Traditional Medicines for
Respiratory Diseases),
Cissus discolor BLUME (VITACEAE) in Pankaj Oudhia’s report
on Improvement of Arjun based Traditional Herbal Formulations of Peninsular
India: सुबह चार बजे खाँसी
का बढना (Indigenous
Traditional Medicines for Respiratory Diseases),
Cissus pallida (WIGHT & ARN.) PLANCHON (VITACEAE) in
Pankaj Oudhia’s report on Improvement of Arjun based Traditional Herbal
Formulations of Peninsular India: दोपहर में खाँसी का बढना (Indigenous Traditional
Medicines for Respiratory Diseases),
Cissus quadrangularis L. (VITACEAE) in Pankaj Oudhia’s
report on Improvement of Arjun based Traditional Herbal Formulations of
Peninsular India: शाम चार बजे खाँसी
का बढना (Indigenous
Traditional Medicines for Respiratory Diseases),
Cissus repanda VAHL (VITACEAE) in Pankaj Oudhia’s report on
Improvement of Arjun based Traditional Herbal Formulations of Peninsular India:
खाँसी के कारण
फेफड़ों से बदबूदार साँस निकलती है (Indigenous Traditional
Medicines for Respiratory Diseases),
Cissus repens LAM. (VITACEAE) in Pankaj Oudhia’s report on
Improvement of Arjun based Traditional Herbal Formulations of Peninsular India:
मिट्टी के रंग का
बलगम (Indigenous
Traditional Medicines for Respiratory Diseases),
Cissus setosa ROXB. (VITACEAE) in Pankaj Oudhia’s report on
Improvement of Arjun based Traditional Herbal Formulations of Peninsular India:
मिट्टी की महक
वाला बलगम (Indigenous Traditional Medicines for Respiratory
Diseases),
Cissus vitiginea L. (VITACEAE) in Pankaj Oudhia’s report on
Improvement of Arjun based Traditional Herbal Formulations of Peninsular India:
अत्यंत लसलसा बलगम
निकलना (Indigenous
Traditional Medicines for Respiratory Diseases),
Citharexylum subserratum SW. (VERBENACEAE) in Pankaj
Oudhia’s report on Improvement of Arjun based Traditional Herbal Formulations
of Peninsular India: बाएँ फेफड़े के
नीचे तेज दर्द (Indigenous Traditional Medicines for
Respiratory Diseases),
Citrullus colocynthis (L.) SCHRADER (CUCURBITACEAE) in
Pankaj Oudhia’s report on Improvement of Arjun based Traditional Herbal
Formulations of Peninsular India: लगातार बलगम निकलने से कमजोरी महसूस होना (Indigenous Traditional
Medicines for Respiratory Diseases),
Citrullus lanatus (THUNB.) MATSUMARA & NAKAI (CUCURBITACEAE)
in Pankaj Oudhia’s report on Improvement of Arjun based Traditional Herbal
Formulations of Peninsular India: रोगी तेज गति से पंखा चलाने की जिद करता है (Indigenous
Traditional Medicines for Respiratory Diseases),
Citrus aurantium L. (RUTACEAE) in Pankaj Oudhia’s report on
Improvement of Arjun based Traditional Herbal Formulations of Peninsular India:
कुक्कुर खाँसी (Indigenous
Traditional Medicines for Respiratory Diseases),
Citrus limon (L.) BURM.F. (RUTACEAE) in Pankaj Oudhia’s
report on Improvement of Arjun based Traditional Herbal Formulations of
Peninsular India: खाँसी के कारण
कूल्हों में दर्द (Indigenous Traditional
Medicines for Respiratory Diseases),
Citrus maxima MERILL (RUTACEAE) in Pankaj Oudhia’s report on
Improvement of Arjun based Traditional Herbal Formulations of Peninsular India:
खाँसी के साथ
नमकीन बलगम (Indigenous Traditional Medicines for
Respiratory Diseases),
Citrus medica L. Var. limetta(RUTACEAE) in Pankaj Oudhia’s
report on Improvement of Arjun based Traditional Herbal Formulations of
Peninsular India: हाथों के बल बैठने
से खाँसी कम होती है (Indigenous Traditional
Medicines for Respiratory Diseases),
Citrus reticulata BLANCO (RUTACEAE) in Pankaj Oudhia’s
report on Improvement of Arjun based Traditional Herbal Formulations of
Peninsular India: घुटनों के बल बैठने
से खाँसी कम होती है (Indigenous Traditional
Medicines for Respiratory Diseases),
Clausena dentata (WILLD.) ROEM (RUTACEAE) in Pankaj Oudhia’s
report on Improvement of Arjun based Traditional Herbal Formulations of
Peninsular India: खाँसी के साथ तीता
बलगम (Indigenous
Traditional Medicines for Respiratory Diseases),
Cleistanthus collinus (ROXB.) BENTH. & HOOK.
(EUPHORBIACEAE) in Pankaj Oudhia’s report on Improvement of Arjun based
Traditional Herbal Formulations of Peninsular India: खाँसी के साथ गालों पर लाल निशान (Indigenous
Traditional Medicines for Respiratory Diseases),
Clematis gauriana ROXB. (RANUNCULACEAE) in Pankaj Oudhia’s
report on Improvement of Arjun based Traditional Herbal Formulations of
Peninsular India: खाँसी और जम्हाई
एक के बाद एक अनवरत (Indigenous Traditional
Medicines for Respiratory Diseases),
Clematis hedysarifolia DC. (RANUNCULACEAE) in Pankaj
Oudhia’s report on Improvement of Arjun based Traditional Herbal Formulations
of Peninsular India: रोगी प्रत्येक बार
खाँसी के दौरे के बाद सो जाता है (Indigenous Traditional
Medicines for Respiratory Diseases),
Clematis smilacifolia WALL. (RANUNCULACEAE) in Pankaj
Oudhia’s report on Improvement of Arjun based Traditional Herbal Formulations
of Peninsular India: खाँसी की उत्तेजना
तलपेट में अनुभव होती है (Indigenous Traditional
Medicines for Respiratory Diseases),
Clematis triloba HEYNE (RANUNCULACEAE) in Pankaj Oudhia’s
report on Improvement of Arjun based Traditional Herbal Formulations of
Peninsular India: श्वांस में आवाज
के साथ खाँसी (Indigenous Traditional Medicines for Respiratory Diseases),
Clematis wightiana WALL. EX WT. & ARN. (RANUNCULACEAE) in
Pankaj Oudhia’s report on Improvement of Arjun based Traditional Herbal
Formulations of Peninsular India: कंठनली में अत्यधिक सूखापन (Indigenous Traditional
Medicines for Respiratory Diseases),
Cleome chelidonii
L.F. (CLEOMACEAE) in Pankaj Oudhia’s report on Improvement of Arjun based
Traditional Herbal Formulations of Peninsular India: थका दें वाली खाँसी (Indigenous
Traditional Medicines for Respiratory Diseases),
Cleome felina L. F. (CLEOMACEAE) in Pankaj Oudhia’s report
on Improvement of Arjun based Traditional Herbal Formulations of Peninsular
India: खाँसने के समय सिर
पकड़ लेता है (Indigenous Traditional Medicines for
Respiratory Diseases),
Cleome monophylla L. (CLEOMACEAE) in Pankaj Oudhia’s report
on Improvement of Arjun based Traditional Herbal Formulations of Peninsular
India: थोड़ी-से हरकत से
हृदय की धडकन बढ़ जाती है (Indigenous Traditional
Medicines for Heart Diseases),
Cleome viscosa L. (CLEOMACEAE) in Pankaj Oudhia’s report on
Improvement of Arjun based Traditional Herbal Formulations of Peninsular India:
हृदय रोग के साथ
बाईं बाँह में दर्द होना (Indigenous Traditional
Medicines for Heart Diseases),
Clerodendrum colebrookianum WALP. (VERBENACEAE) in Pankaj
Oudhia’s report on Improvement of Arjun based Traditional Herbal Formulations
of Peninsular India: हृदय की अनियमित
गति (Indigenous
Traditional Medicines for Heart Diseases),
Clerodendrum indicum (L.) KUNTZE (VERBENACEAE) in Pankaj
Oudhia’s report on Improvement of Arjun based Traditional Herbal Formulations
of Peninsular India: नाड़ी की अनियमित
गति (Indigenous
Traditional Medicines for Heart Diseases),
Clerodendrum inerme (L.) GAERTN. (VERBENACEAE) in Pankaj
Oudhia’s report on Improvement of Arjun based Traditional Herbal Formulations
of Peninsular India: बाईं तरफ सोने में
तकलीफ होना (Indigenous Traditional Medicines for Heart
Diseases),
Clerodendrum philippinum SCHAU. (VERBENACEAE) in Pankaj
Oudhia’s report on Improvement of Arjun based Traditional Herbal Formulations
of Peninsular India: अँगुलियों में
झुनझुनी (Indigenous
Traditional Medicines for Heart Diseases),
Clerodendrum phlomoides L.F. (VERBENACEAE) in Pankaj
Oudhia’s report on Improvement of Arjun based Traditional Herbal Formulations
of Peninsular India: बाईं बाँह की
सुन्नता (Indigenous
Traditional Medicines for Heart Diseases),
Clerodendrum serratum (L.) MOON (VERBENACEAE) in Pankaj
Oudhia’s report on Improvement of Arjun based Traditional Herbal Formulations
of Peninsular India: हृदय में संकोचन
की अनुभूति (Indigenous Traditional Medicines for Heart
Diseases),
Clerodendrum splendens G. DON (VERBENACEAE) in Pankaj
Oudhia’s report on Improvement of Arjun based Traditional Herbal Formulations
of Peninsular India: हृदय की गति रुकती
है और फिर चलती है (Indigenous Traditional
Medicines for Heart Diseases),
Clerodendrum viscosum H.W. MOLDENKE (VERBENACEAE) in Pankaj
Oudhia’s report on Improvement of Arjun based Traditional Herbal Formulations
of Peninsular India: नाक की आवाज के
साथ नाड़ी पूर्णतया मंद (Indigenous Traditional
Medicines for Heart Diseases),
Clitoria ternatea L. (FABACEAE) in Pankaj Oudhia’s report on
Improvement of Arjun based Traditional Herbal Formulations of Peninsular India:
छाती आगे झुकाने
पर हृदय की धडकन बढती है (Indigenous Traditional
Medicines for Heart Diseases),
Senecio nudicaulis HAM. EX D. DON and Lantana camara L.
(Gotiphool) with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants
of Chhattisgarh, India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database
(Traditional Knowledge Database) on use of Alien Invasive species as additional
ingredient in Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for
Head- pain, alternating with hæmorrhoids.
Sesamum indicum L. and Lantana camara L. (Gotiphool) with
other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh,
India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge
Database) on use of Alien Invasive species as additional ingredient in
Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for Bladder-
urination, incomplete, bladder full, urging to urinate but scanty urine .
Sesbania bispinosa (JACQ.) W.F. WIGHT and Lantana camara L.
(Gotiphool) with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants
of Chhattisgarh, India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database
(Traditional Knowledge Database) on use of Alien Invasive species as additional
ingredient in Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for
Head- pain, sore, bruised, sensitive to pressure .
Sesbania grandiflora (L.) POIRET and Lantana camara L.
(Gotiphool) with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants
of Chhattisgarh, India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database
(Traditional Knowledge Database) on use of Alien Invasive species as additional
ingredient in Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for
Eye- dullness .
Sesbania sesban (L.) MERR. and Lantana camara L. (Gotiphool)
with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of
Chhattisgarh, India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database
(Traditional Knowledge Database) on use of Alien Invasive species as additional
ingredient in Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for
Vertigo
Seseli diffusum (ROXB. EX. SM.) SAMT and Lantana camara L.
(Gotiphool) with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants
of Chhattisgarh, India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database
(Traditional Knowledge Database) on use of Alien Invasive species as additional
ingredient in Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for
Kidneys- pain, region of .
Setaria italica (L.) BEAUV and Lantana camara L. (Gotiphool)
with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of
Chhattisgarh, India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database
(Traditional Knowledge Database) on use of Alien Invasive species as additional
ingredient in Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for
Kidneys- pain, sore, bruised, region of .
Setaria plicata (LAM.) COOKE and Lantana camara L.
(Gotiphool) with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants
of Chhattisgarh, India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database
(Traditional Knowledge Database) on use of Alien Invasive species as additional
ingredient in Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for
Eye- open, unable to .
Setaria verticillata (L.) P. BEAUV. and Lantana camara L.
(Gotiphool) with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants
of Chhattisgarh, India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database
(Traditional Knowledge Database) on use of Alien Invasive species as additional
ingredient in Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for
Stomach- appetite, increased
Shorea robusta GAERTN. F. and Lantana camara L. (Gotiphool)
with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of
Chhattisgarh, India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database
(Traditional Knowledge Database) on use of Alien Invasive species as additional
ingredient in Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for
Eye- redness .
Sida acuta BURM. F. and Lantana camara L. (Gotiphool) with
other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh,
India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge
Database) on use of Alien Invasive species as additional ingredient in
Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for Ear- noises,
buzzing .
Sida alba L. and Lantana camara L. (Gotiphool) with other
Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh,
India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge
Database) on use of Alien Invasive species as additional ingredient in Traditional
Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for Stomach- appetite,
ravenous, canine, excessive
Sida cordata (BURM.F.) BOISS. and Lantana camara L.
(Gotiphool) with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants
of Chhattisgarh, India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database
(Traditional Knowledge Database) on use of Alien Invasive species as additional
ingredient in Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for
Stomach- aversion to acids
Sida cordifolia L. and Lantana camara L. (Gotiphool) with
other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh,
India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge
Database) on use of Alien Invasive species as additional ingredient in
Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for Ear- noises,
humming .
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