क्या जल्दी कर दी हमने आने में?
क्या जल्दी कर दी हमने आने में?
- पंकज अवधिया
" क्षमा करे पर शेयर्ड होस्टिंग श्रेणी में हम आपकी वेबसाईट नहीं रख सकते| आपको वर्चुअल पर्सनल सर्वर श्रेणी में जाना होगा| इसके आपको बीस हजार रूपये लगेंगे सालाना|"
हम (माने मैं और मेरा वेबमास्टर) अपनी वेबसाईट में ३० जीबी की सामग्री की अपलोडिंग समाप्त करने ही वाले थे कि यह सूचना आई| हम तैयार हो गए ५००० सालाना से बीस हजार सालाना की स्कीम के लिए| जब हम ३५ जीबी पर पहुंचे तो सूचना आई कि आप डेडीकेटेड सर्वर श्रेणी में जाए जिसका किराया लगभग ४८,००० रूपये हैं आधे साल का| यदि आप तैयार नहीं है तो हम आपकी साईट को होस्ट नहीं कर सकते|
हमारे होश उड़ गए| वेबसाईट में दो ऐसे हिस्से थे जो ट्रेफिक का भार नहीं सहन कर पा रहे थे| एक हिस्सा जिसमे ६५०० से ज्यादा पीडीएफ फ़ाइल थी और एक फ़ाइल की साइज ३ से ४ एमबी थी| और दूसरा हिस्सा फोटो गैलरी का जिसमे दस लाख से अधिक फोटोलिंक्स थे|
आखिर हमने फैसला किया कि हम इन दोनों को वेबसाईट से हटा लेंगे और चार जीबी की सामग्री ही वेबसाईट में रहने देंगे|
छत्तीसगढ़ के जंगलों की ख़ाक छानते हुए और हजारों पारम्परिक चिकित्सकों से मिलते हुए मैंने एक रपट तैयार की -मधुमेह की रपट| रोगी की दशा और अपने अनुभव के आधार पर पारम्परिक चिकित्सक एक सप्ताह से लेकर ५०० दिनो तक की योजना बनाते हैं और फिर उसी के अनुसार निश्चित अवधि तक रोगियों को औषधीयाँ दी जाती है|
मैंने २०० दिन तक दी जाने वाली औषधीयों के आधार पर दस हजार से अधिक केसों का अध्ययन किया और फिर उसे कम्प्यूटर की सहायता से तालिकाबद्ध कर लिया| एक पारम्परिक चिकित्सक से एकत्र की गयी सामग्री जब दूसरे को दिखाई गयी तो उन्होंने उसमे सुधार बताये| इन सुधारों को नयी तालिका के रूप में प्रस्तुत किया गया| मेरी भूमिका मधुमख्खी की तरह रही जो अलग-अलग फूलों से रस एकत्र करती है| इस प्रक्रिया को हजारों पारम्परिक चिकित्सकों के बीच दोहराया गया तो बहुत सारी जानकारी एकत्र हो गयी| बहुत सारी माने ५५०,००० से ज्यादा तालिकाएँ| एमएस वर्ड में १००० जीबी की सामग्री| इसमें से कुछ सामग्री जब नेट पर डालनी चाही तो पीडीएफ का सहारा लिया| २५ जीबी की यही सामग्री वेबसाईट पर डाली जा रही थी|
[ आप ८६००० से अधिक छोटी तालिकाएँ इन कड़ियों पर देख सकते हैं| ये तालिकाएँ ऊपर वर्णित तालिकाओं में शामिल नहीं है पर मधुमेह रपट का हिस्सा जरुर हैं|]
आज की तकनीक के हिसाब से पूरी रपट नेट पर डालना असम्भव है| मित्रों ने सलाह दी कि पूरी रपट न डालकर सार डाला जाए| पर १००० जीबी की रपट का सार ही अपने आप में अपार है| २५ जीबी की पीडीएफ फाइलों का यदि आप प्रिंट निकालें तो एक करोड़ बीस लाख से अधिक पन्ने होते हैं| आप सोचिये १००० जीबी का सार कैसे निकालें? यहाँ यह बताना जरुरी है कि सारी रपट कोड में लिखी गयी| अत: कोड के जानकार ही नेट पर इसे पढ़ और समझ सकते हैं| (जिन्हें कोड की जानकारी नहीं वे इसे बेसिर पैर की सामग्री कह सकते हैं, पर इसके लिये मैं उन्हें दोष नहीं दूंगा। यह देश के पारम्परिक चिकित्सकों का ज्ञान है| कैसे इसे सीधे ही नेट पर डाला जा सकता है? इसलिए कोड की व्यवस्था है| यहाँ मैं बता दूँ कि दुनिया भर में इन कोड को तोड़ने के प्रयास होते हैं और फिर वे झुंझलाकर खीझकर मेरी और रपट की बुराई करने लगते है, इस उम्मीद में कि शायद अपने को सही सिद्ध करने मै उन्हें कोड का कुछ राज बता दूं| प्रलोभनों की भी कमी नहीं है| एक यूरोपीय देश के वरिष्ठ वैज्ञानिक कहते हैं कि सब कुछ छोड़कर वही बस जाऊं| वे सीधे प्रोफेसर बना देंगे और कुछ राशि भी देंगे| यूरों से जब भारतीय रुपयों में जब इसे परिवर्तित किया जाता है तो यह करोड़ों में होती है| वे बेशर्मी से कहते हैं कि भारत में जीते जी तो कुछ नही मिलने वाला, उलटे लाख दुश्मन पैदा हो जायेंगे|)
अब प्रश्न उठता है कि नेट पर इसे डालना क्यों जरूरी है? सीधा सा जवाब यह है कि दुनिया इसे देखेगी तभी तो विश्वास करेगी अन्यथा करोड़ों पन्ने की रपट पर भला कौन विश्वास करेगा? मन तो पूरी रपट डालने का है ताकि दुनिया जान सके कि हमारे देश का पारम्परिक ज्ञान कितना समृद्ध है|
एक लाख तस्वीरों की जिस फोटोगैलरी की बात मैं कर रहा हूँ दरअसल उसमे तीन लाख से अधिक तस्वीरें है| दो लाख और अपलोड करनी है|
आपको ज्ञात होगा कि भारत सरकार ने देश के लिखित पारम्परिक ज्ञान को एक स्थान पर एकत्र कर टी.के.डी.एल. नामक डेटाबेस बनाया करोड़ों के खर्च से| इस डेटाबेस में मेरी मधुमेह की रपट की जानकारी अभी तक नहीं है| ऐसा नहीं है कि उन्हें जानकारी नहीं है| पर उन्हें आश्चर्य इस बात का है कि कोई इतनी बड़ी रपट कैसे तैयार कर सकता है वह भी अपने दम पर बिना किसी से पैसे लिए|
मेरी रपट इतनी बड़ी क्यों है? आइये इसे समझें| आप अक्सर पढ़ते हैं कि गुडमार डायबीटीज में उपयोगी है पर पारम्परिक चिकित्सा पर आधारित मेरी रपट यह बताती है कि गुडमार को एकत्र करने से पहले कैसे औषधीय गुणों से परिपूर्ण करना, साल के किस महीने एकत्रण करना और किसे महीने नहीं, साल भर प्रयोग के समय क्या सावधानियां बरतना, किस भोजन सामग्री का कम प्रयोग करना, किस फल का अधिक प्रयोग करना ताकि गुडमार का असर अधिक हो, यदि किसी तरह का रिएक्शन हो जाए तो कौन सी और औषधीयाँ उसमे मिलाना, यदि मधुमेह के साथ ह्रदय रोग है तो गुडमार का कैसे प्रयोग करना आदि आदि| गुडमार से सम्बन्धित ऐसी जानकारियाँ आपको प्राचीन ग्रन्थों में भी नहीं मिलेंगी| ऐसा नहीं है कि उस समय विद्वानों को इस बारे में जानकारी नहीं थी| ऐसा प्रतीत होता है कि वे सब कुछ नही लिखना चाहते थे| काफी कुछ अपने पास रखना चाहते थे| एक और बात हो सकती है| उस समय ग्रन्थों का प्रकाशन आज की तरह सरल नहीं था| उनके पास कम्प्यूटर होता तो शायद वे भी मेरी तरह सब कुछ विस्तार से लिख पाते| यदि मेरी रपट के सार में दुनिया की रूचि रही तो एक बार फिर पूरा ज्ञान सामने आने से रह जाएगा|
निश्चित ही आधुनिक विज्ञान इस पारम्परिक ज्ञान को अपनी कसौटी में परखना चाहेगा| स्वागत है| यह भी गौर करने वाली बात है कि यह पारम्परिक ज्ञान है और पीढीयों से असंख्य लोगों की जान बचा रहा है| यह कारगर है इसलिए अब तक चलन में है| मुझे विश्वास है कि यह ज्ञान असंख्य लोगों की जान बचाएगा, पारम्परिक चिकित्सा को एक बार फिर समाज की मुख्य धारा में लाएगा और सबसे बड़ी बात दुनिया में भारतीय ज्ञान का परचम एक बार फिर से लहराएगा|
यदि आप गुणीजन यह सुझा पायें कि कैसे इस रपट पर आगे काम किया जाए तो आगे की राह प्रशस्त होगी| इस रपट में काफी कुछ लिखा जा चुका है पर यदि इसे जारी रखा जाए तो औसत पांच घंटे प्रतिदिन के हिसाब से लिखने से बीस से पच्चीस साल और लग जायेंगे| इसलिए बेहतर तो यही होगा कि मैं लिखने का काम जारी रखूं और युवा शोधकर्ता इस ज्ञान को आम लोगों तक पहुंचाने का कार्य करें|
यहाँ यह स्पष्ट कर देना जरुरी है कि मैं चिकित्सक नहीं हूँ और न ही मधुमेह की चिकित्सा आजमाने में मेरी रूचि है| मैंने सिर्फ पारम्परिक ज्ञान का दस्तावेजीकरण किया है| असली हीरो तो देश के पारम्परिक चिकित्सक हैं | मैं अब तक लगभग दस हजार पारम्परिक चिकित्सकों से ही मिल पाया हूँ जिनमे से ज्यादातर छत्तीसगढ़ के है| देश भर में लाखों पारम्परिक चिकित्सक है जिनमे से ज्यादातर उम्र के अंतिम पडाव पर है| समय रहते उनके ज्ञान का दस्तावेजीकरण नहीं हुआ तो यह अमूल्य ज्ञान उनके साथ ही चला जाएगा|
"क्या जल्दी कर दी हमने आने में?" तकनीक के हिसाब से देखा जाये तो इसका उत्तर हां है| बीस साल बाद जन्म लिया होता तो कम समय में प्रभावी ढंग से अपने कार्य को प्रस्तुत कर पाता| हो सकता है सीधे दिमाग से सब कुछ डाउनलोड कर लिया जाता| पर यह भी कडवा सत्य है कि बीस साल बाद शायद हमारा बहुत सा पारम्परिक ज्ञान खो चुका होता|
लेखक से सम्पर्क के लिए इस वेबपते पर जाएँ http://pankajoudhia.com/contactus_pankaj.htm
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हम (माने मैं और मेरा वेबमास्टर) अपनी वेबसाईट में ३० जीबी की सामग्री की अपलोडिंग समाप्त करने ही वाले थे कि यह सूचना आई| हम तैयार हो गए ५००० सालाना से बीस हजार सालाना की स्कीम के लिए| जब हम ३५ जीबी पर पहुंचे तो सूचना आई कि आप डेडीकेटेड सर्वर श्रेणी में जाए जिसका किराया लगभग ४८,००० रूपये हैं आधे साल का| यदि आप तैयार नहीं है तो हम आपकी साईट को होस्ट नहीं कर सकते|
हमारे होश उड़ गए| वेबसाईट में दो ऐसे हिस्से थे जो ट्रेफिक का भार नहीं सहन कर पा रहे थे| एक हिस्सा जिसमे ६५०० से ज्यादा पीडीएफ फ़ाइल थी और एक फ़ाइल की साइज ३ से ४ एमबी थी| और दूसरा हिस्सा फोटो गैलरी का जिसमे दस लाख से अधिक फोटोलिंक्स थे|
आखिर हमने फैसला किया कि हम इन दोनों को वेबसाईट से हटा लेंगे और चार जीबी की सामग्री ही वेबसाईट में रहने देंगे|
छत्तीसगढ़ के जंगलों की ख़ाक छानते हुए और हजारों पारम्परिक चिकित्सकों से मिलते हुए मैंने एक रपट तैयार की -मधुमेह की रपट| रोगी की दशा और अपने अनुभव के आधार पर पारम्परिक चिकित्सक एक सप्ताह से लेकर ५०० दिनो तक की योजना बनाते हैं और फिर उसी के अनुसार निश्चित अवधि तक रोगियों को औषधीयाँ दी जाती है|
मैंने २०० दिन तक दी जाने वाली औषधीयों के आधार पर दस हजार से अधिक केसों का अध्ययन किया और फिर उसे कम्प्यूटर की सहायता से तालिकाबद्ध कर लिया| एक पारम्परिक चिकित्सक से एकत्र की गयी सामग्री जब दूसरे को दिखाई गयी तो उन्होंने उसमे सुधार बताये| इन सुधारों को नयी तालिका के रूप में प्रस्तुत किया गया| मेरी भूमिका मधुमख्खी की तरह रही जो अलग-अलग फूलों से रस एकत्र करती है| इस प्रक्रिया को हजारों पारम्परिक चिकित्सकों के बीच दोहराया गया तो बहुत सारी जानकारी एकत्र हो गयी| बहुत सारी माने ५५०,००० से ज्यादा तालिकाएँ| एमएस वर्ड में १००० जीबी की सामग्री| इसमें से कुछ सामग्री जब नेट पर डालनी चाही तो पीडीएफ का सहारा लिया| २५ जीबी की यही सामग्री वेबसाईट पर डाली जा रही थी|
[ आप ८६००० से अधिक छोटी तालिकाएँ इन कड़ियों पर देख सकते हैं| ये तालिकाएँ ऊपर वर्णित तालिकाओं में शामिल नहीं है पर मधुमेह रपट का हिस्सा जरुर हैं|]
आज की तकनीक के हिसाब से पूरी रपट नेट पर डालना असम्भव है| मित्रों ने सलाह दी कि पूरी रपट न डालकर सार डाला जाए| पर १००० जीबी की रपट का सार ही अपने आप में अपार है| २५ जीबी की पीडीएफ फाइलों का यदि आप प्रिंट निकालें तो एक करोड़ बीस लाख से अधिक पन्ने होते हैं| आप सोचिये १००० जीबी का सार कैसे निकालें? यहाँ यह बताना जरुरी है कि सारी रपट कोड में लिखी गयी| अत: कोड के जानकार ही नेट पर इसे पढ़ और समझ सकते हैं| (जिन्हें कोड की जानकारी नहीं वे इसे बेसिर पैर की सामग्री कह सकते हैं, पर इसके लिये मैं उन्हें दोष नहीं दूंगा। यह देश के पारम्परिक चिकित्सकों का ज्ञान है| कैसे इसे सीधे ही नेट पर डाला जा सकता है? इसलिए कोड की व्यवस्था है| यहाँ मैं बता दूँ कि दुनिया भर में इन कोड को तोड़ने के प्रयास होते हैं और फिर वे झुंझलाकर खीझकर मेरी और रपट की बुराई करने लगते है, इस उम्मीद में कि शायद अपने को सही सिद्ध करने मै उन्हें कोड का कुछ राज बता दूं| प्रलोभनों की भी कमी नहीं है| एक यूरोपीय देश के वरिष्ठ वैज्ञानिक कहते हैं कि सब कुछ छोड़कर वही बस जाऊं| वे सीधे प्रोफेसर बना देंगे और कुछ राशि भी देंगे| यूरों से जब भारतीय रुपयों में जब इसे परिवर्तित किया जाता है तो यह करोड़ों में होती है| वे बेशर्मी से कहते हैं कि भारत में जीते जी तो कुछ नही मिलने वाला, उलटे लाख दुश्मन पैदा हो जायेंगे|)
अब प्रश्न उठता है कि नेट पर इसे डालना क्यों जरूरी है? सीधा सा जवाब यह है कि दुनिया इसे देखेगी तभी तो विश्वास करेगी अन्यथा करोड़ों पन्ने की रपट पर भला कौन विश्वास करेगा? मन तो पूरी रपट डालने का है ताकि दुनिया जान सके कि हमारे देश का पारम्परिक ज्ञान कितना समृद्ध है|
एक लाख तस्वीरों की जिस फोटोगैलरी की बात मैं कर रहा हूँ दरअसल उसमे तीन लाख से अधिक तस्वीरें है| दो लाख और अपलोड करनी है|
आपको ज्ञात होगा कि भारत सरकार ने देश के लिखित पारम्परिक ज्ञान को एक स्थान पर एकत्र कर टी.के.डी.एल. नामक डेटाबेस बनाया करोड़ों के खर्च से| इस डेटाबेस में मेरी मधुमेह की रपट की जानकारी अभी तक नहीं है| ऐसा नहीं है कि उन्हें जानकारी नहीं है| पर उन्हें आश्चर्य इस बात का है कि कोई इतनी बड़ी रपट कैसे तैयार कर सकता है वह भी अपने दम पर बिना किसी से पैसे लिए|
मेरी रपट इतनी बड़ी क्यों है? आइये इसे समझें| आप अक्सर पढ़ते हैं कि गुडमार डायबीटीज में उपयोगी है पर पारम्परिक चिकित्सा पर आधारित मेरी रपट यह बताती है कि गुडमार को एकत्र करने से पहले कैसे औषधीय गुणों से परिपूर्ण करना, साल के किस महीने एकत्रण करना और किसे महीने नहीं, साल भर प्रयोग के समय क्या सावधानियां बरतना, किस भोजन सामग्री का कम प्रयोग करना, किस फल का अधिक प्रयोग करना ताकि गुडमार का असर अधिक हो, यदि किसी तरह का रिएक्शन हो जाए तो कौन सी और औषधीयाँ उसमे मिलाना, यदि मधुमेह के साथ ह्रदय रोग है तो गुडमार का कैसे प्रयोग करना आदि आदि| गुडमार से सम्बन्धित ऐसी जानकारियाँ आपको प्राचीन ग्रन्थों में भी नहीं मिलेंगी| ऐसा नहीं है कि उस समय विद्वानों को इस बारे में जानकारी नहीं थी| ऐसा प्रतीत होता है कि वे सब कुछ नही लिखना चाहते थे| काफी कुछ अपने पास रखना चाहते थे| एक और बात हो सकती है| उस समय ग्रन्थों का प्रकाशन आज की तरह सरल नहीं था| उनके पास कम्प्यूटर होता तो शायद वे भी मेरी तरह सब कुछ विस्तार से लिख पाते| यदि मेरी रपट के सार में दुनिया की रूचि रही तो एक बार फिर पूरा ज्ञान सामने आने से रह जाएगा|
निश्चित ही आधुनिक विज्ञान इस पारम्परिक ज्ञान को अपनी कसौटी में परखना चाहेगा| स्वागत है| यह भी गौर करने वाली बात है कि यह पारम्परिक ज्ञान है और पीढीयों से असंख्य लोगों की जान बचा रहा है| यह कारगर है इसलिए अब तक चलन में है| मुझे विश्वास है कि यह ज्ञान असंख्य लोगों की जान बचाएगा, पारम्परिक चिकित्सा को एक बार फिर समाज की मुख्य धारा में लाएगा और सबसे बड़ी बात दुनिया में भारतीय ज्ञान का परचम एक बार फिर से लहराएगा|
यदि आप गुणीजन यह सुझा पायें कि कैसे इस रपट पर आगे काम किया जाए तो आगे की राह प्रशस्त होगी| इस रपट में काफी कुछ लिखा जा चुका है पर यदि इसे जारी रखा जाए तो औसत पांच घंटे प्रतिदिन के हिसाब से लिखने से बीस से पच्चीस साल और लग जायेंगे| इसलिए बेहतर तो यही होगा कि मैं लिखने का काम जारी रखूं और युवा शोधकर्ता इस ज्ञान को आम लोगों तक पहुंचाने का कार्य करें|
यहाँ यह स्पष्ट कर देना जरुरी है कि मैं चिकित्सक नहीं हूँ और न ही मधुमेह की चिकित्सा आजमाने में मेरी रूचि है| मैंने सिर्फ पारम्परिक ज्ञान का दस्तावेजीकरण किया है| असली हीरो तो देश के पारम्परिक चिकित्सक हैं | मैं अब तक लगभग दस हजार पारम्परिक चिकित्सकों से ही मिल पाया हूँ जिनमे से ज्यादातर छत्तीसगढ़ के है| देश भर में लाखों पारम्परिक चिकित्सक है जिनमे से ज्यादातर उम्र के अंतिम पडाव पर है| समय रहते उनके ज्ञान का दस्तावेजीकरण नहीं हुआ तो यह अमूल्य ज्ञान उनके साथ ही चला जाएगा|
"क्या जल्दी कर दी हमने आने में?" तकनीक के हिसाब से देखा जाये तो इसका उत्तर हां है| बीस साल बाद जन्म लिया होता तो कम समय में प्रभावी ढंग से अपने कार्य को प्रस्तुत कर पाता| हो सकता है सीधे दिमाग से सब कुछ डाउनलोड कर लिया जाता| पर यह भी कडवा सत्य है कि बीस साल बाद शायद हमारा बहुत सा पारम्परिक ज्ञान खो चुका होता|
लेखक से सम्पर्क के लिए इस वेबपते पर जाएँ http://pankajoudhia.com/contactus_pankaj.htm
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काँटे ही काँटे है पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे
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Beta vulgaris L. in Pankaj Oudhia’s Research Documents on
Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Anal Fistula
(Fistula-in-ano): Bhagandar ke liye
Shankhpushpi ka Prayog (23 Herbal Ingredients, Tribal Formulations of Gujarat;
Not mentioned in ancient literature related to different systems of medicine in
India and other countries; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: भगन्दर के लिए
शंखपुष्पी का प्रयोग),
Biophytum reinwardtii (ZUCC.) KLOTZSCH in Pankaj Oudhia’s
Research Documents on Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for
Anal Fistula (Fistula-in-ano): Bhagandar
ke liye Shankhpushpi ka Prayog (28 Herbal Ingredients, Tribal Formulations of Gujarat;
Not mentioned in ancient literature related to different systems of medicine in
India and other countries; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: भगन्दर के लिए
शंखपुष्पी का प्रयोग),
Biophytum sensitivum (L.) DC. in Pankaj Oudhia’s Research
Documents on Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Anal
Fistula (Fistula-in-ano): Bhagandar ke
liye Shankhpushpi ka Prayog (9 Herbal Ingredients, Tribal Formulations of Rajasthan;
Not mentioned in ancient literature related to different systems of medicine in
India and other countries; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: भगन्दर के लिए
शंखपुष्पी का प्रयोग),
Bixa orellana L. in Pankaj Oudhia’s Research Documents on
Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Anal Fistula
(Fistula-in-ano): Bhagandar ke liye
Shankhpushpi ka Prayog (10 Herbal Ingredients, Tribal Formulations of Gujarat;
Not mentioned in ancient literature related to different systems of medicine in
India and other countries; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: भगन्दर के लिए
शंखपुष्पी का प्रयोग),
Blepharispermum subsessile DC. in Pankaj Oudhia’s Research
Documents on Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Anal
Fistula (Fistula-in-ano): Bhagandar ke
liye Shankhpushpi ka Prayog (14 Herbal Ingredients, Tribal Formulations of Uttarakhand;
Not mentioned in ancient literature related to different systems of medicine in
India and other countries; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: भगन्दर के लिए
शंखपुष्पी का प्रयोग),
Boerhavia diffusa L. in Pankaj Oudhia’s Research Documents
on Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Anal Fistula
(Fistula-in-ano): Bhagandar ke liye
Shankhpushpi ka Prayog (8 Herbal Ingredients, Tribal Formulations of Uttarakhand;
Mentioned in ancient literature related to different systems of medicine in
India and other countries; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: भगन्दर के लिए
शंखपुष्पी का प्रयोग),
Bombax ceiba L. in Pankaj Oudhia’s Research Documents on
Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Anal Fistula
(Fistula-in-ano): Bhagandar ke liye
Shankhpushpi ka Prayog (38 Herbal Ingredients, Tribal Formulations of Rajasthan;
Not mentioned in ancient literature related to different systems of medicine in
India and other countries; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: भगन्दर के लिए
शंखपुष्पी का प्रयोग),
Borassus flabellifer L. in Pankaj Oudhia’s Research
Documents on Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Anal
Fistula (Fistula-in-ano): Bhagandar ke
liye Shankhpushpi ka Prayog (19 Herbal Ingredients, Tribal Formulations of Maharashtra;
Not mentioned in ancient literature related to different systems of medicine in
India and other countries; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: भगन्दर के लिए
शंखपुष्पी का प्रयोग),
Boswellia serrata ROXB. in Pankaj Oudhia’s Research
Documents on Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Anal
Fistula (Fistula-in-ano): Bhagandar ke
liye Shankhpushpi ka Prayog (5 Herbal Ingredients, Tribal Formulations of Rajasthan;
Not mentioned in ancient literature related to different systems of medicine in
India and other countries; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: भगन्दर के लिए
शंखपुष्पी का प्रयोग),
Brassica juncea (L.) CZERN. in Pankaj Oudhia’s Research
Documents on Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Anal
Fistula (Fistula-in-ano): Bhagandar ke
liye Shankhpushpi ka Prayog (12 Herbal Ingredients, Tribal Formulations of Maharashtra;
Not mentioned in ancient literature related to different systems of medicine in
India and other countries; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: भगन्दर के लिए
शंखपुष्पी का प्रयोग),
Brassica juncea (L.) CZERN. in Pankaj Oudhia’s Research
Documents on Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Anal
Fistula (Fistula-in-ano): Bhagandar ke
liye Shankhpushpi ka Prayog (8 Herbal Ingredients, Tribal Formulations of Maharashtra;
Mentioned in ancient literature related to different systems of medicine in
India and other countries; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: भगन्दर के लिए
शंखपुष्पी का प्रयोग),
Brassica oleracea L. in
Pankaj Oudhia’s Research Documents on Indigenous Herbal Medicines (Tribal
Herbal Practices) for Anal Fistula (Fistula-in-ano): Bhagandar ke liye Shankhpushpi ka Prayog (12
Herbal Ingredients, Tribal Formulations of Uttarakhand; Not mentioned in
ancient literature related to different systems of medicine in India and other
countries; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: भगन्दर के लिए शंखपुष्पी का प्रयोग),
Brassica rapa L. in Pankaj Oudhia’s Research Documents on
Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Anal Fistula
(Fistula-in-ano): Bhagandar ke liye
Shankhpushpi ka Prayog (59 Herbal Ingredients, Tribal Formulations of Maharashtra;
Not mentioned in ancient literature related to different systems of medicine in
India and other countries; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: भगन्दर के लिए
शंखपुष्पी का प्रयोग),
Scirpus articulatus L. and Lantana camara L. (Gotiphool)
with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of
Chhattisgarh, India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database
(Traditional Knowledge Database) on use of Alien Invasive species as additional
ingredient in Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for
Mind- heedless
Scirpus grossus L. F. and Lantana camara L. (Gotiphool) with
other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh,
India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge
Database) on use of Alien Invasive species as additional ingredient in
Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for Head,
coldness, chilliness, etc. .
Scirpus maritimus L. and Lantana camara L. (Gotiphool) with
other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh,
India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge
Database) on use of Alien Invasive species as additional ingredient in
Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for Rectum-
hæmorrhoids, rheumatism abates, after .
Scirpus tuberosus
DESF. and Lantana camara L. (Gotiphool) with other Herbal Ingredients:
Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh, India) from Pankaj
Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge Database) on use of
Alien Invasive species as additional ingredient in Traditional Indigenous
Herbal Medicines (Herbal Formulations) for Rectum- hæmorrhoids, touch agg. .
Scleria levis RETZ. and Lantana camara L. (Gotiphool) with
other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh,
India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge
Database) on use of Alien Invasive species as additional ingredient in
Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for Rectum-
urging, desire .
Scleria lithosperma (L.) SW. and Lantana camara L.
(Gotiphool) with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants
of Chhattisgarh, India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database
(Traditional Knowledge Database) on use of Alien Invasive species as additional
ingredient in Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for
Rectum- urging, frequent .
Scleria pergracilis (NEES) KUNTH. and Lantana camara L.
(Gotiphool) with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants
of Chhattisgarh, India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database
(Traditional Knowledge Database) on use of Alien Invasive species as additional
ingredient in Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for
Rectum- urging, Stool- during .
Scleria terrestris (L.) FASS. and Lantana camara L.
(Gotiphool) with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants
of Chhattisgarh, India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database
(Traditional Knowledge Database) on use of Alien Invasive species as additional
ingredient in Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for
Rectum- worm, ascarides .
Scoparia dulcis L. and Lantana camara L. (Gotiphool) with
other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh,
India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge
Database) on use of Alien Invasive species as additional ingredient in Traditional
Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for Head- fullness .
Scorzonera virgata DC. and Lantana camara L. (Gotiphool)
with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of
Chhattisgarh, India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database
(Traditional Knowledge Database) on use of Alien Invasive species as additional
ingredient in Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for
Mind- irritability
Scurrula parasitica L. and Lantana camara L. (Gotiphool)
with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of
Chhattisgarh, India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database
(Traditional Knowledge Database) on use of Alien Invasive species as additional
ingredient in Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for
Head- itching of scalp.
Scurrula philippensis (CH. & SCH.) DON. and Lantana
camara L. (Gotiphool) with other Herbal Ingredients: Research Documents
(Medicinal Plants of Chhattisgarh, India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants
Database (Traditional Knowledge Database) on use of Alien Invasive species as
additional ingredient in Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal
Formulations) for Mind- quiet, quiet disposition
Sebastiana chamaelea MUELL.-ARG. and Lantana camara L.
(Gotiphool) with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants
of Chhattisgarh, India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database
(Traditional Knowledge Database) on use of Alien Invasive species as additional
ingredient in Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for
Head- pain, headache in general .
Securinega virosa BAILL. and Lantana camara L. (Gotiphool)
with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh,
India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge
Database) on use of Alien Invasive species as additional ingredient in
Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for Mind-
restlessness, nervousness
Selaginella bryopteris (L.) BAK. and Lantana camara L.
(Gotiphool) with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants
of Chhattisgarh, India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database
(Traditional Knowledge Database) on use of Alien Invasive species as additional
ingredient in Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for
Stool- lienteric .
Selaginella involvens SPRENG. and Lantana camara L.
(Gotiphool) with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants
of Chhattisgarh, India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database
(Traditional Knowledge Database) on use of Alien Invasive species as additional
ingredient in Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for
Bladder- fullness, sensation of .
Selaginella repanda (DESV. EX POIR.) SPRENG and Lantana
camara L. (Gotiphool) with other Herbal Ingredients: Research Documents
(Medicinal Plants of Chhattisgarh, India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants
Database (Traditional Knowledge Database) on use of Alien Invasive species as
additional ingredient in Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal
Formulations) for Bladder- urging, Stool- after .
Semecarpus anacardium L. F. and Lantana camara L.
(Gotiphool) with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants
of Chhattisgarh, India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database
(Traditional Knowledge Database) on use of Alien Invasive species as additional
ingredient in Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for
Mind- restlessness, night
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