जल शुद्धिकरण का पारम्परिक ज्ञान नदियों को कर सकता है प्रदूषणमुक्त
जल शुद्धिकरण का पारम्परिक ज्ञान नदियों को कर सकता है प्रदूषणमुक्त
-पंकज अवधिया
चाहे गंगा हो या महानदी प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में मेले के रूप में आम लोगों का बड़ी संख्या में जमावड़ा नदियों को प्रदूषित करने में कोई कसर नहीं छोड़ता है| पूजन सामग्री से लेकर गुटखों के पाउच-सब कुछ नदी में बहता है और प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से पर्यावरण को अपूरणीय क्षति पहुंचाता है| बेहतर तो यही होता कि सालाना मेलों की बजाय दस से बारह वर्षों में एक बार मेला लगता ताकि बीच के लम्बे समय में नदियों को सम्भलने का कुछ मौक़ा मिल सकता| पर यह सम्भव नहीं दिखता| ऐसे में छत्तीसगढ़ में जल से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान अहम भूमिका निभा सकता है| राज्य में अब तक २५० से अधिक ऐसी वनस्पतियों की पहचान हो चुकी है जो प्रदूषित जल को साफ़ करने का माद्दा रखती हैं| इन वनस्पतियों के आधार पर हजारों ऐसे मिश्रण बनाये जा सकते हैं जिनके प्रयोग से मेलों के दौरान नदियों के प्रदूषण को काफी हद तक कम किया जा सकता है|
यह विडम्बना ही है कि सबसे पहले छत्तीसगढ़ से ही मुनगा और निर्मली के बारे में जानकारी पूरी दुनिया को मिली पर आज राज्य में दोनों ही वनस्पतियों का प्रयोग जल शुद्धिकरण के लिए नहीं हो रहा है| नागपुर और दिल्ली के केन्द्रीय शोध संस्थानों ने मुनगा पर शोध किये और इस पर अपने शोध पत्र प्रकाशित कर यह सिद्ध किया गया कि यह प्रदूषित जल को साफ़ कर सकता है| फिर इस पर पेटेंट भी लिए गए| इसमें कहीं भी यह नहीं बताया गया कि यह छत्तीसगढ़ का पारम्परिक ज्ञान है| शोधकर्ता पुरुस्कारों से नवाजे गए पर शोध, दस्तावेजों तक ही सीमित रह गया| आफ्रीका ने इस शोध को अपनाया और आज बड़ी मात्रा में मुनगा का प्रयोग वहां जल शुद्धिकरण के लिए हो रहा है| मुनगा से अधिक प्रभावकारी निर्मली की अपने ही राज्य में अनदेखी की जा रही है|
राज्य में निर्मली के वृक्ष बड़ी संख्या में है| जल को निर्मल करने के कारण ही इसका नाम निर्मली पड़ा है| इसके सभी भाग औषधीय गुणों से परिपूर्ण होते हैं| प्रतिवर्ष दसों ट्रकों के माध्यम से इसकी आपूर्ति देश भर में की जाती है| राज्य के ग्रामीण अंचलों में अब भी जल शुद्धिकरण के लिए इसका प्रयोग होता है| मैंने अपने सर्वेक्षणों के माध्यम से ११० से अधिक ऐसे पारम्परिक मिश्रणों के बारे जानकारी एकत्र की है जिनमे निर्मली का प्रयोग मुख्य घटक के रूप में होता है| राज्य के पारम्परिक चिकित्सक कहते हैं कि यदि शहरी लोग इन मिश्रणों का प्रयोग नहीं करना चाहते हैं तो वे स्थायी समाधान के रूप में बड़ी संख्या में निर्मली के पौधे लगाकार पीढीयों तक जल स्त्रोतों को शुद्ध रख सकते हैं| एक समय इन्द्रावती और पैरी के किनारों पर बड़ी संख्या में ये वृक्ष थे| पर लकड़ी माफिया की लालची नजरों से ये बच नहीं सके|
निर्मली के अलावा जल स्त्रोतों के पास लगाये जाने वाले वृक्षों में डूमर का नाम सबसे ऊपर है| पीपल, बरगद, अर्जुन और चिरईजाम की जल शुद्धिकरण में अहम भूमिका है| बड़ी संख्या में अर्जुन के वृक्षों को सिरपुर मेला के आयोजन स्थल के आस-पास कुछ समय पहले तक देखा जा सकता था पर अब अतिरिक्त स्थान बनाने के लिए उन्हें बिना उनका महत्व जाने ही बेदखल कर दिया गया| इसका सीधा प्रभाव महानदी पर देखा जा सकता है| भविष्य में ऐसे आयोजनों को देखते हुए यह जरूरी है कि बड़ी संख्या में ऐसे वृक्षों को रोपा जाए और फिर उनकी रक्षा की जाए| सही मायने में तो मेला स्थलों में सीधे गाडी में बैठे-बैठे पहुँचने की बजाय काफी दूर पहले पार्किंग होनी चाहिए और फिर वहां से इन देशी वृक्षों के साए में पैदल चलकर स्थल तक आना चाहिए ताकि वृक्षों को नुक्सान न पहुंचे और साथ ही आम लोगों को इनके लाभ मिल सके|
राज्य में मैदा के वृक्ष गिनी चुनी संख्या में है| इनकी घटती संख्या देखकर इनके पौध भागों के एकत्रण पर प्रतिबंध है| ये वृक्ष जल शुद्धिकरण में निर्मली से हजारों गुना अधिक प्रभावकारी है| जिन जलस्त्रोतों के पास इनकी प्राकृतिक आबादी उपस्थित रहती है वहां से ही पारम्परिक चिकित्सक औषधीयों के निर्माण के लिए जल का एकत्रण करते हैं| राज्य में ऐसे कम स्थान हैं| मैदा का उपयोग बड़े पैमाने पर करने से पहले यह जरूरी है कि इन्हें व्यवसायिक स्तर पर पारम्परिक विधियों की सहायता से बढाया जाए फिर इनका उपयोग शुरू हो|
प्रतिवर्ष करोड़ों रूपये गंगा जैसी नदियों की सफाई में खर्च किये जाते हैं| यह काम पारम्परिक ज्ञान की सहायता से सस्ते में किया जा सकता है| मेला स्थलों में बेची जा रही पूजन सामग्री के साथ जल शुद्धिकरण के लिए उपयोगी पारम्परिक मिश्रण का एक पैकेट मुफ्त में दिया जा सकता है ताकि जब इन्हें नदी में विसर्जित किया जाए तो पारम्परिक मिश्रण भी पानी में चला जाए और इस तरह असंख्य लोगों के माध्यम से नदी के साफ़ होने की प्रक्रिया चलती रहे| एक बार पूजन सामग्री का हिस्सा बनाने के बाद यकीन मानिए पीढीयों तक यह परम्परा के रूप में जारी रहेगी और हमारी नदियाँ बची रहेंगी| भारत करोड़ों लोगों का देश है| यह हमारी खुशकिस्मती है जो हमारे पारम्परिक चिकित्सकों के पास सैकड़ों मिश्रण हैं| इन सब के प्रयोग से किसी वनस्पति विशेष की प्राकृतिक आबादी पर असर नहीं पड़ेगा| यह भी जान लेना जरुरी है कि माँ प्रकृति भी एक ही तरह के मिश्रण का प्रयोग नहीं करती हैं क्योंकि उनकी अपनी सीमाएं हैं| मसलन यदि केवल निर्मली का ही अधिक मात्रा में प्रयोग किया जाए तो मछलियों को नुक्सान पहुँच सकता है| पर जब मिश्रण के रूप में इसका प्रयोग किया जाता है तो इसका यह दुर्गुण समाप्त हो जाता है|
राज्य में प्रतिवर्ष राजिम अर्ध कुम्भ का आयोजन होता है| यदि योजनाकार चाहे तो इस अनूठे महाभियान की शुरुआत ही से शुरू हो सकती है| पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान के आधार पर राज्य के ग्रामीण युवा देश भर के लिए जल शुद्धिकरण के पारम्परिक मिश्रण तैयार करें और फिर पूरे भारत की नदियों को साफ़ करने की परियोजना पर अमल शुरू हो| राज्य के युवा शोधकर्ता नए मिश्रणों के विकास और पारम्परिक मिश्रणों के व्यवसायीकरण का जिम्मा ले सकते हैं|
(लेखक कृषि वैज्ञानिक हैं और राज्य में पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान का दस्तावेजीकरण कर रहे हैं|)
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चाहे गंगा हो या महानदी प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में मेले के रूप में आम लोगों का बड़ी संख्या में जमावड़ा नदियों को प्रदूषित करने में कोई कसर नहीं छोड़ता है| पूजन सामग्री से लेकर गुटखों के पाउच-सब कुछ नदी में बहता है और प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से पर्यावरण को अपूरणीय क्षति पहुंचाता है| बेहतर तो यही होता कि सालाना मेलों की बजाय दस से बारह वर्षों में एक बार मेला लगता ताकि बीच के लम्बे समय में नदियों को सम्भलने का कुछ मौक़ा मिल सकता| पर यह सम्भव नहीं दिखता| ऐसे में छत्तीसगढ़ में जल से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान अहम भूमिका निभा सकता है| राज्य में अब तक २५० से अधिक ऐसी वनस्पतियों की पहचान हो चुकी है जो प्रदूषित जल को साफ़ करने का माद्दा रखती हैं| इन वनस्पतियों के आधार पर हजारों ऐसे मिश्रण बनाये जा सकते हैं जिनके प्रयोग से मेलों के दौरान नदियों के प्रदूषण को काफी हद तक कम किया जा सकता है|
यह विडम्बना ही है कि सबसे पहले छत्तीसगढ़ से ही मुनगा और निर्मली के बारे में जानकारी पूरी दुनिया को मिली पर आज राज्य में दोनों ही वनस्पतियों का प्रयोग जल शुद्धिकरण के लिए नहीं हो रहा है| नागपुर और दिल्ली के केन्द्रीय शोध संस्थानों ने मुनगा पर शोध किये और इस पर अपने शोध पत्र प्रकाशित कर यह सिद्ध किया गया कि यह प्रदूषित जल को साफ़ कर सकता है| फिर इस पर पेटेंट भी लिए गए| इसमें कहीं भी यह नहीं बताया गया कि यह छत्तीसगढ़ का पारम्परिक ज्ञान है| शोधकर्ता पुरुस्कारों से नवाजे गए पर शोध, दस्तावेजों तक ही सीमित रह गया| आफ्रीका ने इस शोध को अपनाया और आज बड़ी मात्रा में मुनगा का प्रयोग वहां जल शुद्धिकरण के लिए हो रहा है| मुनगा से अधिक प्रभावकारी निर्मली की अपने ही राज्य में अनदेखी की जा रही है|
राज्य में निर्मली के वृक्ष बड़ी संख्या में है| जल को निर्मल करने के कारण ही इसका नाम निर्मली पड़ा है| इसके सभी भाग औषधीय गुणों से परिपूर्ण होते हैं| प्रतिवर्ष दसों ट्रकों के माध्यम से इसकी आपूर्ति देश भर में की जाती है| राज्य के ग्रामीण अंचलों में अब भी जल शुद्धिकरण के लिए इसका प्रयोग होता है| मैंने अपने सर्वेक्षणों के माध्यम से ११० से अधिक ऐसे पारम्परिक मिश्रणों के बारे जानकारी एकत्र की है जिनमे निर्मली का प्रयोग मुख्य घटक के रूप में होता है| राज्य के पारम्परिक चिकित्सक कहते हैं कि यदि शहरी लोग इन मिश्रणों का प्रयोग नहीं करना चाहते हैं तो वे स्थायी समाधान के रूप में बड़ी संख्या में निर्मली के पौधे लगाकार पीढीयों तक जल स्त्रोतों को शुद्ध रख सकते हैं| एक समय इन्द्रावती और पैरी के किनारों पर बड़ी संख्या में ये वृक्ष थे| पर लकड़ी माफिया की लालची नजरों से ये बच नहीं सके|
निर्मली के अलावा जल स्त्रोतों के पास लगाये जाने वाले वृक्षों में डूमर का नाम सबसे ऊपर है| पीपल, बरगद, अर्जुन और चिरईजाम की जल शुद्धिकरण में अहम भूमिका है| बड़ी संख्या में अर्जुन के वृक्षों को सिरपुर मेला के आयोजन स्थल के आस-पास कुछ समय पहले तक देखा जा सकता था पर अब अतिरिक्त स्थान बनाने के लिए उन्हें बिना उनका महत्व जाने ही बेदखल कर दिया गया| इसका सीधा प्रभाव महानदी पर देखा जा सकता है| भविष्य में ऐसे आयोजनों को देखते हुए यह जरूरी है कि बड़ी संख्या में ऐसे वृक्षों को रोपा जाए और फिर उनकी रक्षा की जाए| सही मायने में तो मेला स्थलों में सीधे गाडी में बैठे-बैठे पहुँचने की बजाय काफी दूर पहले पार्किंग होनी चाहिए और फिर वहां से इन देशी वृक्षों के साए में पैदल चलकर स्थल तक आना चाहिए ताकि वृक्षों को नुक्सान न पहुंचे और साथ ही आम लोगों को इनके लाभ मिल सके|
राज्य में मैदा के वृक्ष गिनी चुनी संख्या में है| इनकी घटती संख्या देखकर इनके पौध भागों के एकत्रण पर प्रतिबंध है| ये वृक्ष जल शुद्धिकरण में निर्मली से हजारों गुना अधिक प्रभावकारी है| जिन जलस्त्रोतों के पास इनकी प्राकृतिक आबादी उपस्थित रहती है वहां से ही पारम्परिक चिकित्सक औषधीयों के निर्माण के लिए जल का एकत्रण करते हैं| राज्य में ऐसे कम स्थान हैं| मैदा का उपयोग बड़े पैमाने पर करने से पहले यह जरूरी है कि इन्हें व्यवसायिक स्तर पर पारम्परिक विधियों की सहायता से बढाया जाए फिर इनका उपयोग शुरू हो|
प्रतिवर्ष करोड़ों रूपये गंगा जैसी नदियों की सफाई में खर्च किये जाते हैं| यह काम पारम्परिक ज्ञान की सहायता से सस्ते में किया जा सकता है| मेला स्थलों में बेची जा रही पूजन सामग्री के साथ जल शुद्धिकरण के लिए उपयोगी पारम्परिक मिश्रण का एक पैकेट मुफ्त में दिया जा सकता है ताकि जब इन्हें नदी में विसर्जित किया जाए तो पारम्परिक मिश्रण भी पानी में चला जाए और इस तरह असंख्य लोगों के माध्यम से नदी के साफ़ होने की प्रक्रिया चलती रहे| एक बार पूजन सामग्री का हिस्सा बनाने के बाद यकीन मानिए पीढीयों तक यह परम्परा के रूप में जारी रहेगी और हमारी नदियाँ बची रहेंगी| भारत करोड़ों लोगों का देश है| यह हमारी खुशकिस्मती है जो हमारे पारम्परिक चिकित्सकों के पास सैकड़ों मिश्रण हैं| इन सब के प्रयोग से किसी वनस्पति विशेष की प्राकृतिक आबादी पर असर नहीं पड़ेगा| यह भी जान लेना जरुरी है कि माँ प्रकृति भी एक ही तरह के मिश्रण का प्रयोग नहीं करती हैं क्योंकि उनकी अपनी सीमाएं हैं| मसलन यदि केवल निर्मली का ही अधिक मात्रा में प्रयोग किया जाए तो मछलियों को नुक्सान पहुँच सकता है| पर जब मिश्रण के रूप में इसका प्रयोग किया जाता है तो इसका यह दुर्गुण समाप्त हो जाता है|
राज्य में प्रतिवर्ष राजिम अर्ध कुम्भ का आयोजन होता है| यदि योजनाकार चाहे तो इस अनूठे महाभियान की शुरुआत ही से शुरू हो सकती है| पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान के आधार पर राज्य के ग्रामीण युवा देश भर के लिए जल शुद्धिकरण के पारम्परिक मिश्रण तैयार करें और फिर पूरे भारत की नदियों को साफ़ करने की परियोजना पर अमल शुरू हो| राज्य के युवा शोधकर्ता नए मिश्रणों के विकास और पारम्परिक मिश्रणों के व्यवसायीकरण का जिम्मा ले सकते हैं|
(लेखक कृषि वैज्ञानिक हैं और राज्य में पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान का दस्तावेजीकरण कर रहे हैं|)
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Updated Information and Links on March 09, 2012
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Fistula (Fistula-in-ano): Bhagandar ke
liye Baheda (Bahera) ka Prayog (40 Herbal Ingredients, Tribal Formulations of West
Bengal; Not mentioned in ancient literature related to different systems of
medicine in India and other countries; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: भगन्दर के
लिए बहेड़ा का प्रयोग),
Zingiber officinale ROSC. in Pankaj Oudhia’s Research
Documents on Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Anal
Fistula (Fistula-in-ano): Bhagandar ke
liye Baheda (Bahera) ka Prayog (35 Herbal Ingredients, Tribal Formulations of Gujarat;
Not mentioned in ancient literature related to different systems of medicine in
India and other countries; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: भगन्दर के
लिए बहेड़ा का प्रयोग),
Zingiber purpureum ROSC. in Pankaj Oudhia’s Research
Documents on Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Anal
Fistula (Fistula-in-ano): Bhagandar ke
liye Baheda (Bahera) ka Prayog (29 Herbal Ingredients, Tribal Formulations of Gujarat;
Not mentioned in ancient literature related to different systems of medicine in
India and other countries; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: भगन्दर के
लिए बहेड़ा का प्रयोग),
Zingiber roseum ROSC. in Pankaj Oudhia’s Research Documents
on Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Anal Fistula
(Fistula-in-ano): Bhagandar ke liye
Baheda (Bahera) ka Prayog (45 Herbal Ingredients, Tribal Formulations of Gujarat;
Not mentioned in ancient literature related to different systems of medicine in
India and other countries; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: भगन्दर के
लिए बहेड़ा का प्रयोग),
Zingiber rubens ROXB. in Pankaj Oudhia’s Research Documents
on Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Anal Fistula
(Fistula-in-ano): Bhagandar ke liye
Baheda (Bahera) ka Prayog (8 Herbal Ingredients, Tribal Formulations of Jharkhand;
Mentioned in ancient literature related to different systems of medicine in
India and other countries; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: भगन्दर के
लिए बहेड़ा का प्रयोग),
Zinnia elegans JACQ. in Pankaj Oudhia’s Research Documents
on Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Anal Fistula
(Fistula-in-ano): Bhagandar ke liye
Baheda (Bahera) ka Prayog (15 Herbal Ingredients, Tribal Formulations of Jharkhand;
Not mentioned in ancient literature related to different systems of medicine in
India and other countries; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: भगन्दर के
लिए बहेड़ा का प्रयोग),
Zizyphus mauritiana LAM. in Pankaj Oudhia’s Research
Documents on Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Anal
Fistula (Fistula-in-ano): Bhagandar ke
liye Baheda (Bahera) ka Prayog (180 Herbal Ingredients, Tribal Formulations of West
Bengal; Not mentioned in ancient literature related to different systems of
medicine in India and other countries; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: भगन्दर के
लिए बहेड़ा का प्रयोग),
Zizyphus nummularia WIGHT & ARN. in Pankaj Oudhia’s
Research Documents on Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for
Anal Fistula (Fistula-in-ano): Bhagandar
ke liye Baheda (Bahera) ka Prayog (40 Herbal Ingredients, Tribal Formulations
of West Bengal; Not mentioned in ancient literature related to different
systems of medicine in India and other countries; पंकज अवधिया
के शोध दस्तावेज: भगन्दर के लिए बहेड़ा का प्रयोग),
Zizyphus oenoplia MILL. in Pankaj Oudhia’s Research
Documents on Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Anal
Fistula (Fistula-in-ano): Bhagandar ke
liye Baheda (Bahera) ka Prayog (19 Herbal Ingredients, Tribal Formulations of Jharkhand;
Not mentioned in ancient literature related to different systems of medicine in
India and other countries; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: भगन्दर के
लिए बहेड़ा का प्रयोग),
Zizyphus rugosa LAMK. in Pankaj Oudhia’s Research Documents
on Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Anal Fistula
(Fistula-in-ano): Bhagandar ke liye
Baheda (Bahera) ka Prayog (49 Herbal Ingredients, Tribal Formulations of Gujarat;
Not mentioned in ancient literature related to different systems of medicine in
India and other countries; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: भगन्दर के
लिए बहेड़ा का प्रयोग),
Zizyphus xylopyrus WILLD. in Pankaj Oudhia’s Research
Documents on Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Anal
Fistula (Fistula-in-ano): Bhagandar ke
liye Baheda (Bahera) ka Prayog (75 Herbal Ingredients, Tribal Formulations of West
Bengal; Not mentioned in ancient literature related to different systems of
medicine in India and other countries; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: भगन्दर के
लिए बहेड़ा का प्रयोग),
Zornia diphylla (L.) PERS. in Pankaj Oudhia’s Research
Documents on Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Anal
Fistula (Fistula-in-ano): Bhagandar ke
liye Baheda (Bahera) ka Prayog (41 Herbal Ingredients, Tribal Formulations of Gujarat;
Not mentioned in ancient literature related to different systems of medicine in
India and other countries; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: भगन्दर के
लिए बहेड़ा का प्रयोग),
Abelmoschus crinitus WALL. in Pankaj Oudhia’s Research
Documents on Indigenous Herbal Medicines (Tribal Herbal Practices) for Anal
Fistula (Fistula-in-ano): Bhagandar ke
liye Baheda (Bahera) ka Prayog (22 Herbal Ingredients, Tribal Formulations of Jharkhand;
Not mentioned in ancient literature related to different systems of medicine in
India and other countries; पंकज अवधिया के शोध दस्तावेज: भगन्दर के
लिए बहेड़ा का प्रयोग),
Sonchus brachytus DC. and Lantana camara L. (Gotiphool) with
other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh,
India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge
Database) on use of Alien Invasive species as additional ingredient in Traditional
Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for Face- wrinkled .
Sonchus oleraceus L. and Lantana camara L. (Gotiphool) with
other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh,
India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge
Database) on use of Alien Invasive species as additional ingredient in
Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for Mouth- heat,
morning .
Sonchus wightianus DC. and Lantana camara L. (Gotiphool)
with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of
Chhattisgarh, India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database
(Traditional Knowledge Database) on use of Alien Invasive species as additional
ingredient in Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for
Stomach- eructations
Sonerila tenera ROYLE and Lantana camara L. (Gotiphool) with
other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh,
India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge
Database) on use of Alien Invasive species as additional ingredient in
Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for Mouth- pain,
sore .
Sophora glauca LESCH. EX DC. and Lantana camara L. (Gotiphool)
with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of
Chhattisgarh, India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database
(Traditional Knowledge Database) on use of Alien Invasive species as additional
ingredient in Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for
Stomach- pain, burning
Sophora tomentosa L. and Lantana camara L. (Gotiphool) with
other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh,
India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge
Database) on use of Alien Invasive species as additional ingredient in
Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for Mouth- pain,
sore, tongue .
Sopubia delphinifolia G. DON and Lantana camara L. (Gotiphool)
with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of
Chhattisgarh, India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database
(Traditional Knowledge Database) on use of Alien Invasive species as additional
ingredient in Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for
Mouth- taste, slimy .
Sorghum halepense (L.) PERS. and Lantana camara L.
(Gotiphool) with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants
of Chhattisgarh, India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database
(Traditional Knowledge Database) on use of Alien Invasive species as additional
ingredient in Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for
Mouth- taste, sour .
Soymida febrifuga (ROXB.) A.JUSS. and Lantana camara L.
(Gotiphool) with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants
of Chhattisgarh, India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database
(Traditional Knowledge Database) on use of Alien Invasive species as additional
ingredient in Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for
Stomach- pain, gnawing
Spathodea campanulata P. BEAUV. and Lantana camara L.
(Gotiphool) with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants
of Chhattisgarh, India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database
(Traditional Knowledge Database) on use of Alien Invasive species as additional
ingredient in Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for
Teeth- caries, decayed, hollow .
Sphaeranthus hirtus
WILLD. and Lantana camara L. (Gotiphool) with other Herbal Ingredients:
Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh, India) from Pankaj
Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional Knowledge Database) on use of
Alien Invasive species as additional ingredient in Traditional Indigenous
Herbal Medicines (Herbal Formulations) for Urethra, ulceration, meatus .
Sphaeranthus senegalensis DC. and Lantana camara L.
(Gotiphool) with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants
of Chhattisgarh, India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database
(Traditional Knowledge Database) on use of Alien Invasive species as additional
ingredient in Traditional Indigenous Herbal Medicines (Herbal Formulations) for
Teeth- pain, drawing .
Sphenoclea zeylanica GAERTN. and Lantana camara L.
(Gotiphool) with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants
of Chhattisgarh, India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database
(Traditional Knowledge Database) on use of Alien Invasive species as additional
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Abdomen-liver and region of
Sphenomeris chinensis (L.) MAXON and Lantana camara L.
(Gotiphool) with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants
of Chhattisgarh, India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database (Traditional
Knowledge Database) on use of Alien Invasive species as additional ingredient
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Spilanthes calva WT. and Lantana camara L. (Gotiphool) with
other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of Chhattisgarh,
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Database) on use of Alien Invasive species as additional ingredient in
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Spilanthes oleracea L. and Lantana camara L. (Gotiphool)
with other Herbal Ingredients: Research Documents (Medicinal Plants of
Chhattisgarh, India) from Pankaj Oudhia’s Medicinal Plants Database
(Traditional Knowledge Database) on use of Alien Invasive species as additional
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Abdomen-spleen, complaints of
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निर्मली का चित्र और मिश्रण बनाने की जानकारी का विस्तार बतायें!
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आभार ... निर्मली वृक्ष और जलशुद्धिकरण के बारे में जानकारी देने के लिए.