कही खान-पान ही तो उत्तरदायी नही है आपकी स्वास्थ्य समस्याओ के लिये?

कही खान-पान ही तो उत्तरदायी नही है आपकी स्वास्थ्य समस्याओ के लिये?
- पंकज अवधिया


कुछ महिनो पहले एक व्यक्ति मेरे पास बालो के झडने की शिकायत लेकर आये। यह समस्या उन्हे हाल ही मे शुरु हुयी थी। पर चन्द दिनो मे ही उन्होने बहुत से उपाय कर डाले थे। महंगे से महंगा इलाज भी करवा लिया था पर फिर भी बाल गिरते ही जा रहे थे। मैने विस्तार से समस्या के बारे मे पूछा तो उन्होने बताया कि बालो गुच्छो के रुप मे गिर रहे है। जहाँ से बाल गिरते है उस स्थान पर बहुत खुजली होती है। बार-बार खुजाने का मन करता है। जब उन्होने यह बात त्वचा रोग विशेषज्ञ को बतायी थी तो उन्हे एक क्रीम दे दी गयी थी। पर न तो खुजली कम हुयी न ही बालो का गिरना।मैने उनकी पूरी बात सुनी और कहा कि आप पहले अपने प्रयोग कर ले। यदि सफलता न मिले तब मेरे पास आइयेगा। विस्तार से बात करेंगे। उन्होने पूछा कि क्या आप भी कोई दवा देंगे? मैने कहा कि नही, हम विस्तार से चर्चा करेंगे ताकि समस्या की जड तक पहुँच सके। उन्हे मधुमेह था। साथ मे उच्च रक्तचाप की शिकायत भी।

एक दिन सुबह वे फिर आ गये और समस्या समाधान की जिद करने लगे। मैने उनसे पूछा कि आप दिन भर मे क्या-क्या खाते है? उन्होने कहा कि ज्यादा कुछ नही। सुबह नाश्ते मे ब्रेड जैम लेता हूँ। दोपहर मे रोटी सब्जी और शाम को इससे भी हल्का खाना। मधुमेह के भय से वे ज्यादा ही परेशान थे। मैने उनकी दिनचर्या भी पूछी। उसमे भी कोई गडबडी नजर नही आयी। फिर मैने मधुमेह के लिये किये जा रहे प्राकृतिक उपायो के बारे मे पूछा तो उन्होने बताया कि वे कुछ न कुछ जडी-बूटियाँ लेते ही रहते है। पिछले कुछ समय से वे सदासुहागन के फूल खा रहे थे। एक फूल पहले दिन, दो फूल दूसरे दिन, तीन फूल तीसरे दिन इस तरह 21 दिन तक फूलो की संख्या बढानी थी और फिर उसी क्रम मे घटानी थी। मैने पूरी जानकारी लेने के बाद उन्हे दूसरे दिन आने को कहा।

मैने जब अपने डेटाबेस को खंगाला तो सदासुहागन पर बात अटक जाती थी। सदासुहागन जिसका वैज्ञानिक नाम कैथेरेंथस रोसियस है, एक उपयोगी औषधीय वनस्पति है। रक्त कैंसर मे इससे तैयार होने वाली दवाए कारगर मानी जाती है। मधुमेह की सफल चिकित्सा का दावा करने वाले देशी विशेषज्ञ इस विदेशी पौधे के बडे हिमायती है। यही कारण है कि आम लोगो मे इसका उपयोग बडा ही लोकप्रिय है। पर हर वनस्पति के अपने गुण-दोष होते है। प्रयोग विधियाँ और सीमाए होती है। सदासुहागन की भी है। मेडागास्कर के मूल निवासी रोगी की दशा देखकर यह निर्धारित करते है कि यह वनस्पति किस मात्रा मे देनी है। यह मेडागास्कर की ही मूल वनस्पति है। इसके गलत प्रयोग से शरीर मे कई तरह के बुरे लक्षण पैदा होते है। उन व्यक्ति को जिस तरह की समस्या हो रही थी वैसी समस्या सदासुहागन के गलत प्रयोग से हो सकती है। काफी विचार मंथन के बाद मैने कुछ समय के लिये इसके प्रयोग को रोक देने की बात कही। बडी मुश्किल से वे माने।

अगले सप्ताह वे नये उत्साह से भरे हुये दिखे। उनकी समस्या काफी हद तक सुलझ गयी थी।

ऐसे ही एक सज्जन शरीर मे बार-बार होने वाले फोडो से परेशान थे। मधुमेह के रोगी थे इसलिये हर बार नश्तर की जरुरत होती और डाक्टरी खर्च से महिने का बजट बिगड जाता। मै जिस हेल्थ क्लब मे जाता हूँ वही वे भी आते है। एक दिन उन्होने यह समस्या मेरे सामने रखी और जडी-बूटी की माँग की। मैने कहा कि आप विस्तार से अपने खान-पान के विषय़ मे बताइये। उन्होने बताया पर ऐसा कुछ भी विशेष नजर नही आया जिससे फोडो का सम्बन्ध दिखे। मैने एक बार फिर से उनसे वही सब पूछा और फिर कुछ समय के लिये दिनचर्या मे प्याज के कम से कम प्रयोग की सलाह दी। पन्द्रह दिनो के बाद वे आये और उन्होने कहा कि अब फोडे नही हो रहे है। उसके बाद उन्होने प्याज से दूरी बनाये रखी और फोडो से बचते रहे।

आम लोगो को अदरक बहुत भाता है। रोज अदरक की चाय पीते है और साथ ही अदरक को किसी न किसी रुप मे लेते ही है। अदरक का प्रयोग मौसम विशेष मे न करके साल भर करते है और यदि उन्हे टोको तो झट से कहते है कि यह तो हर्बल है, इससे भला क्या नुकसान होगा। पर अदरक के प्रयोग की अपनी सीमाए है। नाना प्रकार के त्वचा रोगो से प्रभावित व्यक्तियो को अदरक का प्रयोग सम्भलकर करने की सलाह दी जाती है। श्वेत कुष्ठ (ल्यूकोडर्मा) के रोगियो को तो अदरक मे प्रयोग की सख्त मनाही है। देश के सभी भागो मे पारम्परिक चिकित्सक गर्मियो के इसके लगातार प्रयोग के पक्षधर नही है।

उपरोक्त तीन उदाहरण यह दर्शाते है कि कैसे हमारा खान-पान ही हमारी स्वास्थ्य समस्याओ से जुडा हुआ है। जरा सी भी तकलीफ होने पर हम डाक्टरो की ओर भागते है। महंगी दवाओ पर निर्भर हो जाते है पर खान-पान मे सुधार नही करते है। समस्या बनी रहती है। हमारे देश मे स्व-चिकित्सा का जो दौर चला है उससे आने वाले समय मे बडी संख्या मे इससे प्रभावित रोगी सामने आ सकते है। अभी से स्व-चिकित्सा के दुष्परिणाम सामने आ रहे है। जिसे जो सूझ रहा है, मनमाने ढंग से उपयोग कर रहा है। इतना ही नही दूसरो को भी सलाह दे रहा है।

यदि आप अस्वस्थ है तो डाक्टर के पास जाने से पहले अपने खान-पान पर एक नजर डाले। हो सकता है कि जरा सी समझ-बूझ से आप घर बैठे ही समस्या का समाधान प्राप्त कर ले।

(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)



Updated Information and Links on March 09, 2012

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Comments

यदि आप अस्वस्थ है तो डाक्टर के पास जाने से पहले अपने खान-पान पर एक नजर डाले। हो सकता है कि जरा सी समझ-बूझ से आप घर बैठे ही समस्या का समाधान प्राप्त कर ले।
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यह बहुत सही बात लगती है मुझे। अगर कुछ गलत हो तो पहले अपने आचार-विचार को टटोलना चाहिये।
Unknown said…
मेरा तो मानना है कि ज्यादातर स्वास्थ्य समस्याओं के लिये केवल खान-पान ही जिम्मेदार होता है। आप एक विद्वान लेखक हैं आप अपने ग्यान का इन्तरनेट के माध्यम से प्रसार कर सच्ची मानव सेवा कर रहे हैं। शुभकामनाएं!

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